बैसाखियाँ

                                                                           बैसाखियाँ  जब जीवन के पथ पर  गर्म रेत सी लगने लगती   दहकती  जमीन जब बर्दाश्त के बाहर हो जाते  है दर्द भरी लू  के थपेड़े संभव नहीं दिखता  एक पग भी आगे बढ़ना और रेंगना बिलकुल असंभव तब ढूढता है मन बैसाखियाँ २ ) ठीक उसी समय बैसाखियाँ ढूंढ रही होती हैं लाचार लाचारों  के बिना खतरे में होता है उनका वजूद आ जाती हैं देने सहारा गड जाती हैं बाजुओं में एक टीभ सी उठती है सीने के बीचो -बीच विवशता है सहनी ही है यह गडन  लाचारी  ,और बेबसी से भरी नम आँखें बहुधा नजरंदाज करती हैं बैसाखियाँ ३ ) मानता है अपंग लौटा नहीं जा सकता अतीत में न मांग कर लाये जा सकते हैं दबे कुचले  पाँव जीवन है तो चलना है गर जारी रखनी है यात्रा आगे की तरफ तो जरूरी है लेना बैसाखियों का सहारा ४ ) बैसाखियाँ कभी हौसला नहीं देती वो  देती है सहारा कराती हैं अहसास अपाहिज होने का जब आदत सी बन जाती हैं बैसाखियाँ तब मुस्कुराती हैं अपने वजूद पर कि कभी -कभी भाता  है उनको देखना गिरना -पड़ना और रेंगना की बढ़ जाता है उनका कुछ कद साथ ही बढ़ जाती है लाचार के बाजुओ की गडन ५ ) बैसाखियाँ प्रतीक हैं अपंगता की बैसाखियाँ प्रतीक हैं अहंकार की बैसाखियाँ प्रतीक हैं शोषण की फिर भी आज हर मोड़ पर मिल जाती हैं बैसाखियाँ बिना किसी रंग भेद के बिना किसी लिंग भेद के देने को सहारा या एक दर्द भरी गडन जो रह ही जाती है ताउम्र ६ ) बैसाखियाँ सदा से थी ,है और रहेंगी जब -जब भावुक लोग महसूस करेगे अपने पांवों को कुचला हुआ तब -तब वजूद में आयेगी  बैसाखियाँ इतरायेंगी  बैसाखियाँ सहारा देकर स्वाभिमान छीन  ले जायेंगी बैसाखियाँ जब तक भावनाओं  के दंगल में हारा ,पंगु हुआ पथिक अपने आँसू खुद पोछना नहीं सीख जाएगा तब तक बैसाखियों का कारोबार यूँ ही फलता -फूलता जाएगा वंदना बाजपेई atoot bandhan  ………कृपया क्लिक करे 

मोक्ष

 मोक्ष   जैसा की हमेशा होता है बच्चे जब छोटे होते हैं तो उन्हें दादी – नानी धार्मिक कहानियां सुनाती हैं । ऐसा  ही धर्मपाल के साथ भी हुआ । गरीब परिवार में जन्म लिया था …. पिता चौकीदार थे … माँ एक बुजुर्ग स्त्री की देखबाल करने जाया करती थीं । घर में रह जाते थे दादी और धर्मपाल । दादी धर्मपाल को धर्म की कहानियां सुनाया करती थीं । कर्म का फल कैसे मिलता है , कैसे जो लोग इस जन्म में अच्छे कर्म करते हैं उन्हें अगले जन्म में सब सुख सुविधाएँ मिलती हैं …. राजयोग बनता है … मिटटी में भी हाथ लगाओ तो सोना बन जाती है । धर्मपाल बुद्धिमान थे … गणित के हिसाब से धर्म को भी मान लिया । इस जन्म का हर कष्ट अगले जनम में सुख सुविधाओं की गारंटी  है । धीरे – धीरे धर्मपाल बड़े हुए । पढने में तेज़ थे । प्रतियोगी परीक्षा में सफल हुए और देखते देखते सी पी डब्लू डी  में इंजीनियर के पद पर नियुक्त हो गए । माँ – बाप बहुत खुश थे । लड़का अब उनकी गरीबी मिटा देगा । अच्छी जगह शादी करेंगे ढेर सारा दहेज़ लेंगे । पर धर्मपाल अड़ गए । दहेज़ नहीं लेंगे … लड़की उनके यहाँ दो कपड़ों में आएगी । माँ बाप ने बहुत समझाया पर धर्मपाल  ना माने । माँ बाप ने सोंच समझकर एक अमीर घराने की लड़की से उसकी शादी कर दी । सोंचा अभी ना सही धीरे – धीरे ही सही ससुराल से कुछ तो आता ही रहेगा । लड़की के माँ बाप ने भी इंजीनियर समझ कर शादी की थी कि भले ही ससुराल खाली हो पर लड़का नोटों से घर भर देगा । पर  हुआ बिलकुल विपरीत । धर्मपाल जी को अपनी पत्नी का मायके से रुमाल लाना भी नागवार था । और विभाग ?  विभागीय आमदनी की स्थिति तो ये  थी की ना  खुद खाते थे ना खाने की इज़ाज़त देते थे । ऊपर वाले भी नाखुश … नीचे वाले भी नाखुश । हर चार महीने में तबादला हो जाता । फिर भी जब उनपर कोई असर नहीं पड़ा तो उन्हें एक केस बनाकर झूठे मामले में फंसा दिया गया । धर्मपाल जी निलंबित हो गए । घर में खाने के लाले पड़ गए । पत्नी अभावों से घबड़ाकर मायके चली गयी । पर धर्मपाल बहुत खुश थे कि अगला जन्म उन्हें बहुत अच्छा मिलने वाला है । जैसे डाइटिंग करते समय लोग अपनी एक – एक कैलोरी गिनते हैं वैसे ही धर्मपाल जी भी एक -एक पुन्य गिनते और  हिसाब लगाते कि अगले जन्म में वो क्या बनेंगे । काम तो कुछ था नहीं … बच्चों को ट्यूशन पढ़ाते । बाकी समय अपने पुण्य गिनते। …. दहेज़ नहीं लिया, शहर के सबसे अमीर आदमी बनेगे क .P.WD में   रहे और रिश्वत नहीं ली। …. जरूर टाटा बिरला के यहाँ पैदा होंगे। अपने हर पुण्य  के साथ अपने को एक पायदान ऊपर पहुंचा कर अगले जन्म की कल्पना में खुश रहते ।धीरे -धीरे वो देश के प्रधान मंत्री तक पहुँच गए। अब उन्होंने  और पुण्य कमाने की और गणित बिठाने की कोशिश शुरू कर दी  ।अब उन्हें पक्का यकीन हो गया की अगले जनम में अमेरिका के राष्टपति की कुर्सी उन्हें ही मिलेगी। वो बहुत खुश रहने लगे लोग उन्हें पगला कहते थे।  एक दिन धर्मपाल की मृत्यु हो गयी । उनकी आत्मा ऊपर की दिशा में चल दी । धर्मपाल बहुत खुश थे … अगला जन्म सोंच – सोंच कर रोमांचित हो रहे थे । सामने प्रभु दिखाई दिए । प्रभु बोले … धर्मपाल तुमने बहुत पुन्य किये हैं । धर्मपाल बीच में ही बात काटकर बोले हां प्रभु मैं जानता हूँ आप मुझे क्या देने वाले हैं … मन ही मन प्रधान मंत्री की कुर्सी , टाटा – बिडला के यहाँ जन्म या अमेरिका के राष्ट्रपति की कुर्सी  आदि उन्हें दिखाई दे रहा था । प्रभु मुस्कुराये … वत्स मैं तुम्हे मोक्ष दूंगा … तुम अब दुबारा जन्म नहीं लोगे । धर्मपाल तेज़ प्रकाश पुंज में समाहित होने लगे …. लेकिन उनकी निगाहें अभी भी कुर्सी  पर टिकी थी  … गणना चल रही थी ………   हिसाब तो पूरा बराबर था पर ये  क्या उल्टा हो गया , कौन से पुण्य ज्यादा हो गए ? वंदना बाजपेई  (चित्र गूगल से साभार ) 

रिश्तों को दे समय

                     रिश्तों को दे समय  न  मिटटी न गारा, न सोना  सजाना  जहाँ प्यार देखो वहीं घर बनाना कि  दिल कि इमारत बनती है दिल से दिलासों को छू के उमीदों से मिल के                                       एक खूबसूरत गीत कि ये पंक्तियाँ आज के दौर में इंसान और रिश्तीं के बारे में  बहुत कुछ सोचने को विवश कर देती हैं |आज जब कि भौतिकतावाद हावी हो चुका है |ज्यादासे ज्यादा नाम ज्यादा से ज्यादा पैसा कमाने की होड़ में आदमी दिन -रात मशीन की तरह काम कर रहा है |बच्चों को महंगे से महंगे स्कूल में दाखिला करा दिया ,ब्रांडेड कपडे पहन लिए ,महीने में चार बार मोबाइल या गाडी बदल ली |फिर भी अकेलापन महसूस होता है |बहुत कुछ पा के भी लगता है जैसे खाली हाथ  रह गए| जो जितना पैसे वाला वो उतना ही अकेलापन महसूस करता है |कारण बस एक ही है घर तो बनाया ही नहीं महल बनाने में लगे रहे |यह जरूरी है कि महंगाई के दौर में पैसा कमाना जरूरी है पर कितना ?ये प्राथमिकता तय करनी ही पड़ेगी |वास्तव में  ये पूरा जीवन प्राथमिकताओ के आधार पर चलता है |आप जिस चीज को प्राथमिकता देते हैं वही बढती है खिलती है |अगर आप धन ,यश ,ओहदे को प्राथमिकता देंगे तो वो बढेगा |पर रिश्ते सूख जाएँगे |रिश्तों को खिले रखने के लिए जरूरी है सिर्फ प्यार देना …. और समय देना | पर एक विशेष बात याद रखनी पड़ेगी आप अपने बच्चे से माता –पिता  से भाई -बहन से कितना भी प्यार करते हों अगर आप उनको समय नहीं देते तो ये वृक्ष सूख जायेंगे | कभी इस बात पर गौर करिए कि जब भी किसी मनोरोग विशेषग्य के पास कोई मरीज जाता है तो पहला प्रश्न ही यहीं होता है “आप का बचपन कैसा बीता |” बीमारियों से त्रस्त  ज्यादातर लोगों में यह बात ऊभर कर आई है कि उन्हें  बचपन में पर्याप्त प्यार नहीं मिला |ये बात कहीं न कहीं एक ग्रंथि बन गयी |जो बड़ा होने पर भी एक बेचैनी एक छटपटाहट के रूप में शेष रह गयी । महंगे कैनवास शूज चाहे हजारों किलोमीटर कि यात्रा कर ले पर पिता के साथ पिलो फाइटिंग में बिताए गए दस मिनट कि दूरी कभी नहीं माप पाते । महंगे टेडी बियर माँ के स्नेहिल स्पर्श को कभी छू नहीं पाते । एक पत्नी कि सुन्दरता की तारीफ़ चाहे सारा  संसार कर ले पर अगर पति के पास देखने की भी फुर्सत नहीं है तो सब कुछ व्यर्थ ,सब कुछ बेमानी सा लगता है हर पति अपनी छोटी से छोटी उपलब्धि सबसे पहले अपनी पत्नी को बताना चाहता है.… पर अगर पत्नी ही उस बात पर ध्यानं न दे तो लगता है जैसे सब कुछ पा कर भी किसी ने सब कुछ लूट लिया हो । अगर आप को अपने जीवन के पहले दोस्त अपने भाई या बहन से बात करने के लिए अपॉइंटमेंट लेना पड़े तो इंतज़ार कि हर घडी के साथ रिश्तों में खोखलापन नजर आने लगता है महंगे गिफ्ट मुँह चिढाते है हर गिफ्ट के साथ स्नेह के वृक्ष पर थोडा सा तेज़ाब गिर जाता है ॥……… और अन्दर ही अन्दर कुछ सूख जाता हैं ॥ कभी सोचा है इन अमीर गरीबों का दर्द। …………. (क्रमश ) वंदना बाजपेई (चित्र गूगल से ) अटूट बंधन ………… हमारा फेस बुक पेज 

पोलिश

                                     ********* विवेक ने मुस्कुराते हुए निधि कीआँखों पट्टी खोलते हुए कहा “देखिये मैडम अपना फ्लैट …. अपना ताजमहल , अपना घर … जो कुछ भी कहिये निधि फ्लैट देख कर ख़ुशी से चिहुकने लगी “वाह विवेक ,कितना सुन्दर है पर ये क्या इतने आईने लगा दिए ,जगह -जगह पर क्यों ?विवेक :ये तुम्हारे लिए हैं निधिनिधि :मेरे लिए (ओह ! माय गॉड ) चाहे जितने आईने लगवा लो अब इस उम्र में मैं ऐश्वर्या राय तो दिखने से रही (निधि हँसते हुए बोली ) विवेक: ये चेहरा देखने के लिए नहीं है ,ये तुम्हे समझाने के लिए हैंनिधि :(हँसते हुए )क्या समझाने के लिए ,रिफ्लेक्सन ऑफ़ लाइट ,इमेज फार्मेशन ,जितनी आगे ,उतनी पीछे , वर्चुअल ,लेटरली इनवर्टेड ,क्या विवेक ?विवेक :इतना सब कुछ बता गयी पर वो पोलिश भूल गयी ,जिसके बाद ही शुरू होता है देखने ,दिखने का सिलसिला ……………. यही भूल जाती हो तुम हमेशा इसीलिए कभी देख नहीं पाती असली अक्स न अपना न किसी का …………..निधि की आँखों में आंसूं आ गए …………… गुजरा वक्त सामने आकर खड़ा हो गया ……..एक पोलिश की ही तो कमी थी तभी तो हर किरण गुजरती रही आर पार ,एक सामान ,एक ही तरीके से ,जान ही नहीं पायी किसी का असली रूप ,असली प्रतिबिम्ब । आह ! आइना बनने के लिए पोलिश जरूरी है ,अन्यथा वो बस कांच का टुकड़ा रह जाता है  वंदना बाजपेई  (चित्र गूगल से ) atoot bandhan ……… हमारा फेस बुक पेज 

व्यर्थ में न बनाये साहित्य को अखाड़ा

                                          ये विवाद सदा से चलता रहेगा कि कौन सा साहित्य बेहतर है ” गहन या लोकप्रिय”………  अपनी विद्वता सिद्ध करने के लिए या अपनी हताशा छिपाने के लिए साहित्यकारों में यह एक मुद्दा बना ही रहता है। पर मैं इस विवाद को सिरे से नकारती हूँ ………  दरसल साहित्य के रचियताओ ने साहित्य कि परिभाषा ही बिगाड़ दी है।  साहित्य कि एक मात्र सार्थक परिभाषा तुलसीदास जी ने दी थी जब वो कहते हैं ” कीरति भनिति भूति भलि सोई । सुरसरि सम सब कहँ हित होई।। “                                                     मेरे विचार से    साहित्य जनता तक अपनी बातो को,विचारों को  पहुचाने का माध्यम है अगर वो  महज पांडित्य प्रदर्शन का माध्यम बन कर रह गया तो  केवल लाइब्रेरियों में सज कर रह जाएगा,आम जनता न उसे समझ पाएगी न स्वीकार कर पाएगी।  फिर भी अगर  साहित्यकारों का यही उदेश्य है तो कुंठा क्यों ?वस्तुत : मैं प्रभात रंजन जी कि इस बात से सहमत हूँ कि आज का साहित्य आलोचकों को संतुष्ट करने के लिए लिखा जा रहा है. जो उसे क्लिष्ट और दुरूह बना रहा है ,साथ ही आम जनता कि पहुँच से बहुत दूर भी।  ऐसा साहित्य केवल साहित्य वर्ग में ही सराहा जाता है और कुछ त्रैमासिक , अर्धवार्षिक , वार्षिक साहित्यिक लघुपत्र -पत्रिकाओ में ही सिमिट  जाता है।” व्यापक रूप से न सराहे जाने न पढ़े जाने का क्षोभ साहित्यकारों कि बातों से साफ़ झलकता है.। इस निराशा के लिए  साहित्यकार और आलोचक और उनके द्वारा बनाये गए प्रतिमान दोनों  जिम्मेदार हैं  ।                                                                                  जहाँ तक मेरा मानना है गहन बात को सुगुमता से कह देना एक कठिन काम है ……….अह एक कला है और यही लोकप्रियता का पैमाना भी ।  अक्सर मुझे अपनी एक गणित कि शिक्षिका ध्यान में आती है जिन्हें गणित का ज्ञान बहुत था। हम सब उनके फार्मूलों को पकड़ने का प्रयास करते थे पर सदा असफल हो जाते। तभी किसी कारण वश एक दूसरी शिक्षिका कुछ दिन के लिए आई ,उन्हीने वही गणित हम सब के लिए सरल बना दी हमें पढने में आनद  आने लगा।  गणित वही  थी फोर्मुले भी वही थे पर दूसरी शिक्षिका ने उसे इतना सुगम बना दिया कि कक्षा  के हर बच्चे के समझ में आ जाये।  पर यह काम वही कर सकता है जो किसी विचार  को आत्मसात करे ,मथे और सरल बना कर प्रस्तुत करे।  कठिन बात को सरल बना कर कह देना कठिन काम है। ………. जो इस कठिन काम को कर पायेगा वही लोकप्रिय होगा ,साहित्य भी इससे अछूता नही है।                                                  उदहारण के तौर पर मैं तुलसी कृत मानस कि बात करना चाहूंगी।  राम कथा कितने लोगों ने लिखी पर मानस ही लोकप्रिय है …. क्यों ? साहित्य के पुरोधा जानते हैं कि मानस को वह साहित्यिक दृष्टि से किसी भी प्रकार से कम नहीं आंक  सकते।  भाषा सौन्दर्य ,भाव ,अलंकार , और हर  पंक्ति में छिपा दर्शन अपने आप में अनूठा है। पर मानस आज भी लोकप्रिय है शायद सृष्टि  के अंत तक रहे क्योकि कठिन दर्शन को राम कथा के माध्यम से  सरल भाषा में जन -जन तक पहुंचाती है।  प्रेमचंद्र को ही ले कितने कठिन और गूढ़ चरित्रों को वो सुगमता से रचते हैं।  उनका एक -एक पात्र मन में उतरता है।  रंगभूमि में गहरा दर्शन सरलता से कह दिया है।  “निराशा  कि पराकाष्ठा वैराग्य है ” एक वाक्य में पूरा दर्शन है।  पर प्रेमचंद्र अद्रितीय हैं उनका स्थान कोई नहीं ले सकता न साहित्य जगत में न लोकप्रियता के  जगत में ।                                                            अक्सर जब साहित्य पर बहस होती है तो लोग फिल्मों तक पहुचते हैं। ……… और कदाचित गलत भी नहीं है। एक विधा  दूसरी विधा से जुडी होती है । पहले फिल्मों में भी कला और व्यावसायिक के रूप में बटवारा हुआ करता था।  कला फिल्में आम जनता से दूर हुआ करती थी कहा जाता था ” उनका क्लास अलग है “कई लोग अपने को उस क्लास में सिद्ध करने के लिए जबरदस्ती ३ घंटे बर्बाद करते थे । जबकि आम जनता में धरणा  थी कि ” अगर एक कप चाय आधे घंटे में पी जाए तो वो कला फिल्म और आधे मिनट में पी जाए तो व्यावसायिक। पर आज यह वर्गिकरण  खत्म हो चुका है …क्यों ?  उत्तर स्पष्ट है तथाकथित कला फिल्मों के निर्माताओ को लगा कि इस तरह से वो अपनी बात आम जनता तक नहीं पहुचा पा रहे हैं ……….  आज उसका अच्छा रूप सामने देखने को मिल रहा है जहाँ यह बैरियर खत्म हो गए हैं……गहरी बात जनता तक आसानी से पहुचाई जा रही है। ……यही फिल्मों का उदेश्य है।  उदहारण के तौर पर मैं आमिर खान कि “तारे जमी पर “देना चाहूंगी जहाँ एक विशेष रोग से पीड़ित बच्चे कि समस्या को आसानी से जनता तक पहुचाया । माता -पिता ने अपने बच्चों कि समस्या को समझा।  स्कूलो में सेमीनार हुए ,व्यापक तौर यह समझा गया कि बच्चा अगर पढ़ाई  में पिछड़  रहा है तो  कोई शारिक कारण भी हो सकता है । फिल्म अपने व्यावसायिक और सामाजिक दोनों उदेश्यों में सफल हुई ,लोकप्रिय हुई।अजय देवगन की एक फिल्म ने “डिफ्यूस्ड पर्सनालिटी डिसऑर्डर “नामक मानसिक बीमारी से जूझती  स्त्री की समस्या से आम जनता को अवगत कराया है।   अभी हाल में प्रदर्शित NH 24 ………ऑनर किलिंग के गंभीर मुद्दे को उठाती है…..                                                         … Read more

“यूरेका ” की मौत

                               बूढ़ा आर्किमिडिज़ …जो अब 80 साल का हो गया है। …. सफ़ेद लम्बी दाढ़ी , झुर्रीदार चेहरा , ठीक से चला नहीं जाता ,पर मन में अभी भी विज्ञानं के लिए , मानव समाज के लिए बहुत कुछ करने की अभिलाषा शेष है अपनी पिछली जिंदगी के बारे में सोंचता जा रहा है । (फर्श पर ज्यामिति की तमाम रचनाएँ चाक से बना रहा है ) उसे अभी भी वो दिन अच्छी तरह से याद है कि किस तरह सैराक्वूज के राजा हायरोन ने उसे एक स्वर्ण मुकुट हकीकत पता लगाने को दिया था …….नकली और असली में भेद कर पाना कितना कठिन था.…। और कैसे उसने नहाते समय इस नियम को खोज लिया था कि कोई वस्तु पानी में डुबोने पर अपने भार के बराबर पानी हटा देती है ।ख़ुशी में वो उसी अवस्था में यूरेका -यूरेका (मैंने पा लिया ,मैंने पा लिया) कहते हुए राजमहल की और दौड़ा था। इसी आधार पर उसने स्वर्ण मुकुट की सच्चाई पता लगाई थी . फिर ……………… फिर उसे कितना सम्मान मिला था ।कितना हौसला बढ़ा था। … फिर कैसे उसकी यात्रा चल पड़ी विज्ञानं के अन्य अन्वेषणों की ओर । क्या – क्या नहीं सोंचा था उसने आगे करने को । वो चाहता था कि एक ऐसी राड मिल जाये जिसे लीवर की तरह इस्तेमाल कर पृथ्वी को उठाया जा सके । और उधर लोग कहते हैं कि सैराक्वूज पर रोमन राज्य का शासन हो गया है …. देश छोड़ो ।यह सही है की उसने कई लीवर पर आधारित “युद्ध मशीनों “का निर्माण किया है। … पर उससे क्या ? कैसी बेकार बात है ….. भला मुझ बूढ़े वैज्ञानिक से किसी की क्या दुश्मनी हो सकती है ।अब उम्र के आखिरी पड़ाव में तो अपने ही देश में रहना है। … क्यों जाये भला विज्ञानं की सेवा करने वाला। अभी कल ही की तो बात है ….. पडोसी सल्युसर आया था … सेल्युसर ……. महान वैज्ञानिक आर्किमिडिज़ जी आप की जान को खतरा है ।रोमन , सैनिक आप को नहीं छोड़ेंगे ,आस -पास कही भी सर छुपा लो। आर्किमिडिज़ …….. क्यों भला , मैंने क्या बिगाड़ा है किसी का … मैं तो अपने काम में लगा हूँ, सम्पूर्ण मानव जाती की भलाई के लिए काम कर रहा हूँ ।मेरी किसी से कोई व्यक्तिगत दुश्मनी तो नहीं है। सेल्युसर …… ठीक है …….. बताना मेरा फ़र्ज़ था ।आप सावधान रहिएगा,. आर्किमिडिज़ पुरानी बातें याद करना छोड़ कर फिर काम में लग जाता है । ये गोल ………. इसकी त्रिज्या ……… ये पाई का मान २२ /७ ……. इस गोले में क्षेत्रफल ………………..वो त्रिभुज उसका आयतन। … घोड़ों के टापों की आवाज़ आ रही है ….. टप- टप- टप । तेज़ धूल उड़ रही है । रोमन सैनिक आर्किमिडिज़ का घर घेर लेते हैं । कुछ सैनिक घोड़े से उतरकर उसके घर की तलाशी लेते हैं । एक सैनिक आर्किमिडिज़ के पास जाता है । बूढ़ा आर्किमिडिज़ सर झुकाए अपने काम में तल्लीन है । उसे ना घोड़ों के टापों की आवाज़ सुनाई दे रही है ना उसे ये पता चल पाया कि वो चारों ओर से घिर गया है ।वो काम कर रहा है मानवता के लिए। …. सारी सृष्टि के लिए। …. हाँ आँख के कोर से उसे ये अहसास होता है की कोई उसके ज्यामिति के गोलों के पास आ रहा है ।भय है तो इस बात का कही काम में विघ्न न पड जाये। आर्किमिडिज़ ….. ( सर झुकाए – झुकाए) … अरे भाई … आहिस्ता से अपना काम करो, देखो मेरी ये रचनाएँ ना ख़राब कर देना । बड़ी मेहनत से बनाई हैं । हत्यारा रोमन सैनिक एक क्षण के लिए उसकी मासूमियत पर सकपकाता है …. अगले ही क्षण अपनी तलवार से आर्किमिडिज़ की गर्दन धड से अलग कर देता है ।.…… और एक महान वैज्ञानिक , उसकी वृताकार रचनायें ,क्षेत्रफल ,त्रिज्या सब दो राजाओं की दुश्मनी की भेंट चढ़ जाता है। …… साथ ही दो राजाओं की दुश्मनी की भेंट चढ़ जाती है …. विज्ञानं की अनुपम भेंट जो। …. जो शायद महान वैज्ञानिक के दिमाग में पक रही थी। ……. विश्व वंचित रह गया फिर से यूरेका -यूरेका सुनने को वंदना बाजपेई यह कहानी इतिहास और कल्पना के मिश्रण से लिखी है सूत्र :विश्व प्रसिद्ध वैज्ञानिक चित्र गूगल से 

मूर्खता दिवस पर अक्लमंदी भरी बात

                                            वैसे तो आज मूर्खता दिवस है पर लोग एक दूसरे को शुभकामनायें देने से बाज नहीं आ रहे |क्योकि हमें तो दिवस मानाने से मतलब कोई भी दिवस हो हम मना  ही लेते हैं ….. वैसे ये आयातित दिवस हैं …. पर हम भारतीय इसे ख़ुशी -ख़ुशी मानते हैं क्योंकि हम जानते हैं कि भले ही इस दिवस का आविष्कार  हमने न किया हो पर मूर्ख बनने  का तजुर्बा हमे ज्यादा है …. तभी तो हमारे नेता हमें हर बार  गरीबी मिटाओ के नारे के साथ हमे मूर्ख बना कर अपनी गरीबी मिटाते हैं और हम ख़ुशी -ख़ुशी हर ५ साल बाद मूर्ख  बनने  को तैयार हो जाते हैं खैर ये लेख राजनीतिक ,धर्मिक ,अध्यात्मिक लोगो द्वारा मूर्ख बनाने के  ऊपर नहीं है |                             आज मूर्ख दिवस पर हमारे दिमाग में एक अक्लमंदी भरी बात आ रही है ….. ये मूर्ख दिवस अक्लमंद लोग मनाते  है …. स्वाद परिवर्तन हेतु …. वैसे भी मूर्खों के पास इतना समय नहीं होता कि रोज -रोज नयी  मूर्खताएं भी करे और किसी एक  दिन उस पर हँसे भी |वो तो हर रोज हँसते हैं | हंसने कि कमी बुद्धिमानो में पाई जाती है एक सर्वेक्षण में पाया गया है कि जो जितना कम हँसे वो उतना ही ज्ञानी होता है …..जिन लोगो  के होठों का  हँसते समय  पूरा वृत्त बनता हैं उनके दिमाग का स्तर भी अंडाकार होता है|जिनका मुँह एक स्लिट कि तरह खुलता है उनके दिमाग का स्तर ऊँचा होता है |  जो बड़ी से बड़ी बात पर बस मुस्कुरा कर रह जाए वो महा ज्ञानी  होता है |ऐसे लोग जब कभी अचानक से हंस पड़ते हैं तो आस -पास के लोग हँसना छोड़ कर  सोचने  लगते हैं कि आखिर कार ऐसी क्या बात है इस बात में |ऐसे ही लोग पार्क में हंस योग करते हैं जो बिना बात हाथ ऊपर उठा कर हँसते हैं “हा हा हा हा “हँसते  समय उनका चेहरा भले ही तनाव से भरा हो पर उनको देखने वाले खुलकर हँसते  हैं| एक बार उनको हँसते हुए देख कर एक छोटा बच्चा अपने बड़े भाई से पूँछ बैठा “भैया ,भैया ये क्यों हंस रहे हैं ?बड़ा भाई  ने विद्वता पूर्ण उत्तर दिया “इनमें हंसी के विटामिन कि कमी हो गयी है ठीक से हँसते जो नहीं हैं “                        इन मूर्खों का अक्लमंदो कि दुनिया में विशेष स्थान है  चार्ली चैपलिन और शेखचिल्ली के मुर्खता पूर्ण किस्से हमें  सदा से हंसाते आये हैं |बचपन में रेडिओ में एक कार्यक्रम आता था “मूर्खाधिपति महाराज मंद -बुद्धि सिंह  जिसको सुनने के लिए हम पूरे  हफ्ते इंतज़ार करते थे | वैसे मूर्ख होना कोई बुरी बात नहीं है ,सुनते हैं कालिदास भी कभी मूर्ख हुआ करते थे.। आज भी ऐसे मूर्खों कि कमी नहीं है जो जिस डाल  पर बैठते हैं ( आश्रयदाता ) उसे ही काटने में लगे रहते हैं। कालिदास जी को तो उनकी  पत्नी  ने उन्हें बुद्धिमानों कि श्रेणियों में ला कर खड़ा कर दिया | तबसे सभी भारतीय पत्नियों के ऊपर यह दायित्व आ गया कि अपने -अपने पतियों की मूर्खताओं को कम करके उन्हें महान बनाए । एक आम भारतीय नारी “बुद्धू पड़  गया पल्ले ” गाते हुए ससुराल में प्रवेश करती है ।  आमतौर पर मूर्ख पति जिसे पत्नियों का अत्याचार कहते हैं वह पत्नियों का पतियों को विद्वान् बनाने में किया गया अंश दान हैं।                                    सुना तो ये भी गया  हैं बिजली का आविष्कार करने वाले एडिसन साहब भी  बचपन में बड़े मूर्ख थे |वे एक बार अण्डों के ऊपर जा बैठे  …. कि जब मुर्गी के बैठने से चूजा निकल सकता है तो मेरे बैठने से क्यों नहीं |आइन्स्टीन तो अपनी बचपन कि  मूर्खताओं के  कारण स्कूल से निकाले गए थे ।  दर्शिनिकों की मूर्खताएं विश्व -प्रसिद्ध हैं ।  सुनने में तो यह भी आया है मुर्खता और दार्शनिकता समानुपात में बढती है.।  मेरे विचार से मुर्खता दिवस मनाने  के पीछे एक गहरी मंशा है। आज जिसे मुर्ख सिद्ध किया जा रहा है पता नहीं उनमे से कब कौन महाकवि बन जाए ,कौन वैज्ञानिक बन जाए कौन दार्शनिक बन जाए  ।  इसी भावना के तहत अनेकों स्कूल पहली अप्रैल को खुलते हैं ।    छोटी मोटी मूर्खताओ पर हंसने हसाने के लिए ये दिन बुरा नहीं हैं |तो हसिये -हंसाइये और शान से मुर्खता दिवस मानिए | वंदना बाजपेई सभी अक्लमंदों को मुर्खता दिवस कि शुभकामनाएं अटूट बंधन   …हमारा फेस बुक पेज                         

भुलक्कडपन

वंदना बाजपेयी  पहले मैं अक्सर रास्ते भूल जाया करती थी,क्योंकि अकेले ज्यादा इधर -उधर जाने की आदत थी नहीं स्कूल -कॉलेज और घर ………बस  बात तब की है जब पति के साथ मायके गयी थी ,हमारी बेटी 6 महीने की थी ,किसी ने बताया की वहाँ एक बहुत अच्छे वैध है ,मैंने बेटी की खांसी के लिए उन्हें दिखाने के लिए पति से कहा ,एक दो दिन बीत गए पति परमेश्वर ने हमारी बात पर कोई तवज्जो ही नहीं दी। अपनी ही रियाया में हुक्म की ऐसी  नाफरमानी हमें सख्त नागवार गुजरी। हमने ऎलान कर दिया “आप अपनी दिल्ली की सल्तनत संभालिये यहाँ हमारे बहुत सारे भाई है कोई भी हमारे साथ चल देगा,मौके की नजाकत देखते हुए पति देव ने हमें सारा रास्ता समझा दिया। हमें बस इतना समझ में आया कि बड़े चौराहे से नाक की सीध में चलते हुए एक “साइन -बोर्ड “मिलेगा वहाँ से दायें ,बायें दायें ……कितना आसान …. वरीयता क्रम के हिसाब से हमने छोटे भाई को चुना। … यात्रा प्रारम्भ हुई ,उस समय हमें इस बात का जरा भी अंदाजा नहीं था की किसी साजिश के तहत कानपुर के जिला धिकारी ने रातों -रात वो “साइन -बोर्ड “हटवा दिया है।  …हम आगे -आगे -और आगे बढ़ते गए,बीच -बीच में भाई पूछता जा रहा था “दीदी तुम्हारी नाक कितनी सीधी है ?हम उन्नाव से आगे निकल गए …. थोडा और बढ़ते तो सीधे दूसरे शहर ,हालाँकि दूसरे शहर में हमारे बहुत रिश्तेदार रहते है ,पर अगर किसी शहर में आपके १० रिश्तेदार हो और समयाभाव के कारण आप २ से न मिल पाये। तो धारा 302 के तहत प्रश्नों के फंदे पर तब तक लटकाया जायेगा जब तक जब तक सॉरी बोलते -बोलते जुबान दो इंच लम्बी न हो जाये ,लिहाजा हमने हथियार डालते हुए आँखों में आँसू भर कर कहा “भैया मैं भूल गयी “ चीईईईईईईईईईईईईईई कि आवाज के साथ भाई ने गाड़ी रोक कर कहा “दीदी तुम्हारे चरण कहाँ है ,मैं इसी वाक्य की प्रतीक्षा कर रहा था,दरसल जीजाजी ने हमें रास्ता समझाते हुए ,यह ताकीद कर दी थी कि “बेगम साहिबा को यह एहसास दिल दिया जाये ,कि वो रास्ते भूल जाती है “ ओह्ह्हह्ह्ह्ह ! हमारा आपना भाई विरोधी खेमे में मिल चुका था और अपनी ही सरजमी पर विदेशी राजा के हाथों हमारी शिकस्त हो गयी थी ,पर उस दिन से हमें समझ आया कि जो करना है हमें अपने दम पर करना है क्यूकि पति या भाई हम अबला नारियों का कोई अपना नहीं होता … यह भी पढ़ें … निर्णय लो दीदी क्या आत्मा पूर्वजन्म के घनिष्ठ रिश्तों की तरफ खींचती है वो पहला खत इंजीनीयर का वीकेंड और खुद्दार छोटू

जस्ट लाइक &कमेंट

                           फेस बुक पर आने के बाद देखा तो हमने भी था कि कुछ लोग इसे विचारों की अभिव्यक्ति का माध्यम समझते हैं और कुछ अपनी तस्वीरों की |खैर जिसकी जैसी इक्षा सोच कर हमने तो चुप रहने में ही भलाई समझी पर  आज शाम को घर आते वक्त मिसेज चावला मिल गयी |बड़ा उदास सा मुँह बना रखा था |हम तो टमाटर और भिन्डी खरीदने के बाद उनके  दामों में हुई वृद्धि और उससे घर के  बजट बिगड़ने कि गणित में उलझे हुए थे तभी मिसेज चावला हमारी आँखों के आगे आ गयी उनका चेहरा तो हमारी सस्ती भिन्डियों  से भी ज्यादा मुरझाया हुआ था |घबरा कर हमने पूंछा क्या हुआ ,बीमार हो क्या ? ये क्या हाल बना रखा है ,कुछ लेती क्यों नहीं? हमारे इतने सारे प्रश्नो के उत्तर में बुरा सा  मुँह बना कर बोली “क्या बताएं मेरे तो ५००० रुपये पर पानी फिर गया | ५००० रुपये  सुन कर हमारा तो कलेजा मुँह को आगया |कितना कुछ आ सकता है ५००० रुपये में ४ किलो चावल ,३ किलो अरहर दाल ,आशीर्वाद का आटा ,जो गेंहू की एक -एक बाली चुन -चुन कर पीसा जाता हैं …. पंसारी का बिल …. हां ! सच में बात तो दुखी होने कि ही है |फिर भी हिम्मत करके हमने पूँछ ही लिया “कैसे हुआ ये गजब “ मिसेज चावला आँखों में आंसू भर कर बोली “अरे वो ५००० की साड़ी पहन कर जो फोटो एफ बी पर डाला था उस पर केवल ७०० लाइक और ५० कमेंट आये इससे  पहले  जो ५७५ रुपये कि साड़ी पहन कर फोटो डाली थी उस पर तो पुरे २००० लाइक आये थे और कमेंट तो पूछो मत | मैं हतप्रभ थी |सुना तो मैंने भी था की अब वो जमाने लद  गए  जब औरतें नयी साडी पहन कर अपने पति को दिखाते हुए पूछती  थी “सुनो जी कैसी लग रही हूँ “|अब शाम तक पति का इंतज़ार कौन करे |फोटो खीचा डाला …. राय हाज़िर | इंस्टेंट राय का जमाना है | कहते हैं परिवर्तन समाज का नियम है “ओनली चेंज इस अनचेंजेबल |                  उस दिन तो बड़ा दुःख लगा कि बेचारी …………. पर मिसेज चावला जरा कम समझदार थी ये पता हमे उस दिन चला जब अपनी सहेली मीता   से मिले| मीता चहक कर बोली अरे मैं तो इतने पैसे वेस्ट करती ही नहीं….. सीधे दुकानदार से कह देती हूँ  एक घंटे के लिए साड़ी ले जा रही हूँ एफ बी पर फोटो डाल कर लोगों का रिस्पोंन्स देखूंगी |अगर ज्यादा लाइक ,कमेंट मिले तो ठीक वर्ना साडी वापस |अब तुम ही बताओ ५००० फ्रेंड्स और १०,००० फोल्लोवर्स इतनी सटीक राय और कहाँ मिलेगी | और तो और कई  बार दुकानदार डिस्काउंट भी दे देता है आखिर कार लोकल सहेलियां पूछेंगी “कहाँ से ली,तो उसकी दूकान का मुफ्त में प्रचार होगा | मैं बड़े श्रधा भाव से  मीता कि बातें सुन रही थी ,कितनी ज्ञानी हो गयी है ये |                                   मेरी एक और सखी मधु  हर समय किसी रीता के बारे में बताती रहती है ….. रीता का ये ,रीता का वो ,एक दिन हमने पूछ ही लिया कि आखिरकार ये रीता है कौन ?प्रश्न सुन कर कंधे उचकाते हुए बोली  रीता मेरी परिचित नहीं है पर मैं उन्हें अच्छे से जानती हूँ क्या है कि वो रोज  अपनी ४-६ फोटो तो डालती ही हैं। ये खाना बनाते हुए ,ये पानी भरते हुए ,ये सोफे का कवर बदलते हुए….. और कभी कभी तो यह पहला कौर खाते हुए ,ये दूसरा कौर खाते हुए ,ये तीसरा ….. |रीता के घर में क्या –क्या है सबको  पता है | वो क्या खाती है सबको पता है,उसके घर का कुत्ता क्या खाता है सबको पता है ,उसके वार्ड रोप में कितनी साडियाँ  हैं सबको पता है |लोग सुबह ४ बजे से रात के पौने चार बजे तक रीता के घर में दिलचस्पी लेते हैं |रीता को जरा भी फुर्सत नहीं हैं अपने बच्चों से बात करने की ,पति का हाल –चाल पूछने ने की |और मुहल्ले वाले…..उनसे तो रीता कभी सीधे मुँह बात ही नहीं करती ………….. पेज-३ कि सेलीब्रेटी जो हो गयी है|                        पर आप ये मत समझिएगा की इस मामले में औरतों कि मोनो पोली है |मिस्टर जुनेजा ने कल बताया  कि अक्सर वो भीड़ भरे स्थानों पर जाने से घबराते हैं |क्यों भला ,कहीं दिल का रोग तो नहीं हो गया अब ६५ कि उम्र में धमनियों में कोलेस्ट्रोल तो जम ही जाता है |छूटते ही बोले “अरे नहीं ,वो फेस बुक पर जवानी कि तस्वीर जो डाल रखी है |क्यों भला ?न चाहते हुए भी हम पूछ ही बैठे। अब इस उम्र की तस्वीर पर कोई लाइक -कमेंट तो देगा नहीं ,बड़ा ईगो हर्ट होता है हम दिन भर सब पर लाइक कमेंट करते रहे और हमारी फोटो पर ……ऐसा लगता है किसी भिखारी के कटोरे में रेजगारी पड़ी हो। आखिरकार फेसबुक पर लाइक कमेंट स्टेटस सिंबल जो होता है। हमने बमुश्किल अपनी हंसी रोकते हुए कहा “तो फिर डर कैसा ? डर तो सारी  मेहनत  पर पानी फिरने का ही है। अब लड़कियों का सिक्स्थ सेन्स तो मजबूत होता ही है कहीं उनकी पुलिसिया निगाहें सारा भेद न जान ले |फिर तो …………               उस दिन बातों -बातों में हमारी सखी रेहाना  ने बड़ी  ज्ञान कि बात बतायी अगर पति –पत्नी दोनों फेस बुक पर हैं तो एक –दूसरे कि तस्वीर को कभी लाइक नहीं करते |उस पर तुर्रा यह कि घर पर तो लाइक करते ही हैं और दो बार लाइक करने से अनलाइक हो जाता है                अभी कल ही की तो बात है सड़क पर दो बच्चे झगड़ रहे थे। एक ने दूसरे का कॉलर पकड़ कर कहा “अरे ! १० लाइक  पाने वाले तेरी हिम्मत कैसे हुई ५० लाइक पाने वाले के सामने अपना मुंह खोलने की।  इतना सुनने के बाद हमारी तो बोलती ही बंद हो गयी अब तो … Read more