नए साल का स्वागत

new year

  2020 साल एक ऐसा रहा जिसने ये सिद्ध किया कि हम चाहें जितनी योजनाएँ बना लें होगा वही जो नियति  ने लिख रखा है |वैसे यह साल इतिहास में एक नकारात्मक साल के रूप में दर्ज है फिर भी बहुत कुछ ऐसा है जो सकारात्मक हुआ है | एक कहावत है न .. सुख में ही दुख और दुख में सुख छिपा है | वही हाल इस साल का भी है हमने समय से बहुत कुछ सीख है पहले से बेहतर इंसान बने हैं |उम्मीदों की गठरी 2021 को सौंपते हुए एक कविता नए साल का स्वागत ऐ जाते हुए साल अलविदा, बहुत सताया तुमने, कर दिया हमें  घरों में कैद ग्लोबल विलेज सिमिट गया घर के चाहर दीवारी के अंदर बाँट जोहती रहीं आँखें पुरानी रौनकों की भूल ही गए हम दोस्तों के साथ गले मिलना पीठ पर धौल -धप्पा कभी भी किसी के घर जा कर ठसक कर बैठ जाना दोस्तों की थाली से कुछ भी उठा कर खाना तुम्हीं ने परिचय कराया हमारा कोविड -19 के खौफ से मास्क सेनीटाइजर और दस्तानों से कुछ भी छू कर ,बार -बार हाथ धुलवाने से कितनी  नौकरियां छूटी , कितने स्वाभिमान टूटे , क्लास बंक  कर मिलने की हसरत भरे कितने दिल टूटे पर हर बार की तरह हमारी जिजीविषा भारी पड़ी तुम पर हामने सीख ही लिया बेसिक सुविधाओं में जीना घर के कामों को खुद ही कर लेना कहीं न कहीं हम और टेक्निकल हो गए छोटे कस्बे गाँव भी ऑनलाइन मुखर हो गए हमने  समझ ली है रिश्तों की अहमियत पर्यावरण और हमारी सेहत का गणित समझती हूँ ,तुम आए थे एक शिक्षक की तरह सिखा रहे थे जिंदगी का पाठ और एक अच्छे विधयार्थी की तरह सीख कर हम जा रहे हैं दो हजार इक्कीस में हमने सौंप दी है आशाओं की गठरी इस नए साल को नई समझदारी और ज्ञान से हम अवश्य ही बेहतर बनाएंगे प्रकृति के हाल को आओ दो हजार इक्कीस स्वागत है तुम्हारा नए जोश और नई  उम्मीदों  के साथ हम फिर से तैयार हैं करने को समय से दो -दो हाथ वंदना बाजपेयी यह भी पढ़ें .. मुन्नी और गाँधी -एक काव्य कथा सैंटा तक ये  सन्देशा

नव वर्ष यानी आपके हाथ में हैं नए 365 दिन

जब भी नव वर्ष  आता है तो अपने साथ लाता है नए 365 दिन | एक नया कोरा पन्ना  …जिसे हम अपने हिसाब से रंग सकते हैं | लेकिन इस रंगने के लिए जरूरी है संकल्प फिर इच्छाशक्ति और फिर मेहनत …जानते हैं कैसे ? नव वर्ष यानी आपके हाथ में हैं नए 365 दिन  सबसे पहले तो मैं आप को सुना रही हूँ …एक प्रेरक कथा | ये कहानी हैं एक साधू और एक नास्तिक की | एक गाँव में एक साधू आये थे | वो रोज शाम को प्रवचन देने | अच्छे बुरे का ज्ञान देते | वो कोई चमत्कार नहीं करते थे | ना ही किसी की बिमारी ठीक करते थे | परन्तु उनकी वाणी में ओज होने के कारण लोग उनकी बाते सुनते थे | वो मुख्यत : लोगो को सोच बदलने की प्रेरणा देते थे | लोगों को उनकी बातें बहुत अच्छी लगतीं | शुरू -शरू में तो उनके पास दो चार आदमी ही बैठते लेकिन धीरे -धीरे भीड़ बढ़ने लगी | शाम को लगभग पूरा गाँव उनको सुनने जाने लगा | दिन में भी उन्हीं के बारे में बातें होती  थी | गाँव में बस एक नास्तिक आदमी था, जो उनके पास नहीं जाता था | उसे उनकी बातें अच्छी नहीं लगती थीं }| वो चाहता था कि गाँव के लोग भी उनकी बातें नहीं सुने |  उसने बहुत बार समझाने का प्रयास भी किया पर वही ढ़ाक  के तीन पात | कोई उस्की बात मानता ही नहीं | आखिरकार उसे एक युक्ति सूझी | उसने सोचा कि इसका इस्तेमाल करके वो साधू को गाँव वालों के सामने झूठा सिद्ध कर देगा | इसके लिए वो एक कबूतर लेकर साधू के पास गया | उसने कबूतर को हल्का सा नशीला पदार्थ खिलाया हुआ था | जिसने कारण कबूतर थोडा सुन्न सा था | उसने कबूतर की गर्दन पकड रखी थी | उसने सोचा था कि वो साधू से पूछेगा कि “ये कबूतर जिन्दा है या नहीं ?” अगर साधू कहेगा जिन्दा है तो वो उसकी गर्दन दबा देगा और कहेगा कि ये तो मरा हुआ है | अगर साधू कहेगा तो वो उसे मक्त कर देगा और जब वो थोड़े पर फडफडायेगा तो कहेगा कि ये तो जिन्दा है | उसकी जीत निश्चित थी | साधू को सबके सामने झूठा सिद्ध करना निश्चित था | वो बहुत मन से गया | और साधू के पास जाकर वही प्रश्न पूछा | साधू ने उसकी तरफ देखा और कहा, ” बेटा ये तेरे हाथ में है | तू चाहे तो जिन्दा है, ना छह तो मृत |” नास्तिक साधू की बात के आगे निरुत्तर हो गया | …………… नए साल पर ये कहानी इसलिए कि हमारे हाथ में ३६५ दिन हैं हम चाहे तो उन्हें आबाद करें …चाहे तो बर्बाद करें | अगर             हर जाता हुआ साल अच्छे-बुरे अनुभवों की एक थाती हमें सौंप जाता है | हर आने वाला साल हमें यह अवसर देता है कि हम उन अनुभवों का लाभ उठाकर पहले से बेहतर बनें, संवेदनशील बने और रचनात्मक बनें | ऐसी ही आशा, उम्मीदों के साथ, एक नए प्रयास की शुरुआत करता ये नया  वर्ष आप सभी को मुबारक हो |