5 thoughts on “छवियों में कैद जिंदगी”

  1. सच्चाई की एक बढिया तस्वीर खीचीं है आपने जिसे हम रोज जूझते तो हैं पर स्वयं को बदलना नहीं जानते..। बस भागते रहते हैं एक अंधी दौड में….

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  2. क्यूँ ना हम स्वीकार कर लें कि हर व्यक्ति अपने अँगूठे के निशान और रेटिना स्कैन की तरह रूप-रंग, आशाओं, इच्छाओं, स्वाभाव, सोच और विचारों से निर्मित ईश्वर की एक अलहदा कृति है …. जो कि मौलिक है और अपनेआप में श्रेष्ठ है l
    बहुत हीं ख़ूबसूरत बात कही आपने … सुन्दर सम्पादकीय l

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  3. क्या सचमुच इसे मेरी मित्र वंदना ने लिखा है !! इतना उत्फुल्लित हूँ मैं इसे पढ़कर और डूब गया हूँ इसमें !!समझ नहीं आता कि क्या कहूँ !अपने-आप में पूर्ण है यह आलेख,यह आत्मा की चीख और ह्रदय की आवाज़ है इन्हीं चीखों से हम खुद के भीतर की यात्रा की ओर चलने की शुरुआत करते हैं, बशर्ते वो चीखें,वो आवाज़ें हमारे भीतर अब भी बची हों और रह-रहकर हमें बेचैन करती हों….. किन्तु इसी बेचैनी में सारा दिन-सारी रात खोये-डूबे हम जैसे कुछ लोग यहीं जीते हैं,जो पता नहीं कि जीते हैं कि मरते हैं,ऐसा लगता है कि मुखौटों में जीना ही हमारी ''स्थिति'' है और मरना हमारी अंतिम नियति,…नियति के पूर्व जिन लोगों ने अपनी स्थिति के अर्थ की व्यर्थता को समझ लिया है, उसी ने मानवता की सेवा में अपने कदम बढ़ाएं हैं…… किन्तु इसके लिए भी सबसे पहले अकेला होना होता है…… हाँ अकेलापन ही समष्टि ओर बढ़ा पहला कदम है और मज़ा यह कि यही एक कदम बढ़ा पाना सबसे कठिन…. और शुरुआत के बाद सफर बहुत आसान है न सिर्फ अपने लिए बल्कि समूची समष्टि के लिए !! और हाँ,यह आलेख जीवन में पढ़े सबसे उत्तम आलेखों में शामिल हो चुका है

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  4. MAINE KAL KUCHH COMMEMT LIKHE THE PAR WO ENGLISH MEN.pATA NAHIN USE KYUN STHAN NAHIN MILA MERA NAMRA NIVEDAN HAI KEE USE AAP MERE TIMELINE PAR POST KAR DEN KYUNKI USE MAIN KAFI MEHNAT SE LIKHA THA.

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  5. Anshu ji mujhe afsos hai ki aap ke mehnat vyarth gayi, parntu blog ki taraf se aisi koi vyvastha nahi hai ki kisi comment ka pralashan n ho. pathkon ki tippadiyan hamare liye mahatvpurn hain .bas bhasha ki shaleenta ka dhyan rakha jaye aap ke comment ka prakashan n hona mahaj takneeki gadbadi ki vajah se ho sakta hai….jiske liye hame khed hai

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