गुजरे हुए लम्हे (परिशिष्ट)-अध्याय 15
आत्मकथा लेखन में ईमानदारी की बहुत जरूरत होती है क्योंकि खुद के सत्य को उजागर करने के लिए साहस चाहिए साथ ही इसमें लेखक को कल्पना को विस्तार नहीं मिल पाता | उसे कहना सहज नहीं होता | बहुत कम लोग अपनी आत्मकथा लिखते हैं | बीनू दी ने यह साहसिक कदम उठाया है | बीनू भटनागर जी की आत्मकथा “गुज़रे हुए लम्हे “को आप अटूट बंधन.कॉम पर एक श्रृंखला के रूप में पढ़ पायेंगे | गुज़रे हुए लम्हे -परिचय गुजरे हुए लम्हे -अध्याय 1 गुज़रे हुए लम्हे -अध्याय 2 गुज़रे हुए लम्हे -अध्याय 3 गुज़रे हुए लम्हे -अध्याय चार गुज़रे हुए लम्हे अध्याय -5 गुज़रे हुए लम्हे -अध्याय 6 गुज़रे हुए लम्हे -अध्याय 7 गुजरे हुए लम्हे -अध्याय-8 गुज़रे हुए लम्हे -अध्याय 9 गुज़रे हुए लम्हे -अध्याय -10 गुज़रे हुए लम्हे -अध्याय 11 गुज़रे हुए लम्हे -अध्याय 12 गुज़रे हुए लम्हे -अध्याय 13 गुज़रे हुए लम्हे -अध्याय -14 अब आगे …. गुजरे हुए लम्हे (परिशिष्ट)अध्याय 15 2019 से आज तक एक ख़ुशी और दुख अनेक (कोरोना- काल) ‘गुजरे हुए लम्हे’ के अंत में मैंने लिखा था यह जीवन यात्रा है… जब तक यात्रा समाप्त नहीं होती इसमें पन्ने जुड़ते रहेंगे। अंतिम अध्याय में मैंने महत्वपूर्ण यात्राओं का वर्णन किया था। अब हम 2019 में आ जाते हैं। मैं इस वर्ष आगरा गई थी जहाँ की कवि गोष्ठी का मैंने विवरण पहले दिया था। इसी साल हमारी शादी की पचासवीं वर्ष गाँठ होने वाली थी। नेहा ने मुझसे पूछा कि हम कहीं घूमने जाना चाहेंगे या एक पार्टी करें। इन्हें तो किसी भी अवसर पर कोई जश्न मनाना इतना पसंद नहीं है इसलिये उसने मुझसे ही पूछा। घूमने जाने के लिये उस समय कमर का दर्द इजाजत नहीं दे रहा था अतः पार्टी करने का ही सोचा । वैन्यू और बाकी चीज़ों पर विचार करने के लिये बहुत समय था पर आगरा में मैंने पूनम के साथ मिल कर मेहमानों की विदाई में देने वाले उपहार की योजना बना ली। मुझे हमेशा से ही ख़रीदकर देने की बजाय हाथ की बनाई या ख़ुद से डिज़ाइन की हुई चीज़ें देना पसंद है। हमने एक कलैंडर बनाया जिसमें अलग अलग फूलों पर मेरे लिखे हुए दोहे और उसी फूल के चित्र थे। 12 दोहे 12 फूलों के चित्र 12 महीनों में। जैसी कि उम्मीद थी पहले तो ये थोड़ा नाराज़ हुए कि ये सब करने की क्या ज़रूरत है फिर थोड़ा समझाने पर मान गये और कहा कि पार्टी सादगी से हो। मुझे भी सादगी ही पसंद है। दोबारा शादी की रस्में पूरी करने की नौटंकी तो मुझे भी पसंद नहीं है। बस एक बार मित्रों और परिवार को इकट्ठा करने का बहाना चाहिये होता है। पार्टी में बस केक काटा जायेगा और कुछ खास नहीं होगा यह निश्चित हो गया। पहले सोचा था अपूर्व की सोसायटी के कम्यूनिटी हॉल को बुक कर दें पर वह कई जगह से बहुत दूर पड़ता, इसलिये CSOI में ही करवा दिया वहाँ मेरी पहली किताब ‘मैं सागर ने एक बूंद सही’ का अनावरण भी हुआ था। स्थान चयन कर लेने के बाद तारीख़ तय करके बुकिंग कराना भी ज़रूरी था 12 दिसंबर की जगह हमने 15 दिसंबर की तारीख़ तय की क्योंकि रविवार को अधिकतर लोगों को आने में सुविधा होती है। बीबी को तो सर्दियों में आना ही था उनको पहले से ही सूचित कर दिया तो उन्होंने उसके ही अनुसार आने का कार्यक्रम बनाया। उनके साथ नीरू को भी आना था। सब से पहले इन्हीं तीनों के आने की पुष्टि हुई। बाकी लोगों का तो अंतिम क्षण तक ही हाँ और न चलता रहा।लोगों को कहाँ ठहराना है इसका इंतज़ाम तो तब होता जब पता होता कि कौन कौन आ रहा है। बीबी को तो घर में ही ठहरना था उनकी तारीख़ भी पक्की थी। अंत में हमें बगल वाले और एक ऊपर वाले फ्लैट की चाबी मिल गई वे लोग दिल्ली से बाहर गये हुए थे। अत: सब के रहने की व्यवस्था अच्छी हो गई। आगरा से सभी आये थे लखनऊ से आशा भाभी और अनुज आये बड़ौदा से चारू सुखदेव भी आये यद्यपि वो शाम को चले गये। पार्टी में शिरकत नहीं कर सके बस सब से मिल लिये। इनके परिवार से नीता और स्वीटी शामिल हुए। दिनेश भैया और उमा दीदी तो यहीं थे। जयश्री की कमी खली वह लंदन गई थी। शशि बीबी के परिवार से कोई नहीं आया, लोकेश भाई साहब भी नहीं आ पाये थे। बीबी की ससुराल के लोग और नेहा के मायके के लोग भी शामिल हुए। पार्टी में क़रीब 50 लोग थे और घर में 20 के लगभग रिश्तेदार ठहरे थे। काफ़ी अच्छा माहौल रहा सब ने मज़े किये। पार्टी में कुछ लोगों ने पुरानी यादें ताज़ा की , कोई पार्टी गेम नहीं रखा था बस एक लकी डिप था। रात को जब हम लौट रहे थे तभी पता चला था कि CCA, NRC के विरोध में दिल्ली में कुछ थे हिंसक घटनायें हुई है। धीरे धीरे ये हिंसक विरोध देश भर में उग्र होते चले गये। दिल्ली में शाहीनबाग़ में महिलाओं ने सड़क को घेर लिया और दिल्ली में काफ़ी बड़े स्तर पर दंगे हुए। देश की शांति व्यवस्था बुरे दौर में थी। देश की राजनीति के साथ पारिवारिक स्तर पर और पड़ौस के स्तर पर भी 2019 में 15 दिसंबर के बाद बुरा वक्त चल रहा था। बीबी वापिस चली गईं थी पर उनके वापिस पहुँचने के दो दिन बाद ही सूचना मिली कि उनका बड़ा पुत्र जो केवल 62 साल का था अचानक चल बसा। उसकी तो मामूली सी बीमारी की भी कभी ख़बर नहीं आई थी। रिटायरमैट लेने के बाद वह अपनी पत्नी के साथ पर्यटन पर ही रहता था चाहें देश हो या विदेश। बीबी की रोती हुई सूरत देख कर गले लगाने का मन होता था पर….. मजबूर थे। मेरा अशोक से बचपन का नाता था… मेरे से सिर्फ 9 साल छोटा था बचपन में उसके हाथ बहुत खेली थी। यहाँ घर में मातम छा गया था। बीबी भाई साहब के दुख का हम अंदाज भी नहीं लगा सकते, परन्तु दोनों ने ही अपने दुख के साथ जीना सीख लिया और ख़ुद को सामान्य जिंदगी … Read more