वंदना बाजपेयी की कविता -हमारे प्रेम का अबोला दौर

हमारे प्रेम का अबोला दौर

  आजकल हमारी बातचीत बंद है, यानि ये हमारे प्रेम का अबोला दौर है l  अब गृहस्थी के सौ झंझटों के बीच बात क्या थी, याद नहीं पर इतना जरूर है कि कोई बड़ी बात रही होगी जो उस बात के बाद नहीं मन हुआ बात करने का और हमारे मध्य शुरू हो गया “कन्डीशंड एप्लाइड वाली बातचीत बंद का एक नया अध्याय प्यार का एक रंग रूठना और मनाना भी है l प्यार की एव तक्ररार बहुत भारी पड़ती है l कई बार बातचीत बंद होती है , कारण छोटा ही क्यों ना हो पर अहंकार फूल कर कुप्पा हो जाता है जो बार बार कहता है कि मैं ही क्यों बोलूँ ? लेकिन दिल को तो एक एक पल सालों से लगते हैं l फिर देर कहाँ लगती है बातचीत शुरू होने में …. इन्हीं भावों को पिरोया है एक कविता के माध्यम से l सुनिए … वंदना बाजपेयी की यह कविता आप को अपनी सी लगेगी l हमारे प्रेम का अबोला दौर ——————————– आजकल हमारी बातचीत बंद है अब गृहस्थी के सौ झंझटों के बीच बात क्या थी, याद नहीं पर इतना जरूर है कि कोई बड़ी बात रही होगी जो उस बात के बाद नहीं मन हुआ बात करने का और हमारे मध्य शुरू हो गया “कन्डीशंड एप्लाइड वाली बातचीत बंद का एक नया अध्याय माने गृहस्थी की जरूरी बातें नहीं होती हैं इसमें शामिल ना ही साथ में निपटाए जाने वाले वाले काम-काज रिश्तेदारों के आने का समय नहीं जोड़ा जाता इसमें ना ही शामिल होता है डायरी से खंगाल कर बताना गुड्डू जिज़्जी की बिटिया की शादी में दिया था कितने रुपये का गिफ्ट या फिर अखबार वाले ने नहीं डाला है तीन दिन अखबार हाँ, कभी पड़ोसन के किस्से या ऑफिस की कहानी सबसे पहले बताने की तीव्र उत्कंठा पर भींच लिए जाते हैं होंठ पहले मैं क्यों ? अलबत्ता हमारे प्रेम के इस अबोले दौर में हम तलाशते हैं संवाद के दूसरे रास्ते लिहाजा बच्चों के बोलने कि लग जाती है डबल ड्यूटी ‘पापा’ को बता देना और ‘मम्मी’ से कह देना के नाम पर आधी बातें तो कह-समझ ली जाती हैं बर्तनों की खट- खट या फ़ाइलों कि फट- फट के माध्यम से ऐसे ही दौर में पता चलता है कौन कर रहा था बेसब्र इंतजार कि दरवाजे की घंटी बजने से पहले ही मात्र सीढ़ियाँ चढ़ते हुए पैरों की आहट से खुल जाता है मेन गेट और रसोई में मुँह से जरा सा आह-आउच निकलते ही पर कौन चला आया दौड़ता हुआ और पास में रख जाता है आयोडेक्स या मूव पढ़ते-पढ़ते सो जाने पर चश्मा उतार कर रख देने, लाइट बंद कर देने जैसी छोटी-छोटी बातों से भी हो सकता है संवाद बाकी आधी की गुंजाइश बनाने के लिए मैं बना देती हूँ तुम्हारा मनपसंद व्यंजन और तुम ले आते हो मेरी मन पसंद किताबें तुम्हारे घर पर होने पर बढ़ जाता है मेरा राजनीति पर बच्चों से डिस्कसन और तुम उन्हें सुनाने लगते हो कविताएँ रस ले-ले कर नाजो- अंदाज से गुनगुनाते हुए किसी सैड लव सॉन्ग का मुखड़ा ब्लड प्रेशर कि दवाई सीधा रखते हो मेरी हथेली पर और मैं अदरक और शहद वाला चम्मच तुम्हारे मुँह में ऐसे में कब कहाँ शुरू हो जाती है बातचीत याद नहीं रहता जैसे याद नहीं रहा था बातचीत बंद करने का कारण हाँ ये जरूर है कि हर बार इस अबोले दौर से गुजरने के बाद याद रह जाते हैं ये शब्द यार, कुछ भी कर लो पर बोलना बंद मत किया करो ऐसा लगता है जैसे संसार की सारी आवाजें रुक गई हों l वंदना बाजपेयी #lovesong #love #lovestory #poetry #hindisong #valentinesday #valentine यह भी पढ़ें – जरूरी है प्रेम करते रहना – सरल भाषा  में गहन बात कहती कविताएँ तपते जेठ में गुलमोहर जैसा -प्रेम का एक अलग रूप प्रेम कभी नहीं मरेगा आपको वंदना बाजपेयी की कविता -हमारे प्रेम का अबोला दौर कैसी लगी ? अपने विचारों से हमें अवश्य अवगत कराए l अगर आपको अटूट बंधन की रचनाएँ अच्छी लगती हैं तो कृपया अटूट बंधन की साइट को सबस्करीब करें व अटूट बंधन फ़ेसबुक पेज लाइक करें l  

बस कह देना कि आऊँगा- काव्य संग्रह समीक्षा

आज मैं आपसे बात करना चाहूँगी नंदा पाण्डेय जी के काव्य  संग्रह “बस कह देना कि आऊँगा के बारे में | नंदा पाण्डेय जी काफी समय से लेखन में सक्रिय हैं | उनकी कई कवितायें समय-समय पर फेसबुक पर व अन्य पत्र –पत्रिकाओं में पढ़ती रही हूँ | झारखंड में साहित्य के प्रचार –प्रसार में भी वो काफी सक्रिय भूमिका निभा रहीं हैं | लेकिन अपना पहला काव्य संग्रह लाने में उन्होंने कोई जल्दबाजी नहीं की क्योंकि वो इंतज़ार में विश्वास करती हैं | धैर्य उनका एक बड़ा गुण है जो उनके व्यक्तित्व व् कृतित्व दोनों में झलकता है | इस संग्रह में ये धैर्य उन्होंने दिखाया है प्रेम में | ये टू मिनट नूडल्स वाला फ़ास्ट फ़ूड टाइप प्रेम नहीं है | ये वो प्रेम है जो एक जीवन क्या कई जीवन भी प्रतीक्षा कर सकता है | इस प्रेम में नदिया की रवानगी नहीं है झील सा ठहराव है | आमतौर पर माना जाता है कि कोई कवि अपनी पहली कविता प्रेम कविता ही लिखता है | परन्तु उस पहली कविता से प्रेम में धैर्य आने तक की जो यात्रा होती है वो इस संग्रह में परिलक्षित होती है | आखिर क्या है तुम्हारा और मेरा रिश्ता……???? प्यार..???? , स्नेह…????, दोस्ती …??? या इन सबसे कहीं ऊपर एक दूसरे को जानने समझने की इच्छा…..??? क्या रिश्ते को नाम देना जरुरी है???? रिश्ते तो “मन” के होते हैं सिर्फ “मन ” के …….!!!!!   बस कह देना कि आऊँगा- काव्य संग्रह समीक्षा        प्रेम यूँ तो जीवन के मूल में है फिर भी इसे दुनिया की दुर्लभ घटना माना गया है | ये बात विरोधाभासी लग सकती है परन्तु सत्य है …रिश्ते हैं इसलिए प्रेम है, ये हम सब महसूस करते हैं लेकिन प्रेम है रिश्ता हो या न हो इसकी कल्पना भी दुरूह है | प्रेम के सबसे आदर्श रूप में राधा –कृष्ण का नाम याद आता है | उनका प्रेम उस पूर्णता को प्राप्त हो गया है जहाँ साथ की दरकार नहीं है | ये प्रेम ईश्वरीय है, दैवीय है | इस अलौकिक प्रेम के अतिरिक्त सामान्य प्रेम भी है | जहाँ मिलन का सुख है तो वियोग की पीड़ा भी | साहित्य में संभवत : इसीलिये श्रृंगार रस को दो भागों में विभक्त किया है | संयोग श्रृंगार और वियोग श्रृंगार | वियोग में भी प्रतीक्षा का आनंद है | क्योंकि ये प्रतीक्षा उसके लिए है जिसके लिए ह्रदय का तालाब प्रेम से लबालब भरा हुआ है | महादेवी वर्मा इसी वियोग में कहती हैं … जो तुम आ जाते एक बार कितनी करूणा कितने संदेश पथ में बिछ जाते बन पराग गाता प्राणों का तार तार अनुराग भरा उन्माद राग आँसू लेते वे पथ पखार जो तुम आ जाते एक बार और कवयित्री नंदा पाण्डेय जी इससे भी एक कदम आगे बढ़ कर कहती हैं कि आने की भी आवश्यकता नहीं है “बस कह देना कि आऊँगा” फिर क्या है मन को भला लिया जाएगा, फुसला लिया जाएगा ….और मिलन की प्रतीक्षा में पूरा जीवन व्यतीत हो जाएगा | . पर क्या मुझमें कोई परिवर्तन दीखता है तुम्हें मैं तो बस एक समभाव तुम्हारा इंतज़ार करती रहती हूँ तुम आओ, ना आओ बस कह देना कि आऊँगा || अपनी काव्य यात्रा के बारे में अपनी बात में नंदा जी लिखती हैं कि … “पतझड़ में पत्तों का गिरना, अँधेरी रात में परछाइयों का गहराना, परिंदों का घरौंदा बनाना और घरौंदे का अपनाप बिखर जाना …ऐसी कितनी ही बातें बहा ले जाती मुझे, हवा के झोंकों की तरह और मेरी विस्फारित आँखें वीरान कोनों में अर्थ खोजने लगती हैं | इन्हीं वीरान कोनों में अर्थ खोजने के दौरान कई बार खुल जाती है स्मृतियों की पिटारी | जैसे किसी ने अनजाने में कोने में रखे किसी सितार को छेड़ दिया हो | इस आरोह –अवरोह में झंकृत हो उठी हो अंतर्मन की शांत दुनिया | जो व्यक्त है उसे शब्दों में बाँधा जा सकता है, सुरों में ढाला जा सकता है, कूचियों से कैनवास के सफ़ेद कागज़ पर उकेरा जा सकता है | पर सवाल ये है कि क्या प्रेम को पूरी तरह से व्यक्त किया जा सकता है ? नहीं न !! कितना भी व्यक्त करने का प्रयास किया जाये कुछ तो अव्यक्त रह ही जाता है | ये प्रेम है ही ऐसा …गूंगे के गुण जैसा … “कुछ कहना चाहती थी वो पर जाने क्यों … ‘कुछ कहने की कोशिश में बहुत कुछ छूट जाता था उसका… करीने से सजाने बैठती उन यादों से भरी टोकरी को जिसमें भरे पड़े थे उसके बीते लम्हों के कुछ रंग –बिरंगे अहसास कुछ यादें –कुछ वादे , और भी बहुत कुछ … कवयित्री नंदा जी एक पारंगत कवि हैं जो अपनी काव्य क्षमता का प्रदर्शन केवल भाव और शब्द सौन्दर्य से ही नहीं करती अपितु उसमें प्राण का सम्प्रेषण करने के लिए प्रकृति का मानवीयकरण भी करती हैं | … तुम्हारी प्रतीक्षा से उत्सर्ग तक की दूरी बाहर आज धरती के आगोश में ‘पारिजात’भी कुछ पाने की बेचैनी और खोने की पीड़ा से गुज़र रहा था बिलकुल मेरी तरह अब प्रेम से इतर कुछ कविताओं की बात करना चाहूंगी जो मुझे काफी अच्छी लगीं | इन कविताओं में स्त्री जीवन की आम घटनाएं दृष्टिगोचर होती हैं | अल्हड़ लडकियाँ नहीं करती इंतज़ार आषाढ और सावन का अपने अंत:स्त्रवन के लिए बरसते मेघ में भीग कर लिख लेती हैं कवितायें और एक बानगी यह देखिये … आज कलम उठाते ही पहली बार उसने अपने पक्ष में फैसला सुनाया पहली बार तय किया कि अब वो लिखेगी अपने लिए और अंत में मैं फिर कहना चाहूंगी कि कवि हो या लेखक उसका स्वाभाव उसके लेखन में झलकता है | नंदा जी एक भावुक व्यक्ति हैं | एक भावुक व्यक्ति अंत: जगत में ज्यादा जीता है | बाहर की पीड़ा तो कम भी हो जाती है पर अंत : जगत की कहाँ ? यही कविता लिखने का मुख्य बिंदु है | जहाँ वो पीड़ा को अपने पास रख लेना चाहती है….केवल आश्वासन के मखमली अहसास के बहलावे से | बोधि प्रकाशन से प्रकाशित 120 पेज के इस कविता संग्रह का मूल्य है 150 रुपये है | करीब … Read more