सफलता के लिए जरूरी है भावनात्मक संतुलन -Emotional management tips

                              मनुष्य एक भावुक प्राणी है| ये भावनाएं ही उसे जानवर से इंसान बनती हैं , पर कई बार इन भावनाओं की वजह से ही  हम शोषण का शिकार हो जाते हैं | ये शोषण कभी अपने द्वारा होता है , कभी अपनों द्वारा | जिसकी वजह से हम जिन्दगी में हारते जाते हैं चाहे वो रिश्ते हों , सम्मान हो या सफलता| जरूरी है इन भावनाओं का संतुलन सीखना | जरा इन उदाहरणों पर गौर करें …                                                                             एक बच्चा जो पढने में बहुत तेज था| उसे खुद व्  उसके माता-पिता को आशा थी कि वो 10 th बोर्ड में 95% मार्क्स ले कर आएगा |  उसने मेहनत भी खूब करी | पेपर भी अच्छे हुए | रिजल्ट आने  से कुछ दिन पहले उसने अपने नंबर कैलकुलेट किये  , उसके  मुताबिक़ उसके ९२ % आने थे | वो इतना निराश हुआ की उसने आत्महत्या कर ली | कुछ दिन बार रिजल्ट निकला , उस बच्चे के 96 % मार्क्स थे |  वो बच्चा जिसका भविष्य बहुत अच्छा था , संभावित कल्पना को बर्दाश्त नहीं कर पाया और उसने मृत्यु का वरण कर लिया |                         राहुल ने  बिजनिस के दो -तीन  प्रयास किये , हर बार असफल रहा | लोगों के ताने उलाहने सुनने के बाद अब उसकी कमरे से निकलने की भी हिम्मत नहीं पड़ती | एक कमरे में बैठे रहना और दीवारों को घूरना ही उसका जीवन हैं | एक और प्रयास के लिए उसके पास धन है पर उसका मन साथ नहीं दे रहा है |                             सविता जी एक टेलेंटेड लेखक हैं | मैंने उनके कई लेख पढ़े हैं , पर वो सार्वजानिक लेखन में नहीं आना चाहती क्योंकि उनके पति व् परिवार को उनका लिखना पसंद नहीं है , अक्सर उन्हें कलम घिस्सू की उपाधि दे कर हँसी  उड़ाई जाती है | सविता जी को पता है कि उनमें प्रतिभा है ,लेकिन अपने परिवार का तिरिस्कार झेल कर लिखने की हिम्मत वो नहीं जुटा पाती | यही उनकी निराशा व्  कुंठा की वजह है | वो उदास रहती है ठीक से घर का काम नहीं कर पाती , न घर को सजाती संवारती हैं न खुद को |                                                  और एक उदाहरण जो शायद  आप ने देखा हो , अभी कुछ दिन पहले की बात है मैंने फेस बुक पर एक स्टेटस पढ़ा , ” मेरे मित्र जिन्हें मैं बहुत पसंद करती हूँ , उनकी हर पोस्ट लाइक करती हूँ , कमेंट करती हूँ , वो मेरी पोस्ट पढने तक नहीं आते इसलिए मैं फेसबुक छोड़ रही हूँ / कुछ दिनों के लिए बंद कर रही हूँ | ऐसे में किन्हीं दो चार मित्रों की तुलना में उन्हें वो मित्र नज़र ही नहीं आ रहे हैं जो उनकी पोस्ट पर लाइक कर रहे हैं |                                  ये सारे उदाहरण भावनाओं द्वारा नियंत्रित होने के हैं | इन सब में प्रतिभा है , क्षमता है , दूसरे मौके हैं पर इन सब ने भावनाओं के आधीन हो कर छोड़ देना ज्यादा उचित समझा … कहीं मौके को कहीं जीवन को और कहीं जीवंतता को | मैं स्वयं भी बहुत Emotionally weak रहीं हूँ | मैंने इस बात को समझते हुए खुद को बदला है | मेरा ये लेख लिखने  का उद्देश्य भी यही है कि आप भी भावात्मक संतुलन नहीं बना पाते हैं तो आप भी जीवन में बहुत कुछ खो देंगे | इसलिए मैं आपके साथ ये emotional management tips share कर रही हूँ | जो आपके जीवन में सफलता और जीवंतता लाएगी |  भावनात्मक संतुलन के नियम  -Emotional management tips (in hindi)                                                                      जब भी मैं Emotional management कीबात करती हूँ तो मेरे सामने  रथ पर बैठे अर्जुन और उन्हें भगवद्गीता का उपदेश देते हुए कृष्ण आ जाते हैं | अर्जुन एक महान योद्धा थे , सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर थे , फिर भी युद्ध से ठीक पहले वो भावनाओं के शिकार होकर युद्ध छोड़ने की बात करने लगे | वो अपनी भावनाओं को नियंत्रण में नहीं रख पा रहे थे , जिस कारण उनसे धनुष भी नहीं उठाया जा रहा था | क्या उस समय वो द्रोणाचार्य द्वारा दिया हुआ ज्ञान भूल गए थे ? क्या बरसों का उनका अभ्यास एक क्षण में खत्म हो गया था ? नहीं … बस उनके मन ने साथ देना बंद कर दिया था | दोनों सेनाओं के बीचोबीच खड़े अर्जुन के पास skill तो था पर will नहीं थी                                                                              स्किल यानी हमारा talent, हमारी प्रतिभा , हमारी क्षमता , और विल हमारी इच्छा शक्ति | सफलता के लिए स्किल जरूरी है उससे ज्यादा जरूरी है will. हम कई बार खुद कहते हैं कि फलाने  व्यक्ति में तो इतना talent नहीं था फिर वो इतना successful कैसे हो गया | जाहिर सी बात है कि उसकी सफल होने की इच्छा उस टैलेंटेड व्यक्ति से ज्यादा थी | शुरुआत में सबकी इच्छा ज्यादा होती है परन्तु असफलता ,हार व् आलोचना जो किसी भी सफलता का हिस्सा हैं हर कोई बर्दाश्त नहीं कर पाता, जिसके कारण या तो वो प्रयास ही छोड़ देता है या  आधे … Read more

असफल रिश्ते – लडकियाँ जीवन साथी चुनते समय ध्यान रखे ये 7 बातें

 नाजुक , नादान और बेंतहा खूबसूरत सी  रोली एक मेडिकल स्टूडेंट थीं  | कुछ ही समय में उसकी MBBS की डिग्री कम्प्लीट होने वाली थी  | जैसा की आम भारतीय समाज में होता है | माता – पिता उसके लिए सुयोग्य वर खोजने लगे |आम माता –पिता की तरह वो भी टूटती शादियों से अनजान नहीं थे |   माता –पिता जानते थे की रोली पढ़ी – लिखी शिक्षित लड़की है | इसलिए उन्होंने प्रयास किया की जिन लड़कों को उन्होंने पसंद किया है | रोली उनसे कई बार मिले , बातचीत करे व् तब किसी निर्णय पर पहुंचे | आधुनिक समय में इसे डेटिंग भी कहते हैं | रोली ने उनमें से एक लड़के निशांत  से मिलने का फैसला किया | निशांत IIM  पास आउट , देखने में सुन्दर , बातचीत में सभ्य लगा | रोली को वो पहली नज़र में  ही पसंद आ गया | उसने माता – पिता से निशांत के साथ रिश्ते के लिए हाँ कह दिया | उसके बाद वो लोग कई बार मिले पर एक दूसरे के आकर्षण में एक कदर बंधे रहे की आपस की कॉम्पेटिबिलिटी जांचने की कोई जरूरत ही नहीं समझी |                    शादी के बाद रोली को निशांत का एक अलग ही रूप नज़र आया | वो रूप जिससे वो बिलकुल अनभिग्य थी | रोज – रोज के झगडे कलह से जीवन दूभर हो रहा था | जैसा कि हमेशा से होता है समाज सारा दोष रोली के सर पर डाल रहा था | अरे , शादी से पहले इतनी बार मिलने का मौका दिया | तब क्यों नहीं देखा | अब सब दोष क्यों दिखाई दे रहे हैं | एक खूबसूरत रिश्ता जिसे “अटूट बंधन” बनना था कुछ समय रोते घिसटते चला और अंत में टूट गया |                               ये कहानी सिर्फ रोली की नहीं है | आज माता – पिता जहाँ बच्चों को शादी से पहले एक दूसरे को जानने समझने का मौका दे रहे हैं | फिर भी बच्चे उस समय केवल रूप , आकर्षण , पैसे , हास्य बोध के जाल में इस तरह उलझे रहते हैं की वो आपसी साझेदारी के बारे में नहीं सोंचते | बेहतर हो कि वो उस समय आपसी compatibility   जांच ले | फिर शादी का फैसला लें   लडकियाँ जीवन साथी चुनते समय ध्यान रखे ये 7 बातें                                                      आज से  १५ , २० साल पहले की बात थी की माता – पिता अपने बच्चों के लिए जीवन साथी खोजते थे | इसके लिए बाकायदा वो मामा , चाचा , मौसा को साथ ले जाते थे | लड़के वाले देखने आते थे | और लडकियां दिखाई जाती थीं | लडकियाँ  दिखाना एक बहुत बड़ा कार्यक्रम होता था | सजे धजे घर के बीच में ढेरों नाश्तों से लड़के वालों का स्वागत करते हुए  लड़की वाले अपनी लड़की को चाय की ट्रे के साथ बुलाते थे | लडकियां सकुचाती शर्माती सी आती | उन्हें अपने से पूंछे जाने वाले प्रश्नों का संक्षिप्त उत्तर देना होता था | वो जमाना था जब शादियों में लड़केवालों की पसंद अहम् होती थी | लड़कियों को बोलने का अधिकार नहीं था | उनकी पसंद –नापसंद के स्थान पर उन्हें बस परिवार की पसंद पर मोहर लगानी होती थी | लड़के बोल सकते थे … पर कितना ?निर्णय वहां भी परिवार का होता था |                           जमाना बदला | आज विवाह का अर्थ केवल एक साथी नहीं जिसके साथ जीवन काटना है | आज विवाह का अर्थ है दो लोग मिलकर जीवन को बहुत खूबसूरत बनाये | उनमें मानसिक व् वैचारिक स्तर पर भी सामनता हो | लड़कियों की बढती शिक्षा व् आत्मनिर्भरता के साथ के साथ दोनों के बीच में ये समानता मिलाना बहुत जरूरी हो गया है | इसीलिए आज न सिर्फ लड़कों वरन लड़कियों की पसंद को भी तवज्जो दी जा रही हैं | माता – पिता की कोशिश रहती है की लड़का /लड़की आपस में बात चीत करें , एक दूसरे को समझें व् अगर उनमें compatibility हैं तभी marriage के लिए आगे बढें |                         इतना सब कुछ होने के बाद भी आज विवाह ज्यादा टूट रहे हैं | टूटने वाले विवाहों में arranged marriage ही नहीं कई love marriage भी हैं | इसका कारण ये हैं जब प्रेम सम्बन्ध चल रहा होता है या जब माता – पिता शादी से पहले मुलाक़ात करने को कहते हैं तो लड़का / लड़की केवल बाहरी सौन्दर्य में उलझे रहते हैं | ज्यादा से ज्यादा समय अच्छा दिखने में लगा देते हैं | और स्वयं भी दूसरे की personality, looks, height, colour या salary package के जाल में इतना उलझे रहते हैं की इसी को जीवन साथी बनाने का आधार बना लेते हैं | लेकिन जीवन की खुशियाँ केवल रूप , रंग , पैकेज से नहीं आती है | ये तो एक दूसरे को बेहतर तरीके से समझने से आती हैं | अगर आप भी जीवन साथी की तालाश में डेटिंग कर रहे हैं तो आप को कुछ ख़ास बातों को चेक करना पड़ेगा | जिससे आगे आप दोनों में compatibility issuses न आये |आप दोनों एक दूसरे का पूरी तरह से साथ दें | आप का आगे का जीवन प्यारके खुश नुमा अहसास से भरा हो | 1)       वो दूसरी महिलाओं के प्रति कैसा व्यवहार रखता है                                                     कई  भी पुरुष महिलाओं के साथ कैसा व्यवहार करता है ये जाना इसलिए जरूरी है क्योंकि देर सवेर वो आपके साथ भी वैसा ही बर्ताव करेगा | भले ही आज वो आप पर अपना बेस्ट इम्प्रेशन डालने के लिए बहुत अच्छे से बात कर रहा हो पर कल को वो अवश्य बदलेगा | क्योंकि किसी भी इंसान का बेसिक नेचर कभी नहीं बदलता है | महिलाओं के प्रति उसके व्यवहार को आप तीन … Read more

ऐब्युसिव रिश्ते – क्यों दुर्व्यवहार को प्यार समझने की होती है भूल

कितना आसान होता है गलत को गलत कहना और सही को सही कहना | पर ऐसा हमेशा होता नहीं है | मानव मन न जाने कितनी गुत्थियों में उलझा है | ऐसा ही दृश्य कई बार ऐब्युसिव रिश्तों में लोंगों के न सिर्फ टिके रहने में बल्कि अपने ऐब्युजर को प्यार करने में दिखाई देता है | आश्चर्य होता है की हमें कोई जरा सी बुरी बात कह दे तो हम उससे पलट कर कई दिन तक बात नहीं करते | पर सालों-साल कोई किसी रिश्ते में अपमान , दुर्व्यवहार और अकेला कर दिए जाने का शोषण झेलता रहे और इसे प्यार समझता रहे | सवाल उठता है आखिर क्यों ?  ऐब्युसिव रिश्ते – क्यों दुर्व्यवहार को प्यार समझने की तान्या की कहानी  Why I Love my abuser  तान्या पार्टी के लिए तैयार हो रही थी | सौरभ से शादी के बाद उसकी पहली पार्टी थी | और जैसा कि हमेशा होता है, नयी शादी के बाद सजने संवारने का उत्साह जायदा होता है | तान्या ने अपना मेक अप बॉक्स उठाया | बड़ी बहन से बहुत प्यार से गिफ्ट किया था | मैचिंग लिपस्टिक, बिंदी, काजल, ऑय लाइनर और न जाने क्या-क्या | ओह थैंक्स दीदी, मेरी लाइफ को खूबसूरत बनाने की तुम्हारी इस कोशिश के लिए… मन ही मन बुदबुदाते हुए तान्या ने पर्पल लिपस्टिक उठा ली | और भरने लगी अपने होंठों पर रंग | उसके होठों पर बहुत फब रही थी  | तभी सौरभ ने कमरे में प्रवेश  किया | तान्या ने तारीफ़ की आशा से सौरभ की ओर देखा | उसे देखते ही सौरभ ने मुँह  बिचकाते हुए कहा ,“ये क्या चमकीली बन के जा रही हो | हतप्रभ सी रह गयी तान्या, फिर भी बात को सामान्य करने के उद्देश्य से उसने कहा ,“मेरी सभी सहेलियां लगाती हैं सौरभ, इसमें गलत क्या है? “गलत ये है की तुम्हारे पति को पसंद नहीं है | इसलिए तुम लिपस्टिक नहीं लगाओगी| तान्या एक क्षण सकते में आ गयी | फिर उसने मन ही मन सोंचा ,“ हिम्मत कर तान्या, हिम्मत कर, मायके में सभी कहते थे कि पति पत्नी की पसंद नापसंद में थोडा बहुत अन्तर होता है | पर अपनी पसंद बिलकुल त्याग मत देना | एक दूसरे की पसंद को स्वीकार करने की आदत यहीं से पड़ती है |  खुद को समझा कर तान्या  ने सौरभ को मुस्कुरा कर देखा और दूसरे कमरे में चली गयी और अपनी चोटी में क्लिप लगाने लगी | तभी सौरभ वहां आ गया | उसे बांहों में भर कर अपने होठ से उसके होंठ बुरी तरह रगड़ने लगा | इससे पहले की तान्या कुछ समझ पाती सौरभ उसकी सारी लिपस्टिक चट कर चुका था | फिर शातिर मुस्कान से बोला ,“ पति हूँ तुम्हारा| तुम्हारे इन रसीले होंठों पर सिर्फ मेरा हक़ है | घायल होंठ और घायल आत्मा के साथ उस पार्टी की रंगीन शाम के साथ ही तान्या की हर शाम बदरंग हो गयी | उस शाम के बाद से घबराई, डरी, सहमी सी तान्या को सौरभ रोज पति का हक़ और पति की इच्छा ही एक स्त्री जीवन को सार्थक करता है, का पाठ पढाता | तान्या हर संभव प्रयास करती उसे समझने का |  धीरे – धीरे तान्या बदलती जा रही थी | वो वही बनती जा रही थी जो सौरभ चाहते थे | पढ़ी-लिखी अपना कैरियर बनाने की इच्छा रखने वाली तान्या को नौकरी तो दूर, कितना हँसना है, कितना बोलना है, किससे बोलना है, कैसे कपड़े पहनने हैं, कैसे ब्लाउज, कैसी चप्पल, कैसी चोटी, सब कुछ सौरभ का निर्णय होता | औरतों के लिए पति ही सबकुछ है इसलिए उसे यह निर्णय मानने ही उचित लगते |  अम्मा ने भी तो यही पाठ पढ़ा कर भेजा था ,“बिटिया लोनी मिटटी बन कर रहना |” पर क्यों उसे लगता वह ताबूत में है? जहाँ उसे मुट्ठी भर दानों व् समाज की स्वीकार्यता के लिए सब कुछ सहना है | फिर उसे इतनी बेचैनी क्यों? कभी इन बेचानियों को वो बर्दाश्त कर लेती, तो कभी – कभी अन्दर का दवाब लावा बन कर बहने लगता | वो सौरभ से कहती, “सौरभ ये सही नहीं है| मैं बहुत घुटन महसूस कर रही हूँ, मैं ये नहीं कर पाउंगी | तब सौरभ उसे और कुसंस्कारी अशालीन औरत के अलंकारों से नवाज़ देते और घबरा कर वह स्वयं उसी ताबूत में में घुस जाती मुट्ठी भर दानों के साथ |  तान्या ये जानती थी कि वो उस व्यक्ति से प्यार कर रही है जो प्यार के नाम पर उसका शोषण करता है| प्यार कभी भी कंडिशनल नहीं होता | वो इस शोषण वाले रिश्ते से निकलने की कोशिश करती तो उसे लगता वो सौरभ के उस प्यार को हमेशा के लिए खो देगी जो उसके दुर्व्यवहार किताप्ती रेत में कभी – कभी बेमौसम बरसता | लेकिन कभी उसे लगता की प्यार का मूल रूप ही शोषण है | उसे प्यार नाम से ही नफरत होती | धीरे – धीरे वो अपने में सिमटती चली  जा रही थी | उसने हार कर अपनी समस्या अपनी सहेली को बतायी | उसने गंभीरता से सुना और बोली, “तान्या इसका हल ये है कि तुम खुद से प्यार करो”| तुमने  सौरभ को ये हक़ दे दिया है की वो तुम्हे उपयोगी या अनुपयोगी करार दे | तुम्हाती वर्थ सौरभ के द्वारा तुम्हें स्वीकारते जाने में नहीं है | वो प्यार करे न करे जब तक तुम खुद को प्यार नहीं करोगी , खुद को नहीं स्वीकारोगी तब तक सौरभ तुम्हारा ऐसे ही शोषण करता रहेगा |  वो दिन तान्या के लिए सबसे बड़ा निराशा का दिन था |वो तो इतना सब कुछ होने के बाद भी सौरभ से प्यार करती है | फिर खुद से प्यार |  तान्या समझ ही नहीं पायी कि उसका ये खुद क्या है जिसे उसको प्यार करना | वो अतीत की तान्या जिसे वो रगड़ – रगड़ कर मिटा चुकी है | जिसके जख्म उसके शरीर पर हैं पर जिसकी कोइ पहचान  बाकी नहीं है |  या वो तान्या जो सौरभ के ताबूत में बंद है | जिसे सौरभ ने रचा है | हर दिन छेनी हथौड़े से तराश – तराश कर | घायल –चोटिल … Read more

आरोप –प्रत्यारोप : बेवजह के विवादों में न खोये रिश्तों की खुशबू

कहते हैं जहाँ प्यार है वहां तकरार भी है | दोनों का चोली –दामन का साथ है | ऐसे में कोई अपना खफा हो जाए तो मन  का अशांत हो जाना स्वाभाविक ही है | वैसे तो रिश्तों में कई बार यह रूठना मनाना चलता रहता है | परन्तु कई बार आप का रिश्तेदार थोड़ी टेढ़ी खीर होता है | यहाँ  “ रूठा है तो मना  लेंगे “ कह कर आसानी से काम नहीं चलता |वो ज्यादा भावुक हो या   उसे गुस्सा ज्यादा आता है , जरा सी बात करते ही आरोप –प्रत्यारोप का लम्बा दौर चलता हो , जल्दी मानता ही नहीं हो तो फिर आप को उसको मनाने में पसीने तो जरूर छूट जाते होंगे | पर अगर रिश्ता कीमती है और आप उसे जरूर मानना चाहेंगे | पर सवाल खड़ा होता होगा ऐसे रिश्तेदार को मनाये तो मनाये कैसे | ऐसा  ही किस्सा रेशमा जी के साथ हुआ | आरोप –प्रत्यारोप : बेवजह के विवादों में न खोये रिश्तों की खुशबू                 हुआ यूँ की एक दिन हम सब शाम को रोज की तरह  पार्क में बैठे मोहल्ले की बुजुर्ग महिला मिश्रा चाची जी से जीवन की समस्याओं और उनके समाधान की चर्चा कर रहे थे | तभी  रेशमा जी  मुँह लटकाए हुए आई | अरे क्या हुआ ? हम सब के मुँह से अचानक ही निकल गया | आँखों में आँसू भर कर बोली क्या बताऊँ ,” मेरी रिश्ते की ननद है ,मेरी सहेली जैसी  जब तब बुलाती हैं मैं हर काम छोड़ कर जाती हूँ |वह भी मेरे साथ उतनी ही आत्मीयता का व्यवहार  करती है |  अभी पिछले दिनों की बात है उन्होंने फोन पर Sms किया मैं पढ़ नहीं पायी | बाद में पढ़ा तो घर के कामों में व्यस्त होने के कारण जवाब नहीं दिया | सोचा बाद में दे  दूँगी | परन्तु तभी  उनका फोन आ गया | और लगी जली कटी सुनाने , तुम ने जवाब नहीं दिया , तुम्हे फीलिंग्स  की कद्र नहीं है , तुम रिश्ता नहीं चलाना चाहती हो | मैं अपनी बात समझाऊं तो और हावी हो जाए |आरोप –प्रत्यारोप का लम्बा दौर चला |  यह बात मैं अभी बता रही हूँ पर अब यह रोज का सिलसिला है | ऐसे कब तक चलेगा ? बस मन  दुखी है | इतनी पुरानी दोस्ती जरा से एस एम एसऔर बेफालतू के आरोप –प्रत्यारोप  की वजह से टूट जायेगी | क्या करूँ ?          हम सब अपने अपने तर्क देने लगे | तभी मिश्रा चाची मुस्कुरा कर बोली ,” दुखी न हो जो हुआ सो हुआ ,ऐसे कोई नाराज़  हो ,गुस्सा दिखाए, आरोप –प्रत्यारोप का एक लम्बा दौर चले तो मन उचाट होना स्वाभाविक है | पर कई बार रश्ते हमारे लिए कीमती होते हैं हम उन्हें बचाना भी चाहते हैं | पर आरोप -प्रत्यारोप के दौर की वजह से बातचीत नहीं करने का या कम करने का फैसला भी कर लेते हैं | ज्यादातर किस्सों में होता यह है की इन  बेवजह के विवादों में ऐसी बातें निकल कर सामने आती हैं जिसकी वजह से उस रिश्ते को आगे चलाना मुश्किल हो जाता है | जरूरत है इन  अनावश्यक विवादों से बचा जाए | और यह इतना मुश्किल भी नहीं है | बस थोड़ी सी समझदारी दिखानी हैं |   हम सब भी चुप हो कर चाची की बात सुनने लगे | आखिर उन्हें अनुभव हमसे ज्यादा जो था | जो हमने जाना वो हमारे लिए तो बहुत अच्छा था | अब मिश्रा  चाची द्वारा दिए गए सूत्र आप भी सीख ही लीजिये | चाची ने कहना शुरू किया ,” ज्यादातर वो लोग जो झगडा करते हैं उनके अन्दर  किसी चीज का आभाव या असुरक्षा  होती है| बेहतर है की उनसे तर्क –वितर्क न किया जाए | पर अगर अगला पक्ष करना ही चाहे तो बस कुछ बातें ध्यान में रखें ……….. उनकी बात का समर्थन करों                सुनने में अजीब जरूर लग रहा होगा | अरे कोई हम पर ब्लेम लगा रहा है और हम हां में हां मिलाये | पर यही सही उपाय है | अगर दूसरा व्यक्ति भावुक व् गुस्सैल है तो जब वो ब्लेम करें तो झगडे को टालने का सबसे बेहतर और आसान उपाय है आप उसकी बात से सहमति रखते  हुए उनके द्वारा लगाये हुए कुछ आरोपों को सही बताएं | पर ध्यान रखिये अपनी ही बात से अटैच न हों | जब आप अगले से सहमती दिखाएँगे तो उसके पास झगडा करने को कुछ रह ही नहीं जाएगा | आप उन आरोपों में से सब को सच मत मानिए पर किसी पॉइंट को हाईलाईट कर सकते हैं की हां तुम्हारी इस बात से मैं पूरी तरह सहमत हूँ | या आप अपनी बात इस तरह से रख सकते हैं की सॉरी मेरी इस असावधानी पूर्वक की गयी गलती से आप को तकलीफ हुई | इससे आप कुछ हद तक आरोपों को डाईल्युट  कर पायेंगे व् उसके गुस्से का कारण समझ पायेंगे व् परिस्तिथि का पूरा ब्लेम लेने से भी बच  जायेंगे | बार –बार दोहराइए बस एक शब्द     सबसे पहले तो इस वैज्ञानिक तथ्य को जान लें की जब कोई व्यक्ति भावुक निराशा या क्रोध में होता है तो वो एक ड्रंक ( मदिरा पिए हुए ) व्यक्ति की तरह व्यवहार करता है | ऐसे में व्यक्ति का एड्रीनेलिन स्तर बढ़ जाता है | जिससे शरीर में कुछ क्रम बद्ध प्रतिक्रियाएं होती हैं व् कई अन्य हार्मोन निकलने लगते हैं | इस सम्पूर्ण प्रक्रिया को रासायनिक तौर पर “ एड्रीनेलिन ड्रंक “ भी कहा जाता है | क्योंकि इस स्तिथि में सामान्य व्यवहार करने , कारण को समझने और अपने ऊपर नियंत्रण रखने की हमारी मानसिक क्षमता पूरी तरह ध्वस्त हो चुकी होती है | ऐसे में आप उनको समझा नहीं सकते हैं |  आप ने ग्राउंड हॉग के बारे में सुना होगा | यह एक ऐसा पशु है जो सर्दियों के ख़त्म होने के बाद जब हाइबरनेशन से बाहर निकलता है और धूप  में अपनी ही परछाई देख लेता है तो उसी शीत ऋतु  ही समझ कर वापस बिल में घुस जाता है | इस तरह से उसकी शीत ऋतु एक महीना और लम्बी हो जाती है | … Read more

टर्मिनली इल – कुछ लम्हे जो मिले हैं उस पार जाने वाले के साथ

प्रेम वो नहीं है जो आप कहते हैं प्रेम वह है जो आप करते हैं                       इस विषय को पढना आपके लिए जितना मुश्किल है उस पर लिखना मेरे लिये उससे कहीं अधिक मुश्किल है | पर सुधा के जीवन की त्रासदी  ने मुझे इस विषय पर लिखने पर विवश किया |               सुधा , ३२ वर्ष की विधवा | जिस   के   जीवन का अमृत सूख गया है | वही कमरा था , वही बिस्तर था ,वही अधखाई दवाई की शीशियाँ , नहीं है  तो सुरेश | १० दिन पहले जीवनसाथी को खो चुकी सुधा की आँखें भले ही पथरा गयी हों | पर अचानक से वो चीख पड़ती है | इतनी जोर से की शायद सुरेश  सुन ले व्  लौट आये | अपनी सुधा के आँसूं पोछने और कहने की “ चिंता क्यों करती हैं पगली | मैं हूँ न | सुधा जानती है की ऐसा कुछ नहीं होगा | फिर भी वो सुरेश के संकेत तलाशती है , सपनों में सुरेश को तलाशती हैं , अगले जन्म का सोंच , किसी नन्हे शिशु में  सुरेश को तलाशती है | उसे विश्वास है , सुरेश लौटेगा | यह विश्वास उसे इतनी दर्द व् तकलीफ के बाद भी  जिन्दा रखता है | मृत्यु की ये गाज उस पर १० दिन पहले नहीं गिरी थी |  दो महीने पहले यह उस दिन गिरी थी जब डॉक्टर ने सुरेश के मामूली सिरदर्द को कैंसर की आखिरी स्टेज बताया था | और बताया था की महीने भर से ज्यादा  की आयु शेष नहीं है | बिज़ली सी दौड़ गयी थी उसके शरीर में | ऐसा कैसे ? पहली , दूसरी , तीसरी कोई स्टेज नहीं , सीधे चौथी  … ये सच नहीं हो सकता | ये झूठ है | रिपोर्ट गलत होगी | डॉक्टर समझ नहीं पाए | मामूली बिमारी को इतना बड़ा बता दिया | अगले चार दिन में १० डॉक्टर  से कंसल्ट किया | परिणाम वही | सुरेश तो एकदम मौन हो गए थे | आंसुओं पोंछ कर सुधा ने ही हिम्मत करी | मंदिर के आगे दीपक जला दिया और विश्वास किया की ईश्वर  रक्षा करेंगे चमत्कार होगा , अवश्य होगा | सुधा , स्तिथि की जटिलता समझ तो रही थी पर मृत्यु को स्वीकार नहीं कर पा रही थी | उसने अपनी आँखों पर पट्टी बाँध  रखी थी | भ्रम की पट्टी | कीमो शुरू हुई ,  पर सुरेश की हालत दिन पर दिन बद से बदतर होती जा रही थी | दिन भर चलने फिरने वाले सुरेश शरीर से लाचार होते जा रहे थे | इधर घर में मेहमानों का ताँता लगना शुरू हो गया | सुधा किसको देखे | मरीज को की मेहमान को | भारतीय समाज जहाँ गंभीर से गंभीर बिमारी से जूझ रहे मरीज को देखने आये रिश्तेदार पूरी आवभगत चाहते हैं | और चलते – चलते एक हिदायत देना नहीं भूलते | सुधा सब कुछ करने का प्रयास करती | ये चालीसा , ये जप वो दान , इसके बीज , उसकी भस्म सब कुछ | कभी कभी सुधीर को दवा के अतिरिक्त दो मिनट का समय भी नहीं दे पाती | सुधीर पास आती मौत की आहत सुन  कर कभी कभी घबरा  जाते | सुधा का हाथ थाम कर मृत्यु का भय बाटना चाहते पर सुधा ,” ऐसा कभी हो ही नहीं सकता कह कर उनकी बात काट देती |सुधीर अपने बाद उसके जीने की बात करते तो सुधा मुँह पर हाथ रख देती | जब मैंने अपने माता – पिता को माफ़ किया                           आज जब सब परदे उतर गए हैं | सुधा के जीवन  में घनघोर खाली पन है, पछतावा है | पता नहीं सुधीर क्या कहना चाहते  थे |पता नहीं सुधीर ने उसके बारे में क्या सोंचा था | काश वो मेहमाननवाज़ी के स्थान पर उस समय सुधीर को ज्यादा समय दे पाती | काश जो थोडा वक्त मिला था उसे वो दोनों  बेहतर तरीके से गुज़ार पाते | काश ! , काश !  और काश ! …. काश ये काश न बचते |                       हम जीवन की बात करते हैं | आशाओं , उमंगों की बात करते हैं | हम मृत्यु की बात नहीं करते | क्योंकि हम मृत्यु की बात करना पसंद नहीं करते | यथा संभव इससे बचते हैं | बात जब अपने किसी प्रियजन की हो तो हम बिलकुल ही नकार जाते हैं |  परन्तु मृत्यु एक सत्य है | जिसे झुठलाया नहीं जा सकता | जब ये हमारे किसी अपने के सामने आ कर खड़ी हो जाती है , जिसे हम पल- पल खोते हुए महसूस कर रहे हों | तब हमारे हाथ पाँव फूल जाते हैं | ये ऐसे मामलों में होता है | जहाँ डॉक्टर , मरीज को “ टर्मीनली इल “ घोषित कर दे | यानी की बीमारी लाइलाज हो चुकी है | मरीज पर अब कोई दवा असर नहीं करेगी | जीवन और मृत्यु के बीच का फासला कुछ , दिनों , हफ़्तों या महीनों का है | ऐसा मुख्यत : टर्मिनल कैंसर , अल्जाइमर्स कुछ खास ह्रदय सम्बन्धी बीमारियाँ या ऐसी ही कुछ बीमारियों में होता है | जहाँ डॉक्टर जीवन का अंत घोषित कर देते हैं | व् उनकी अस्पताल से छुट्टी कर देते हैं |                  विदेशों में इसके लिए hospice care यूनिट “ होती है | जहाँ मरीज का इस प्रकार ख्याल रखा जाता है की उसको शारीरिक व् मानसिक कष्ट कम से कम हों वो आसानी से प्राण त्याग सके | मरीज व् उसके परिवार वालों की शारीरिक , भावनात्मक व् आध्यात्मिक काउंसिलिंग की जाती है | जिससे उस पार जाने वाले  मरीज का कष्ट कम हो सके | व् उसके परिजन खोने के अहसास को झेल सकें |   हमारे देश में क्योंकि “ टर्मीनली इल “ मरीजों की देखभाल कर रहे लोगों को कोई विशेष प्रशिक्षण नहीं प्राप्त  होता है | इसलिए मरीज व् उसके प्रियजनो को बहुत सारी  दिक्कतों को झेलना पड़ता है | मरीज की मृत्यु के बाद इस आघात को  उसके प्रियजनों  को झेलना मुश्किल हो जाता है | ये सोंचना बहुत दर्दनाक है पर जो लोग इस सदमें से गुज़र चुके … Read more