निर्मल वर्मा की कहानी – डेढ़ इंच ऊपर

निर्मल वर्मा की कहानी - डेढ़ इंच ऊपर

  अगर आप बुरा न मानें तो मैं एक और बिअर लूँगा। कुछ देर में यह पब बन्द हो जाएगी और फिर सारे शहर में सुबह तक एक बूंद भी दिखाई नहीं देगी। आप डरिए नहीं … मैं पीने की अपनी सीमा जानता हूँ … आदमी को ज़मीन से करीब डेढ़ इंच ऊपर उठ जाना चाहिए। इससे ज़्यादा नहीं, वरना वह ऊपर उठता जाएगा और फिर इस उड़ान का अन्त होगा पुलिस-स्टेशन में या किसी नाली में … जो ज़्यादा दिलचस्प चीज़ नहीं। लेकिन कुछ लोग डर के मारे ज़मीन पर ही पाँव जमाए रहते हैं …   निर्मल वर्मा जी की कहानियों में प्रेम की गहन अभिव्यक्ति हैl पर वो अब अतीत का हिस्सा बन गया हैl कहानियों में अपूर्णता स्वीकार करने के बाद भी बची हुई छटपटाहट है और पूर्णता की लालसा है जैसे चूल्हे की आग ठंडी हो जाने पर भी राख देर तक धधकती रहती हैl यही बेचैनी वो पाठक के मन में बो देते हैँ l उनकी कहानियों में बाहरी संघर्ष नहीं है भीतरी संघर्ष हैl कहानियाँ वरतान में अतीत में भटकते वर्तमान में निराश और भविष्य के प्रति उदासीन नायक का कोलाज हैँ l निर्मल वर्मा जैसे कथाकार दुर्लभ होते हैं l जिनके पास शब्द सौन्दर्य और अर्थ सौन्दर्य दोनों होते है l सीधी-सादी मोहक भाषा में अद्भुत लालित्य और अर्थ गंभीरता इतनी की कहानी पढ़कर आप उससे अलग नहीं हो सकते… जैसे आप किसी नदी की गहराई में उतरे हो और किसी ने असंख्य सीपियाँ आपके सामने फैला दी हों l खोलो और मोती चुनो l यानि कहानी एक चिंतन की प्रक्रिया को जन्म देती है… ऐसी ही एक कहानी है ‘डेढ़ इंच ऊपर’   दूसरे महायुद्ध के समय में यूरोपीय देश की पृष्ठ भूमि पर आधारित नाटक में अधेड़ व्यक्ति अपनी पत्नी की अचानक हुई मौत से व्यथित हो जाता है। वह मौत से अधिक इस बात से आहत होता है कि उसकी पत्नी ने सात वर्ष के वैवाहिक जीवन में अपने असल भेद को छिपा कर रखा। अधेड़ आदमी की पत्नी देशवासियों के हित में नाजीवाद के खिलाफ चल रहे गुप्त आंदोलन का हिस्सा थी। उसकी पत्नी की मौत देश पर काबिज जर्मनियों के चलते हुए। जर्मन पुलिस उस अधेड़ से पत्नी के बारे जानकारी हासिल करने के लिए गिरफ्तार करती है। जबकि वह अपनी पत्नी के इस रोल से पूर्ण तौर से अनभिज्ञ होता है। पत्नी से अथाह प्रेम के चलते वह दूसरी शादी भी नहीं करता है। परंतु दूसरी तरफ वह अपनी पत्नी की ओर से विश्वास तोड़ने से आहत भी होता है। आइए पढ़ें… निर्मल वर्मा की कहानी – डेढ़ इंच ऊपर     अगर आप चाहें तो इस मेज़ पर आ सकते हैं। जगह काफ़ी है। आखिर एक आदमी को कितनी जगह चाहिए? नहीं … नहीं … मुझे कोई तकलीफ नहीं होगी। बेशक, अगर आप चाहें, तो चुप रह सकते हैं। मैं खुद चुप रहना पसन्द करता हूँ … आदमी बात कर सकता है और चुप रह सकता है, एक ही वक्त में। इसे बहत कम लोग समझते हैं। मैं बरसों से यह करता आ रहा हूँ। बेशक आप नहीं … आप अभी जवान हैं आपकी उम्र में चुप रहने का मतलब है चुप रहना और बात करने का मतलब है बात करना। दोनों बातें एक साथ नहीं हो सकतीं। आप छोटे मग से पी रहे हैं? आपको शायद अभी लत नहीं पड़ी। मैं आपको देखते ही पहचान गया था कि आप इस जगह के नहीं हैं। इस घड़ी यहाँ जो लोग आते हैं, उन सबको मैं पहचानता हूँ। उनसे आप कोई बात नहीं कर सकते। उन्होंने पहले से ही बहुत पी रखी होती है। वे यहाँ आते हैं, अपनी आखिरी बिअर के लिए — दूसरे पब बन्द हो जाते हैं और वे कहीं और नहीं जा सकते। वे बहुत जल्दी खत्म हो जाते हैं। मेज़ पर। बाहर सड़क पर। ट्राम में।   कई बार मुझे उन्हें उठाकर उनके घर पहुँचाना पड़ता है। बेशक, अगले दिन वे मुझे पहचानते भी नहीं। आप गलत न समझें। मेरा इशारा आपकी तरफ नहीं था। आपको मैंने यहाँ पहली बार देखा है। आप आकर चुपचाप मेज़ पर बैठ गए। मुझे यह बुरा-सा लगा। नहीं, आप घबराइए नहीं … मैं अपने को आप पर थोपूँगा नहीं। हम एक-दूसरे के साथ बैठकर भी अपनी- अपनी बिअर पर अकेले रह सकते हैं। मेरी उम्र में यह ज़रा मुश्किल है, क्योंकि हर बूढ़ा आदमी थोड़ा-बहुत डरा हुआ होता है … धीरे-धीरे गरिमा के साथ बूढ़ा होना बहुत बड़ा ‘ ग्रेस है, हर आदमी के बस का नहीं। वह अपने-आप नहीं आता, बूढ़ा होना एक कला है, जिसे काफी मेहनत से सीखना पड़ता है। क्या कहा आपने? मेरी उम्र? ज़रा अन्दाज़ा तो लगाइए? अरे नहीं साहब आप मुझे नाहक खुश करने की कोशिश कर रहे हैं। यों आपने मुझे खुश ज़रूर कर दिया है और अगर अपनी इस खुशी को मनाने के लिए मैं एक बिअर और लूँ, तो आपको कोई एतराज़ तो नहीं होगा? और आप? आप नहीं लेंगे? नहीं … मैं ज़िद नहीं करूंगा।   रात के तीन बजे … यह भयानक घड़ी है। मैं तो आपको अनुभव से कहता हूँ। दो बजे लगता है, अभी रात है और चार बजे सुबह होने लगती है, लेकिन तीन बजे आपको लगता है कि आप न इधर हैं, न उधर। मुझे हमेशा लगता है कि मृत्यु आने की कोई घड़ी है, तो यही घड़ी है।   हर आदमी को अपनी ज़िन्दगी और अपनी शराब चुनने की आज़ादी होनी चाहिए … दोनों को सिर्फ एक बार चुना जा सकता है। बाद में हम सिर्फ उसे दुहराते रहते हैं, जो एक बार पी चुके हैं, या एक बार जी चुके हैं। आप दूसरी ज़िन्दगी को मानते हैं? मेरा मतलब है, मौत के बाद भी? उम्मीद है, आप मुझे यह घिसा-पिटा जवाब नहीं देंगे कि आप किसी धर्म में विश्वास नहीं करते। मैं खुद कैथोलिक हूँ, लेकिन मुझे आप लोगों का यह विश्वास बेहद दिलचस्प लगता है कि मौत के बाद भी आदमी पूरी तरह से मर नहीं जाता … हम पहले एक ज़िन्दगी पूरी करते हैं, फिर दूसरी, फिर तीसरी। अक्सर रात के समय मैं इस समस्या के बारे में सोचता हूँ … आप जानते हैं, मेरी … Read more