अर्नेस्ट हेमिंग्वे की कहानी- दिन भर का इंतजार

दिन भर का इंतज़ार ------------------------ --- मूल लेखक : अर्नेस्ट हेमिंग्वे --- अनुवाद : सुशांत सुप्रिय

आज हम कोरोना वायरस से जूझ रहे हैं | पर ये कहानी फ्लू कि कहानी है | जाहिर है उसका भी खौफ रहा होगा | मृत्यु सामने दिखाई देती  होगी | बीमारी इंसान को कई  बार निराशावादी भी  बना देती है | “दिन भर का इंतजार”अमेरिकी लेखक अर्नेस्ट हेमिंग्वे कि ये कहानी एक ऐसी ही मनोदशा से जूझते व्यक्ति कि कहानी है |अर्नेस्ट हेमिंग्वे  की कहानियों कि खासियत है कि वो आत्मानुभवजन्य होते हुए भी कलात्मकता के शिखर को छूती हैं |इसका अनुवाद किया है सुपरिचित साहित्यकार सुशांत सुप्रिय जी ने .. दिन भर का इंतज़ार ———————— — मूल लेखक : अर्नेस्ट हेमिंग्वे — अनुवाद : सुशांत सुप्रिय जब वह खिड़कियाँ बंद करने के लिए कमरे में आया , तो हम सब बिस्तर पर ही लेटे थे और मैंने देखा कि वह बीमार लग रहा था । वह काँप रहा था , उसका चेहरा सफ़ेद था और वह धीरे-धीरे चल रहा था , जैसे चलने से दर्द होता हो । ” क्या बात है , शैट्ज़ ? ” ” मुझे सिर-दर्द है । ” ” बेहतर होगा , तुम वापस बिस्तर पर चले जाओ ।” ” नहीं , मैं ठीक हूँ ।” ” तुम बिस्तर पर जाओ । मैं कपड़े पहनकर तुम्हें देखता हूँ ।” पर , जब मैं सीढ़ियाँ उतर कर नीचे आया , तो वह अलाव के पास कपड़े पहन कर तैयार बैठा था । वह नौ वर्ष का एक बेहद बीमार और दुखी लड़का लग रहा था । जब मैंने अपना हाथ उसके माथे पर रखा , तो मुझे पता चल गया कि उसे बुखार था । ” तुम बिस्तर पर जाओ ” , मैंने कहा , ” तुम बीमार हो ।” ” मैं ठीक हूँ “, उसने कहा । जब डॉक्टर आया , तो उसने लड़के का बुखार जाँचा । ” कितना बुखार है ?” मैंने उससे पूछा । ” एक सौ दो । ” डॉक्टर अलग-अलग रंग के कैप्सूलों में तीन अलग-अलग तरह की दवाइयाँ और उन्हें देने के बारे में हिदायतें भी दे गया । एक दवा बुखार उतारने के लिए थी , दूसरी एक रेचक थी और तीसरी अम्लीय स्थिति पर क़ाबू पाने के लिए थी । इन्फ्लुएंज़ा के कीटाणु केवल अम्लीय स्थिति में ही जीवित रह सकते हैं , उसने बताया । लगता था , उसे इन्फ़्लुएंज़ा के बारे में सब कुछ मालूम था और उसने कहा कि यदि बुख़ार एक सौ चार डिग्री से ऊपर नहीं गया , तो डरने की कोई बात नहीं । यह फ़्लू का एक हल्का हमला है और यदि आप निमोनिया से बच कर रहें , तो ख़तरे की कोई बात नहीं थी । कमरे में वापस जा कर मैंने लड़के का बुख़ार लिखा और अलग-अलग तरह के कैप्सूलों को देने का समय नोट किया । ” क्या तुम चाहते हो कि मैं तुम्हें कुछ पढ़ कर सुनाऊँ ? ” ” ठीक है । अगर आप पढ़ना चाहते हैं तो “, लड़के ने कहा । उसका चेहरा बेहद सफ़ेद था और उसकी आँखों के नीचे काले घेरे थे । वह बिस्तर पर चुपचाप लेटा था और जो कुछ हो रहा था , उससे बेहद निर्लिप्त लग रहा था । मैं उसे हॉर्वर्ड पाइल की ‘ समुद्री डाकुओं की किताब ‘ ज़ोर से पढ़ कर सुनाने लगा , लेकिन मैं देख सकता था कि मैं जो पढ़ रहा था , उसमें वह दिलचस्पी नहीं ले रहा था । ” अब कैसा महसूस कर रहे हो , शैट्ज़ ? ” मैंने उससे पूछा । ” अब तक ठीक वैसा ही ,” उसने कहा । मैं बिस्तर के एक कोने पर बैठ कर अपने लिए पढ़ता रहा और उसे दूसरा कैप्सूल देने के समय का इंतज़ार करता रहा । उसका सो जाना स्वाभाविक होता , लेकिन जब मैंने निगाह ऊपर उठायी , तो वह बड़े अजीब ढंग से बिस्तर के पैताने को घूर रहा था । ” तुम सोने की कोशिश क्यों नहीं करते ? मैं तुम्हें दवा देने के लिए उठा दूँगा ।” ” मुझे जगे रहना अधिक पसंद है ।” थोड़ी देर बाद उसने मुझसे कहा — ” अगर आपको परेशानी हो रही है पापा , तो आपका यहाँ मेरे पास रहना ज़रूरी नहीं । ” ” मुझे तो कोई परेशानी नहीं हो रही ।” ” नहीं , मेरा मतलब है अगर आपको परेशानी हो , तो आप यहाँ मत रुकिए । ” मैंने सोचा , शायद बुखार के कारण वह थोड़ा व्याकुल हो गया था और ग्यारह बजे उसे निर्दिष्ट कैप्सूलों को देने के बाद मैं थोड़ी देर के लिए बाहर चला गया । वह एक चमकीला , ठंडा दिन था और ज़मीन बर्फ़ से ढँकी हुई थी । बर्फ़ जम गई थी , जिससे लगता था कि बिना पत्तों वाले सभी पेड़ों , झाड़ियों , सारी घास और ख़ाली ज़मीन को बर्फ़ से रोगन कर दिया गया हो । मैंने आइरिश नस्ल के छोटे कुत्ते को सड़क पर कुछ दूर तक सैर करा लाने के लिए अपने साथ ले लिया । मैं उसे एक जमी हुई सँकरी खाड़ी के बगल से ले गया , पर काँच जैसी सतह पर खड़ा होना या चलना मुश्किल था और वह लाल कुत्ता बार-बार फिसलता और गिर जाता था और मैं भी दो बार ज़ोर से गिरा । एक बार तो मेरी बंदूक़ भी हाथ से छूट कर गिर गई और बर्फ़ पर फिसलते हुए दूर तक चली गई । हमने मिट्टी के एक ऊँचे टीले पर लटके झाड़-झंखाड़ में छिपे बटेरों के एक झुंड को उत्तेजित करके उड़ा दिया और जब वे टीले के ऊपर से उस पार ओझल हो रही थीं , मैंने उनमें से दो को मार गिराया । झुंड में से कुछ बटेरें पेड़ों पर जा बैठीं पर उनमें से ज़्यादातर झाड़-झंखाड़ के ढेर में तितर-बितर हो गईं और झाड़-झंखाड़ के बर्फ़ से लदे टीलों पर कई बार उछलना ज़रूरी हो गया , तब जा कर वे उड़ीं । जब आप बर्फ़ीले , लचीले झाड़-झंखाड़ पर अस्थिर ढंग से संतुलन बनाए हों , तब उन्हें निशाना साध कर गोली मारना मुश्किल रहता है और मैंने दो बटेरें मारीं , पाँच का निशाना चूका और घर के इतने पास एक झुंड को पाने पर प्रसन्न हो कर वापस लौट चला । मैं इसलिए भी ख़ुश था कि किसी और दिन शिकार करने के लिए इतनी सारी बटेरें बची रह गई थीं । घर पहुँचने पर लोगों ने बताया कि लड़के ने किसी को भी कमरे में आने से मना कर दिया था । ” तुम लोग अंदर नहीं आ सकते “, उसने सबसे कहा ,” तुम्हें इस बीमारी से दूर रहना चाहिए , जो मुझे हो गई है ।” मैं उसके पास भीतर गया और उसे ठीक उसी अवस्था में पाया , जिसमें उसे छोड़ कर गया था । उसका चेहरा सफ़ेद था , पर उसके गालों का ऊपरी हिस्सा बुखार के कारण लाल हो गया था । वह सुबह की तरह बिना हिले-डुले बिस्तर के पैताने को घूर रहा था । मैंने उसका बुखार जाँचा । ” कितना है ? ” ” सौ के आस-पास ,” मैंने कहा । बुखार एक सौ दो से थोड़ा ज़्यादा था । ” बुखार एक सौ दो था ,” उसने कहा । ” यह किसने बताया ?” ” डॉक्टर ने ।” ” तुम्हारा बुखार ठीक-ठाक है ,” मैंने कहा , ” चिंतित होने की कोई बात नहीं । ” ” मैं चिंता नहीं करता ,” उसने कहा , ” लेकिन मैं खुद को सोचने से नहीं रोक सकता ।” ” सोचो मत ,” मैंने कहा , ” तुम केवल आराम करो ।” ” मैं तो आराम ही कर रहा हूँ ,” उसने कहा और ठीक सामने देखने लगा । साफ़ लग रहा था कि वह किसी चीज़ के बारे में सोच-सोच कर बेहद चिंतित हो रहा था । ” यह दवा पानी के साथ ले लो ।” ” क्या आप सोचते हैं कि इससे कोई फ़ायदा होगा ?” ” हाँ , ज़रूर होगा ।” मैं बैठ गया और समुद्री डाकुओं वाली किताब खोलकर पढ़ने लगा , लेकिन मैं देख सकता था कि उसका ध्यान कहीं और था , इसलिए मैंने किताब बंद कर दी । ” आप क्या सोचते हैं , मैं किस समय मरने वाला हूँ ? ” ” क्या ? ” ” मेरे मरने में अभी और कितनी देर लगेगी ?” ” तुम कोई मरने-वरने नहीं जा रहे हो । ऐसी बहकी-बहकी बातें क्यों कर रहे हो ? ” ” हाँ , मैं मरने जा रहा हूँ । मैंने डॉक्टर को एक सौ दो कहते हुए सुना । ” ” लोग एक सौ दो बुखार में नहीं मरते । बेवक़ूफ़ी भरी बात नहीं करो । ” ” मैं जानता हूँ , वे मरते हैं । फ़्रांस में लड़कों ने मुझे स्कूल में बताया था कि तुम चौवालीस डिग्री बुखार होने पर जीवित नहीं बच सकते । मुझे तो एक सौ दो बुखार है । ” तो वह सुबह नौ बजे से लेकर दिन भर मरने का इंतज़ार करता रहा था । ” ओ मेरे बेचारे शैट्ज़ ,” मैंने कहा , ” मेरे बेचारे बच्चे शैट्ज़ । यह मीलों और किलोमीटरों की तरह है । तुम कोई मरने-वरने नहीं जा रहे । वह एक दूसरा थर्मामीटर है । उस थर्मामीटर में सैंतीस सामान्य होता है , जबकि इस थर्मामीटर में अट्ठानवे सामान्य होता है ।” ” क्या आपको पक्का पता है ? ” ” बेशक,” मैंने कहा । ” यह मीलों और किलोमीटरों की तरह है । जैसे कि , जब हम कार से सत्तर मील की यात्रा करते हैं , तो हम कितने किलोमीटर की यात्रा करते हैं , समझे ? ” ” ओह ,” उसने कहा । लेकिन , बिस्तर के पैताने पर टिकी हुई उसकी निगाह धीरे-धीरे शिथिल हुई । अपने ऊपर उसकी पकड़ भी अंत में ढीली हो गई और अगले दिन वह बेहद सुस्त और धीमा था और वह बड़ी आसानी से उन छोटी-छोटी चीज़ों पर रोया , जिनका कोई महत्व नहीं था ।     ————०———— सुशांत सुप्रिय     इंदिरापुरम् , ग़ाज़ियाबाद – 201014 ( उ. प्र . ) मो: 8512070086 ई-मेल: sushant1968@gmail.com     यह भी पढ़ें …… डाटा फ्लो डायग्राम है जिंदगी जेल के पन्नों से–हत्यारिन माँ लाल चप्पल आपको सुशांत सुप्रिय द्वारा अनुवादित अर्नेस्ट हेमिंग्वे कि कहानी दिन भर का इंतज़ार कैसी लगी |हमें अपनी राय से अवश्य अवगत कराए | अगर आपको हमारी रचनाएँ पसंद आती हैं तो अटूट बंधन फेसबुक पेज लाइक करें व अटूट बंधन कि साइट सबस्क्राइब करें | ————————