सलीब

सलीब

सलीब पर  लटकना कितना  दर्दनाक होता है पर ये दर्द न जाने कौन कौन भोगता आया है चुपचाप |  सलीब यानी क्रूज यह कहानी कहानी है उन लड़कियों की जिन्होंने अपने फ़र्ज के आगे खुद को अकेलेपन के सलीब पर पाया। सलीब  रीटा मैडम office में काम करने वाली सीधी सादी औरत हाँ एक समय के बाद कोमर्य होते हुए भी क्या एक लड़की औरत ही तो कहलाती है या बन जाती है। टाइम से office आना टाइम से जाना घर से office और ऑफ़िस से घर का ज़रूर्री सामान समान लेते हुए घर जाना। बरसों से एक ही दिनचर्या एक ही घर एक ही रास्ता,पर आज खाने की टेबल पर अकेले नहीं एक चुलबुली राशी ने घेर ही लिया उनको। क्या आप अकेले खाना खाती हो ज़रूर पनीर लायी हो तभी चुपके चुपके , रीटा मैडम कुछ कह पाती तब तक तो राशी अपने पोहे का डब्बा लेकर उनके खाने पर आक्रमण बोल दिया। आप भी खाए , मैं तो जल्दी में बस पोहा ही बना पायी हूँ आपकी सब्ज़ी अच्छीहै । रीटा मैडम मुस्कुरा दी राशी की चंचलता पर ,फिर दोनो ओफ़िस के गार्डन में टहलने लगी। रीटा मेम एक बात बताए आप शादी कब कर रही हैं मुझे ना Christian wedding बहुत पसंद है,अभी तक बस मूवीज़ में ही देखा है, मैं आपकी बेस्ट गर्ल बन जाऊँगी dress की चिंता ना करें वो तो सिल जाएगी। राशी , मुझे नहीं लगता कोई लड़का मेरे साथ मेरे पेरेंट्सकी ज़िम्मेदारी भी लेगा। तो क्या आप सारी ज़िंदगी …….? पता नहीं शायद हाँ। लेकिन आपका भाई भी तो है उनके साथ मिलकर क्यों नहीं आप अपनी ज़िम्मेदारी बाँट लेती? उसका परिवार है बीबी ,बच्चे शायद वो उतना वक़्त ना दे पाए फिर माँ बाप तो मिलकर बच्चों को पालते हैं बाँटकर नहीं , फिर आज मैं अपना फ़र्ज़ कैसे बाँट लूँ? फिर जरुरी तो नहीं शादी के बाद मैं ख़ुश रहूँ। रीटा मेम क्या आपके पेरेंट्स नहीं चाहते? आपका घर बसे आप ख़ुश रहे। जब वो कहते थे तब कोई फ़िट बेठा नहीं अब वो कुछ कहने की हालत में नहीं हैं। चलो ब्रेक काफ़ी लम्बा हो गया मुझे काम जल्दी पूरा करके मेडिकल शाप जानाहै । अगले दिन गुड फ़्राइडे था ।यीशु को सलीब पर लटकाया गया था ,लोग नहीं जानते थे की वो क्या कर रहे हैं पर रीटा मेम ने में तो ख़ुशी ख़ुशी इस सलीब को चुना है सिर्फ़ अपने पेरेंट्स के लिये। रश्मि वर्मा आपको लघुकथा सलीब कैसी लगी ? अपने विचारों से हमें अवगत करायें | अगर आपको अटूट बंधन की रचनाएँ अच्छी लगती हैं तो साईट को सबस्क्राइब करें और हमारा फेसबुक पेज लाइक करें |