कहानी समीक्षा- काठ के पुतले

काठ के पुतले

ऐसा ही होता आया है एक ऐसा वाक्य है जिसके आवरण तले ना जाने कितनी गलत बाते मानी और मनवाई जाती हैं l कमजोर का शोषण दोहन होता रहता है, पर क्योंकि ऐसा होता आया है ये मानकर इसके खिलाफ आवाज़ नहीं उठती l और समाज किसी काठ के पुतले की तरह बस अनुसरण करता … Read more

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प्रज्ञा की कहानी जड़खोद- स्त्री को करना होगा अपने हिस्से का संघर्ष

जड़खोद

संवेद में प्रकाशित प्रज्ञा जी की एक और शानदार कहानी है “जड़ खोद”l इस कहानी को प्रज्ञा जी की कथा यात्रा में एक महत्वपूर्ण पड़ाव के रूप में देखा जा सकता है | जैसा कि राकेश बिहारी जी ने भी अपनी टिप्पणी में कहा है कि ये उनकी कथा यात्रा के नए पड़ाव या प्रस्थान … Read more

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प्रज्ञा जी की कहानी पटरी- कर्म के प्रति सम्मान और स्वाभिमान का हो भाव

प्रज्ञा की कहानी पटरी की समीक्षा

कुछ कहानियाँ अपने कलेवर में इतनी बड़ी होती हैं जिन पर विस्तार से चर्चा होना जरूरी हो जाता है l कई बार कहानी संग्रह की समीक्षा में उनके साथ न्याय  नहीं हो पाता इसलिए किसी एक कहानी की विस्तार से चर्चा हेतु अटूट बंधन में समय समय पर कहानी समीक्षा का प्रकाशन होता रहा है … Read more

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