ढोंगी
श्राद्ध पक्ष के दिन चल रहे हैं |हम सब अपने अपने हिसाब से अपने पित्रों के प्रति सम्मान व्यक्त कर रहे है | लेकिन अगर श्रद्धा न हो तो सब कुछ मात्र ढोंग रह जाता है | पढिए आशा सिंह दी की लघु कथा ढोंग ढोंग आज पितृपक्ष की मातृनवमी है। मैं छत पर मां की पसंद का भोजन लिए कोओं की प्रतीक्षा कर रहा हूं। कोए भी मेरे ढोंग पहचानते हैं, आ नहीं रहे हैं। उस दिन आफिस में जैसे ही टिफिन खोला, मन व्याकुल हो उठा। लगा कोई पुकार रहा है। टिफिन चपरासी की ओर बढ़ा दिया, बोला ‘खाने के बाद टिफिन घर पर पहुंचा देना ‘सब पूछते रह गये कि क्या बात हो गई। बिना किसी से कुछ कहे मैं तेजी से कार भगाता हुआ घर पहुंचा। टी वी चल रहा था, बच्चे शोर मचा रहे थे। मुझे बेवख्त आया देख पत्नी चौंक गयी-‘क्या हुआ?’ मां कहां है? अपने कमरे में सो रही होंगी। मां के कमरे में देखा, उसकी सांसें उखड़ रही थी। मुझे देख कर मुस्कराई,-‘तू आ गया बेटा। मैं याद कर रही थी कि तुझको बिना देखे न चली जाऊं।‘ नहीं,आप कहीं नहीं जा रहीं। मैं अभी हस्पताल लेकर चलता हूं। उसने हाथ हिलाकर मना कर दिया-‘बस बेटा वक्त आ गया है।‘ मैंने मां के ठंडे पड़ते हाथ को थाम लिया-‘मां कुछ बोलो, कुछ चाहिए।‘ हल्की सी मुस्कान उसके चेहरे पर आई- मेरी प्लेट लगा ला। जब कभी हम पार्टियों में जाते थे, मां को बुफे सिस्टम से बड़ी चिढ़ थी। बफैलो सिस्टम कहती थी। मुझसे कहती-मेरी प्लेट लगा कर ले आ।‘ प्लेट में बस एक रोटी, एक ही सब्जी, दही बड़ा और पापड़। पार्टी में तरह तरह के व्यंजनों की भरमार होती, पर मां का एक ही अंदाज था। कभी पूछा तो रटा-रटाया जवाब-‘उतना ही लो थाली में, बहे न अन्न नाली में। कभी कभी मैं कह देता हजार रूपए प्लेट थी। मां हंस देती- हम उनके कार्य क्रम में आये है, प्लेट का पैसा नहीं देखने। मैं रसोई में आया, फटाफट रोटी बनाने लगा।सहम कर पत्नी और बेटी भी मदद के लिए आ गई। कल दहीबड़े बने थे, प्लेट में लगाओ। हां पापड़ भी।बेटी पापड़ भूनने चली, मैने कहा- दादी को तले पापड़ पसंद है। जल्दी से प्लेट लगा कर मां के पास गया,पर वह जा चुकी थी। मैं प्लेट लिए खड़ा रह गया। इस समय भी छत पर खड़ा हूं। लग रहा है कि कोऐ भी कह रहे हैं- ढोंगी। आशा सिंह श्राद्ध पक्ष : उस पार जाने वालों के लिए श्रद्धा व्यक्त करने का समय जीवित माता -पिता की अनदेखी और मरने के बाद श्राद्ध : चन्द्र प्रभा सूद श्राद्ध की पूड़ी आपको लघु कथा “ढोंगी कैसी लगी | अटूट बंधन का फेसबूक पेज लाइक करें और साइट को सबस्क्राइब करें |ताकि अटूट बंधन की रचनाएँ सीधे आप तक पहुँच सकें |