कोविड-19: सभ्‍यता का संकट और समाधान’ पुस्तक विमोचन

कोविड-19: सभ्‍यता का संकट और समाधान

  भारत के पूर्व मुख्‍य न्‍यायाधीश न्‍यायमूर्ति श्री दीपक मिश्रा ने नोबेल शांति पुरस्‍कार से सम्‍मानित जानेमाने बाल अधिकार कार्यकर्ता श्री कैलाश सत्‍यार्थी की पुस्‍तक ‘‘कोविड-19: सभ्‍यता का संकट और समाधान’’ का लोकार्पण किया है। राज्‍यसभा के उपसभापति श्री हरिवंश के विशिष्‍ट आतिथ्‍य में इस समारोह का आयोजन किया गया। प्रभात प्रकाशन ने इस पुस्तक को प्रकाशित किया है। प्रस्तुत है कार्यक्रम की रिपोर्ट  कोविड-19: सभ्‍यता का संकट और समाधान’ ‘‘कोविड-19: सभ्‍यता का संकट और समाधान’’ जैसी महत्वपूर्ण पुस्तक का अंग्रेजी सहित अन्य भाषाओं में होना चाहिए अनुवाद- पूर्व मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा   नोबेल शांति पुरस्‍कार से सम्‍मानित जानेमाने बाल अधिकार कार्यकर्ता श्री कैलाश सत्‍यार्थी की पुस्‍तक ‘‘कोविड-19: सभ्‍यता का संकट और समाधान’’ का लोकार्पण भारत के पूर्व मुख्‍य न्‍यायाधीश न्‍यायमूर्ति श्री दीपक मिश्रा ने किया। राज्‍यसभा के उपसभापति श्री हरिवंश के विशिष्‍ट आतिथ्‍य में इस समारोह का आयोजन किया गया। प्रभात प्रकाशन द्वारा प्रकाशित इस पुस्‍तक का लोकार्पण ऑनलाइन माध्‍यम से संपन्‍न हुआ। पुस्‍तक के लोकार्पण समारोह का संचालन प्रभात प्रकाशन के निदेशक श्री प्रभात कुमार ने किया, जबकि धन्‍यवाद ज्ञापन श्री पीयूष कुमार ने किया। ‘‘कोविड-19: सभ्‍यता का संकट और समाधान’’ पुस्तक में कोरोना महामारी के बहाने मानव सभ्‍यता की बारीक पड़ताल करते हुए यह बताने की कोशिश की गई है कि मौजूदा संकट महज स्वास्थ्य का संकट नहीं है, बल्कि यह सभ्यता का संकट है। पुस्‍तक की खूबी यह है कि यह संकट गिनाने की बजाय उसका समाधान भी प्रस्‍तुत करते चलती है। ये समाधान भारतीय सभ्यता और संस्कृति से उपजे करुणा, कृतज्ञता, उत्तरदायित्व और सहिष्णुता के सार्वभौमिक मूल्यों पर आधारित हैं। भारत के पूर्व मुख्‍य न्‍यायाधीश श्री दीपक मिश्रा ने इस पुस्‍तक को महत्वपूर्ण और अत्यंत सामयिक बताते हुए कहा कि पुस्‍तक सरल और सहज भाषा में एक बहुत ही गहन विषय को छूती है। इस महत्वपूर्ण पुस्‍तक का अंग्रेजी सहित अन्‍य भाषाओं में भी अनुवाद किए जाने की जरूरत है। ताकि इसका लाभ अधिक से अधिक लोगों को मिल सके। महज 130 पृष्‍ठों की लिखी इस पुस्‍तक को पढ़कर अर्नेस्‍ट हेमिंग्‍वे के मात्र 84 पृष्‍ठों के उपन्‍यास ‘’ओल्‍ड मैन एंड द सी’’ की याद आना अस्‍वाभाविक नहीं है, जिसमें एक बड़े फलक के विषय को बहुत ही कम शब्‍दों में समेटा गया है। हेमिंग्‍वे को ‘’ओल्‍ड मैन एंड द सी’’ के लिए नोबेल पुरस्‍कार से सम्‍मानित किया गया था। कैलाश जी की यह किताब उनके ‘सामाजिक-राजनीतिक इंजीनियर’ के रूप को भी हमारे सामने प्रकट करती है। महान संस्‍कृत कवि भवभूति ने समाज सेवा को ही मानवता की सेवा कहा है। कैलाश जी इसके ज्‍वलंत उदाहरण हैं। यद्यपि पुस्‍तक गद्य में लिखी गई है लेकिन इसकी सुगंध कविता जैसी है। जिस दर्द की भाषा का हम प्रयोग करते हैं वह भाषा इस पुस्‍तक में मिलती है। इस अवसर पर पूर्व मुख्य न्यायाधीश ने कैलाश जी के कवि रूप की प्रशंसा की और पुस्तक में शामिल श्री सत्यार्थी की कविताओं को उद्धृत करते हुए उसकी दार्शनिक व्याख्या भी की।   राज्‍यसभा के उपसभापति श्री हरिवंश ने भी पुस्तक की महत्ता को रेखांकित करते हुए कहा कि कोविड संकट के दौर में इस पुस्‍तक का लिखा जाना मानव सभ्‍यता के इतिहास में एक नया अध्‍याय का जोड़ा जाना है। इस पुस्तक के माध्यम से बहुत ही बुनियादी लेकिन महत्वपूर्ण सवालों को उठाया गया और उनका समाधान भी प्रस्तुत किया गया है।  यह सही है कि कोविड-19 का संकट महज स्‍वास्‍थ्‍य का संकट नहीं है बल्कि यह सभ्‍यता का संकट है। समग्रता में इसका समाधान करुणा, कृतज्ञता, उत्‍तरदायित्‍व और सहिष्‍णुता में निहित है, जिनका उल्‍लेख कैलाश जी अपनी पुस्तक में करते हैं। उन्‍होंने करुणा, कृतज्ञता, उत्‍तरदायित्‍व और सहिष्‍णुता की नए संदर्भ में व्‍याख्‍या भी की है, जिनका यदि हम अपने जीवन में पालन करें तो समाधान निश्चित है। कैलाश जी वैक्‍सीन को सर्वसुलभ करने की बात करते हैं और उस पर पहला हक बच्‍चों का मानते हैं, जो उनके सरोकार का उल्‍लेखनीय पक्ष है। संकट बहुत बड़ा है। चुनौती बहुत बड़ी है इसलिए इसका समाधान नए ढंग से सोचना होगा, तभी हम अपने अस्तित्‍व को बचा पाएंगे।   नोबेल शांति पुरस्‍कार विजेता श्री कैलाश सत्‍यार्थी ने इस अवसर पर लोगों ध्यान कोरोना संकट से प्रभावित बच्चों की तरफ आकर्षित किया।   उन्होंने कहा कि महामारी शुरू होते ही मैंने लिखा था कि यह सामाजिक न्‍याय का संकट है। सभ्‍यता का संकट है। नैतिकता का संकट है। यह हमारे साझे भविष्‍य का संकट है और जिसके परिणाम दूरगामी होंगे। इसके कुछ उपाय तात्‍कालिक हैं, तो कुछ लगातार खोजते रहने होंगे। महामारी के सबसे ज्‍यादा शिकार बच्‍चे हुए हैं। आज एक अरब से ज्‍यादा बच्‍चे स्‍कूल से बाहर हैं। इनमें से तकरीबन आधे के पास ऑनलाइन पढ़ने-लिखने की सुविधा नहीं है। बच्चों की दशा को व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि संयुक्‍त राष्‍ट्रसंघ की संस्‍थाओं ने अनुमान लगाया है कि कोरोना से उपजे आर्थिक संकट की वजह से 5 साल से कम उम्र के तकरीबन 12 लाख बच्‍चे कुपोषण के कारण मौत के शिकार हो जाएंगे। उन्होंने इन परिस्थितियों को बदलने पर जोर देते हुए कहा कि ऐसे बच्‍चों की सुरक्षा के लिए हमने दुनिया के अमीर देशों से वैश्विक स्‍तर पर ‘फेयर शेयर फॉर चिल्ड्रेन’ की मांग की है। महामारी से निपटने के लिए अमीर देशों ने अनुदान के रूप में कोविड फंड में 8 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर देने की घोषणा की थी, जिसमें उद्योग, व्‍यापार जगत और अर्थव्‍यवस्‍था को भी सुधारना था। हमने उसमें से आबादी के हिसाब से 20 प्रतिशत हिस्‍सा बच्‍चों के लिए देने की मांग की है। लेकिन अमीर देशों ने अभी तक बच्‍चों के मद में मात्र 0.13 प्रतिशत रकम ही दी है। न्‍याय की खाई कितनी चौड़ी है इस उदाहरण से समझा जा सकता है। श्री सत्यार्थी ने इस अवसर पर कोरोना वैक्‍सीन को मुफ्त में सर्वसुलभ कराए जाने की मांग की। उन्होंने कहा कि संकट से उबरने के लिए हमें “करुणा का वैश्‍वीकरण” करना होगा।   श्री कैलाश सत्‍यार्थी नोबेल शांति पुरस्कार से नवाजे जाने के बाद भी बच्चों के अधिकारों के लिए सड़क पर उतर कर लगातार संघर्ष कर रहे हैं। अपना नोबेल पदक राष्ट्र को समर्पित करने वाले श्री सत्यार्थी ने दुनिया के बच्चों को शोषण मुक्त करने के लिए ‘’100 मिलियन फॉर 100 मिलियन’’ नामक दुनिया के सबसे बड़े युवा आंदोलन की शुरुआत की है। जिसके तहत 10 करोड़ वंचित बच्चों के अधिकारों की लड़ाई के लिए 10 करोड़ युवाओं को तैयार किया जाएगा। जबकि ‘’लॉरियेट्स एंड लीडर्स फॉर चिल्ड्रेन’’ के तहत वे नोबेल पुरस्कार विजेताओं और वैश्विक नेताओं को एकजुट कर … Read more

कैलाश सत्यार्थी जी की कविता -परिंदे और प्रवासी मजदूर

नोबेल शांति पुरस्‍कार से सम्‍मानित विश्व प्रसिद्ध बाल अधिकार कार्यकर्ता श्री कैलाश सत्‍यार्थी लॉकडाउन से बेरोजगार हुए प्रवासी मजदूरों और उनके बच्चों को लेकर चिंतित हैं। उनकी मदद के लिए व्यक्तिगत स्तर पर प्रयास के साथ-साथ वे इसके लिए लगातार सरकार और कोरपोरेट जगत के लोगों से बातचीत कर रहे हैं। पिछले दिनों अपने गांवों की तरफ लौटते भूख से तड़पते प्रवासी मजदूरों को देखकर श्री सत्‍यार्थी इतने व्‍यथित हुए कि उन्‍होंने अपनी व्‍यथा और संवेदना को शब्दों में ढाल दिया। वे घर लौट रहे दिहाड़ी मजदूरों की व्‍यथा को इस कविता में प्रतीकात्‍मक अंदाज में व्‍यक्‍त करते हैं। इस कविता के जरिए वह भारत के भाग्‍य विधाता और सभ्‍यताओं के निर्माता इन मजदूरों प्रति असीम कृतज्ञता ज्ञापित करते हुए यह उम्मीद भी जताते हैं कि एक दिन उनके जीवन में सब कुछ अच्छा होगा…   परिंदे और प्रवासी मजदूर-कैलाश सत्यार्थी मेरे दरवाज़े के बाहर घना पेड़ था, फल मीठे थे कई परिंदे उस पर गुज़र-बसर करते थे जाने किसकी नज़र लगी या ज़हरीली हो गईं हवाएं   बिन मौसम के आया पतझड़ और अचानक बंद खिड़कियां कर, मैं घर में दुबक गया था बाहर देखा बदहवास से भाग रहे थे सारे पक्षी कुछ बूढ़े थे तो कुछ उड़ना सीख रहे थे   छोड़ घोंसला जाने का भी दर्द बहुत होता है फिर वे तो कल के ही जन्मे चूज़े थे जिनकी आंखें अभी बंद थीं, चोंच खुली थी उनको चूम चिरैया कैसे भाग रही थी उसका क्रंदन, उसकी चीखें, उसकी आहें कौन सुनेगा कोलाहल में   घर में लाइट देख परिंदों ने शायद ये सोचा होगा यहां ज़िंदगी रहती होगी, इंसानों का डेरा होगा कुछ ही क्षण में खिड़की के शीशों पर, रोशनदानों तक पर कई परिंदे आकर चोंचें मार रहे थे मैंने उस मां को भी देखा, फेर लिया मुंह मुझको अपनी, अपने बच्चों की चिंता थी   मेरे घर में कई कमरे हैं उनमें एक पूजाघर भी है भरा हुआ फ्रिज है, खाना है, पानी है खिड़की-दरवाज़ों पर चिड़ियों की खटखट थी भीतर टीवी पर म्यूज़िक था, फ़िल्में थीं   देर हो गई, कोयल-तोते, गौरैया सब फुर्र हो गए देर हो गई, रंग, गीत, सुर, राग सभी कुछ फुर्र हो गए   ठगा-ठगा सा देख रहा हूं आसमान को कहां गए वो जिनसे हमने सीखा उड़ना कहां गया एहसास मुक्ति का, ऊंचाई का और असीमित हो जाने का   पेड़ देखकर सोच रहा हूं मैंने या मेरे पुरखों ने नहीं लगाया, फिर किसने ये पेड़ उगाया? बीज चोंच में लाया होगा उनमें से ही कोई जिनने बोए बीज पहाड़ों की चोटी पर दुर्गम से दुर्गम घाटी में, रेगिस्तानों, वीरानों में जिनके कारण जंगल फैले, बादल बरसे चलीं हवाएं, महकी धरती   धुंधला होकर शीशा भी अब, दर्पण सा लगता है देख रहा हूं उसमें अपने बौनेपन को और पतन को   भाग गए जो मुझे छोड़कर कल लौटेंगे सभी परिंदे मुझे यक़ीं है, इंतजार है लौटेगी वह चिड़िया भी चूज़ों से मिलने उसे मिलेंगे धींगामुश्ती करते वे सब मेरे घर में सभी खिड़कियां, दरवाज़े सब खुले मिलेंगे आस-पास के घर-आंगन भी बांह पसारे खुले मिलेंगे। यह भी पढ़ें … रेप से जैनब मरी है डायरी के पन्नों में छुपा तो लूँ बदनाम औरतें नए साल पर पांच कवितायें -साल बदला है हम भी बदलें आपको कविता ” परिंदे और प्रवासी मजदूर”   “कैसी लगी अपनी राय से हमें अवगत कराइए | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |   filed under-lock down, kailash satyarthi, hindi poem, labourer, corona