अजनबी

रश्मि वर्मा

रिश्ते पौधों की तरह होते हैं, जिन्हें हर दिन सीचना पड़ता है | प्रेम और निष्ठा से संवारना पड़ता है | अगर ध्यान ना दिया जाए तो  कब दोस्त अजनबी बन जाते है और अजनबी गहरे  रिश्तों में बंध जाते हैं | आइये पढ़ते हैं टूटते बनते रिश्तों पर रश्मि वर्मा जी कीकहानी … अजनबी  अनिकेत अनिकेत , राशी दौड़ती हुई अनिकेत से आकर लिपट गयी। क्या हो गया बड़ी खुश हो? अर्रे कम्पनी हम दोनो को ट्रेनिंग  पर हैदराबाद भेज रही है वो भी पूरे ३ हफ़्ते के लिए ,जल्दी से जाकर सूट्केस पैक कर लो और हाँ हाँ स्पोर्ट्स शूज़ नहीं भूलना वहाँ  हॉस्टल में बहुत त बड़ा गार्डन है रोज़ सुबह शाम जमकर घूमेंगे। राशी बोलती जा रही थी अचानक रुकी , अनिकेत का चेहरा सपाट था कोई उत्साह नहीं,वो अपने काम मैं मशगूल जैसे कोई बड़ी बात ना हो। राशी ने मॉनिटर ऑफ़ कर दिया या, अरे ये क्या? मैं तुमसे बात कर रही हूँ तुम्हें सुनाई देना बंद है क्या ? राशी , मुझे इस इस ट्रेनिंग में कोई इंट्रेस्ट नहीं है ,हाँ तुम जाना चाहती हो तो तुम्हारी मर्ज़ी ,कह कर अनिकेत उठ कर ऑफ़िस के कॉरिडर में चला गया। राशी हैरान पर कई बार समझाने ,अनुनय करने पर भी जब अनिकेत नहीं माना तभ राशी ने अपना समान पैक किया और फ़्लाइट ले कर हैदराबाद पहुँच गयी । रात को हॉस्टल पहुँचने पर पता चला की रूम ख़ाली नहीं है शेयर करना पड़ेगा । अजीब मुसीबत है पर आपको क्या मेरे आने की ईमेल नहीं मिली? राशी ने वार्डन को प्रशं मैडम मैडम आप आज रात निकालिए कल सुबह देखते हैं ।जल्दी जा कर डिनर कर लें वरना मेस बंद हो जाएगा। कोई हल ना होता देख राशी ने हालत से समझोता किया फिर रात को ही अपने मैनेजर को ईमेल लिख दी। सुबह होते ही राशी को अलग कमरा मिल गया। हैदराबाद में हॉस्टल के नियम काफी सख्ती से लागू थे , सुबह 0630 चाय , 0900 बजे नाश्ता , फॉर्मल ड्रेस कोड सबके लिए , नाश्ते पर आशा जी जो की मुंबई से आयी थी उनसे हलकी फुल्की मुलाकात हुई फिर पूरा दिन ट्रेनिंग शाम को घूमते हुए आशा जी बातचीत हुई। पता चला यनहा जिम में केरमबोर्ड है जो आशा जी को बेहद पसंद है पर वो जाने में हिचक रही थी क्योंकि जिम में लड़कों का बोलबाला था, पर राशी उन्हें खीँच कर लेगयी । फिर तो दोनो के जैसे कॉलेज के दिन लौट आए ।जम कर केरम खेला ,रात का डिनर करके दोनो अपने अपने कमरे में। दो दिन बाद शनिवार ,इतवार की छुट्टी थी राशी ने सोचा कयों ना रामोजी फ़िल्म सिटी ज़ाया जाए ,आशा जी भी तैयार हो गयी ,बस फिर क्या था सुबह के नाश्ते के बाद फटपट ऊबर बुलायी और चल दी दो अनजान सहकर्मी दोस्त बन्ने। रमोजी फ़िल्म सिटी अपने आप में एक नहीं तीन चीजों का मिलान है ,फ़िल्म सिटी के सेट के अलावा वनहा खूबसूरत गॉर्डन, अम्यूज़्मेंट पार्क , भी है । पूरा एक दिन भी कम है घूमने के लिए पर टाइम से हास्टल वापिस भी आनाथा। अगला हफ़्ता फिर श्री सेलम मंदिर का ,शिवजी के १२ ज्योतिर्लिंग में से एक। रास्ते में जंगल और श्री सेलम डैम की खूबसूरती के क्या कहने जम के फोटोग्राफी की । इसी बीच १५ अगस्त ट्रेनिंग कॉलेज में ध्वजः आरोहण हुआ चेयरमैन सर की स्पीच के बाद राशी ने भी छोटी सी से स्पीच से सबका मन मोह लिया । आख़िरी हफ़्ता आ गया बस उसके बाद जाना था तो राशी और आशा जी ने लगे हाथ बिरला मंदिर , सेलर जंग म्यूज़ीयम चारमीनार का भी प्रोग्राम बना डाला वो भी हैदराबादी मेट्रो से। इसी बीच राशी को पता चला की अनिकेत लंदन पोस्टिंग चला गया है कम्पनी की तरफ से , उसने जान कर राशी से बात छुपाई क्योंकि उसके अलावा राशी ही उस पोस्ट के क़ाबिल थी । एक अजीब सा झटका लगा राशी को कमाल है प्रतिस्पर्धा के इस युग में कोई किसी का मित्र नहीं है , स्कूल,कॉलेज की दोस्ती सब एक तरफ़ , राशी अपने मन की कोई बात अनिकेत से छुपाती नहीं थी ,और अनिकेत ——— तभी मोबाइल की घंटी बजी ,अनिकेत का फ़ोन था, हेलो । राशी कैसी हो ? क्या बताऊँ तुम्हारे जाने के बाद अचानक मुझे लंदन आना पड़ा पर तुम्हारे लिए गिफ़्ट लिये हैं मैंने, पहले बताओ मुझे याद करती हो या भूल गयी? अनिकेत की चहकती हुई आवाज़ राशी का मिज़ाज बिगाड़ने के लियें आग में घी का काम कर रही थी पर फिर भी सयंत होकर राशी बोली , “अनिकेत तुम्हारे बिना मेरी ज़िंदगी के मायने ही क्या थे पर इन चंद दिनो में जाना है ज़िंदगी हर पल जीने के नए मायने देती है ज़रूरत है उन्हें स्वीकारने की।” अनिकेत की आवाज़ नहीं निकली राशी ने फ़ोन रख दिया । अगले दिन दो अजनबी औरते दोस्त बन कर एक दूसरे से विदा ले रही थी जबकि दो पक्के दोस्त हमेशा के लिये अजनबी हो गए थे। रश्मि वर्मा यह भी पढ़ें ……. पतुरिया तबादले का सच  भावनाओं की सरहदें कब होंगी  मन का अँधेरा आपको कहानी  “अजनबी   “ कैसा लगा  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |  keywords; hindi story, hindi, relations, friendship

सलीब

सलीब

सलीब पर  लटकना कितना  दर्दनाक होता है पर ये दर्द न जाने कौन कौन भोगता आया है चुपचाप |  सलीब यानी क्रूज यह कहानी कहानी है उन लड़कियों की जिन्होंने अपने फ़र्ज के आगे खुद को अकेलेपन के सलीब पर पाया। सलीब  रीटा मैडम office में काम करने वाली सीधी सादी औरत हाँ एक समय के बाद कोमर्य होते हुए भी क्या एक लड़की औरत ही तो कहलाती है या बन जाती है। टाइम से office आना टाइम से जाना घर से office और ऑफ़िस से घर का ज़रूर्री सामान समान लेते हुए घर जाना। बरसों से एक ही दिनचर्या एक ही घर एक ही रास्ता,पर आज खाने की टेबल पर अकेले नहीं एक चुलबुली राशी ने घेर ही लिया उनको। क्या आप अकेले खाना खाती हो ज़रूर पनीर लायी हो तभी चुपके चुपके , रीटा मैडम कुछ कह पाती तब तक तो राशी अपने पोहे का डब्बा लेकर उनके खाने पर आक्रमण बोल दिया। आप भी खाए , मैं तो जल्दी में बस पोहा ही बना पायी हूँ आपकी सब्ज़ी अच्छीहै । रीटा मैडम मुस्कुरा दी राशी की चंचलता पर ,फिर दोनो ओफ़िस के गार्डन में टहलने लगी। रीटा मेम एक बात बताए आप शादी कब कर रही हैं मुझे ना Christian wedding बहुत पसंद है,अभी तक बस मूवीज़ में ही देखा है, मैं आपकी बेस्ट गर्ल बन जाऊँगी dress की चिंता ना करें वो तो सिल जाएगी। राशी , मुझे नहीं लगता कोई लड़का मेरे साथ मेरे पेरेंट्सकी ज़िम्मेदारी भी लेगा। तो क्या आप सारी ज़िंदगी …….? पता नहीं शायद हाँ। लेकिन आपका भाई भी तो है उनके साथ मिलकर क्यों नहीं आप अपनी ज़िम्मेदारी बाँट लेती? उसका परिवार है बीबी ,बच्चे शायद वो उतना वक़्त ना दे पाए फिर माँ बाप तो मिलकर बच्चों को पालते हैं बाँटकर नहीं , फिर आज मैं अपना फ़र्ज़ कैसे बाँट लूँ? फिर जरुरी तो नहीं शादी के बाद मैं ख़ुश रहूँ। रीटा मेम क्या आपके पेरेंट्स नहीं चाहते? आपका घर बसे आप ख़ुश रहे। जब वो कहते थे तब कोई फ़िट बेठा नहीं अब वो कुछ कहने की हालत में नहीं हैं। चलो ब्रेक काफ़ी लम्बा हो गया मुझे काम जल्दी पूरा करके मेडिकल शाप जानाहै । अगले दिन गुड फ़्राइडे था ।यीशु को सलीब पर लटकाया गया था ,लोग नहीं जानते थे की वो क्या कर रहे हैं पर रीटा मेम ने में तो ख़ुशी ख़ुशी इस सलीब को चुना है सिर्फ़ अपने पेरेंट्स के लिये। रश्मि वर्मा आपको लघुकथा सलीब कैसी लगी ? अपने विचारों से हमें अवगत करायें | अगर आपको अटूट बंधन की रचनाएँ अच्छी लगती हैं तो साईट को सबस्क्राइब करें और हमारा फेसबुक पेज लाइक करें |

दोस्ती

  कोई भी रिश्ता हो अगर वहां दोस्ती का भाव हो तो वो रिश्ता अच्छा होता है | पति -पत्नी के रिश्तों में अक्सर अपेक्षाओं का बोझ होता है | क्या ही अच्छा हो कि दोनों एक दूसरे के सबसे अच्छे दोस्त हों | ऐसी ही प्यारी सी कहानी ले कर आयीं हैं रश्मि वर्मा जी जहाँ  रिश्ता शादी की पहली रात ही अटक गया …लेकिन  फिर ऐसा क्या हुआ कि कहानी -दोस्ती  आकांक्षा अपने आप में सिमटी हुई सजी हुई दुल्हन बनी सेज पर पिया के इंतज़ार में घड़ियां गिन रही थी। अचानक दरवाज़ा खुला, आकांक्षा की धड़कनें और बढ़ गईं। पर यह क्या? अनिकेत अंदर आए। दूल्हे के भारी-भरकम कपड़े बदले और नाइटसूट पहन कर बोले, “आप भी थक गई होंगी। प्लीज़, कपड़े बदलकर सो जाएं. मुझे भी सुबह ऑफ़िस जाना है।” आकांक्षा का सिर फूलों और जूड़े से पहले ही भारी हो रहा था, आंखें बंद-बंद हो रही थीं। सुनकर झटका लगा, पर कहीं राहत की सांस भी ली। अपने सूटकेस से ख़ूबसूरत नाइटी निकालकर पहनी और वो भी बिस्तर पर एक तरफ़ लुढ़क गई। अजीब थी सुहागसेज। दो अनजान जिस्म जिन्हें एक करने में दोनों के परिवारवालों ने इतनी ज़हमत उठाई थी, बिना एक हुए ही रात गुज़ार रहे थे। फूलों को भी अपमान महसूस हुआ, वरना उनकी ख़ुशबू अच्छे-अच्छों को मदहोश कर दे। अगले दिन नींद खुली तो देखा कि अनिकेतऑफ़िस के लिए जा चुके थे। आकांक्षा ने एक भरपूर अंगड़ाई लेकर घर का जायज़ा लिया। दो कमरों का फ़्लैट, बालकनी समेत, अनिकेत को ऑफ़िस से मिला था। अनिकेत एयरलाइन में काम करता है। कमर्शियल विभाग में। आकांक्षा भी एक छोटी सी एयरलाइन में परिचालन विभाग में काम करती थी। दोनों के पिता आपस में दोस्त थे और उनका यह फ़ैसला था कि अनिकेत और आकांक्षा एक दूसरे के लिए परफ़ेक्ट मैच रहेंगे। आकांक्षा को पिता के फ़ैसले से कोई आपत्ति नहीं थी। पर अनिकेत ने पिता के दबाव में आकर विवाह का बंधन स्वीकार किया था। आकांक्षा ने ऑफ़िस से एक हफ़्ते की छुट्टी ली थी। सबसे पहले किचन में जाकर एक कड़क चाय बनाई, फिर चाय की चुस्कियों के साथ घर को संवारने का प्लान बनाया। शाम को अनिकेत के लौटने पर घर का कोना-कोना दमक रहा था। जैसे अनिकेत ने घर में क़दम रखा, एक सुरुचि से सजे घर को देखकर लगा क्या यह वही घर है जो रोज़ अस्तव्यस्त होता था। खाने की ख़ुशबू भी उसकी भूख को बढ़ा रही थी। आकांक्षा चहकते हुए बोली, “आपका दिन कैसा रहा?”“ठीक।” एक संक्षिप्त सा उत्तर देकर अनिकेत डाइनिंग टेबल पर पहुंचे। जल्दी से खाना खाया और सीधे बिस्तर पर। औरत ज़्यादा नहीं पर दो बोल दो तारीफ़ के चाहती ही है, पर आकांक्षा को वे भी नहीं मिले। पांच दिन तक यही दिनचर्या चलती रही। छठे दिन आकांक्षा ने सोने से पहले अनिकेत का रास्ता रोक लिया। “आप प्लीज़ पांच मिनट बात करेंगे?” “मुझे सोना है,”अनिकेत ने चिर-परिचित अंदाज़ में बोला। “प्लीज़, कल से मुझे भी ऑफ़िस जाना है। आज तो पांच मिनट निकाल लीजिए।” “बोलो, क्या कहना चाहती हो,”अनिकेत अनमने भाव से बोले। “आप मुझसे नाराज़ हैं या शादी से?” “क्या मतलब?” “आप जानते हैं मैं क्या जानना चाहती हूं।” “प्लीज़ डैडी से बात करो, जिनका फ़ैसला था।” “पर शादी तो आपने की है?” आकांक्षा को भी ग़ुस्सा आ गया। “जानता हूं। और कुछ?”अनिकेत चिढ़कर बोला। आकांक्षा समझ गई कि अब बात सुलझने की जगह बिगड़ने वाली है। “क्या यह शादी आपकी मर्ज़ी से नहीं हुई है?” “नहीं। और कुछ?” “अच्छा, ठीक है। पर एक विनती है आपसे।“ “क्या?” “क्या हम कुछ दिन दोस्तों की तरह रह सकते हैं?” “मतलब?”अनिकेत को आश्चर्य हुआ। “यही कि एक महीने बाद मेरा इंटरव्यू है। मुझे मेरा लाइसेंस मिल जाएगा, और फिर मैं आगे की पढ़ाई के लिए अमेरिका चली जाऊंगी। तीन साल के लिए। उस दौरान आपको जो उचित लगे, वो फ़ैसला ले लीजिएगा। यक़ीन मानिए आपको कोई परेशानी नहीं होगी।” अनिकेत तो इसमें कोई आपत्ति नहीं लगी। हां, अब दोनों साथ-साथ नाश्ता करने लगे। शाम को घूमने भी जाने लगे। होटल, रेस्तरां, यहां तक कि सिनेमा भी।  आकांक्षा कॉलेज गर्ल की तरह ही कपड़े पहनती थी, न कि नई-नवेली दुल्हन की तरह। उन्हें साथ देखकर कोई युगल प्रेमी समझ सकता था, पर पति-पत्नी तो बिल्कुल नहीं। कैफ़े कॉफ़ी डे हो या काके दा होटल, दोस्तों के लिए हर जगह बातों का अड्डा होती हैं। और आकांक्षा के पास तो बातों का ख़ज़ाना था। धीरे-धीरे अनिकेत को भी उसकी बातों में रस आने लगा। उसने भी अपने दिल की बातें खोलनी शुरू कर दीं। एक दिन रात को ऑफ़िस से अनिकेत लेट आया और उसे ज़ोरों से भूख लगी थी। घर में देखा तो आकांक्षा पढ़ाई कर रही थी। खाने का कोई अता-पता नहीं था। “आज खाने का क्या हुआ?” “सॉरी। आज पढ़ते-पढ़ते सब भूल गई।“ “वो तो ठीक है। पर अब क्या?” “एक काम कर सकते हैं।” आकांक्षा को आइडिया आया। “मैंने सुना है मूलचंद फ़्लाईओवर के नीचे आधी रात तक परांठे और चाय मिलती है। क्यों न आज हम वही ट्राई करें?” “क्या?”अनिकेत का मुंह आश्चर्य से खुला रह गया। “हां, हां। मेरे ऑफ़िस के काफ़ी लोग जाते रहते हैं। आज हम भी चलते हैं।“ “ठीक है। कपड़े बदलो। चलते हैं।” “अरे, कपड़े क्या बदलने हैं? ट्रैक सूट में ही चलती हूं। बाइक पर बढ़िया रहेगा। हमें वहां कौन जानता है?” अनिकेत ने फ़टाफ़ट बाइक दौड़ाई। मूलचंद पर परांठे-चाय अनिकेत के लिए भी बिलकुल अलग अनुभव था। आख़िर वो दिन भी आ ही गया जब आकांक्षा का इंटरव्यू था। सुबह-सुबह घर का काम निबटाकर आकांक्षा फ़टाफ़ट डीजीसीए के लिए रवाना हो गई।वहां उसके और भी साथी पहले से ही मौजूद थे। नियत समय पर इंटरव्यू हुआ। आकांक्षा के जवाबों ने एफ़आईडी को भी ख़ुश कर दिया। उन्होंने कहा, “जाइए, अपने दोस्तों को भी बताइए कि आप सब पास हो गए हैं।” आकांक्षा दौड़ते हुए बाहर आई और फ़िल्मीअंदाज़ में टाई उतारकर बोली, “हे गाइज़! वी ऑलक्लियर्ड।” बस जश्न का माहौल बन गया। ख़ुशी-ख़ुशी सब बाहर आए। आकांक्षा सोच रही थी कि बस ले या ऑटो। तभी उसका ध्यान गया कि पेड़ के नीचे अनिकेत उसका इंतज़ार कर रहे हैं। आकांक्षा दौड़ती हुई … Read more