पहचानो अपनी सीमाएं आपका शीर्षक खुद ही महिलाओ की दशा प्रदर्शन कर रही है. थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन विशेषज्ञ सर्वेक्षण के अनुसार एक औरत के लिए भारत, दुनिया का सबसे खतरनाक देश के रूप में चौथा स्थान पर रहीं है| लिंग का निर्धारण कर 300,000 से 600.000 तक, परिवार, जाति और समुदाय के दबाव में आकर गर्भपात किया जाता है| गर्भ से ही लड़की की भेदभाव आरम्भ होकर जिंदगी भर जारी रहता है। न उन्हें पौष्टिक भोजन न उचित शिक्षा उपलब्ध कराते, विषेश कर ग्रामीण क्षेत्रो में. महिलाओं के लिए साक्षरता दर 60.6%, पुरुषों के लिए साक्षरता दर: 81.3% और बालिका शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए सामाजिक सेक्टर क्षेत्र के कार्यक्रमों सर्व शिक्षा अभियान” ” (सभी के लिए शिक्षा) “शिक्षा के अवसर बराबर” चला रहें है. बाल विवाह अधिनियम 2006 में लड़की 18 साल और लड़का 21 साल की उम्र के नीचे विवाह पर निषेध लगाई है, लेकिन, कानूनी उम्र से पहले शादी कर रहे है। बाल विवाह ,गरीबी, असुरक्षा, राजनीतिक और वित्तीय आदि कारणों के लिए पूरे इतिहास में उल्लेखनीय, है । इतना ही नही वयोक्त शादीयां भी खतरे से खाली नही हैं. दहेज, दहेज हत्या काफी बढ़ गए है. भारत सरकार ने दहेज की मांग अवैध बनाने, निषेध अधिनियम, [76] पारित कर दिया। 1997 की रिपोर्ट में भारत में हर साल कम से कम 5,000 महिलाओं को दहेज संबंधित मौत और कम से कम एक दर्जन ‘रसोई की आग‘ में प्रत्येक दिन मर जाते है । महिलाओं को बलात्कार, अपहरण, मानसिक और शारीरिक यातना का सामना करना पड़ता है। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड1998 ब्यूरो सूचना दी कि महिलाओं के खिलाफ अपराधों की दर में2010 वृद्धि जनसंख्या वृद्धि दर से अधिक होता है. कुछ समुदायों की सती, जौहर, पर्दा, और देवदासी के रूप में परंपरा पर, प्रतिबंध लगा दिया गया है. महिलाओं की कोई न सम्मान है न पहचान है अब तक, वे पिता, पति या बेटे की छाया के नीचे रह रहे थे| मध्ययुगीन काल के निम्न बिंदुओं के माध्यम से प्राचीन समय में पुरुषों के साथ बराबरी का दर्जा से, कई सुधारकों द्वारा समान अधिकारों को बढ़ावा देने के कारण भारत में महिलाओं की स्थिति में पिछले कुछ सदियों से कई महान, अमूल्य एवम् विशेष परिवर्तन होते आये है, वे आज अपनी स्वतंत्र पहचान स्थापित कर ने में सक्षम है। समान कार्य के लिए सभी भारतीय महिलाओं को समानता (अनुच्छेद 14), राज्य (अनुच्छेद 15 (1)), अवसर की समानता (अनुच्छेद 16) में कोई भेदभाव नहीं है, और समान वेतन के लिए भारतीय संविधान गारंटी देता है (अनुच्छेद 39 (घ))। इसके अलावा, यह विशेष प्रावधान महिलाओं और बच्चों के पक्ष में राज्य द्वारा (अनुच्छेद 15 (3)), महिलाओं (अनुच्छेद 51 (ए) (ई)) की गरिमा के लिए अपमानजनक प्रथाओं का परित्याग किए जाने के लिए अनुमति देता है| महिलाओं को सशक्त, आत्म निर्भर और स्थिति को विस्तृत एवं व्यापक करने के संदर्भ में कई कानून बनाये जैसे सिविल विवाह अधिनियम, 1872।, विवाहित महिलाओं की संपत्ति अधिनियम, 1874, बाल विवाह निरोधक अधिनियम (शारदा एक्ट), 1929। भाग अधिनियम, 1929 हिंदू कानून आदि| भारत की महिलाएं धीरे–धीरे अपने असली क्षमता को पहचानना शुरू कर दुनियां में एक सम्मानजनक स्थान अर्जित किया, आसानी से आज न केवल वे घरेलू मोर्चे बल्कि अपने पेशे से संबंधित मोर्चे में भी शूरता प्रकट कर रही है. नेताओं, वक्ताओं, वकीलों, डॉक्टरों, प्रशासकों, गीतकारों, महिला खिलाड़ी, राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, लोकसभा के अध्यक्ष , आयोजकों,और राजनयिकों के रूप में जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्ट कार्य किये है| ये है महिला के तकनीकी सामाजिक रुप– रेखा| अब ह्म आते है स्त्री की व्यक्तिगत जीवन में. जो परिवार के सदस्यों के साथ खाना,पीना,पढना,उठना,बैठना आदि से शुरु होती है|पारिवारिक सदस्यों के प्रकृति, मानसिक स्तर, शैक्षणिक स्तर, धर्मिक मान्यताएँ, सामाजिक स्तर आदि पर जीवन निर्भर रहता है. स्त्री-पुरुष चाये किसी भी रुप में (भाई और बहन, पति पत्नी आदि) एक दूसरे के पूरक होते है अपने गुण एवं अवगुणो के साथ | आदमी मजबूत है शारीरिक रुप से और महिला भावनाओं और सहनशीलता से| लेकिन जटिल सामाजिक और राजनीतिक स्थितियों की वजह से, अशिक्षा, असुरक्षा पनपी, अनैतिकता के फलस्वरूप विकरालता जन्म ली| जिससे अधिकतर पुरुष अहंकारी, स्वार्थी बन गये, और उनकी सोच धूमिल पड गयी |वे कमजोर व्यक्तियों, महिलाओं के प्रति भय, अन्याय, बेईमानी कर सम्मान हासिल करना और दबाव रखना चाहते हैं| उनके लिए महिला हवस और मनोरंजन का एकमात्र स्रोत है| इतना से भी वे संतुष्ट नहीं है वे अनुभव कर एसिड, तेज सामग्री, और पत्थर के साथ पीड़ितों को मार कर, सुख का अनुभव करते है| कुछ लोग पैसे से, कुछ गुंडागर्दी से, कुछ चिकनीचुपडी बातों से बहलाकर महिलाओं का शोषण करतें हैं| महिला| न वह घर में, न ससुराल में सुखी रह सकती है| ग्रामीण स्त्रियों के हाल और भी बूरा है|न उनके पास सेहत,न धन,न शिक्षा न जीविका का कोई आधार. संयुक्त परिवार में न वह मुँह खोल सकती है न बंद कर सकती है उसे विभिन्न पारिवारिक सदस्यों के घरेलू हिंसा एवं शोषण को सहना पड़ता है| न्याय के लिए वह कहां जाती? एक ऑटोवाला, से लकर मंत्री, जर्ज तक,बेईमान और स्त्री लोलुप और रिश्वतखोर है। नारी को अपने हालातों पर आँसू नहीं आग बरसाना है| ह्रर नारी अपने प्रतिभा, आत्म सम्मान से जंग लड़नी है|जैसे कुछ नारियों ने कर दिखाया है. पुरुष प्रधान समाज में अचार-सहिता केवल महिलाओं के लिए और पुरुषों को अपने करतूतो को श्रेष्ठ साबित करने के लिए है. बड़ों और महान व्यक्तियों को पुरुषों और महिलाओं के लिए समान रूप से निष्पक्ष होकर समाज के लाभों के अनुसार जीवन शैली बनाना चाहिए| परिवार अपने कर्तव्यों और अधिकारों के साथ खुश हो जाएगा। यदि धार्मिक मान्यताये निष्पक्ष रहे होते तो न आदमी अहंकारी होंता न स्त्री कुंठित होती, दोनोंएक दूसरे के सहायक होकर सोच समझकर, शांति और उत्साह के साथ अपने बच्चों का सही मार्गदर्शन करतें और पति और पत्नी खुश रहते और समाज भी शांति से दिन दुगुनी रात चौगुनि विकास करती| स्त्री– पुरुष अपने अपने सोच को शिक्षा से विस्तृत कर, सरकार की कानून-व्यवस्था का अनुसरण पालन करते हुए उनसे प्राप्त सुविधावो को उपयोग कर हर दिशा में उन्नति करे| नागेश्वरी राव अटूट बंधन ………..हमारा फेस बुक … Read more