सुबह ऐसे आती है –उलझते -सुलझते रिश्तों की कहानियाँ
अंजू शर्मा जी से मेरा परिचय “चालीस साला औरतें” से हुआ था | कविता फेसबुक में पढ़ी और परस्पर मित्रता भी हुई | इसी कविता की वजह से मैंने बिंदिया का वो अंक खरीदा था | उनका पहला कविता संग्रह “कल्पनाओं से परे का समय”(बोधि प्रकाशन) लोकप्रिय हुआ | और मैं शुरू –शरू में उनको एक सशक्त कवयित्री के रूप में ही जानती रही परन्तु हौले –हौले से उन्होंने कहानियों में दस्तक दी और पहली ही कहानी से अपनी महत्वपूर्ण उपस्थिति दर्ज कराई | पिछले कुछ वर्षों से वो कहानी के क्षेत्र में तेजी से काम करते हुए एक सशक्त कथाकार के रूप में उभरी हैं | पिछले वर्ष उनका कहानी संग्रह आया, “एक नींद हज़ार सपने”(सामयिक प्रकाशन) और इस वर्ष भावना प्रकाशन से “सुबह ऐसे आती है “आया | इसके अतिरिक्त डायमंड प्रकाशन से उनका उपन्यास “ शंतिपुरा- अ टेल ऑफ़ लव एंड ड्रीम्स” आया है | इसके अतिरिक्त ऑनलाइन भी उनका उपन्यास आया है | वो निरंतर लिख रही हैं | उनके साहित्यिक सफ़र के लिए शुभकामनाएं देते हुए आज मैं बात करुँगी उनके दूसरे कहानी संग्रह “ सुबह ऐसे आती है “ के बारे में …. वैसे शेक्सपीयर ने कहा है कि “नाम में क्या रखा है” पर इस समय मेरे जेहन में दो नाम ही आ रहे हैं | उनमें से एक है “एक नींद हज़ार सपने” तो दूसरा “सुबह ऐसे आती है “ | एक कहानी संग्रह से दूसरे तक जाते हुए नामों की ये यात्रा क्या महज संयोग है या ये आती हुई परिपक्वता की निशानी या एक ऐलान | यूँ तो नींद से जागने पर सुबह आ ही जाती है | परन्तु सपनों भरी नींद से जागकर निरंतर परिश्रम करते हुए “सुबह ऐसे आती है “ का ऐलान एक समर्पण, निष्ठां और संकल्प का ऐलान है | तो साहित्यिक यात्रा के एक पड़ाव से दूसरे पड़ाव तक ले जाता है |ऐसा कहने के पीछे एक विशेष उद्देश्य को रेखांकित करना है | वो है एक स्त्री द्वारा अपने फैसले स्वयं लेने की शुरुआत करने का | यह एक स्त्री के जीवन में आने वाली सुबह है, जहाँ वो पितृसत्ता को नकार कर अपने जीवन की बागडोर अपने हाथ में लेने का संकल्प करती है | सुबह ऐसे आती है –उलझते -सुलझते रिश्तों की कहानियाँ अंजू शर्मा जी का कहानी कहने का एक सिग्नेचर स्टाइल है | वो कहानी की शुरुआत बहुत ही इत्मीनान से करती हैं …शब्द चित्र बनाते हुए, और पाठक उसमें धंसता जाता है | हालाँकि इस कहानी संग्रह में कहने का लहजा थोड़ा जुदा है पर उस पर अंजू शर्मा जी की खास शैली दिखाई देती है | जहाँ उनकी कवितायें बौद्धिकता का जामा पहने होती हैं वहीँ कहानियाँ आस –पास के जीवन को सहजता से उकेरती हैं | पहले कहानी संग्रह में वे ज्यादातर वो कहानियाँ लायी थी जो समाजिक सरोकारों से जुडी हुई थी पर इस कहानी संग्रह में वो रिश्तों की उलझन से उलझती सुलझती कहानियाँ लायी हैं | क्योंकि रिश्ते हमारे मन और भावनाओं से जुड़े हैं इसलिए ज्यादातर कहानियों में पात्रों का मानसिक अंतर्वंद व् आत्म संवाद उभरकर आता है | रिश्तों के सरोकार भी सरोकार ही होते हैं | जहाँ सामाजिक सरोकार सीधे समाज या समूह की बात करते हैं वहीँ रिश्ते से जुड़े सरोकार व्यक्ति की बात करते हुए भी समष्टि तक जाते हैं | आखिर मानवीय संवेदना एक जैसी ही तो होती है | अंजू जी सपष्ट करती हैं कि, “सरोकारों से परे कोई रचना शब्दों की कीमियागिरी तो हो सकती है पर वो कहानी नहीं बन सकती | लिहाजा सरोकारों का मुझे या मेरा सरोकारों से दूर जाना संभव नहीं | तो भी कहानियों में पढ़ा जाने लायक कहानीपन बना रहे बस इतनी सी कोशिश है |” सबसे पहले मैं बात करुँगी संग्रह की पहली कहानी “उम्मीदों का उदास पतझड़ साल का आखिरी महीना है” | ये कहानी प्रेम कहानी है | यूँ तो कहते हैं कि हर कोई अपनी पहली कविता प्रेम कविता ही लिखता है और संभवत: पहली कहानी प्रेम कहानी ही लिखता होगा | प्रेम पर लिखना कोई खास बात नहीं है | खास बात ये है कि प्रेम पर जब इतना लिखा जा रहा हो तो उसे अलहदा तरीके से लिखना ताकि ध्यान खींचा जा सके | इस कहानी में कुछ ऐसा ही है | मुझे लगता है किप्रेम के संयोग और वियोग में संयोग लिखना आसान है क्योंकि वहां शब्द साथ देते हैं | मन साथ देता है और पाठक सहज जुड़ाव महसूस करता है परन्तु वियोग में शब्द चुक जाते हैं | प्रकृति भी विपरीत लगती है | तुलसीदास जी ने बहुत सुंदर लिखा है, “घन घमंड नभ गरजत घोरा। प्रिया हीन डरपत मन मोरा॥“ जो पीड़ा होती है सब मनोभावों में अन्तर्निहित होती है | सारा कुछ मानसिक अंतर्द्वंद होता है | ये कहानी भी कुछ ऐसी ही कहानी है | जहाँ लेखिका ने वर्णनात्मक शैली का प्रयोग किया है | जिसमें सारी प्रकृति सारे मनोभाव निराशा और अवसाद के स्वर में बोलते हैं | एक प्रेम कहानी के ऐसे धीरे धीरे त्रासद अंत की ओर बढ़ते हुए पाठक का दिल टूटता जाता है | यहीं कहानी यू टर्न लेती है, जैसे बरसात के बाद धूप खिल गयी हो | दरअसल कहानी एक रहस्य के साथ आगे बढती है और पूरे समय रहस्य बना रहता है | यह इस कहानी की विशेषता है | “सुबह ऐसे आती है” कहानी एक स्त्री के अपने भावी बच्चे के साथ खड़े होने की है | माँ और बच्चे का रिश्ता दुनिया का पहला रिश्ता है और सबसे अनमोल भी | पितृसत्ता बच्चे के नाम के आगे पिता का नाम जुड़ने/न जुड़ने से उसे जायज या नाजायज भले ही कह दे पर इससे माँ और बच्चे के बीच के संबंद्ध पर कोई फर्क पड़ता | यूँ पति-पत्नी के रिश्तों में विचलन मर्यादित तो नहीं कहा जा सकता पर अस्वाभाविक भी नहीं है | कई बार ये विचलन पूर्व नियोजित नहीं होता | कई बार जीवन नदिया में धीरे –धीरे कर के बहुत सारे कारण इकट्ठे हो जाते हैं जब संस्कार और मर्यादाएं अपना बाँध तोड़ देते हैं | ऐसी ही एक स्त्री है … Read more