बचपन में थी बड़े होने की जल्दी

बचपन में होती है बड़े होने की जल्दी और बड़े होने पर बचपन ढूंढते हैं ...मानव मन ऐसा ही है, जो पास होता है वो खास नहीं लगता lइसी विषय पर एक कविता  .. बचपन में थी बड़े होने की जल्दी 

बचपन में होती है बड़े होने की जल्दी और बड़े होने पर बचपन ढूंढते हैं …मानव मन ऐसा ही है, जो पास होता है वो खास नहीं लगता lइसी विषय पर एक कविता  ..   बचपन में थी बड़े होने की जल्दी  कभी-कभी ढूंढती हूँ उस नन्हीं सी गुड़िया को जो माँ की उल्टी सीधी-साड़ी लपेट खड़ी हो आईने के सामने दोहराती थी बार-बार “लो हम टो मम्मी बन गए” या नाराज़ हो माँ की डाँट पर छुप कर चारपाई के नीचे लगाती थी गुहार “लो जा रहे हैं सुकराल” माँ के मना करने बावजूद अपनी नन्ही हथेलियों में जिद करके थामती थी बर्तन माँजने का जूना और ठठा कर हँसता था घर हाथों में संभल ना पाए गिरते बर्तनों की झंकार से और अपनी गुड़िया को भी तो पालती थी बिलकुल माँ की तरह करना था सब वैसे ही चम्मच से खिलाने से लेकर डॉक्टर को दिखाने तक दोनों हाथों से पकड़ कर बडी सी झाड़ू हाँफते-दाफ़ते जल्दी-जल्दी बुहार आती थीबचपन घर के आँगन से आज उम्र की किसी ऊंची पायदान पर खड़ी हो लौट जाना चाहती है उस बचपन में जब थी जल्दी बड़े होने की सदा से यही रहा है हम सब का इतिहास कुछ और पाने की आशा में जो है आज इस पल हमारे पास वो कभी नहीं लगता खास वंदना बाजपेयी   आपको कविता “बचपन में थी बड़े होने की जल्दी” कैसी लगी ? अपनी राय से हमें अवश्य अवगत कराए l अगर आपको अटूट बंधन की रचनाएँ पसंद आती है तो कृपया साइट को सबस्क्राइब करें व फेसबुक पेज लाइक करें l

दो पौधे

दो पौधे

बोध कथाओं में जीवन की जल्तिल बातों को सच्चे सरल ढंग से सुनाने का प्रचलन रहा है | अब जीवन की जटिलता बढ़ी है और नयी बोध कथाओं की भी | दो पौधे एक ऐसी ही कथा है | दो पौधे  या कहानी है दो बच्चों सोहन और मोहन की जो पड़ोस में रहते थे |  दोनों के घर एक गुरूजी आया करते थे | एक बार गुरूजी ने दो छोटे -छोटे गमले दोनों बच्चों को दिए | और उनके शयन कक्ष की खिड़की के बाहर रखवा दिए | गुरूजी ने कहा कि रोज सुबह जो पौधा पसंद हो उस पर पानी दो और जो ना पसंद हो उसे छोड़ दो, ताकि व्ही पौधा बढे जो तुम्हे पसंद हो | पर खिड़की से ही पानी डालना है | दोनों बच्चों ने हाँ में सर हिला दिया | मोहन ने ध्यान से पौधों के देखा और पसंद के पौधे पर रोज पानी डालने लगा | सोहन को ये काम बेकार सा लगा उसने सोचा कोई भी पौधा बढे है तो पौधा ही क्या  फर्क पड़ता है | वो रोज अनजाने में अंदाज से ही पानी दाल देता | एक रात जब वो सो रहा था तो उसके हाथ में बहुत तेजी से कुछ चुभा | उसने लाईट जला कर देखा नागफनी का पौधा खिड़की से निकल कर उसके कमरे में आ गया था | उसने काँटा निकाल कर दवाई लगा ली | दूसरे दिन जब वो मोहन को रात की घटना बताने गया तो देखा मोहन की खिड़की पर सूरज मुखी का फूल लहलहा  रहा है | और मिओहन उसे बहुत प्रेम से देख रहा है | सोहन का मन उदास हो गया | उसे लगा अगर गुरूजी उसे पहले ही बता देते तो वो भी सूरजमुखी के पौधे को पानी देता और उसे  चोट भी नहीं लगती | अगली बार जब गुरूजी आये तौसने यही बात गुरूजी से कही |गुरूजी ने कहा की जाओ मोहन को भी बुला लाओ तब बताता हूँ | सोहन दौड़ कर मोहन को बुला लाया | गुरूजी ने मोहन से कहा कि तुम्हे भी मैंने एक पौधा नागफनी का दिया था और एक सूरज मुखी का फिर तुम्हारा नागफनी का पौधा क्यों नहीं उगा | मोहन ने उत्तर दिया कि जब पौधे थोड़े थोड़े बड़े हो रहे थे तभी मैंने देख लिया और उसे पानी देना  छोड़  दिया | सोहन ने सर झुका कर कहा, ” मैं बिना देखे ही पानी देता रहा” | गुरूजी ने कहा कि ये पौधों में पानी देना तो मैंने एक गंभीर बात समझाने के लिए किया था | जिस तरह बिना देखे गलत पौधा बढ़ जाता है उसी तरह हमारा जीअवन भी गलत दिशा में बढ़ सकता है | नागफनी के पौधे की तरह चुभ सकता है | “वो कैसे?” दोनों बच्चों ने पूछा | अगर हम गलत विचारों भावनाओं को पानी देते चले जायेंगे तो वैसे ही लोग हमारे चरों और इकट्ठे होते जायेंगे | दुश्मनी के विचारों को पानी देने पर दुश्मन इकट्ठे होंगे | प्रेम के विचारों को पानी देने पर दोस्त आस पास इकट्ठे होंगे | “पर विचारों को पानी कैसे दिया जाता है गुरूजी ?” बच्चों ने पूछा | उनके बारे में निरंतर सोच कर, उन पर फोकस कर के | २४ घंटे जो ज्यादा सोचते हो जीवन वैसा ही होता चला जाएगा | मेहनत पर फोकस करोगे और म्हणत करने के अवसर सामने आयेंगे और आलस पर तो हाथ का काम भी छिन जाएगा | दोस्त पर फोकस करोगे तो दोस्त बढ़ेंगे और दुश्मनों पर फोकस करोगे तो दुश्मन |घन पर फोकस करोगे तो धन आएगा और निर्धनता पर ( यानी ककी धन खो जाने के भय से ग्रस्त ) फोकास करोगे तो निर्धनता आएगी | बच्चों को बात समझ में आने लगी कि केवल सही पौधे को पानी ही नहीं देना है ….सही विचारों को भी पानी देना है | ( यथा दृष्टि तथा सृष्टि के आधार पर ) आपको प्रेरक कथा “दो पौधे” कैसी लगी ? अपने विचारों से हमें अवगत कराये | अगर आपको अटूट बंधन की रचनाएँ पसंद आती है तो साइट को सबस्क्राइब करें और हमारा फेसबुक पेज लाइक करें ताकि रचनाएँ सीधे आपको मिल सकें | filed under- motivational stories, friends, focus, thought, thought of life