गुज़रे हुए लम्हे -अध्याय -14
आत्मकथा लेखन में ईमानदारी की बहुत जरूरत होती है क्योंकि खुद के सत्य को उजागर करने के लिए साहस चाहिए साथ ही इसमें लेखक को कल्पना को विस्तार नहीं मिल पाता | उसे कहना सहज नहीं होता | बहुत कम लोग अपनी आत्मकथा लिखते हैं | बीनू दी ने यह साहसिक कदम उठाया है | बीनू भटनागर जी की आत्मकथा “गुज़रे हुए लम्हे “को आप अटूट बंधन.कॉम पर एक श्रृंखला के रूप में पढ़ पायेंगे | गुज़रे हुए लम्हे -परिचय गुजरे हुए लम्हे -अध्याय 1 गुज़रे हुए लम्हे -अध्याय 2 गुज़रे हुए लम्हे -अध्याय 3 गुज़रे हुए लम्हे -अध्याय चार गुज़रे हुए लम्हे अध्याय -5 गुज़रे हुए लम्हे -अध्याय 6 गुज़रे हुए लम्हे -अध्याय 7 गुजरे हुए लम्हे -अध्याय-8 गुज़रे हुए लम्हे -अध्याय 9 गुज़रे हुए लम्हे -अध्याय -10 गुज़रे हुए लम्हे -अध्याय 11 गुज़रे हुए लम्हे -अध्याय 12 गुज़रे हुए लम्हे -अध्याय 13 अब आगे …. गुज़रे हुए लम्हे -अध्याय 14 –यात्रा वृत्त (2011 के बाद) मैं छोटी थी तो मेरी यात्रायें जब बुलंदशहर सिकंद्राबाद और ज्यादा से ज्यादा दिल्ली तक होती थीं, जिनका उद्देश्य भी कभी पर्यटन नहीं होता था। पर्यटन के लिये विवाह से पूर्व एक नैनीताल यात्रा की थी और दूसरी काश्मीर की थी। ये इतनी पुरानी बातें है कि उनकी हल्की झलक ही दिमाग़ में है, इनका जिक्र मैं अध्याय 2 और 3 में कर चुकी हूँ। शादी के बाद ही एक तरह से मैं उत्तर प्रदेश के बाहर निकली थी। मुंबई, केरल और गोवा भी तनु के इलाज के सिलसिले में गये तो वहाँ के प्रमुख आकर्षण देख लिये थे। सिकंद्राबाद हैदराबाद भी घूमा। शोलापुर से आते आते पंढरपुर, शिरडी,बीजापुर और महाबलेश्वर भी गये थे। इन सब यात्राओं का जिक्र समय समय पर यादों पर ज़ोर डालकर मैंने किया है। दिल्ली आने के बाद हरिद्वार, ऋषिकेश, शिमला, देहरादून और मसूरी गये थे।।शिमला तो तीन बार जाना हुआ था, वहाँ रेलवे के रैस्टहाउस में रुके थे। ये तो हर बार ड्यूटी पर ही थे, रेलकार से जब चाहें जहाँ रुके निरीक्षण किया और आगे बढ़ गये। कुफरी और शिमला का भव्य राषट्रपति निवास देखा जो कि अब उच्च शिक्षा का केंद्र है। अद्भुत इमारत है जिसका एक हिस्सा पर्यटकों के लिये खुला रहता है। यहाँ का लॉन और उद्यान भी बहुत सुंदर है। जब से लिखना शुरू किया है हर यात्रा की स्मृतियों से कभी कविता सजाई है तो कभी लेख लिखा है और कभी गद्य और पद्य दोनों रूपों में यात्रा वृत्त लिखे हैं। ये स्मृतियाँ मेरे जीवन का अंग हैं, इसलिये इनको इस अध्याय में प्रस्तुत करूँगी। ये सभी यात्रा संस्मरण किसी न किसी पत्रिका या वैब साइट पर आ चुके हैं परन्तु इनका कॉपी राइट मेरा ही है, यह मैं पहले स्वानुभूति में भी बता चुकी हूँ। इस अध्याय में मैं दार्जिलिंग, गैंगटॉक यात्रा(2011), केरल यात्रा(2013) और उत्तराखंड यात्रा(2016) और ग्वालियर यात्रा(2019) के संस्मरण ही प्रस्तुत करूँगी। शिमला और हरिद्वार ऋषिकेश यात्राओं पर जो कवितायें लिखी थीं वे पेश करूँगी,तो पहले कवितायें- शिमला से.. खिड़की खोली, दर्शन किये प्रभात के, सूर्य की किरणें पड़ी जब, हिम शिखर पर, विस्तार ज्योति पुंज का, मेरे द्वार पे। ये नोकील पेड़ देवदार के, प्रहरी बने खड़े हैं, पर्यावरण के बहार के। एक सौ तीन सुरंगें, पार करती घूमती चढ़ती हुई, रेल की ये पटरियां, दौड़ती हैं जिन पर सुन्दर, सजीली गाड़ियां। अति सुखद है यात्रा, शिवालिक पहाड़ की। ऊंचे नीचे, टेढे-मेढे, रास्ते पहाड़ के, रेंगते हैं इन पर वाहन प्रवाह से ऊंचे शिखर, नीची वादी, सौन्दर्य रचनाकार के। जीवित हूँ या स्वर्ग में, भ्रम मुझे होने लगा है, मुग्ध मुदित मन मेरा, होने लगा है। चारों ओर फैला है, बादलों का एक घेरा, छू लिया है बादलों को, मुट्ठी में बन्द किया है, पागल आशिकों को। शाम ढली पुलकित हुई मैं, ठंडी बयार से, तन मन शीतल हो रहा है रात्रि के प्रहार से। तारों भरा आसमां नीचे कैसे हो गया, आकाश ऊपर भी नीचे भी, फिर मुझे कुछ भ्रम हो गया। स्वप्न है या यथार्थ, यथार्थ कबसे इतना सुखद हो गया ! ऊपर निगाह डाली तो बादलों के घेर थे, बूँदें गिरी मौसम ज़रा नम हो गया यह सुख फिर कहीं खो गया। सूखी चट्टानें, कटे पेड़, देखकर मन विचलित हो गया। सीढियों पर उगती फ़सल देखकर, फिर मन ख़ुश हो गया। धरती के इस स्वर्ग को बचायेंगे, ये पेड़ देवदार के। हरिद्वार और ऋषिकेश उत्तराखण्ड का द्वार हरिद्वार, यहाँ आई गंगा पहाड़ों के पार। पहाड़ों के पार शहर ये सुन्दर। सुन्दर शहर उत्तराखण्ड का मान। मंसादेवी, चंडीदेवी के मन्दिर सुन्दर, मंदिर का रास्ता बन गया है सुगम, केबल कार की यात्रा अति मनोरम। हर की पौड़ी शहर का मान, गंगा की आरती, गंगा की भक्ति, ऊपरी गंगा नहर और गंगा, हरिद्वार का बनी है अभिमान। तैरते हैं यहां प्रज्वलित दीप हर शाम। आयुर्वेद्यशाला पंतजलि संस्थान, गुरुकुल कांगड़ी यहां विद्यमान। हरिद्वार के निकट ही शहर ऋषिकेश, आश्रमों में साधुओं का होता है प्रवेश। विशाल झूला सा पुल झूला लक्ष्मण, राम के नाम का भी झूला विलक्षण। युवा पर्यटकों का भी मन मोहे ऋषिकेश, डेरों में रहते थे युवा नदी के तट पर, डेरे तो उठ गये प्रदूषण से बचाव को, फिर भी नदी में है राफ़्टिग जारी । यहां से ही शुरू होती है शुभ यात्रा, उत्तराखण्ड की चार धाम यात्रा। गंगोत्री, जमनोत्री, केदारनाथ, और बद्रीनाथ की तीर्थयात्रा। (अब राफ्टिंग पूरी तरह बंद हो चुकी है) दार्जिलिंग और गैंगटॉक यात्रा (2011) अपूर्व की शादी के बाद ये हमारी पहली पर्यटन यात्रा थी, जिसमें परिवार की नयी सदस्य नेहा भी हमारे साथ थी। हम दिल्ली से विमान द्वारा बागडोगरा हवाई अड्डे पर पहुँचकर सामान की प्रतीक्षा कर रहे थे। मौसम साफ़ था। अचानक नेहा कभी नीचे ज़मीन पर देख रही थी कभी ऊपर और कहने लगी ये पानी कहाँ से आ रहा है। नीचे कुछ गीला था। कुछ देर में पता चाला कि पानी की बोतल जो कि ठीक से बंद नहीं की गई थी, नेहा के बैग में थी उसी से पानी टपक रहा था।इस ज़रा सी लापरवाही की भेंट उसका मोबाइल हो गया जो बहुत कोशिशों के बाद … Read more