कमरा नंबर 909-दर्शनिकता को समेटे सच कि दास्तान

कमरा नंबर -909

– डॉ. अजय कुमार शर्मा डॉक्टर  होने के साथ-साथ एक संवेदनशील साहित्यकार भी हैं |  इसका पता उनकी रचनाओं को पढ़कर लगता है जो किसी विषय कि गहराई तक जाकर उसकी पड़ताल करती हैं | डॉ.  अजय शर्मा कि किताबें कई  यूनिवर्सिटीज़ में पढ़ाई जाती हैं | देश के कई प्रतिष्ठित साहित्यिक पुरुस्कारों से सम्मानित डॉ.  अजय शर्मा का  नया  उपन्यास कमरा नंबर 909 विषय कि गहन पड़ताल कि उनकी चीर-परिचित शैली के साथ  दर्शनिकता को समेटे हुए सच कि दास्तान कहता है | कमरा नंबर 909-दर्शनिकता को समेटे सच कि दास्तान   सन 2020 में पूरे विश्व में तबाही मचाने वाले कोविड-19 (कोरोना वायरस) ने हमारे देश में दस्तक दी|  और देखते ही देखते हम सबकी  जिंदगी बदल गई | लॉकडाउन, मास्क, सैनिटाइज़र ये नए शब्द हमारे शब्दकोश में जुड़ गए| जब जीवन इतना प्रभावित हुआ तो साहित्य कैसे ना  होता| कविता, कहानी, लेख आदि में कोरोना ने दस्तक दी| ऐसे में सुप्रसिद्ध साहित्यकार अजय शर्मा जी ने कमरा नंबर 909 के माध्यम से कोरोनाकाल (फर्स्ट वेव) को अपने उपन्यास का विषय बनाया| कमरा नंबर 909 अस्पताल के कोविड वार्ड का कमरा है| ये उपन्यास इस विषय पर लिखे गए अन्य उपन्यासों से अलग इसलिए हैं क्योंकि  जहां यह एक मरीज के रूप में निजी अनुभवों का सटीक चित्रण करता है वहीं मृत्यु को सामने देख कर भयभीत मनुष्य की संवेदनाओं, उनके रिश्तों की गहन पड़ताल भी करता है| कोरोना ने भय का जो वातावरण बना रखा है, जिससे सोशल डिस्टेंसिग, एमोशनल डिस्टेंसिग में बदल गई है ये उपन्यास इसे सूक्ष्मता से रेखांकित करता है कि कैसे एक बहन अपने भाई को राखी बांधने से ही भयभीत है | घरों  में काम करने वाली भोली है जो घर -घर जा कर कोरोना फैलाने के आरोप के लिए कहती है, “हम किसी को क्या दे सकते हैं|” पति  -पत्नी के मिठास भरे संबंधों और पूरे परिवार कि एकजुटता इस आपदा काल में हमारे देश के पारिवारिक ढांचे कि रीढ़ कि तरह उभरती है| उपन्यास में डॉ. आकाश कोरोना ग्रस्त होकर अस्पताल में भर्ती हैं| वहाँ कमरा नंबर 909 उनकी पहचान है| यहाँ  और मरीज भी हैं|  सभी कोरोना से ग्रस्त हैं| मृत्यु सामने दिख रही है | ऐसे में नकली परदे उतर जाते हैं और इंसान का असली स्वभाव सामने  आता है | व्यक्ति  जो जीवंतता से भरपूर होने के समय करता है असल में वो उससे उलट भी हो सकता है |यहीं पर गुप्ता जी है व  एक ऐसे गुरु हैं और उनका चेला विकास हैं जो “जीवन में खुश कैसे रहे” सिखाते थे | विकास तो मुलाजिम है जो गुरु के यहाँ  काम करता है पर गुरु का सारा अभिनय खुल कर आता है| जो दूसरों को मृत्यु के भय से निकल जीने कि कला सिखाता है वह स्वयं मृत्यु से इस कदर भयभीत है|एक अंश  देखिए .. “लोगों का भगवान जो लोगों के दिल और दिमाग में रोशिनी  का दिया जलाता है, वह कुछ ही मिनटों का अंधेरा बर्दाश्त नहीं कर सका|”    हम सब ने कभी ना  कभी ऐसे गुरु देखे हैं और हो सकता है निराशा के आलम में मोटी फीस दे कर उनके चंगुल में भी फंसे हों | बहुत खूबसूरती से यहाँ ये बात समझ में या जाती है कि ये उनका महज प्रोफेशन है असलियत नहीं | इसी उपन्यास में मेडिटेशन कि एक बहुत खूबसूरत  परिभाषा मिली जिसे कोट करना और याद रखना मुझे जरूरी लगा … “सत्य हर व्यक्ति का नैसर्गिक गुण है|असत्य  हम अर्जित करते हैं |बोलने का हम लोग अभ्यास करती हैं |ऐसे ही मेडिटेशन का हम लोग अभ्यास करते हैं|जो अपने आप लग जाए वही सहज ध्यान है    इसमें वो सहज ध्यान कि प्रकृति के बारे में बानी और बुल्ले शाह का उदाहरण देते हुए बताते हैं | मैंने भी अभी कुछ साल  पहले U. G. Krishnamurti की किताब “Mind is a myth में सहज धीं के ऊपर पढ़ा था | उसके अनुसार .. “The so called self-realization is the discovery for yourself and by yourself that there is no self to discover.”   गुप्ता जी एक उदार व्यक्ति हैं | दूसरे कि पीड़ा को समझने का एक संवेदनशील हृदय उनके पास है | गुप्ता जी और  आकाश की  बातचीत के माध्यम से आध्यात्म  व दर्शन कि सहज व सुंदर चर्चा पाठकों को पढ़ने को मिलती है |डॉ. अजय शर्मा स्वयं डॉक्टर हैं, इसलिए उपन्यास में कई मेडिकल टर्म्स पढ़ने को मिलते हैं |   इसके अतिरिक्त कोरोना के विषय में फैली गफलत कि वो वास्तव में वायरस है या 5G टेक्नॉलजी से उभरा  एलेक्टरोमैगनैटिक रेडिऐशन, अमेरिका -इराक का युद्ध,सद्दाम हुसैन का अंत और अमेरिका कि सुपरमेस्सी कि लड़ाई इसे व्यापक फलक प्रदान करती हैं|एक अंश देखिए ..   जब डोनाल्ड ट्रम्प को कोरोना हुया, तो वह इलाज के तुरंत बाद अस्पताल से निकला और गाड़ी में उसने मास्क को उतार फेंका| उसका विरोध भी हुआ लेकिन उसने परवाह नहीं की|लोगों के लिए मास्क उतारना शायद एक साधारण सी घटना हो सकती है| लेकिन मुझे लगता है कि उसने मास्क उतार कर चीन के मुँह पर तमाचा मारते हुए ये बताने कि कोशिश कि है, “तुम लाख कोशिश कर लो पर अमेरिका सुपर पावर था, है और रहेगा| आज जब फिर से ये मांग उठ रही है कि कोरोना वायरस कि उत्पत्ति कि जांच हो| चीन ने जिस मांग को उस समय दबा दिया |आज अमेरिका में दूसरी सरकार होते हुए भी इस मांग का अगुआ अमेरिका ही है और भारत भी अब इस मांग में शामिल हो गया है | इस बात कि भनक इस उपन्यास ने पहले ही दे दी थी |  क्योंकि राजनैतिक परिस्थितियाँ सामाजिक परिस्थितियों को प्रभावित करती हैं | पृष अभी भी वही है कि क्या सुप्रिमेसी कि इस लड़ाई ने ही सारे विश्व और उसकी अर्थव्यवस्था को अस्पतालों में लिटा दिया है | अस्पताल के बिस्तर से सुप्रिमेसी कि लड़ाई तक पहुँच जाना उपन्यास कि खासियत है| संक्षेप में कहें तो सरल सहज भाषा में लिखा ये उपन्यास सिर्फ कोरोनाकल और उससे उत्पन्न परिस्थितियों को ही नहीं दर्शाता बल्कि इसमें दर्शन और आध्यात्म कि की ऐसी बातें पिरोई गई हैं जिन् पर पाठक ठहर कर चिंतन में डूब जाता है … Read more

एक्शन का रिएक्शन

रश्मि तारिका

न्यूटन का तीसरा नियम ऐक्शन का रिऐक्शन प्रकृति में ही इंसानी जिंदगी में भी काम करता है | अब आम औरतों की जिंदगी को ही लीजिए,”सारा दिन तुम करती ही क्या रहती हो ?” के ताने झेलने वाली स्त्री दिन भर चक्करघिननी बनी सारे घर को ही नहीं सारे रिश्ते नातों,परंपराओं का बोझ अपने नाजुक कंधों पर उठाए रहती है |लॉकडाउन के समय में उसका काम और घरवालों की अपेक्षाएँ और बढ़ गईं हैं |ऐसे में खुद के शरीर के प्रति लापरवाह हो जाना और शरीर की दिक्कतें बढ़ जाना स्वाभाविक ही है | आखिर इंसान समझे जाने की दिशा में क्या हो उसका ऐक्शन ..  पढिए रश्मि तारिक जी की कहानी .. एक्शन का रिएक्शन दरवाज़े की आहट से शिल्पा उठ गई।सामने निखिल खड़े थे ,माथे पर त्योरियाँ चढ़ाए। “क्यों ,आज खाना नहीं बनेगा क्या ?दो बजने को हैं ,और तुम आराम से बैठी हो।”निखिल का स्वर बाहर के तापमान की तरह ही गर्म था। “सुनिए ,मेरी कमर में बहुत दर्द है।आप आज मांजी से कह दीजिये न ।बस चपाती ही तो बनानी है।सब्जी कढ़ाई में बना कर रखी है।” “मैं नहीं कह पाऊँगा उन्हें..और माँ की तबीयत तो तुम जानती ही हो।”कहते हुए निखिल कमरे से निकल गए। उफ़्फ़ ..! बारह बजे सब को भारी भरकम नाश्ता करवाकर सोचा था दो घण्टे अब आराम कर पायेगी।पर यहाँ तो दो बजते ही फिर लंच की पुकार।कई बार लगता कि घर के सभी सदस्य पेट की भूख नहीं मानसिक भूख के सहारे जीते हैं।पेट भरा  हो तो भी नाश्ते का समय हो ,लंच का समय ,शाम की चाय से रात के खाने तक सब कुछ समय पर आधारित। न आधा घण्टा पहले न आधा घण्टा बाद में।शिल्पा को वह बात बेकार लगती कि इंसान के दिल का रास्ता पेट से होते हुए जाता है।यहाँ तो दिमाग की घण्टी बजती थी तो पेट से आवाज़ आती थी।दिल तो बीच राह कहीं था ही नहीं।खुद वह भी उन सब के पेट तक पहुंचते हुए अपने दिल की राह भूल जाती थी।उसकी अपनी  ज़रूरतें और इच्छाएँ भी कोने में पड़ी डस्टबीन में पड़ी चिढ़ा रही होती थीं ।कभी बच्चों के समय तो कभी पति के हुकुमनामों के बीच वह जूझ रही होती थी और पेन किलर खाकर फिर अगले काम के लिए जुट जाती।आज तो पेनकिलर से भी आराम नहीं आया था। निखिल का जवाब सुन एक लंबी साँस लेकर शिल्पा उठ गई।दर्द और बेरुखी से उपजे आँसूं समेटते हुए रोटी बेलने लगी ।जैसे तैसे निखिल को खाना दे कर ,बाकी सब की रोटी बनाकर फॉयल में लपेट कर रख दी ।थोड़ी सी सब्जी और अमूमन दो लोइयों की एक मोटी अधपकी सी ,ठंडे तवे और ठंडे मन की रोटी लेकर बैठ गई मानो शरीर रूपी गाड़ी में इस रोटी का डीज़ल ही भरना है ताकि रात तक उसकी गाड़ी सुचारू रूप से चलती रहे। बेदिली से दो कौर खा कर पानी पी लिया मानो उसे ज़बरन गले से उतारना हो। पास पड़ा मोबाइल उठाया ,देखा निशा की मिस कॉल थी।दर्द की वजह से हिम्मत तो नहीं थी लेकिन एक निशा ही तो है जिससे बात करके दिल हल्का हो जाता था।अपनी इस दोस्त को अपना दर्द निवारक मानती थी।पलकों में उपजी नमी होठों पर मुस्कान बन खिल गई। “हाँ ,बोल निशु…!” “क्या कर रही है शिल्पा ? काम हो गया क्या ?”निशा ने पूछा। “हाँ लगभग।बस अभी निखिल को खाना दिया। बाकी सब का बनाकर रख दिया।पर देखो न ..आधे घण्टे बाद निखिल की चाय की आवाज़ और उसके आधे घण्टे बाद मम्मी पापा जी की चाय का समय।फिर बच्चों की फरमाइशें..! सबके अलग अलग समय निश्चित हैं।चाय के बाद रात के खाने की चिंता।दिन भर बर्तन ,सफाई ,कपड़े कितने काम और हैं ।थक जाती हूँ।” “इस लॉक डाउन में भी कोई समझता क्यों नहीं कि बाई तो है नहीं तो एक ही वक़्त पर सब खा पी लें ?मैंने तो घर के सभी लोगों से कह दिया कि मेरे हिसाब से नहीं चलना तो फिर खुद ही बना लें ।बस खामोशी से सब जब बना दो खा लेते हैं।उस पर भी सब के काम के बंटवारे कर दिये हैं।सारे काम का ठेका हमने नही  लिया भई।हम भी इंसान हैं ,कोई नमशीन नहीं।” “हुँह ..!! यहाँ तो लॉक डाउन से पूर्व भी यही हाल था और यही हमेशा रहेगा। कोई सहयोग नहीं ।सब अपने अपने कमरों में और मेरा तो कमरा ही यह रसोई है बस।”एक ठंडी आह के साथ शिल्पा ने मन की एक परत को खोलते हुए कहा “जानती हो निशु  ,एक बार किसी झगड़े में निखिल ने मुझे तलाक देने की धमकी दी तो सासू माँ ने कहा “नहीं ,बेटा ! ऐसा हरगिज़ मत करना। तलाक मत देना,मुझसे तो काम न होगा। तुम्हीं बताओ ,कोई इत्ता भी स्वार्थी हो सकता है ? यह नहीं कि बेटे को उसकी गलती समझाएँ या डाँटें कि बात बात पर तलाक की धमकी देना सही नहीं । पर नहीं केवल अपनी मजबूरी का हवाला देते रहेंगे।” “हद है यार ! चलो उन्होंने बुढ़ापे की वजह से उन्होंने कह भी दिया होगा।पर निखिल जी ? व्यापार में घाटा देख फेक्ट्री बंद कर दी, तब से घर बैठे हैं।समझ सकती हूँ कि ऐसे में व्यवहार में चिड़चडाहट हो जाती है।लेकिन तुम तो कब से सब झेल कर भी उनकी सेवा में दिन रात एक किये बैठी ही हो ,फिर भी तलाक की धमकी ?”निशा के स्वर में रोष उभर आया था । ” वही तो ! यह सब देख पहले मैं सोचा करती थी कि ये दुख सुख तो अपने कर्मों का लेखा है।जितनी श्वासें ईश्वर ने हमें दी हैं ,उन्हें जीना पड़ेगा।रो कर जिये या हंस कर ,हम पर निर्भर करता है।पर अब लगता है कि कभी तो अंत हो इन दुखों का।अब तो हर पल यही दुआ करती हूँ कि मुझे भी कोरोना हो जाये।जान छूटे मेरी।”कहते हुए आवाज़ भर्रा गई शिखा की। “दिमाग खराब है क्या ? फालतू बातें सोचती रहोगी ।क्या होगा इससे ? जिन लोगों को तुम्हारी दुख तकलीफ से वास्ता ही नहीं ,उन्हें क्या फर्क पड़ेगा।यदि बच गई तो भी उपेक्षित ही रहोगी।बोलने से पहले सोचा तो करो।” “क्या और क्यों सोचूँ ? आखिर इन सब को मालूम … Read more

हौसला

यह लघुकथा एक आशा है उस दिन की जब कोरोना नहीं रहेगा | हम इस भय से निकल कर उन्मुक्त साँस ले सकेंगे | आएगा वह दिन …बस हौसला बना कर रखना है | लघुकथा -हौसला  राघव एक कारखाने में काम करके अपने मां बाप के साथ अपना पेट पालता था। भोला राघव के (पिताजी )को बूढ़ा समझकर कोई काम नहीं देता। जैसे तैसे एक जगह चौकीदार का काम मिला। कोरोनावायरस के डर से बिल्डिंग के लोगों ने चेहरे पर मास्क लगाकर आने को कहा और लाकर दिए।सभी से ६ फिट की दूरी से बात करने को कहा, बूढ़े बाबा ने हां तो करली नौकरी के लिए मगर,उसका दम घुटता था।इधर राघव के मालिक ने राघव को कोरोना बिमारी से होने वाले संक्रमण से बचने के उपाय बताए सेनेटाइजर लगा कर आने को कहा और बार बार हाथ धोने की समझाइश दी।राघव की मां(कचरी) भी चौका बर्तन करने जाती थी, लेकिन महामारी ( कोरोना) के डर से सभी घरों में काम करवाने से मना कर दिया।अब घर चलाने में राघव को दिक्कत आने लगी। महिनें भर बाद राघव को एक दिन गले में खराश हुई, दूसरे दिन बुखार से शरीर तप रहा था, उसने पास ही में रहने वाले अपने साथी को बुलाया और अस्पताल ले जाने का कहा। लेकिन कोरोना के डर से साथी ने जाने से इन्कार कर दिया,और फ़ोन पर डाक्टर को सूचित किया। थोड़ी देर में गाड़ी लेने आई कचरी ने पूछा कब तक घर वापस आएगा बेटा। मां____ बेटे ने करुण स्वर में कहा अच्छा होकर जल्द ही आऊंगा,और अगर कुछ हो जाए तो तुम वृद्धाश्रम में चले जाना पिताजी को लेकर। मैंने थोड़ी बहुत कमाई करके जो जमा किया वह वृद्धाश्रम में देदेना आपको रहने में सुविधा होगी।यह कहकर अपने कपड़े वगैरह लेकर गाड़ी में बैठ गया। बेचारे मां बाप रोते हुए अपने प्राणों से प्यारे बेटे को जाते हुए देखते रहे। आंसू बहते रहे। कितना दर्द होता है सीने में अपने दिल के टुकड़े को ज़िन्दगी से जंग लड़ते हुए देखना । कोरोना के इलाज में गरीबों को सरकार सहायता कर रही है लेकिन कहीं कहीं इलाज में सारी कमाई का कुछ हिस्सा महामारी की भेंट चढ़ जाता है। यही हुआ भी।आखिर एक दिन मां बाप से बगैर मिले राघव ने इस संसार से विदा ले ली ।घर पर संदेश आ गया ,दाह संस्कार भी हो गया।अब बूढ़े मां-बाप कहां जाएं किसको अपना दर्द बताए कि जवान बेटे को आंखों के सामने से जाता हुआ देखना कितना दुखदाई होता है।बड़ी मुश्किल में दिन काटने को मजबूर थे दोनों। एक दिन राघव के मां बाप को बिल्डिंग में जहां कचरी काम करती थी,वह मालकिन(सीता) बुलाकर ले गयी दोनों को ,और अपने साथ रहने को कहा नीचे  एक कमरा भी दे दिया ,खाने का सामान भी दिया सब कुछ ठीक हो गया।सारी जरूरतें पूरी हो गई। थोड़े दिन बाद राघव की मां ने कहा मालकिन आपने हमारी इतनी सहायता करके हम पर उपकार किया है अब इस उपकार को  कैसे चुकाएंगे?? मालकिन ने कहा मेरी बेटी भी गंभीर बिमारी से खत्म हुई है फिर मैं कभी मां नहीं बनीं शाय़द यह नेक काम करने से मेरी इच्छा पूरी हो जाए।राघव की मां ने सच्चे मन से दुआएं मांगी ईश्वर से ।दो माह बाद सीता गर्भवती हो गई।राघव की मां ने बहुत सेवा की वह अपना सारा कर्ज सेवा से चुकाना चाहती थी।समय आने पर एक बेटे को जन्म दिया सीता ने।राघव की मां को बच्चे में अपने बेटे की झलक दिख रही थी।कोरोना का डर अब भी था बच्चे के और मां के सभी टेस्ट नेगेटिव आने पर अस्पताल से छुट्टी मिल गई।घर खुशियों से भर गया। अब वहां कोरोना का नामोनिशान नहीं था।सब कुछ पहले जैसा हो गया।__ प्रेम टोंग्या, इन्दौर मध्यप्रदेश।

Covid-19 : कोरोना पैनिक से बचने के लिए सही सोचें

  एक नन्हा सा दिया भले ही वो किसी भी कारण किसी भी उद्देश्य से जलाया जाए पूरे मार्ग का अंधियारा हरता है …गौतम बुद्ध   आज हम सब ऐसे दौर में हैं जब एक नन्हा सा वायरस COVID-19 पूरे विश्व की स्वास्थ्य पर, अर्थ पर और चेतना पर हावी है| पूरे विश्व में संक्रमित व्यक्तियों व् मृत रोगियों के लगातार बढ़ते आंकडे हमें डरा रहे हैं| हम  चाहते ना चाहते हुए भी बार-बार न्यूज़ देख रहे हैं| निरीह हो कर देख रहे हैं कि एक नन्हे से विषाणु ने पूरे विश्व की रफ़्तार के पहिये थाम दिए हैं| कल तक ‘ग्लोबल विलेज’ कहने वाले हम आज अपने घरों में सिमटे हुए हैं| देश के कई शहर लॉक डाउन हैं| कल तक हम सब के अपने-अपने सपने थे, आशाएं थीं, उम्मीदें थीं पर आज हम सब का एक ही सपना है कि हम सब सुरक्षित रहे और सम्पूर्ण मानवता इस युद्ध में विजयी हो| इन तमाम प्रार्थनाओं के बाद हम ये भी नहीं जानते कि ये सब कब तक चलेगा| जिन लोगों को एकांत अच्छा लगता था वो भी बाहर के सन्नाटे से घबरा रहे हैं| ऐसे में हम तीन तरह से प्रतिक्रिया दे रहे हैं| यहाँ मैं किसी प्रतिक्रिया के गलत या सही होने की बात न कर के मनुष्य की विचार प्रक्रिया पर बात करके उसे सही विचार चुनने की बात कह रही हूँ|   मैं और मेरा परिवार सुरक्षित रहे बाकी दुनिया… इस क्राइसिस से पहले  हममें से कई लोग बहुत अच्छे थे| पूरी दुनिया के बारे में  सोचते थे| आज वो केवल अपने और अपने परिवार के बारेमें सोच रहे हैं| ये वो लोग हैं जो ६ महीने का राशन जमा कर रहे हैं| अमेरिका में टॉयलेट पेपर तक की कमी हो गयी| ये वो लोग हैं जो बीमारों के लिए सैनिटाईजर्स की कमी हो गयी है अपने ६ महीने के स्टोर से कुछ देने नहीं जायेंगे| हो सकता है कि ये बीमारना पड़ें| इनके सारे सैनीटाईज़र्स यूँ ही ख़राब हो जाए| खाने –पीने की चीजें सड़ जाएँ पर किसी संभावित आपदा से निपटने के लिए ये सालों की तैयारी कर के बैठे हैं| बड़ी आसानी से कहा जा सकता है कि ये लोग समाज के दोषी हैं पर मैं ऐसा नहीं कह  पाऊँगी …कारण है हमारा एनिमल ब्रेन|   मनुष्य का विकास एनिमल या जानवर से हुआ है | क्योंकि जंगलों में हमेशा जान का खतरा रहता था इसलिए दिमाग ने एक कला विकसित कर ली, संभावित खतरों का पूर्वानुमान लगा कर खुद को सुरक्षित करने की| ये कला जीवन के लिए सहायक है और मनुष्य को तमाम खतरों से बचाती भी है|परन्तु ऐसे समय में जब हम जानते हैं कि खाने पीने के सामानों की ऐसी दिक्कत नहीं आने वाली हैं किसी एक व्हाट्स एप मेसेज पर, किसी एक दोस्त के कहने पर, किसी एक न्यूज़ पर दिमाग का वो हिस्सा एक्टिव हो जाता है और व्यक्ति बेतहाशा खरीदारी करने लगता है| हममे से कई लोगों ने इन दिनों इस बात को गलत बताते हुए भी  मॉल में लगी लंबी लाइनों को देखकर खुद भी लाइन में लग जाना बेहतर समझा होगा| भले ही हम उस समय खाली दूध या कोई एक सामान लेने गए हों और खुद भी पैनिक की गिरफ्त में आ गए | इधर हमने भरी हुई दुकानों में  एक दिन में पूरा राशन खाली होते हुए देखा है|   हम तो आपस में ही पार्टी करेंगे- दूसरी तरह के लोग जिन्हें हम अति सकारात्मक लोग कहते हैं| पॉजिटिव-पॉजिटिव की नयी थ्योरी इनके दिमाग में इस कदर फिट है कि इन्हें हर समय जोश में भरे हुए रहना अच्छा लगता है| पॉजिटिव रहने का अर्थ  ये नहीं होता है कि आप सावधानी और सतर्कता  के मूल मन्त्र को भूल जाएँ| जब की सकारात्मकता का आध्यात्मिक स्वरुप हमें ये सिखाता है कि आप जो भी काम करें पूरी तन्मयता और जागरूक अवस्था में करें, अवेयरनेस के साथ करें| शांत रहने का अर्थ नकारत्मक होना नहीं है| एक बार संदीप माहेश्वरी जी ने कहा था कि सक्सेस-सकस भी एक अवगुण है| आम तौर पर लोग अटैचमेंट नहीं सीख पाते | लेकिन जो लोग सक्सेस के प्रति अटैच्ड हो जाते हैं उनके दिमाग में चौबीसों घंटे सक्सेस सक्सेस या काम –काम चलता रहता है| अपने बिजनेस को आगे बढ़ाना रात और सपनों में भी चलता रहता है| यही स्वास्थ्य पर भारी पड़ता है| जितना अटैच होना सीखना पड़ता है उतना ही डिटैच होना भी | कब आप स्विच ओं कर सकें कब ऑफ कर सकें | अति सकारात्मकता  भी यही प्रभाव उत्प्प्न करती है | अगर व्यक्ति चौबीसों घंटे सकारात्मक रहेगा तो उसका दिमाग सतर्क रहने वाला स्विच ऑफ़ कर देगा| यही हाल कोरोना व्यारस के दौर में हमें देखने को मिल रहा है| जब पूरा शहर लॉक डाउन किया गया है तो कुछ लोग जबरदस्ती अपने घर में दूसरों को बुला रहे हैं | पार्टी कर रहे हैं | पुलिस को धत्ता बता कर ये ऐसा इसलिए कर पा रहे हैं क्योंकि ये एक –एक कर लोगों को घर बुलाते हैं | जब २५ -३० लोग इकट्ठा हो जाते हैं तब पार्टी शुरू होती है| इनका कहना होता है कि बिमारी –बिमारी सोचने से नकारात्मकता फैलती है|   अगर समझाओं  तो भी इनका कहना होता है कि अगर मैं मरुंगा तो मैं मरूँगा …इससे दूसरे को क्या मतलब | सकार्त्मकता के झूठे लबादे ने इनका सत्रकता वालादिमागी स्विच ऑफ कर दिया है | जो इन्हें खुद खतरे उठाने को विवश करता है और सामुदायिक भावना के आधीन हो सामाजिक जिम्मेदारी की अवहेलना के प्रति उकसाता है| ऐसे ही कुछ अति सकारात्मक लोगों द्वारा प्रधानमंत्री द्वारा आवश्यक सेवाओं में लगे लोगों को धन्यवाद ज्ञापन के आह्वान को ध्वनि तरंगों के विगन से जोड़ देने का नज़ारा हम कल २२ मार्च को आम जनता के बीच देख चुके हैं | जब जनता जुलुस के रूप में सड़कों पर उतर आई | इसके पीछे व्हाट्स एप में प्रासारित ये ज्ञान था| हमें पता है कि आम जनता में समझ अभी इतनी नहीं है| वो वैज्ञानिक दृष्टि से सिद्ध करे गए ऐसे व्हाट्स एप ज्ञान से प्रभावित हो जाती है| ऐसे में इन अति सकारात्मक लोगों … Read more