काव्य कथा – वो लड़की थी कुछ किताबी सी
काव्य कथा, कविता की एक विधा है, जिसमें किसी कहानी को कविता में कहा जाता हैं l काव्य कथा – वो लड़की थी कुछ किताबी सी में गुड्डो एक किताबी सी लड़की है , जिसे दुनिया की अच्छाई पर विश्वास है l उसकी दुनिया सतरंगी पर उसके प्रेमी को उसके सपने टूट जाने का डर है l सपने और हकीकत की इस लड़ाई में टूटी है लड़की या उसका प्रेमी या कि पूरा माजरा ही अलग है l आइए जाने इस काव्य कथा में … काव्य कथा – वो लड़की थी कुछ किताबी सी दिन रात किताबों में घिरी रहने वाली वो लड़की थी कुछ किताबी सी ऐसा तो नहीं था कि उसके रोने पर गिरते थे मोती और हंसने पर खिलते थे फूल पर उसकी दुनिया थी सतरंगी किसी खूबसूरत किताब के कवर जितनी हसीन उसे भरोसा था परी कथाओं पर भरोसा था दुनिया कि अच्छाई और सच्चाई पर उसे लगता था एक दिन दुनिया सारे अच्छे लोग सारे बुरे लोगों को हरा देंगे शायद वो देखती थी यही सपने में और सोते समय एक मुस्कुराहट तैरती थी उसके ज़रा से खुले गुलाबी होंठों पर उसके चेहरे पर आने-जाने वाला हर रंग पढ़ा जा सकता था किसी सूफियाना कलाम सा किसी मस्त मौला फ़कीर की रुबाइयों सा रामायण की चौपाइयों सा और दिन में, उसकी कभी ना खत्म होने वाली बातों में होती थी जादू की छड़ी होती थी सिंडरेला टेम्पेस्ट की मिरिंडा फूल, धूप, तितलियाँ और बच्चे गुड्डो, गुड़िया, स्वीटी, पिंकी यही नाम उसे लगते थे अच्छे और हाँ! कुछ बेतकल्लुफ़ी के इज़हार से गुड्डो, नाम दिया था मैंने उसे प्यार से झूठ नहीं कहूँगा मुझे उसकी बातें सुनना अच्छा लगता था घंटों सुनना भी अच्छा लगता था पर… मुझे कभी-कभी डर लगता था उससे उसके सपनों से उसके सपनों के टूट जाने से इसलिए मैं जी भर करता था कोशिश उसे बताने की दुनिया की कुटिलताओं, जटिलताओं की और हमेशा अनसुलझी रह जाने वाली गुत्थियों की ये दुनिया है, धोखे की, फरेब की, युद्ध की मार-पीट, लूट-पाट, नोच-खसोट की कि धोखा मत खाना चेहरों से वो नहीं होते हैं कच्ची स्लेट से कि हर किसी ने पोत रखा है अलग-अलग रंगों से खुद को छिपाने को भीतर का स्याह रंग और हर बार वो मुझे आश्चर्य से देखती अजी, आँखें फाड़-फाड़ कर देखती और फिर मेरी ठुड्डी को हिलाते हुए कहती धत्त ! ऐसा भी कहीं होता है फिर जोर से खिलखिलाती और भाग जाती भागते हुए उसका लहराता आँचल धरती से आसमान तक को कर देता सतरंगी फिर भी हमारी कोशिशे जारी थीं एक दूसरे से अलग पर एक दूसरे के साथ वाली दुनिया की तैयारी थी जहाँ जरूरी था एक की दुनिया का ध्वस्त होना सपनों का लील जाना हकीकत को या हकीकत के आगे सपनों का पस्त होना जानते हैं… पिछले कई महीनों से सोते समय उसके होंठों पर मुस्कुराहट नहीं थिरकी है और एक रात … एक रात तो सोते समय दो बूंद आँसू उसके गालों पर लुढ़क गए थे होंठों को छूकर घुसे थे मुँह में और उसने जाना था आँसुओं का खारा स्वाद शायद तभी… तभी उसने तय कर लिया था सपनों से हकीकत का सफ़र उसकी सतरंगी दुनिया डूब गई थी और उसके साथ डूबकर मेरी गुड्डो भी नहीं रही थी जो थी साथ… मेरे आस-पास वो थी उसकी हमशक्ल सी पुते चेहरे वाली, भीतर से बेहद उदास जी हाँ ! कद-काठी रूप रंग तो था सब उसके जैसा पर ओढ़े अज़नबीयत की चद्दरें बदल गई थी जैसे सर से पाँव तक वो दिन है… और आज का दिन है गुड्डो की वीरान आँखों में नहीं हैं इंद्रधनुष के रंग उसकी बातों से उड़ गए हैं खुशबुएँ और तितलियाँ खेत और खलिहान भी उसकी जगह आ बैठी हैं गगनचुंबी ईमारतें, बड़े-बड़े मॉल और मंगल यान अब हमारी दुनिया एक थी और हम एक-दूसरे से अलग एक अजीब सी बेचैनी मेरे मन पर तारी थी मैंने जीत कर भी बाजी हारी थी और पहली बार… शायद पहली बार ही महसूस किया मैंने कि उस रात मुझसे अपरिचित मेरी भी एक दुनिया डूब गई थी मेरे साथ मैं नहीं किया तैरने का प्रयास जैसे मैंने नहीं किया था उसके विश्वास पर विश्वास आह!! क्यों लगा रहा उसे दिखाने में स्याह पक्ष क्यों नहीं की कोशिश उसके साथ दुनिया को सतरंगी बनाने की क्यों पीड़ा के झंझावातों में नीरीह प्रलापों में अब भी डराते हैं मुझे गुड्डो के नए सपने किसी खूबसूरत ग्रह-उपग्रह के वहाँ बस जाने के अबकी बार… इस ग्रह को उजाड़ देने के बाद आज़ जब गुड्डो में नहीं बची है गुड्डो मेरे भीतर दहाड़े मार कर रोती है गुड्डो अजीब बेचैनी में खुला है ये भेद कि दुनिया का हर व्यावहारिक से व्ययहारिक कहे जाने वाले इंसान के भीतर उससे भी अपरिचित कहीं गहरे धँसी होती है गुड्डो एक अच्छी दुनिया का सपना पाले हुए जो टिकी होती है दो बूंद आँसू पर … बस जीतने ही तो देना होता है भीतर अपनी गुड्डो को और पूरी दुनिया हारती है बाहर से मैंने उठा ली हैं उसकी बेतरतीब फैली किताबें मेरे अंदर फिर से हिलोर मार रही है गुड्डो वो किताबी सी लड़की दुनिया की सच्चाई पर विश्वास करती सतरंगी सपनों वाली… पगली और मैं चल पड़ा हूँ दुनिया को बदलने की कोशिश में और हाँ ! आपको कहीं मिले गुड्डो वो सपनों में पगी लड़की तो बताइएगा जरूर जरूर बताइएगा अबकि मैं उसे जाने नहीं दूँगा वंदना बाजपेयी यह भी पढ़ें काव्य कथा -गहरे काले रंग के परदे वंदना बाजपेयी की कविता -हमारे प्रेम का अबोला दौर अब तो बेलि फैल गई- जीवन के पछतावे को पीछे छोड़कर आगे बढ़ने की कथा आपको ‘काव्य कथा – वो लड़की थी कुछ किताबी सी’कैसी लगी ? हमें अपने विचारों से अवश्य अवगत कराए l अगर आपको हमारा काम अच्छा लगता है तो कृपया साइट को सबस्कराइब करें व अटूट बंधन फेसबूक पेज लाइक करें l