नया जमाना आयेगा
ज़माने के बारे में दो कथन आम तौर पर प्रचलन में हैं | एक तो “ज़माना बदल गया” है और दूसरा “नया ज़माना आएगा”| पहले में जहाँ निराशा है, दूसरे में उत्साह …उनकी जिन्दगी में जहाँ बहुत कुछ थम गया है| काई सी जम गयी है, जरूरी है जीवन धारा के सहज प्रवाह के लिए पुरानी रूढ़ियों और गलत परम्पराओं की सफाई | ऐसा ही “नया जामाना” ले कर आने की उम्मीद जाता रही है सशक्त कथाकार सपना सिंह की कहानी | सपना जी की कहानियों में ख़ास बात ये है कि उनके पात्र हमारे आस -पास के ही होते हैं और वो बहुत सहजता से उन्हें अपने शब्दों में जीवंत कर देती हैं | प्रस्तुत कहानी में नए जमाने की आहट तो है ही …कहानी सास-बहु के संबंधों की भी नयी व्याख्या करती है | नया जमाना आयेगा पापा ,मम्मी ,चाचा ,चाची ,मझले मामा सभी हॉल में बैठे थे ।बीच-बीच में पापा की तेज आवाज हॉल की सीमा लांघ भीतरी बरामदे तक आ रही थी । ‘ आखिर दिखा दी ना अपनी औकात !हमें कुछ नहीं चाहिए, यही कहा था ना उन्होंने पहली मुलाकात में।’ ‘ मैंने तो पहले ही बताया था आपको जीजाजी। इस औरत ने अपने ससुराल वालों को कोर्ट में घसीटा था संपत्ति के लिए ।’मझले मामा की आवाज़ थी ” भला भले घर की औरतें ऐसा करती हैं” ” आप लोग शांत हो जाइए “मम्मी की चिंतातुर आवाज,” आखिर क्या बात हुई है, कुछ बताइएगा भी” ” अरे बात क्या होगी ?वही नाक ऐसे ना पकड़ी वैसे पकड़ ली।” ओफ हो ,आप साफ-साफ बताइए क्या कहा अपर्णा जी ने “अब मम्मी झल्ला गई थीं । ” बुढि़या सठिया गई है । हमने तो पहले ही कहा था अपनी मांग साफ-साफ बता दीजिए , जिससे बाद में कोई लफड़ा ना रहे ।पर तब तो बड़ी सॉफिस्टिकेटेड बनकर बोली थी ,हमें सिर्फ लड़की चाहिए और कुछ नहीं ।” पापा ने तीखे स्वर में कहा । “तो फिर अब क्या हो गया?” ” अब ? अरे अपने IAS बेटे को भला ऐसे कैसे ब्याह देगी ।लगता है कोई ऊंची बोली लगा गया है इसलिए इतना बड़ा मुंह फाड़ रही है बुढि़या। ” चाचा की आवाज में चिढ़ और गुस्सा स्पष्ट था । ” हम लोग लड़की वाले हैं हमें शांति से काम लेना चाहिए । लड़का लाखों में एक है । फिर हम कब लड़की को ऐसे ही विदा करने वाले थे । भले ही उन्होंने लेने को मना किया हो पर हमें तो अपने सारे अरमान निकालने थे । हमारे एक ही तो बच्ची है । “चाची ने अपने शांत स्वभाव के अनुरूप ही शांति वाला प्रस्ताव रखा । बरामदे में बैठी मैं उनकी बातें सुनकर गुस्से से उबल रही थी । उठ कर अपने कमरे में आ गई ।अनुपम की मम्मी ऐसा करेंगी मैंने सपने में भी नहीं सोचा था। उन्होंने मेरी ,मेरी फैमिली की ऐसी इंसल्ट की । पापा तो वहां रिश्ता करने को तैयार ही नहीं थे । क्या हुआ जो लड़का IAS है ।कोई फैमिली बैकग्राउंड नहीं है । लड़के की मां भी बेहद तेज तर्रार औरत है ।पति की मौत वर्षों पहले हो गई थी । ससुराल से कोई रिश्ता नहीं रक्खा। मायके मे भी किसी से नहीं पटी। अकेले ही बच्चों को बडा़ किया, पढा़या लिखाया। मोबाइल की घंटी ने मेरा ध्यान भंग कर दिया ।अनुपम का फोन था ,मैंने काट दिया। अफसोस भी हुआ । अपने व्यस्त शेड्यूल से किसी तरह समय निकालकर तो उसने फोन किया होगा ।पर अभी उससे बात करने का मन नहीं । क्या पता मां की इच्छा में बेटे की इच्छा भी शामिल हो । हिप्पोक्रेट मां बेटे । मुझे अनुपम की मम्मी से पहली मुलाकात याद हो आई ।अनुपम से मेरी अच्छी बनती थी ।उसके साथ में मै खुद को कंफर्टेबल और खुश महसूस करती थी । हमारी दोस्ती रिश्ते तक पहुंचेगी या हम भविष्य में साथ-साथ जीवन जीना चाहेंगे ,कॉलेज की पढ़ाई के दौरान हमने यह सब नहीं सोचा था । हम बस इतना ही जानते थे कि एक दूसरे के साथ हमें सुकून और साहस देता था । अनुपम का सुलझा हुआ जमीनी व्यवहार मुझे बहुत अच्छा लगता। उसके व्यवहार मे एक ठहराव था। बीए के बाद अनुपम दिल्ली चला गया और मैं इलाहाबाद में ही रह गई । हम फोन द्वारा संपर्क में रहते । मैं उसे दिल्ली की लड़कियों को लेकर चिढ़ाती । वह इलाहाबाद आने पर मुझसे जरूर मिलता ।उसका एम ए. कंप्लीट हो गया था ।उसने मास कम्युनिकेशन ज्वाइन कर लिया था और प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी भी जोरों पर थी । उसी दौरान दिवाली की छुट्टी में सिर्फ 2 दिन के लिए इलाहाबाद आया था अनुपम । दिवाली की पूर्व संध्या पर हम सिविल लाइंस में टहल रहे थे ।अचानक उसने पूछा था ‘मेरे घर चलोगी कवि , मेरी मम्मी से मिलने ?’ ‘हां क्यों नहीं’ उस दिन उसकी आवाज में जाने क्या था कि, पहली बार उसके बाइक पर पीछे बैठते में मैं संकोच से भर गई थी । दुबली पतली लड़कियों जैसी फिजिक वाली उसकी मम्मी ने सहज हंसी बिखेरकर मेरा स्वागत किया था । उनकी चमकदार आंखें और होठों पर खिली निश्चल मुस्कान किसी को भी पल भर में अपना बना लेने की क्षमता रखते थे । पापा ,मामा और चाचा कैसे उन्हें खडूस हिप्पोक्रेट बुढि़या की पदवी से नवाज रहे थे । कैसे अपशब्द बोल रहे थे । उनके वह शब्द और अनुपम की मम्मी का व्यक्तित्व कहीं से भी दोनों का कोई साम्य नहीं था । क्या उनका वह प्यार ,वह समझदारी और उदारता सिर्फ बाहरी आवरण था । भीतर से वह भी एक सनातन ,बेटे की मां थीं, एक लायक बेटे की मां , जो अपने सारे ख्वाब सारे सपने अपने बेटे की शादी में कैश कराना चाहती हैं । पर आखिर कितना बड़ा मुंह फाड़ा है उन्होंने, जो पापा लोग बौखला गए हैं । पापा तो कितनी दुलार से कहते थे ,मेरी शादी में वह इतना धूम मचा देंगे …सारा शहर वर्षों याद करेगा । आखिर पापा के बूते से बाहर क्या मांग रख दी अनुपम की मम्मी ने ।सोच-सोचकर मेरा सिर फटा जा रहा था । अनुपम … Read more