लिट्टी-चोखा व् अन्य कहानियाँ –धीमी आंच में पकी स्वादिष्ट कहानियाँ

आज मैं आप के साथ बात करुँगी गीताश्री जी के नए कहानी संग्रह लिट्टी-चोखा के बारे में | लिट्टी-चोखा बिहार का एक स्वादिष्ट व्यंजन है | किसी कहानी संग्रह का नाम उस पर रख देना चौंकाता है | लेकिन गौर करें तो दोनों में बहुत समानता है | एक अच्छी कहानी से भी वही तृप्ति  मिलती है जो लिट्टी- चोखा खाने से | एक शरीर का भोजन है और एक मन का | और इस मन पर  पर तरह –तरह की संवेदनाओं के स्वाद का असर ऐसा पड़ता है कि देर तक नशा छाया रहता है | जिस तरह से धीमी आंच पर पकी लिट्टी ही ज्यादा स्वादिष्ट होती है वैसे ही कहानियाँ भी, जिसमें लेखक पूरी तरह से डूब कर मन की अंगीठी  में भावनाओं को हौले –हौले से सेंक कर पकाता है | गीताश्री जी ने इस कहानी संग्रह में पूरी ऐतिहात बरती है कि एक –एक कहानी धीमी आंच पर पके | इसलिए इनका स्वाद उभरकर आया है |     ये नाम इतना खूबसूरत और लोक से जुड़ा है कि इसके ट्रेंड सेटर बन जाने की पूरी सम्भावना है | हो  सकता है आगे हमें दाल –बाटी, कढ़ी, रसाजें, सरसों का साग आदि नाम के नाम कहानी संग्रह पढने को मिलें | इसका पूरा श्रेय गीताश्री जी और राजपाल एंड संस को जाना चाहिए | कहानीकारों से आग्रह है कि वो भारतीय व्यंजनों को ही वरीयता दें | मैगी, नूडल्स, पिजा, पास्ता हमारे भारतीय मानस के अनकूल नहीं | ना ही इनके स्वाद में वो अनोखापन होगा जो धीमी आँच में पकने से आता है | भविष्य के कहानी संग्रहो के नामों की खोज पर विराम लगाते हुए बात करते हैं लिट्टी –चोखा की थाली यानि कवर पेज की | कवर पेज की मधुबनी पेंटिंग सहज ही आकर्षित करती है | इसमें बीजना डुलाती हुई स्त्री है | सर पर घूँघट. नाक में नाथ माथे पर बिंदिया | देर तक चूल्हे की आंच के सामने बैठ सबकी अपेक्षाओं पर खरी उतरने वाली, फुरसत के दो पलों में खुद पर बीजना झल उसकी बयार में सुस्ता रही है | शायद कोई लोकगीत गा रही हो | यही तो है हमारा लोक, हमारा असली भारत जिसे सामने लाना भी साहित्यकारों का फर्ज है | यहाँ ये फर्ज गीताश्री जी ने निभाया है |   गीताश्री जी लंबे अरसे तक पत्रकार रहीं हैं, दिल्ली में रहीं हैं |  लेकिन उनके अन्दर लोक बसता है | चाहें बात ‘हसीनाबाद’ की हो या ‘लेडीज सर्किल’ की, यह बात प्रखरता से उभर कर आती है | शायद यही कारण है कि पत्रकारिता की कठोर जीवन शैली और दिल्ली निवास के बावजूद उनके अंदर सहृदयता का झरना प्रवाहमान है | मैंने उनके अंदर सदा एक सहृदय स्त्री देखी है जो बिना अपने नफा –नुक्सान का गणित लगाए दूसरी स्त्रियों का भी हाथ थाम कर आगे बढ़ाने  में विश्वास रखती हैं | साहित्य जगत में यह गुण बहुत कम लोगों में मिलता है | क्योंकि मैंने उन्हें काफी पढ़ा है इसलिए यह दावे के साथ कह सकती हूँ कि उन्होंने लोक और शहरी जीवन दोनों ध्रुवों को उतनी ही गहनता से संभाल रखा है | ऐसा इसलिए कि वो लंबे समय से दिल्ली में रहीं हैं | बहुत यात्राएं करती हैं | इसलिए शहर हो या गाँव हर स्त्री के मन को वो खंगाल लेती है | सात पर्दों के नीचे छिपे दर्द को बयान कर देती हैं |जब वो स्त्री पर लिखती हैं या बोलती हैं तो ऐसा लगता है कि वो हर स्त्री के मन की बात कह रही हैं | उनके शब्द बहुत धारदार होते हैं जो चेहरे की किताबों के अध्यन से व गहराई में अपने मन में उतरने से आते हैं | उनकी रचनाओं में बोलते पात्र हैं पर वहाँ हर स्त्री का अक्स नज़र आता है | यही बात है की उनकी कहानियों में स्त्री पात्र मुख्य होते हैं | हालांकि वो केवल स्त्री पर ही नहीं लिखती वो निरंतर अपनी रेंज का विस्तार करती हैं | भूतों पर लिखी गयी ‘भूत –खेला ‘इसी का उदाहरण है | अभी वो पत्रकारिता पर एक उपन्यास ‘वाया  मीडिया’ ला रही हैं | उनकी रेंज देखकर लगता है कि उन्हें कहानियाँ ढूँढनी नहीं पड़ती | वो उनके अन्दर किसी स्वर्णिम संदूक में रखी हुई हैं | जबी उन्हें जरूरत होती है उसे जरा सा हिला कर कुछ चुन लेती हैं और उसी से बन जाता है उनकी रचना का एक नया संसार | वो निरंतर लिख कर साहित्य को समृद्ध कर रही हैं | एक पाठक के तौर मुझे उनकी कलम से  अभी और भी बहुत से नए विषयों की , नयी कहानियों की, उपन्यासों की प्रतीक्षा है |   लिट्टी-चोखा व् अन्य कहानियाँ –धीमी आंच में पकी स्वादिष्ट कहानियाँ            “लिट्टी-चोखा” कहानी संग्रह में गीताश्री जी दस कहानियाँ लेकर आई हैं | कुछ कहानियाँ अतीत से लायी हैं जहाँ उन्होंने झाड़ पोछ कर साफ़ करके प्रस्तुत किया है | कुछ वर्तमान की है तो कुछ अतीत और वर्तमान को किसी सेतु की तरह जोडती हुई | तिरहुत मिथिला का समाज वहाँ  की बोली, सामाजिकता, जीवन शैली और लोक गीत उनकी कहानियों में सहज ही स्थान पा गए हैं | शहर में आ कर बसे पात्रों में विस्थापन की पीड़ा झलक रही है | इन कहानियों में कलाकार पमपम तिवारी व् राजा बाबू हैं, कस्बाई प्रेमी को छोड़कर शहर में बसी नीलू कुमारी है , एक दूसरे की भाषा ना जानने वाले प्रेमी अरुण और जयंती हैंअपने बल सखा को ढूँढती रम्या है और इन सब के बीच सबसे अलग फिर भी मोती सी चमकती कहानी गंध-मुक्ति है | एक खास बात इस संग्रह किये है कि गीताश्री जी ने इसमें शिल्प में बहुत प्रयोग किये हैं जो बहुत आकर्षक लग रहे हैं | जो लगातार उन्हें पढ़ते आ रहे हैं उन्हें यहाँ उनकी कहन शैली और शिल्प एक खूबसूरत बदलाव नज़र आएगा |   अक्सर मैं किसी कहानी संग्रह पर लिखने की शुरुआत उस कहानी से करती हूँ जो मुझे सबसे ज्यादा पसंद आई होती है |  पर इस बार दो कहानियों के बीच में मेरा मन फँस गया | ये कहानियाँ हैं  “नजरा गईली … Read more