क्या आप जानते हैं सफलता के इको के बारे में ?
ओमकार मणि त्रिपाठी ( पूर्व प्रकाशित ) मैं समुद्र के किनारे बैठा हुआ था | लहरे आ रही हैं जा रही थीं | बड़ा ही मनोरम दृश्य था | पास में कुछ बच्चे खेल रहे थे | एक बच्चे के हाथ से नारियल छूट कर गिर गया | लहरें उसे दूर ले गयीं | बच्चा रोने लगा | तभी लहरे पलट कर आयीं , शायद बच्चे का नायियल वापस करने , वो नारियल वापस कर फिर अपनी राह लौट गयीं | माँ बच्चे को गोद में उठा कर बोली , “ देखो तुमने समुद्र को नारियल दिया था तो उसने भी तुम्हें नारियल दिया | रोया न करो , अपनी चीज बांटोगे तो दूसरा भी अपनी चीज देगा | ऐसे ही एक कहानी मुझे माँ बचपन में अक्सर सुनाया करती थीं | कहानी इस प्रकार है …. एक माँ, अपने नन्हें पुत्र की साथ पर्वत की चढ़ाई कर रही थी, अचानक पुत्र का पैर फिसल गया और वो गिर पड़ा। चोट लगते ही वो जोर से चिल्लाया- आह… ह.ह.ह.ह…..माँ.…। पुत्र चौंक पड़ा क्योंकि पहाड़ से ठीक वैसी ही आवाज लौटकर आई। अचम्भा से उसने प्रश्न किया- कौन हो तुम? पहाड़ों से फिर से आवाज आई- कौन हो तुम? पुत्र चिल्लाया- मैं तुम्हारा मित्र हूँ! आवाज आई- मैं तुम्हारा मित्र हूँ! किसी को सामने न पाते हुए पुत्र गुस्से से चिल्लाया- तुम डरपोंक हो! आवाज लौटी- तुम डरपोंक हो! पुत्र आश्चर्य में पड़ गया, उसने अपनी माँ से पूछा- ये क्या हो रहा है? वो जोर से चिल्लाई- तुम एक चैम्पियन हो, और एक अच्छे बेटे! पहाड़ों से आवाज लौटी- तुम एक चैम्पियन हो, और एक अच्छे बेटे! उन्होंने दोबारा चिल्लाया- हम तुमसे बहुत प्यार करते हैं। आवाज लौटी- हम तुमसे बहुत प्यार करते हैं। बच्चा ने दोबारा वही पुछा- ये क्या हो रहा है? तभी माँ ने उसे जीवन का सबसे महत्वपूर्ण पाठ पढ़ाते हुए कहा- बेटा, आम शब्दों में लोग इसे इको कहते हैं लेकिन असल में यही जिंदगी है। जिंदगी में आपको जो कुछ भी मिलता है, वो आपका ही कहा या फिर किया हुआ होता है। जिंदगी तो सिर्फ हमारे कार्यों का आईना होती है। यदि हमें अपनी टीम से श्रेष्ठता की उम्मीद रखना है, तो हमें खुद में श्रेष्ठता लाना होगा। यदि हम दूसरों से प्यार की उम्मीद करते हैं, तो हमें दूसरों से दिल खोलकर प्यार करना होगा। आखिर में, जिंदगी हमें हर वो चीज लौटाती है, जो हमने दिया है।, ऐसा ही एक उदाहरण और है | वो उदाहरण एक खेल का है | उस खेल का नाम है बुमरेग | ये एक ऐसा खेल है जिसमें हम बुमेरैंग को जितनी तेजी से फेंकते हैं | यह उतनी ही तेजी से हमारे पास पलट कर आता है | अगर विज्ञानं की भाषा में कहें तो यह न्यूटन का थर्ड लॉ फॉलो करती है वही क्रिया प्रतिक्रिया का | क्या यही हमारी जिंदगी भी नहीं है ? गौर से सोंचिये ये तीनों उदाहरण यही बताते हैं की हम जो भी शब्द दूसरों के लिए प्रयोग करते हैं, वो एकदिन घूमकर हमारे पास आता ही है। हम जो भी इस दुनिया को देते हैं, एक दिन वह कई गुना होकर हमारे पास लौट आता है। समुद्र हो , पहाड़ हो , नदी हो या प्रकृति का कोई अन्य हिस्सा , सब के सब मौन होते हुए भी हमें बहुत कुछ समझाते हैं | इसी को हमारे पूर्वजों ने बहुत पहले ही प्रकृति से समझ कर एक सूत्र वाक्य में पिरो दिया था “ जैसी करनी वैसी भरनी “ | जो दोगे वही मिलेगा | जीवन का सबसे बड़ा सिद्धांत यही है, कि आप जो बोयेंगे, एकदिन वही आपको काटना पड़ेगा। जो भी चीजें आप अपने लिए सबसे ज्यादा चाहते हैं, उसे सबसे ज्यादा बाँटिये। यदि आप दूसरों से सम्मान पाना चाहते हैं, तो आपको दिल खोलकर दूसरों का सम्मान करना होगा। लेकिन यदि आप दूसरों का तिरस्कार करेंगे तो बदले में आपको भी वही मिलेगा।यदि आप चाहते हैं कि मुश्किल परिस्थितियों में दूसरे आपका साथ दें, तो आप उनकी मुश्किलों में उनके साथ खड़े रहिये। यदि आप प्रशंसा करेंगे, तो वही आपको मिलेगा। यही तो जीने का नियम है, हमारे पूर्वज धर्मिक संस्कार के रूप में हमें इसे मानना सिखा भी गए हैं | तभी तो हम अन्न प्राप्ति कि इच्छा के लिए अन्न दान , धन प्राप्ति कि इच्छा के लिए अर्थ दान करते हैं | पर जब बात सफलता कि आती है तो हम यह कहने से नहीं चूकते कि आज कि अआज़ की गला काट प्रतिस्पर्धा के युग में किसी कि नीचे गिराए बिना आप ऊपर चढ़ नहीं सकते | युद्ध , प्रेम और सफलता के मार्ग में सब जायज है का नारा लागाते हुए हम दूसरे कि सफलता को देख कर मन में यह भाव पाल लेते हैं की अगर वह सफल है तो मैं सफल नहीं हो सकता | यही से इर्ष्या कि भावना पनपने लगती है जो अनेकों नकारात्मक विचारों का मूल है | डेल कार्नेगी के अनुसार, “जीतने का सबसे सरल रास्ता है कि आप दूसरों को उनकी जीत में मदद करें।यदि आप जीतना चाहते हैं, तो दूसरों की सफलता के हितैषी बनिए। जो आप देंगे वो कई गुना लौटकर आपके पास आएगा।” यह अलिखित नियम है कि अगर हम किसी कि सफलता के बारे में नकारात्मक विचार रखेंगे तो सदा असफल ही होएंगे | इसका कारण यह भी है कि जब आप किसी सफल व्यक्ति से ईर्ष्या करते हैं तो आप का ध्यान अपने काम में नहीं लगता बल्कि दूसरे को नीचा दिखाने में लगा रहता है | सफलता तभी संभव है जब हम किसी काम में बिना आगा पीछा सोचे पूरी तरह से डूब जाए | ऐसा वही लोग कर पाते हैं जिन्हें अपने काम से प्यार होता है | इस प्यार का प्रतिशत जितना ज्यादा होता है व्यक्ति उतना ही सफल होता है | क्योंकि हम जिससे प्यार करते हैं हर हाल में उसकी भलाई देखते हैं | मान लीजिये जब आप चित्रकारी या लेखन से वास्तव में प्यार करतें है तो आप किसी दूसरे का चित्र या लेख देख पढ़ कर प्रसन्न होने कि वाह कितना अच्छा काम किया जा रहा है इस क्षेत्र में | आप उसकी बारीकियों पर गौर कर उसे सराहेंगे | यह सराहना आप को और अच्छा काम करने कि प्रेरणा देगी |आप अपने क्षेत्र में … Read more