माँ से झूठ

माँ से झूठ

  माँ ही केवल अपने दुखों के बारे में झूठ नहीं बोलती, एक उम्र बाद बच्चे भी बोलने लगते है | झुर्रीदार चेहरे और पोपले मुँह वाली माँ की चिंता कहीं उनकी चिंता करने में और ना बढ़ जाए |इसलिए अक्सर बेटियाँ ही नहीं बेटे भी माँ से झूठ बोलते हैँ | मदर्स डे के अवसर पर एक ऐसी ही लघुकथा .. माँ से  झूठ  ट्रेन ठसाठस भरी हुई जा रही थी | हाथ को हाथ नहीं सूझ रहा था | जनरल डिब्बे में बैठना तो क्या, खड़ा रहना भी मुश्किल था | ऑफिस से बुलावा ना आ गया होता तो वो भी तयौहार के मौसम में यूँ बिना रिजर्वेशन जाने के मूड में नहीं था | पर नौकरी जो ना करवाए सो कम | पसीने से लथपथ किसी तरह से जगह बना कर खड़ा हुआ तब तभी मोबाइल की घंटी बजी | अपनी ही जेब से मोबाइल निकालने की मशक्कत करने के बाद देखा माँ का फोन था | फोन उठाते ही माँ बोलीं, “बेटा गाड़ी में जगह मिल गई?” “हाँ! माँ, मिल गई, उसने आवाज में उत्साह लाते हुए कहा | “तू ठीक से तो बैठ गया ना?” माँ तसल्ली कर लेना चाहती थी | हाँ, बिल्कुल, काफी जगह है आराम से बैठा हूँ| “ तुम चिंता मत करो | उसने इस बार अपनी आवाज का उत्साह थोड़ा और बढ़ाया | “ठीक है बेटा, भगवान का लाख-लाख शुक्र है कि तुम्हें जगह मिल गई, मैं तो डर रही थी |” माँ के स्वर में तसल्ली थी और उसके चेहरे पर इत्मीनान | वंदना बाजपेयी यह भी पढ़ें … लघुकथा -कलियुगी संतान झूठा –(लघुकथा ) तोहफा (लघुकथा) एक लघु कहानी —–सम्मान

रेगिस्तान में फूल

रेगिस्तान में फूल

जीवन के मौसम कब बदल जाएँ कहा नहीं जा सकता | कभी प्रेम की बारिशों से भीगता जीवन शुष्क रेगिस्तान में बदल जाए, पर कहीं ठहर जाना, मनुष्य की वृत्ति भले ही हो जीवन की नहीं | आइए पढ़ें बारिशों के बाद एक ऐसे ही रेगिस्तान में ठहरे जीवन की कहानी .. रेगिस्तान में फूल   वह मेरी तरफ हैरान सा होता हुआ देखता रहा | जैसे मैंने कोई बहुत बड़ी बात कह दी हो |अब इसमें मेरा क्या दोष था ? अब इसमें मेरा दोष क्या था ? मैंने उसे कोई ऐसा अवसर नहीं दिया था की वो समझने लगे की मुझे उससे प्यार है | मुझे तो अपने देश वापस जाना ही था | उसके इस एकतरफा प्यार की जिम्मेदारी लेने को मैं बिल्कुल तैयार नहीं थी | मुझे अहसास  था की पीटर एक सीधा -सादा सच्चा  इंसान है | पर मैं क्या करती मेरे दिमाग में तो यह कूट कूट कर भरा था की यहाँ के अंग्रेज लोग फरेबी, दिलफेंक और अस्थायी रूप से घर गृहस्थी पर ध्यान देते हैं |   अपने देश की बात ही कुछ अलग है |संस्कार कए भूत सर चढ़ कर बोल रहा था | वह अमरीकी एक ही कार्यालय में काम करता हुआ कब मुझसे प्यार कर बैठा, उस समय शायद उसे भी पता ना चला | चे की फुरसत पर वह मुझे निहारता मुझे कुछ कहने से सकुचाता |पर अब मुझे लगने लगा था कि  उसके मन में कोई और ही दवंद चल रहा है |   जब मैंने पीटर से इंडिया जाने की बात कही उसे विश्वास ही नहीं हुआ | उसकी हैरानगी चरम सीमा पर तब पहुंची जब मैंने उससे कहा कि, “मेरी शादी होने वाली है | और मैं नौकरी छोड़ कर हमेशा के लिए जा रही हूँ |” वह एकदम अवाक सा मेरी ओर देखता रह गया | उसकी नीली आँखों में मुझे समुद्र की गहराई नजर आने लगी |   अपनी नम हुई आँखों को तनिक छुपाते हुए वो एकदम से बोल उठा, “ हे (hey ) listen meera, please don’t go.I will miss you .”   “अरे यह क्या उसमें इतना साहस कैसे आ गया |मुझे उसकी बात पर अचानक हँसी आ गई | मुझे मुसकुराते देख वो अचानक से गंभीर हो गया |उसे गंभीरता से उसने मेरे दोनों हाथ पकड़ लिए और बोल उठा, “please marry me meera.”   उसकी हालत देखकर मुझे लगा जैसे कोई बच्चा अपने खिलौने के लिए जिद कर रहा हो | मैं क्या जवाब देती ? चुपचाप अपने आप को समेटते हुए घर चली आई, और दो दिन बाद की फ्लाइट की तैयारी करने लगी |   दिन कैसे उड़े पता  नहीं चला | मेरी शादी एक फौजी अफसर से बड़ी धूमधाम से हुई |अपने सपनों की रंग भरी दुनिया में मैं खो गई |ना मुझे पीटर याद रहा और ना ही उसका शादी का प्रस्ताव |पर कहते हैं ना किस्मत कब पलट जाए किसी को पता ही नहीं चलता |   6 महीने भी ना बीते थे कि मेरी दुनिया जो खुशियों से सराबोर थी उजाड़ गई | मेरे पति मरणोंपरांत परमवीर चक्र मेरे हाथों में पकड़ा कर, मुझे रोता बिलखता छोड़ गए | शहादत की गरिमा, तालियों की गड़गड़ाहट मेरे लिए कोई मायने नहीं रखती |   दो साल बीत गए | जिंदगी थोड़ी बहुत पटरी पर चल निकली थी | अचानक एक दिन पीटर का फोन आया | मुझे थोड़ा आश्चर्य हुआ | इतने दिनों बाद मैं उसे कैसे याद आ गई , और मेरा नंबर उसे कहाँ से मिला ? मैं थोड़ा घबरा गई |उधर से आवाज आई, “क्या मैं मीरा जी से बात कर रहा हूँ ?”     एक क्षण को मई स्तबद्ध रह गई मैंने कहा “जी कहिए, क्या आप पीटर हैं ?” इतना सुनते ही वो भी खुश हो गया, “अरे वाह तुम मुझे भूली नहीं?” वह मुझसे  मिलना चाहता था |मैंने उसे अपने घर आने का निमंत्रण दे दिया | शाम होने से कुछ पहले ही वो मेरे घर पहुँच गया | उसने बताया कि वो किसी ऑफिसियल काम से इंडिया आया है | कुछ औपचारिक बातों के बाद उसने मेरे पति के बारे में पूछा | मेरा दुख सुन कर उसकी आँखें भर आईं | थोड़ी देर वो यूँ ही चुपचाप बैठा रहा और फिर भारी मन से फिर आने का वायदा कर वह चला गया |     आज मैं पीटर के साथ उसके देश जा रही हूँ, उसकी पत्नी बनकर | बीते दो साल के अंतराल में पीटर मुझे भुला नहीं पाए | मेरी बिखरी जिंदगी को अपने सशक्त हाथों में थामकर उन्होंने ये सिद्ध कर दिया कि आत्मीयता, संस्कार और भावनाओं का कोई देश जात पात  और मजहब नहीं होता | वह इन सबसे ऊपर है |   आज सब कुछ बदल चुका है | वो मेरी साथ वाली सीट पर मेरे हाथों को कसकर पकड़ कर बैठे हैं | जैसे कह रहे हों , “ मीरा  अब मैं तुम्हें अपने से दूर नहीं जाने दूंगा | स . सेन गुप्ता यह भी पढ़ें “वो फ़ोन कॉल” एक पाठकीय टिप्पणी कविता सिंह की कहानी अंतरद्वन्द इत्ती-सी खुशी  ठकुराइन का बेटा आपको कहानी “रेगिस्तान में फूल कैसी लगी ? अपने विचारोंसे हमें अवश्य अवगत कराए | अगर आप को अटूट बंधन की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया साइट सबस्क्राइब करें और अटूट बंधन फेसबुक पेज लाइक करें |

फ्लाइट

फ्लाइट

जीवन में हम कितनी उड़ाने भरते हैं | सारी मेहनत दौड़ इन उड़ानों के लिए हैं | पर एक उड़ान निश्चित है …पर उस उड़ान का ख्याल हम कहाँ करते हैं | आइए पढ़ें वरिष्ठ लेखिका आशा  सिंह की समय के पीछे भागते एक माँ -बेटे की मार्मिक लघु कथा … फ्लाइट  मां,मेरी सुबह सात बजे थी फ्लाइट है-आशुतोष ने सूचना दी। इतनी जल्दी- अंजलि हैरान हो गई। मैं तो आपका पचहत्तरवां जन्मदिन मनाने आया था, साथ साथ लालकिले पर झंडा रोहण भी देख लिया।शाम को आपके साथ केक काट लिया।काम भी तोजरूरी है- पैंकिंग में लग गया। अंजलि ने गहरी सांस ली कहना चाहती थी, अभी तो जी भरकर तुम्हें देखा भी नहीं, पसंद का खाना भी नहीं खिला सकी,पर कंठ अवरुद्ध हो गया।बेटे को उच्चशिक्षा दी,और वह विदेश उड़ गया।अपना घर संसार भी बसा लिया।बेटे केआग्रह पर जाती,पर वहां तो अकेलापन और हावी हो जाता।सब अपने में व्यस्त,किसी के पास समय नहीं था।कुछ देर के लिए कोई पास बैठ जाता, रेगिस्तान में फूल खिल जाते।इतने बड़े बंगले से तो अपना मुम्बई का छोटा फ्लैटही अच्छा।सामने पार्क में कुछ वरिष्ठ लोग मिलते, बातें होती। घर आकर कामवाली बाई से चोंच लड़ती।एकाकी होने के कारण थोड़ी चिड़चिड़ी हो गई थी। काश, यह रात कभी ख़तम न हो।कल सुबह आशु चला जायेगा, पुनः एकाकीपन का अंधेरा डसने लगेगा। चुपचाप बालकनी में कुर्सी पर बैठ गई। सुबह आशु मां से विदा लेने आया, फ्लाइट पकड़नी थी,पर मां की फ्लाइट तो उड़ चुकी थी। आशा सिंह यह भी पढ़ें …. ठकुराइन का बेटा जेल के पन्नों से -नन्हा अपराधी अहसास दीपक शर्मा की कहानी -चिराग़-गुल आपको कहानी “फ्लाइट” कैसी लगी ? हमें अपने विचारों से अवश्य अवगत कराए | अगर आपको अटूट बंधन की रचनाएँ पसंद आती हैं तो साइट को सबस्क्राइब करें और अटूट बंधन फेसबुक पेज लाइक करें |

हौसला

यह लघुकथा एक आशा है उस दिन की जब कोरोना नहीं रहेगा | हम इस भय से निकल कर उन्मुक्त साँस ले सकेंगे | आएगा वह दिन …बस हौसला बना कर रखना है | लघुकथा -हौसला  राघव एक कारखाने में काम करके अपने मां बाप के साथ अपना पेट पालता था। भोला राघव के (पिताजी )को बूढ़ा समझकर कोई काम नहीं देता। जैसे तैसे एक जगह चौकीदार का काम मिला। कोरोनावायरस के डर से बिल्डिंग के लोगों ने चेहरे पर मास्क लगाकर आने को कहा और लाकर दिए।सभी से ६ फिट की दूरी से बात करने को कहा, बूढ़े बाबा ने हां तो करली नौकरी के लिए मगर,उसका दम घुटता था।इधर राघव के मालिक ने राघव को कोरोना बिमारी से होने वाले संक्रमण से बचने के उपाय बताए सेनेटाइजर लगा कर आने को कहा और बार बार हाथ धोने की समझाइश दी।राघव की मां(कचरी) भी चौका बर्तन करने जाती थी, लेकिन महामारी ( कोरोना) के डर से सभी घरों में काम करवाने से मना कर दिया।अब घर चलाने में राघव को दिक्कत आने लगी। महिनें भर बाद राघव को एक दिन गले में खराश हुई, दूसरे दिन बुखार से शरीर तप रहा था, उसने पास ही में रहने वाले अपने साथी को बुलाया और अस्पताल ले जाने का कहा। लेकिन कोरोना के डर से साथी ने जाने से इन्कार कर दिया,और फ़ोन पर डाक्टर को सूचित किया। थोड़ी देर में गाड़ी लेने आई कचरी ने पूछा कब तक घर वापस आएगा बेटा। मां____ बेटे ने करुण स्वर में कहा अच्छा होकर जल्द ही आऊंगा,और अगर कुछ हो जाए तो तुम वृद्धाश्रम में चले जाना पिताजी को लेकर। मैंने थोड़ी बहुत कमाई करके जो जमा किया वह वृद्धाश्रम में देदेना आपको रहने में सुविधा होगी।यह कहकर अपने कपड़े वगैरह लेकर गाड़ी में बैठ गया। बेचारे मां बाप रोते हुए अपने प्राणों से प्यारे बेटे को जाते हुए देखते रहे। आंसू बहते रहे। कितना दर्द होता है सीने में अपने दिल के टुकड़े को ज़िन्दगी से जंग लड़ते हुए देखना । कोरोना के इलाज में गरीबों को सरकार सहायता कर रही है लेकिन कहीं कहीं इलाज में सारी कमाई का कुछ हिस्सा महामारी की भेंट चढ़ जाता है। यही हुआ भी।आखिर एक दिन मां बाप से बगैर मिले राघव ने इस संसार से विदा ले ली ।घर पर संदेश आ गया ,दाह संस्कार भी हो गया।अब बूढ़े मां-बाप कहां जाएं किसको अपना दर्द बताए कि जवान बेटे को आंखों के सामने से जाता हुआ देखना कितना दुखदाई होता है।बड़ी मुश्किल में दिन काटने को मजबूर थे दोनों। एक दिन राघव के मां बाप को बिल्डिंग में जहां कचरी काम करती थी,वह मालकिन(सीता) बुलाकर ले गयी दोनों को ,और अपने साथ रहने को कहा नीचे  एक कमरा भी दे दिया ,खाने का सामान भी दिया सब कुछ ठीक हो गया।सारी जरूरतें पूरी हो गई। थोड़े दिन बाद राघव की मां ने कहा मालकिन आपने हमारी इतनी सहायता करके हम पर उपकार किया है अब इस उपकार को  कैसे चुकाएंगे?? मालकिन ने कहा मेरी बेटी भी गंभीर बिमारी से खत्म हुई है फिर मैं कभी मां नहीं बनीं शाय़द यह नेक काम करने से मेरी इच्छा पूरी हो जाए।राघव की मां ने सच्चे मन से दुआएं मांगी ईश्वर से ।दो माह बाद सीता गर्भवती हो गई।राघव की मां ने बहुत सेवा की वह अपना सारा कर्ज सेवा से चुकाना चाहती थी।समय आने पर एक बेटे को जन्म दिया सीता ने।राघव की मां को बच्चे में अपने बेटे की झलक दिख रही थी।कोरोना का डर अब भी था बच्चे के और मां के सभी टेस्ट नेगेटिव आने पर अस्पताल से छुट्टी मिल गई।घर खुशियों से भर गया। अब वहां कोरोना का नामोनिशान नहीं था।सब कुछ पहले जैसा हो गया।__ प्रेम टोंग्या, इन्दौर मध्यप्रदेश।