जेल के पन्नों से -नन्हा अपराधी

नन्हा अपराधी

  एक नन्हा  मासूम सा  बच्चा जेल के अंदर आया माँ को पुकार रहा था .. माँ को नहीं | कहन से आया क्यों आया वो मासूम जेल में |पढिए वरिष्ठ लेखिका आशा सिंह के धरावहिक जेल के पन्नों से की अगली कड़ी में नन्हा अपराधी जेल शहर से बाहर स्थित थी। मुख्य राजमार्ग से अंदर की ओर सड़क जेल कीओर जाती है,जिसके दोनों ओर कर्मचारियों के आवास थे।शाम को महिलाएंगपशप करती, बच्चे सामने पार्क में खेलते। एक सांय छोटेलाल ने बताया-‘ साहब,जेल में एक छोटा बच्चा आया है, बहुत हीसुन्दर है।‘ ‘मॉ के साथ आया होगा।‘ किसी ने कहा। ‘नहीं साहब,मां तो उसकी भाग गई। स्टेशन पर किसी सेठ का थैला लेकर भागा था,पर लोगों ने पकड़ लिया।जब से आया है बराबर आया मां कहकर रोते जारहा है।यही छै सात बरस का होगा। ‘छोटे बच्चे तो स्कूल जाते हैं,जेल में क्यों लाया गया ‘एक बच्चे ने पूछा। मैंने कहा-‘बेटे इसीलिए कभी चोरी मत करना। बच्चों के साथ महिलाओं कीउत्सुकता बढ़ती जा रही थी।जेलर साहब से निवेदन किया गया कि बच्चे कोदेखना है। छोटे लाल को डांट पड़ी कि जेल की बात बताने के लिए। पर हम लोगों का आग्रह देख एक सिपाही के साथ गेट पर लाया गया। वास्तव मेंबच्चा बेहद खूबसूरत और मासूम था।हाथ पैरों में बेड़ियां पड़ी थी। कपिल देव सिपाही ने बताया- यह बहुत तेज भागता है, इसलिए बेड़ी डाली गईहै।बराबर मां के लिए रो रहा है। उसको देख कर कान्हा की याद आ गई।उसे तो मां यशोदा शरारत करने पररस्सी से बांध देती थीं। हम लोगों ने पूछा-थैला क्यों उठाया। बहुत ही मासूम उत्तर-आया मां ने कहा था। हम सब यही बातें कर रहे थे कि बच्चा अच्छे परिवार का लग रहा है।उसकाआया मां कहना भी खटक रहा था। इस केस पर काम कर रहे इंस्पेक्टर साहब से पूछा। उन्होंने कहा-लगता है किबच्चा चोरों की टोली का है। कुछ घरों से बच्चा चुरा लाते हैं।उनसे भीख मंगवातेहैं,चोरी करवाते हैं।बच्चा धीरे से सामान  पार कर देता है, किसी को शक नहींहोता है। कभी कभी रोशनदान से अंदर कुदा देते हैं,बच्चा दरवाजा खोल देता है, गिरोह लूटपाट करता है। ‘यह आया मां क्यों कह रहा है। उन्होंने कहा-शक सही है।बच्चा अच्छे परिवार का है,इसकी मां ने देखभाल करनेके लिए आया रखी होगी।अपने बच्चे के लिए समय नहीं था,सो बच्चा आया सेज्यादा हिल गया था।मौका पाकर बच्चे के साथ गिरोह में शामिल हो गयी।पहलेविश्वास अर्जित किया फिर धोखा दिया। अब देखिए बच्चा भी मां के बजायआया मां कह रहा है।हर तरह से पूछताछ जारी है, पर बच्चे को अपने घर मां-बाप का स्मरण नहीं है।वह औरत उल्टी दिशा में भाग गई, इसलिए पकड़ी नहींजा सकी। प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि वह चालीस वर्षीय ,गहरा रंग और गठेशरीर की थी।हम पूरी कोशिश कर रहे हैं, पर गिरोह बहुत चालाक होता है, होसकता है कि डेराडंडा उठा कर दूसरे शहर चला गया हो। ‘बेचारी मां, अपने बच्चे के लिए कितना तड़पती होगी। इंस्पेक्टर नाराजगी से बोले -कैसी मां जो अपने बच्चे को आया के हवाले कर क्लब पार्टी में मशगूल रही। किसी महिला ने कहा -शायद मजबूरी रही हो,वह नौकरी करती हो। हो सकता है। ऐसे में अपने परिवार पर विश्वास करना चाहिए।अपनी कीमती चीजें तो संभाल कर रखती हैं। बच्चे तो अनमोल होते हैं। बाद में सूचना मिली कि बच्चे को बाल सुधार केन्द्र भेज दिया गया। कपिल देव बोले -अब वह पक्का अपराधी बन कर बाहर आयेगा। आशा सिंह यह भी पढ़ें ॥ जेल के पन्नों से – अंतिम इच्छा जेल के पन्नों से–हत्यारिन माँ जेल के पन्नों से आपको धरवाहिक जेल के पन्नों से की ये कड़ी “नन्हा अपराधी” कैसी लगी ?अपनी प्रतिक्रिया से हमें अवश्य अवगत कराए |अगर आपको अटूट बंधन की रचनाएँ पसंद आती हैं तो साइट को सबस्क्राइब करें व अटूट बंधन फेसबुक पेज लाइक करें |

जेल के पन्नों से–हत्यारिन माँ

जेल के पन्नों से--हत्यारिन माँ

“माँ”, दुनिया का सबसे खूबसूरत शब्द है |माँ शब्द के साथ एक शब्द और जुड़ा है ….ममता, जैसे देवत्व का भाव | माँ, जो जन्म देती है, माँ जो पालती है, चलना सिखाती है ,उंच -नीच समझाती  है,हर बला से बचाती है क्या वो हत्यारिन हो सकती ? वरिष्ठ लेखिका आशा सिंह जी  के धारावाहिक “जेल के पन्नों से” के भाग दो में पढिए एक हत्यारिन माँ की रोंगटे खड़े कर देने की कहानी .. जेल के पन्नों से–हत्यारिन माँ यह घटना शायद न लिखती,पर आंध्र प्रदेश के चित्तूर की घटना ने विवश कर दिया। पिता कैमिस्ट्री में पी एच डी, स्कूल के उप प्रधानाचार्य, मां गणित में एम एस सी , तंत्र के जाल में फंस कर अपनी ही दोनों बेटियों की हत्या कर दी। शवों के पास इस विश्वास से बैठे रहे-सत्ययुग आयेगा। बेटियां पुनर्जीवित हो जायेगी। जब इतने शिक्षित अंधविश्वास में ग्रसित होकर ऐसा कर सकते हैं,तो गांवों में वैसे ही टोना टोटका चलता है। जेल के बाहर कर्मचारियों के आवास थे।सांय महिलाएं गपशप करतीं।जब ऐसे ही हल्की फुल्की चर्चा चल रही थी,जेल की महिला वार्डन जमुना कैदी को लगभग घसीटते हुए ले जा रही थी। जमुना को इतना बिफरते नहीं देखा था। हम लोगों ने उसे टोका-‘आज इतना गुस्सा क्यों आ रहा। मैडम,जब आप लोगों को इसके बारे में पता चलेगा,आप भी मुझसे ज्यादा अंगारा हो जायेंगी। हम लोगों ने उस स्त्री पर ध्यान दिया।गोरी चिट्टी नाटे कद की सुंदर महिला चेहरे पर पिटाई की सूजन बिखरे बाल चेहरे पर मुर्दिनी छाई हुई थी। जमुना ने बात आगे बढ़ाई-राजापुर गांव की अच्छे खाते पीते परिवार की है। कुर्मी परिवार खेतों में बहुत परिश्रम करते हैं। महिलाएं भी पूरा साथ देती हैं।रहन सहन में सीधे और मालदार होते हैं। अक्सर मुकदमे में इनकी गारंटी ली जाती है। एक बार गांव के ठाकुर की जमानत के लिए बूढ़े पटेल जी पहुंचें।उनकी सादी वेशभूषा देख कर जज को विश्वास न हुआ कि ये इतनी रकम भर सकेंगे।पटेल जी ने पोटली बढाई,साहब गिनवा लें। ज्यादा हो तो वापिस करें,कम हो तो भी बताया जाये। चौधरी टीकाराम का अच्छा परिवार बीस बीघे की काश्त और पक्का मकान।दो जवान बेटे पिता के साथ हाड़ तोड़ मेहनत करते। दोनों बेटो का ब्याह कर दिया।पूरा परिवार प्रेम से रहता। बड़े भाई का पांच साल का बेटा चुनमुन सबकी आंखों का तारा था। छोटी बहू की गोद खाली थी।वह भी बच्चे को बेहद प्यार करती।बच्चा भी काकी से ही चिमटा रहता। लिहाजा सास और जिठानी निश्चित हो कर खेतों की निराई करती। पता नहीं क्यों मायके से लौट कर उदास रहने लगी।पति के पूछने पर निस्संतान रहने के कारण दुख बताया।पति ने हंसकर कहा-है ना चुनमुन। अन्तर में क्या ज्वाला जल रही थी,कोई भांप न सका। सारे सदस्य खेतों पर गये थे। चुनमुन काकी के साथ घर पर ही था। काकी जाकर गौ के लिए चारा काटने लगी।बच्चा गले से लिपट कर मनुहार करने लगा- काकी लड्डू दो। दुपहरिया में बाकी सदस्य आ गया। भोजन के लिए बैठ गया। बच्चे को सामने न देख पुकारा जाने लगा। सोचा कि बालक शरारत से कहीं छुप गया है। दादी बोली- बचवा , अब तंग न करा। जल्दी से आओ। तुम्हारे लिए रोटी पर घी लगा दिया। छोटी बहू पागलों की तरह चीखने लगी-अब वह कभी नहीं आयेगा। उसके पति ने पूछा- क्या आंय बांय बक रही है। कहां गया चुनमुन। बेहद वीभत्स उत्तर मिला-हम उसको गंडासा से काट कर खून पिये।साधु बाबा कहे थे कि फिर वह तुम्हारे पेट से जन्म लेगा। सबको लगा विक्षिप्त हो गई है। अनर्गल प्रलाप कर रही है। बूढ़ी दादी – हंसी न कर।बबुआ कहां है। हम भूले के ढेर में तोप दिये हैं। किसी ने पुलिस को सूचना दे दी, अन्यथा सब उसे पीट पीटकर मार डालते। उस हत्यारिन पिशाचनी को देख उबकाई आने लगी।हम लोगों की स्थिति देख जमुना फौरन लेकर चली गई। ऐसे ही लाखों ढोंगी बाबा हैं। पता नहीं कैसे इनके जाल में फंस जाते हैं।   यह भी पढ़ें ॥ जेल के पन्नों से दरवाजा खुला है नीम का पेड़‘ बोलती का नाम गाड़ी आपको धारावाहिक जेल के पन्नों से–हत्यारिन माँ कैसा लगा ? हमें  अपनी अवश्य अवगत कराएँ | अगर  आपको अटूट बंधन की रचनाएँ पसंद   आती   हैं  तो साइट को सबस्क्राइब करें व अटूट बंधन फेसबुक पेज    लाइक करें |

जेल के पन्नों से

जेल के पन्नों से

जेल .. ये शब्द सुनते ही मन पर एक खौफ सा तारी हो जाता है | शहर की भीड़ -भाड़ से दूर,अपनों से अलग, एक छोटा सा कमरा,अंधेरा सीलन भरा | जेल जाने का डर इंसान को अपराध करने से रोकता है |फिर भी अपराध होते हैं | लोग जेल जाते हैं |क्या सब वाकई खूंखार होते हैं ?या कुछ परिस्थितिजन्य  अपराधी होते हैं और क्षणिक आवेश में किये गए अपराध की सजा भुगतते हैं | आइए मिलते हैं ऐसे ही जेल के कैदियों से और जानते हैं उनकी सच्ची कहानी वरिष्ठ लेखिका आशा सिंह जी की कलम की जुबानी .. जेल के पन्नों से  जेल का नाम ही मन में भय उत्पन्न कर देता है ।एक बार जेल में ही पतिदेव की पोस्टिंग हुई,सो जेल और क़ैदियों से मिलने का अवसर मिला । गीता का ज्ञान देने वाले भगवान श्री कृष्ण का जन्म जेल में हुआ था ।जेल के परिसर में कृष्ण जन्माष्टमी बहुत धूमधाम से मनाई जाती है ।जन्माष्टमी पर झाँकी देखने जेल परिसर में गयी।बड़े ही सुंदर ढंग से सजाया गया था कागज की पट्टियों को काटकर मंदिर बनाया गया था ।एक्स-रे प्लेट पर बालकृष्ण की छवि जो लाइट पड़ते जगमगा उठती।किसी पंखे के चक्र पर किनारे गोपियाँ और बीच में बाँसुरी बजाते कृष्ण ।बुरादे को अलग अलग रंगों में रंग कर रास्ते,उसपर प्रभु के नन्हे चरण,जो नंदवाल के झूले तक जा रहे थे । मैं तन्मयता से झांकी को देख रही थी।कुछ क़ैदी भजन कीर्तन कर रहे थे।एक क़ैदी से पूछा -‘बहुत सुंदर सजाया है।‘उसने बताया कि उमर का कमाल है। मैंने उमर को बधाई देनी चाही,एक दुबला पतला सांवले रंग का युवक मेरे सामने लाया गया मैंने उसकी कला की बहुत तारीफ की। उसने झुक कर शुक्रिया कहा। उसके चेहरे पर इतनी मासूमियत भरी थी कि मैं सोच में पड़ गई कि इससे अपराध हुआ होगा। डाक्टर सिंह ने बताया कि इस पर तीन कत्ल का जुर्म है। फांसी की सजा हुई थी,पर महात्मा गांधी के सौ वर्ष पूरे होने के कारण उम्रकैद में तब्दील हो गई। ‘पर यह कितना मासूम दिखता है,शरीफ लगता है।इसने खून किया, विश्वास नहीं होता।‘ ‘अच्छा ,आप खुद ही पूछ लेना ।‘जेलर साहब ने मेरी जिज्ञासा शान्त करने के लिए उसे मेरे बंगले पर भेज दिया। हथकड़ी बेड़ी में जकड़ा उमर सिपाही के संग लाया गया।उसको देखकर मस्तिष्क में ववंडर चलने लगा। इतनी कम उम्र में जेल में आ गया।जब तक छूटेगा एकदम कृशकाय वृद्ध हो चुका होगा। शायद उसे खुले आसमान के नीचे अच्छा लगा। मैंने चाय मंगवायी तो उसने अपने तसले में ली। ‘अरे तुम लोग अपना तसला साथ लेकर चलते हो।‘ ‘अरे मालकिन, छोड़ कर आता तो चोरी हो जाता।ससुरे चोर डकैत तो भरे हुए हैं।‘चाय में बिस्कुट डुबो कर खाते हुए बोले। देखो हम बैठे है, मैडम जो पूछे बता देना। बड़ी मुश्किल से वह मोंढे पर बैठा। ज्यादा समय नहीं था,सो मैंने बात शुरू की-‘तुम तो शरीफ खानदान के लगते हो। यहां कैसे आ गये।‘ उसने सिर झुकाए कहा-‘मैडम इश्क के कारण। मैंने किया नहीं पर हो गया। लखनऊ में अब्बा हुजूर की फोटो फ्रेम करने की छोटी सी दुकान थी,साथ में बुक बाईंडिग का भी काम करते थे। मैं इकलौता बेटा, मां बाप की आंखों का नूर था।दो मकान भी थे। किराया अच्छा खासा आ जाता। जिन्दगी मजे से बीत रही थी। अचानक तूफान आ गया।कश्ती डगमगाने लगी। दुपहर को अब्बा खाना खाने घर जाते,उस समय मैं कालेज से लौटकर दुकान पर बैठता। मैं एक फ्रेम सही कर रहा था कि दुकान रोशन हो गई। निहायत खूबसूरत हसीना मेरे सामने खड़ी थी।उनके गोरे रंग की वजह से पूरी जगह जगमगा उठी। मैंने पूछा‘जी बताइए।‘ उन्होंने एक बेहद पुरानी तस्वीर जो पानी में भीग कर खराब हो गई थी। जगह जगह से फट गई थी,कई जगह बदरंग हो गई थी,‘यह मेरी दादी जान की तस्वीर है। पता नहीं कैसे पानी में भीग गई। अब्बा हुजूर को बहुत ही प्यारी है। अम्मी ने कहा कि किसी तरह ठीक कराओ,अब्बू को पता नहीं लगे। मैने तस्वीर ली-‘कोशिश करता हूं।‘ ‘कोशिश नहीं,आपको करना ही है।आपकी दुकान का नाम सुनकर ही आई हूं।‘ मैने फोटो देखी।वे भी अपने जमाने की हूर की परी होंगी। एकाएक दिमाग में बिजली कौंधी,ये तो अपनी दादी पर पड़ी है। पुराने जमाने के ढेरों जेवरात पहिने गोया खुद से शरमा रही हो। पता नहीं कैसे फोटो खींचने की इजाजत दी होगी। विचारों के समन्दर से बाहर आया। धीरे धीरे फोटो फ्रेम से अलग की। बाबा आदम के जमाने की तस्वीर,किस मुसीबत में फंसा गई। मैं पेन्टिग कर ही लेता था। आहिस्ता आहिस्ता खराब जगहों को भरने लगा। एक एक जेवर को संवारा। बालों पर, कपड़े सब पर कहीं ब्रश कहीं पेन्सिल चली।अब्बा मुझे व्यस्त देख बहुत खुश हुए। तीसरे दिन वे आ धमकी। अपने मोतियों जैसे दांतों की नुमाइश करती हुई-‘हो गया।‘ मैंने धीरे से पेपर में लिपटी हुई फोटो उन्हें दी। ‘माशा अल्लाह।कमाल कर दिया।जी चाहता है कि ऊंगलियां चूम लूं।‘अपनी बात पर खुद ही शर्मा गई। बटुआ खोल कर मेहनताना देना चाहा, मैंने मना कर दिया। ‘आपने इतनी तारीफ कर दी, मेहनताना वसूल। वे शुक्रिया अदा कर चली गई। अगले दिन वे पेन्टिग का ढेरों सामान लेकर हाजिर हो गई।ब्रश बहुत नफीस और महंगे थे। मैं हतप्रभ-‘ नहीं बहुत महंगे हैं।‘ मैं चाहती हूं कि तुम बहुत बड़े आर्टिस्ट बनो। खूब नाम कमाओ। ‘अरे नहीं साहब‘मैने कहना चाहा। ‘क्यो मकबूल फिदा हुसैन साहब हैं ना। तुम क्यों नहीं उनकी तरह मशहूर हो सकते।‘ मन में सपने जगाकर चली गई। हुसैन तो नहीं बन पाया, कैदी नंबर २२१ बन गया। मैं ने तसल्ली दी। मैंने कैनवस पर शायरी शुरू कर दी।वे आतीं,पेन्टिग को सराहती।मेरा हौसला अफजाई करतीं।‘बहुत सारी बना डालो।मै आर्ट गैलरी में नुमाइश लगवा दूंगी‘ मेरी उड़ान को पंख देती। अब्बू की अनुभवी आंखों ने ताड़ लिया-‘बेटा हम छोटे लोग हैं।वे बड़े बिजनेसमैन मिर्जा साहब की बेटी हैं।‘ ‘नहीं अब्बू,वे बस हौसला अफजाई करतीं हैं।‘ हौसला अफजाई कब मुहब्बत में तब्दील हो गई, पता नहीं चला। हम अक्सर पार्क में मिलते।वे अपनी शानदार कार से आतीं, मैं अपनी खटारा सायकिल से। ‘जब तुम्हारा नाम हो जाए, मुझे भूल न जाना।‘ ‘सवाल ही नहीं है,आप हमेशा मेरे साथ रहेंगी‘ पर हमारे फैसले … Read more