अटल बिहारी बाजपेयी की पाँच कवितायें
फोटो क्रेडिट -वेब दुनिया जब भी राजनीति में ऐसे नेताओं की बात आती है जिन्हें पक्ष व् विपक्ष दोनों के लोग समान रूपसे सम्मान देते हों तो उनमें अटल बिहारी बाजपेयी का नाम पहली पंक्ति में आता है | भारत के दसवें प्रधानमंत्री रह चुके अटल जी एक कवि पत्रकार व् प्रखर वक्ता भी थे | कवि होने से भी ज्यादा विशेष था उनका कवि हृदय | भावों और शब्न्दों पर पकड से कोई भी कवि हो सकता है परन्तु कवि ह्रदय दुर्लभ है | अपने इस दुर्लभ ह्रदय के कारण ही राजनीति में रह कर भी तमाम राजनैतिक द्वंदफंदों से दूर रहे | आज उनकी पुन्य तिथि पर हम लाये हैं उनकी पांच कवितायें ….. अटल बिहारी बाजपेयी की पाँच कवितायें ना चुप हूँ , ना गाता हूँ ना चुप हूँ , ना गाता हूँ सवेरा है मगर पूरब दिशा में घिर रहे बादल रुई से धुंधलके में मील के पत्थर पड़े घायल ठिठके पाँव ओझल गाँव जड़ता है ना गतिमयता स्वर को दूसरों की दृष्टि से मैं देख पाता हूँ ना चुप हूँ , ना गाता हूँ समय की सद्र साँसों ने चिनारों को झुलस डाला मगर हिमपात को देती चुनौती एक दुर्गमाला बिखरे नीड़ विहसे चीड़ आंसू हैं न मुस्काने हिमानी झील्के तट पर अकेला गुनगुनाता हूँ ना चुप हूँ ना गाता हूँ | मैं अखिल विश्व का गुरु महान मैं अखिल विश्व का गुरु महान देता विद्या का अमर दान मैं दिखलाता मुक्ति मार्ग मैंने सिखलाया , ब्रह्म ज्ञान | मेरे वेदों का ज्ञान अमर मेरे वेदों की ज्योति प्रखर मानव के मन का अंधकार क्या कभी सामने सका ठहर ? मेरे स्वर नभ में गहर -गहर सागर के जल में छहर -छहर इस कोने से उस कोने तक कर सकता जगती सौरभ भय मौत से ठन गयी ठन गयी मौत से ठन गयी जूझने का मेरा इरादा ना था मोड़ पर मिलेंगे , इसका वादा ना था , रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गयी , यूँ लगा जिन्दगी से बड़ी हो गयी | मौत की उम्र क्या है ?दो पल की नहीं , जिन्दगी सिलसिला , आजकल की नहीं | मैं जी भर जिया, मैं मन से मरुँ , लौट कर आऊंगा , कूच से क्यों डरूं | तू दबे पाँव , चोरी छिपे से ना आ सामने वार कर फिर मुझे आजमा | मौत से बेखबर , जिन्दगी का सफ़र शान हर सुरमई रात बंशी का स्वर | बात ऐसी नहीं कि कोई गम नहीं , दर्द अपने पराये कुछ कम भी नहीं प्यार इतना परायों का मुझको मिला न अपनों से बाकी हैं कोई गिला हर चुनौती में दो हाथ मैंने किये आँधियों में जलाए हैं बुझते दिए | आज झकझोरता तेज तूफान है , नाँव भवरों की बाहों में मेहमान है | पार पाने का कायम मगर हौसला, देख तेवर तूफां का तेवरी तन गयी , मौत से ठन गयी || आओ फिर से दिया जलायें आओ फिर से दिया जलायें भरी दुपहरी में अंधियारा सूरज परछाई से हारा अंतरतम का नेह निचोडें बुझी हुई बाटी सुलगाएं आओ फिर से दिया जलायें हम पड़ाव को समझे मंजिल लक्ष्य हुआ आँखों से ओझल वर्तमान के मोहजाल में आने वाला कल ना भुलाएं आओ फिर से दिया जलाए आहुति बाकी यज्ञ अधूरा अपनों के विघ्नों ने घेरा अंतिम जय कवज्र बनाने नव दधीची , हड्डियां गलाए आओ फिर से दिया जलायें एक बरस बीत गया झुलसाता जेठ मास शरद चाँदनी उदास सिसकी भरते सावन का अंतर्घट रीत गया एक बरस बीत गया | सींकचों में सिमटा जग किन्तु विकल प्राण विहाग धरती से अम्बर तक गूँज मुक्ति गीत गया एक बरस बीत गया | पथ निहारते नयन गिनते दिल पल छिन लौट कभी आएगा मन का जो मीत गया एक बरस बीत गया | अटूट बंधन यह भी पढ़ें … काव्य जगत में पढ़िए बेहतरीन कवितायें संगीता पाण्डेय की कवितायें मायके आई हुई बेटियाँ रूचि भल्ला की कवितायें आपको कविता “ अटल बिहारी बाजपेयी की पाँच कवितायें .“ कैसी लगी | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | डिस्क्लेमर – कविता , लेखक के निजी विचार हैं , इनसे atootbandhann.com के संपादक मंडल का सहमत/असहमत होना जरूरी हैं filed under- Atal Bihari Bajpayee,