वो छोड़कर चुपचाप चला जाए तो क्या करें ?

वो छोड़कर चुपचाप चला जाए

शायरी काव्य की बहुत खूबसूरत विधा है l रदीफ़, काफिया, बहर से सजी शायरी दिल पर जादू सा असर करती है l यूँ तो शायरी में हर भाव समेटे जाते हैं पर प्रेम का तो रंग ही अलग है l प्रेम, प्रीत प्यार से अलहदा कोई और रंग है भी क्या ? प्रेम में सवाल पूछने का हक तो होता ही है l  लेकिन जब प्यार करने वाला ये हक दिए बिना अचानक से छोड़ कर चला जाए, कोई सुध ही ना ले…मन किसी तरह खुद को समझ कर जीना सीख जाए , फिर उसके लौट कर आने के बाद भी जीवन की बदल चुकी दिशा कहाँ बदलती है l कुछ ऐसे ही भावों को प्रकट करती गजल वो छोड़कर चुपचाप चला जाए तो क्या करें ?     वो छोड़ कर चुपचाप चला जाए तो क्या करें ? गुलशन में पल में खार नजर आए तो क्या करें ?   हर शख्स में नजर आता था जो शख्स हर दफा उसमें भी कहीं वो ना नजर आए तो क्या करें?   दिया कब था हमें उसने सवाल पूछने का हक अब जवाबों पर एतबार ना आए तो क्या करें ?   पलकों पर ठहरी नमी की जो पा सका ना थाह अब  समुन्दर भी नाप कर आए तो क्या करें ?   कुछ भी कहा ना जिसने बहुत मिन्नतों के बाद अब लफ्जों का यूँ अंबार लगाए  तो क्या करें?   जब मुड़ ही चुके हों पाँव, गईं बदल हो मंजिलें अब पीछे से आ के पुकार लगाए तो क्या करें ?   वक्त की आँधी में दफन कर-कर  शिकायतें अब ‘वंदना’ खामोश नज़र आए तो क्या करें ?   वंदना बाजपेयी   यह भी पढ़ें मुन्नी और गाँधी -एक काव्य कथा प्रियंका ओम की कहानी बाज मर्तबा जिंदगी सुनो घर छोड़ कर भागी हुई लड़कियों बचपन में थी बड़े होने की जल्दी   आपको गजल “वो छोड़कर चुपचाप चला जाए तो क्या करें” कैसी लगी ? अपनी प्रतिक्रियाओं से हमें अवश्य परिचित कर कराए l अगर आप को अटूट बंधन की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया साइट को सबस्क्राइब करें और अटूट बंधन फेसबूक पेज को लाइक करें l

अखबारों के पन्नों पर

अखबारों के पन्नों पर

हम सब रोज अखबार पढ़ते हैं | अखबार की खबरें हमारी मानसिक खुराक होती है | पर ये खबरे किसी दर्द किसी अत्याचार या किसी अन्याय की सूचना होती हैं |अखबारों के पन्ने पर पन्ना दर पन्ना लिखी होती हैं शोषण की दस्ताने |आइए इस विषय पर पढ़ते हैं डॉ. पूनम गुज़रानी की महत्वपूर्ण गजल अखबारों के पन्नों पर पढ़ते पढ़ते कितना रोई अखबारों के पन्नों पर, सांझ हुई तो अक्सर सोई अखबारों के पन्नों पर। जाने वाले सैनिक का मासूम सा बच्चा भूखा था, नेताओं ने आंख भिगोई अखबारों के पन्नों पर। अरबों की खरबों की दौलत रहती बंद तिजोरी में, बस वादों की फसलें बोई अखबारों के पन्नों पर। लालकिले के सब गलियारे कानाफूसी करते हैं, किसने कितनी लाशें ढोई अखबारों के पन्नों पर। अपने हिस्से की खुशियां जो ‘पूनम’ जग को दे जाता, उसके खातिर सदियां रोई अखबारों के पन्नों पर। डॉ पूनम गुजरानी सूरत यह भी पढ़ें …. मुन्नी और गाँधी -एक काव्य कथा कविता सिंह जी की कवितायें गीता के कर्मयोग की काव्यात्मक व्याख्या आपको गजल “अखबारों के पन्नों पर कैसी लगी ? अपने विचार हमें अवश्य बताएँ |अगर आप को अटूट बंधन की रचनाएँ पसंद आती हैं तो साइट को सबस्क्राइब करें और अटूट बंधन फेसबुक पेज लाइक करें |