“माँ“ … कहीं बस संबोधन बन कर ही न रह जाए

माँ केवल एक भावनात्मक संबोधन ही नहीं है , ना सिर्फ बिना शर्त प्रेम करने की मशीन ….माँ के प्रति कुछ कर्तव्य भी है …. “माँ” … कहीं बस संबोधन बन कर ही न रह जाए डुग – डुग , डुग , डुग … मेहरबान कद्रदान, आइये ,आइयेमदारी का खेल शुरू होता है | तो बोल जमूरे … जी हजूर सच –सच बताएगा जी हजूर आइना दिखाएगा जी हजूर दूध का दूध और पानी का पानी करेगा जी हजूर तो दिखा …. क्या लाया है अपने झोले में हजूर, मैं अपने झोले में लाया हूँ मनुष्य को ईश्वर का दिया सबसे नायब तोहफा “सबसे नायब तोहफा … वो क्या है जमूरे, जल्दी बता?” “हुजूर, ये वो तोहफा है, जिसका इंसान अपने स्वार्थ के लिए दोहन कर के फिर बड़ी  बेकदरी करता है |” “ईश्वर के दिए नायब तोहफे की बेकद्री ,ऐसा क्या तोहफा है जमूरे ?” “हूजूर ..वो तोहफा है … माँ” “माँ ???” “जी हजूर , न सिर्फ जन्म देने वाली बल्कि पालने और सँभालने वाली भी” “वो कैसे जमूरे” “बताता हूँ हजूर , खेल दिखता हूँ हजूर …… हाँ ! तो मेहरबान  कद्रदान , जरा गौर से देखिये … ये हैं एक माँ,चारबच्चों की माँ , ९० साल की रामरती देवी |झुर्रियों से भरा चेहरा कंपकपाती आवाज़, अब चला भी नहीं जाता | रामरती देवी वृद्ध आश्रम के एक बिस्तर पर  पड़ी जब – तब कराह उठती हैं | पनीली आँखे फिर दरवाज़े की और टकटकी लगा कर देखती हैं | शायद प्रतीक्षारत हैं | मृत्यु का यथार्थ सामने है पर मानने को मन तैयार नहीं की उसके चार बेटे जिन्हें उसने गरीबी के बावजूद अपने दूध और रक्त से बड़ा किया | जो बचपन में उन्हेंचारों ओर घेरे हुए ,” अम्मा ये चाहिए , अम्मा वो चाहिए कहते रहते थे | जब तक वो देने योग्य थी , देती रही | पर अब जब वो अशक्त हुई तो उसको मिला आश्रम का अकेलापन | आज बड़े आदमी बनने के बाद उसके बच्चे यह भी भूल गए की कम से कम एक बार तो पू छना चाहिएथा , “अम्मा तुम्हें क्या चाहिये “?पूछना तो दूर उनका साथ रहना बेटों के लिए भारी हो गया | आश्रम में लायी गयी रामरती देवी बस “माँ ” ही हो सकती है | जो समझते हुए भी नहीं समझ पाती तभी तो प्रतीक्षारत है अपने बेटों की , की आश्रम द्वारा बार – बार नोटिस भेजे जाने पर, “तुम्हारी माँ का अंतिम समय है , आ कर देख जाओ” शायद आ जाये | शायद एक बार दुनिया से कूँच करने से पहले उन्हें सीने से लगा सके | बरसों से अकेले , उपेक्षित रहने का दर्द शायद …शायद कुछ कम हो सके | पर साहिबान रामरती देवी अकेली नहीं है आज न जाने कितनी माएं अपनी वृद्धावस्था में घर के अन्दर ही उपेक्षित , अवांछित सी पड़ी है | जिनका काम बस आशीर्वाद देना भर रह गया है | ये देखिये साहिबान वो भी माँ ही है …..जिसे हमारे पूर्वजों ने धरती मैया कहना सिखाया | सिखाया की सुबह सवेरे उठ कर सबसे पहले उसके पैर छुआ करो | माँ शब्द से अभिभूत धरती माता हँस हँस कर उठा लेती है अपनी संतानों के भार को | जब – जब रौंदी जाती है हल से उपजाती है तरह –तरह की वनस्पतियाँ … कहीं भूँखी न रह जाएँ उसकी संतानें | न जाने कितने अनमोल रत्न छिपाए रहती है अपने गर्भ में , अपनी संतति को सौपने के लिए | पर हमने धरती के साथ क्या किया | पहाड़ काटे , नदियों का रास्ता मोड़ा … यहाँ तक तो कुछ हद तक समझ में आता है | पर जंगल जलाना, ये क्रूरता ही हद है | जिस समय मैं ये कह रहा हूँ उत्तराखंड के जंगल धूँ, धूँ कर के जल रहे हैं | कितने पेड़, कितने जीव –जंतु रक्षा, दया के लिए याचना करते – करते काल के गाल में भस्म हो रहे होंगे | सुनते हैं भू माफिया का काम है | जगल साफ़ होंगे | शहर बसेंगे | बड़े –बड़े भवन खड़े होंगे | पैसे –पैसे और पैसे आयेंगे | माँ तड़प रही है | किसे परवाह है | और तो और जहाँ – जहाँ धरती मैया अपने अन्दर जल समेटे हैं | वहाँ उसका बुरी तरह दोहन हो रहा है |घर – घर बोरिंग हो रही है | ट्यूबवेल लग रहे हैं |धरती दे रही है तो चाहे जितना इस्तेमाल करो |बहाओ , बहाओ , खूब बहाओ | रोज कारे धुल रहीं हैं , नल खुले छूट रहे हैं , पानी की टंकी घंटो ओवर फ्लो कर रही है | किसे चिंता है लातूर औरबुंदेलखंडबूंद – बूँद पानी को तडपते लोगो की |किसे चिंता है धरती माता के अन्दर प्लेटों के रगड़ने की | कितना कष्ट होता होगा धरती माँ को | पर किसे परवाह है | ये देखिये साहिबान एक और माँ … अपनी गंगा मैया | अभिभूत संतति “ जय गंगा मैया “ का उद्घोष कर हर प्रकार का कूड़ा – करकट गन्दगी उसे समर्पित कर देती है | माँ है … सब सह लेंगी की तर्ज पर | और गंगा मैया, सिसकती होगीशायद | हर बार उसके आँसू मिल जाते होंगे उसी के जल में | कहाँ देख पाते हैं हम | वैसे भी आँसू देखने की नहीं महसूस करने की चीज है | तभी तो अब थक गयी रोते –रोते |सिकुड़ने लगी है | समेटने लगी है अपने अस्तित्व को |माँ का आदर प्राप्त “ गंगा मैया “ अक्सर याद करती होंगी अपने अतीत को | जब भागीरथ उसे स्वर्ग से उतार लाये थे | तब ममता पिघल – पिघल कर दौड़ पड़ी थी अपने शिशुओं की प्यास बुझाने को | संतानों ने भी माँ कह कर सम्मानित किया | उसके तटो पर बस गयी हमारे देश की संस्कृति | पर कहाँ गया वो सम्मान | आश्चर्य हर – हर गंगे कह कर गंगा से अपनी पीर हरवाने वाली संतति नाले में तब्दील होती जा रही गंगा की पीर से अनजान कैसे हैं? और देखिये साहिबान …ये हैं वो गौ माता … ३३ करोंण देवताओं का जिसमें वास है | जिसे दो रोटी की … Read more