पतंग और गफुर चचा
एक ज़माने में पतंगों का खेल बच्चों के बीच बहुत लोकप्रिय होता था , साथ ही लोकप्रिय होते थे गफुर चचा , जो बच्चों के लिए एक से बढ़कर एक पतंगे बनाते थे| जो ऊँचे आसमानों में हवा से बातें करती थीं | मोबाईल युग में पतंग उड़ाने का खेल अतीत होता जा रहा है , साथ ही अतीत होते जा रहे हैं गफूर चचा | पुरानी स्मृतियों को खंगालती बेहतरीन कविता ….पतंग और गफुर चचा आज शिद्दत से मुझे याद आ रहे है, वे बरगद के पेड़ के नीचे, छोटी सी गुमटी में रंखे पतंग—– गफुर चचा। एक जमाना था——— जब नदी के इस पार और उस पार, दिन भर पेंचे लड़ा करती थी, तब अपनी पतंगो के लिये कितने थे—— मशहूर चचा। पर हाय री!शहरी संस्कृति, तुमने निगल डाले वे पुराने खेल, और छीन लिये कितनो के मुँह के निवाले, मै भूल नही पाता, तब कितने टूटे-टूटे दिखे थे——— गफुर चचा। फिर वे ज्यादा न जी सके, जिंदगी के उनके ड़ोर कट गई, फिर भी उनकी खुली आँखे, एकटक आसमान तक रही थी, और एैसा लग रहा था मुझे जैसे, कि ढूंढ रहे हो कोई अच्छी पतंग—– गफुर चचा। @@@रचयिता—–रंगनाथ द्विवेदी। जज कालोनी,मियाँपुर जौनपुर। यह भी पढ़ें ……….. काव्य जगत में पढ़े – एक से बढ़कर एक कवितायें श्वेता मिश्र की पांच कवितायें नए साल पर पांच कवितायें – साल बदला है हम भी बदलें चुनमुन का पिटारा – बाल दिवस पर पांच कवितायें बातूनी लड़की आपको कविता “.पतंग और गफुर चचा“ कैसी लगी | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें