कानपुर निवासी वीरू सोनकर जी आज किसी परिचय के मोहताज़ नहीं है। कम उम्र में ही उन्होंने कविता की गहन समझ का परिचय दिया है। उनकी लेखनी विभिन्न विषयों पर चलती है.………… पर मुख्यत :वो समाज की विसंगतियों व् विद्रूपताओं पर प्रहार करते हैं। …………… मानवीय भावनाओं को वो सूक्ष्मता से पकड़ते हैं.………। उनकी कलम आम आदमी की पीड़ा को बहुत सजीवता से रेखांकित करती है ,कही वो शब्दों के मकड़जाल में न फंस कर समाधान को वरीयता देते हैं। …………. उनकी लम्बी कविता प्रतिशोध सताई गयी लड़कियों के प्रति सहानभूति जागाते हुए भयभीत भी काराती है “सामाज अभी भी सुधर जाओ वो लडकियां वापस आयेगी प्रतिशोध लेने ……… हमारे और आपके घरों में ………….
– तीनो लडकियाँ मरने के बाद,
ऊपर आसमानों पर मिलती है
और वह अब पक्की सहेलियाँ बन गयी है
वह फिर से जन्मना चाहती है
एक साथ—
फिर से किसी इस्लामिक देश में,
लेनिनग्राद वाली लड़की का फैसला है
वह देश इस्लामिक ही होगा !
और वह अब पक्की सहेलियाँ बन गयी है
वह फिर से जन्मना चाहती है
एक साथ—
फिर से किसी इस्लामिक देश में,
लेनिनग्राद वाली लड़की का फैसला है
वह देश इस्लामिक ही होगा !
तीनो लड़कियों के लड़ने का फैसला अटल है
और शायद
जीत जाने का भी—————–
और शायद
जीत जाने का भी—————–
तैयार रहिये !
वह लडकियाँ वापस आ रही है
शायद हमारे और आपके ही घरो में !
वह लडकियाँ वापस आ रही है
शायद हमारे और आपके ही घरो में !
शब्द
मैंने कहा “दर्द”
संसार के सभी किन्नर, सभी शूद्र और वेश्याएँ रो पड़ी !
मैंने शब्द वापस लिया
मैंने कहा “मृत्यु”
सभी बीमार, उम्रकैदी और वृद्ध मेरे पीछे हो लिए !
मैंने शर्मिन्दा हो कर सर झुका लिया
मैंने कहा “मुक्ति”
सभी नकाबपोश औरते, विकलांग और कर्जदार मेरी ओर देखने लगे !
अब मैं ऊपर आसमान में देखता हूँ
और फिर से,
एक शब्द बुदबुदाता हूँ
“वक्त” !
और फिर से,
एक शब्द बुदबुदाता हूँ
“वक्त” !
कडकडाती बिजली से कुछ शब्द मुझ पर गिर पड़े—
“मैं बस यही किसी को नहीं देता !”
“मैं बस यही किसी को नहीं देता !”
मैं अब अपने सभी शब्दों से भाग रहा हूँ
आवाजे पीछे-पीछे दौड़ती है—
अरे कवि,
ओ कवि !
संसार के सबसे बड़े भगोड़े तुम हो !
उम्मीदों से भरे तुम्हारे शब्द झूठे है !
ओ कवि !
संसार के सबसे बड़े भगोड़े तुम हो !
उम्मीदों से भरे तुम्हारे शब्द झूठे है !
मैं अपने कान बंद करता हूँ !
मैं अपने समूचे जीवन संघर्ष के बाद,
सबके लिए बोलना चाहूँगा,
बस एक शब्द—-
“समाधान”
सबके लिए बोलना चाहूँगा,
बस एक शब्द—-
“समाधान”
अब से,
अभी से,
यही मेरी कविताओ की वसीयत है !
अब से,
अभी से,
मेरी कविताये सिर्फ समाधान के लिए लड़ेंगी !
अभी से,
यही मेरी कविताओ की वसीयत है !
अब से,
अभी से,
मेरी कविताये सिर्फ समाधान के लिए लड़ेंगी !
मैंने मेरी कविताओ का वारिस तय किया—
सबको बता दिया जाये……………………………………..
सबको बता दिया जाये……………………………………..
.
२। ………
रेहाना
अपनी इस फ़ासी पर,
रेहाना कतई नहीं रोती है !
वह जागती है
और इंतज़ार करती है——
रेहाना कतई नहीं रोती है !
वह जागती है
और इंतज़ार करती है——
वह अपने माँ-पिता या भाई को नहीं सोचती,
भविष्य के सपने भी नहीं याद करती,
रेहाना अपने अंगूठे से जमीन भी नहीं कुरेदती,
भविष्य के सपने भी नहीं याद करती,
रेहाना अपने अंगूठे से जमीन भी नहीं कुरेदती,
खुद की आजादी के लिए तो वह सोचती तक नहीं—
बहुत ही शांत चेहरे के साथ,
जैसे रेत में घिरी कोई पहाड़ी धुप में चमकती है
जैसे रेत में घिरी कोई पहाड़ी धुप में चमकती है
वैसे ही रेहाना जल्दी में रहती है !
चाहती है उस पर कुछ न लिखा जाये,
वह अपनी फाँसी पर दुनिया के देशो के महासम्मलेन भी नहीं चाहती,
संयुक्त राष्ट्र संघ के विरोध पत्र,
या
नारी मुक्ति की बहस में भी उसको नहीं पड़ना,
रेहाना को किसी से शिकवा नहीं
रेहाना किसी से गुस्सा भी नहीं !
वह अपनी फाँसी पर दुनिया के देशो के महासम्मलेन भी नहीं चाहती,
संयुक्त राष्ट्र संघ के विरोध पत्र,
या
नारी मुक्ति की बहस में भी उसको नहीं पड़ना,
रेहाना को किसी से शिकवा नहीं
रेहाना किसी से गुस्सा भी नहीं !
रेहाना सोचती है !
वह गलत जगह आ गयी थी,
ये दुनिया उसकी गलती ठीक कर रही है !
वह गलत जगह आ गयी थी,
ये दुनिया उसकी गलती ठीक कर रही है !
फ़ासी पर चढ़ती रेहाना !
दुनिया की शुक्रगुजार रहती है
दुनिया की शुक्रगुजार रहती है
और चाँद सितारों के पार देखती है
वही, जहाँ उसे जाना है————————-
३। …………
.सुनी -सुनाई
हम–
एक अंधी गहरी गुफा में,
बढ़ाते है
कुछ सामूहिक कदम !
एक अंधी गहरी गुफा में,
बढ़ाते है
कुछ सामूहिक कदम !
और
लड़खड़ाते है
गिरते है
फिर-फिर सँभलते है—-
लड़खड़ाते है
गिरते है
फिर-फिर सँभलते है—-
और आगे बढ़ते है !
हमने सुन रखा है
आगे !
बहुत आगे जा कर,
जहाँ / गुफा ख़त्म होती है
आगे !
बहुत आगे जा कर,
जहाँ / गुफा ख़त्म होती है
वहाँ रौशनी मिलती है
हमने सुन रखा है______
हमने सुन रखा है______
४। …………।
प्रतिशोध
1—
लेनिनग्राद की पक्की सड़क पर
एक बच्ची
तेज़ी से जाती है
अपने स्कूल की ओर,
वह बिलकुल लेट नहीं होना चाहती
और
वह नहीं जानती
लेनिनग्राद की पक्की सड़क पर
एक बच्ची
तेज़ी से जाती है
अपने स्कूल की ओर,
वह बिलकुल लेट नहीं होना चाहती
और
वह नहीं जानती
isis क्या होता है—
हाँ , उसने मलाला युसुफजई का नाम सुना है
टीचर कहती है
उसे उसके जैसा ही बहादुर बनना है !
टीचर कहती है
उसे उसके जैसा ही बहादुर बनना है !
2—
एक तालिबानी लड़की भी चलती है गॉव की कच्ची सड़क पर,
और उसे कोई जल्दी नहीं
स्कूल पहुचने की,
वह देखती है रोज के रोज
अपनी सोचो में बुनी खुद की एक सहेली,
जो बिलकुल,
उस जैसी दिखती है
वह लड़की रोज स्कूल तक जाती है
झूट मुठ की अपनी सहेली को वहीँ छोड़ आती है
एक तालिबानी लड़की भी चलती है गॉव की कच्ची सड़क पर,
और उसे कोई जल्दी नहीं
स्कूल पहुचने की,
वह देखती है रोज के रोज
अपनी सोचो में बुनी खुद की एक सहेली,
जो बिलकुल,
उस जैसी दिखती है
वह लड़की रोज स्कूल तक जाती है
झूट मुठ की अपनी सहेली को वहीँ छोड़ आती है
लड़की को सपने वाली सहेली के भविष्य की बहुत चिंता होती है—
3—-
एक इराकी-यहूदी लड़की
अब स्कूल नहीं जाती !
एक इराकी-यहूदी लड़की
अब स्कूल नहीं जाती !
वह अब यहूदी भी नहीं रही,
और लड़की भी नहीं रही,
वह 3 बार बिक चुकी है
अपने ही स्कूल के बाहर के औरत-बाजार में,
और लड़की भी नहीं रही,
वह 3 बार बिक चुकी है
अपने ही स्कूल के बाहर के औरत-बाजार में,
लड़की कोशिश करती है हालात समझने की—
बस एक महिना पहले,
जब वह रोज स्कूल जाती थी
अपने पिता के संग,
और स्कूल के गेट पर थमा देती थी अपनी फरमाईशों की लिस्ट
पापा भूलियेगा नहीं !
और पिता कभी नहीं भूलता था
जब वह रोज स्कूल जाती थी
अपने पिता के संग,
और स्कूल के गेट पर थमा देती थी अपनी फरमाईशों की लिस्ट
पापा भूलियेगा नहीं !
और पिता कभी नहीं भूलता था
अब लड़की,
अपने पिता को नहीं भूलती !
अपने पिता को नहीं भूलती !
वह खुद के हर खरीदार में अपना पिता तलाशती है
फिर से किसी स्कूल तक जाने के लिए—
और उसका सपना हर रात तोड़ दिया जाता है !
फिर से किसी स्कूल तक जाने के लिए—
और उसका सपना हर रात तोड़ दिया जाता है !
———————— तीनो लडकियाँ मरने के बाद,
ऊपर आसमानों पर मिलती है
और वह अब पक्की सहेलियाँ बन गयी है
वह फिर से जन्मना चाहती है
एक साथ—
फिर से किसी इस्लामिक देश में,
लेनिनग्राद वाली लड़की का फैसला है
वह देश इस्लामिक ही होगा !
ऊपर आसमानों पर मिलती है
और वह अब पक्की सहेलियाँ बन गयी है
वह फिर से जन्मना चाहती है
एक साथ—
फिर से किसी इस्लामिक देश में,
लेनिनग्राद वाली लड़की का फैसला है
वह देश इस्लामिक ही होगा !
तीनो लड़कियों के लड़ने का फैसला अटल है
और शायद
जीत जाने का भी—————–
और शायद
जीत जाने का भी—————–
तैयार रहिये !
वह लडकियाँ वापस आ रही है
शायद हमारे और आपके ही घरो में !
वह लडकियाँ वापस आ रही है
शायद हमारे और आपके ही घरो में !
५। .
आम आदमी—
आम आदमी सुबह सोचता है,
सोचता है
कि शाम तक
वह जुटा लेगा अगले हफ्ते का राशन,
सोचता है
कि शाम तक
वह जुटा लेगा अगले हफ्ते का राशन,
और अपने बच्चो से कहेगा
मन लगा कर पढो,
और पिछले महीने की फीस उनके हाथ में रख देगा
मन लगा कर पढो,
और पिछले महीने की फीस उनके हाथ में रख देगा
आम आदमी
अपने बच्चो के सामने गर्व से भरा रहना चाहता है
चाहता है कि
इसके बच्चे उसका संघर्ष जान जाये
जान जाये कि
सफलता कितना तरसा कर आती है
अपने बच्चो के सामने गर्व से भरा रहना चाहता है
चाहता है कि
इसके बच्चे उसका संघर्ष जान जाये
जान जाये कि
सफलता कितना तरसा कर आती है
सुबह का योद्धा
आम आदमी,
शाम ढलते-ढलते
अपनी पराजय स्वीकार लेता है
आम आदमी,
शाम ढलते-ढलते
अपनी पराजय स्वीकार लेता है
वह घर जाने से पहले
जाता है शराब की दूकान,
जाता है शराब की दूकान,
वह चाहता है
उसके बच्चे,
उसकी अगली पीढ़ी !
अपनी पिछली पीढ़ी को हारा हुआ न देखे,
उसके बच्चे,
उसकी अगली पीढ़ी !
अपनी पिछली पीढ़ी को हारा हुआ न देखे,
वह रोज शराब के नशे में
अपनी हार की आड़ ढूंढ़ता है
अपनी हार की आड़ ढूंढ़ता है
और–
आम आदमी
ऐसे ही एक दिन
चुपचाप गुजर जाता है
आम आदमी
ऐसे ही एक दिन
चुपचाप गुजर जाता है
शराब की दूकान में भीड़ बनी रहती है
पुरानी पीढ़ी में नयी पीढ़ी
बदस्तूर
बदलती रहती है—-
पुरानी पीढ़ी में नयी पीढ़ी
बदस्तूर
बदलती रहती है—-
खिलाडी बदलने से खेल के नियम नहीं बदलते
खेल वही रहता है
परिणाम भी वही रहता है
खेल वही रहता है
परिणाम भी वही रहता है
बड़े आदमी
आम आदमी का खेल देखते है
और हर हार पर
हर परिणाम पर
एक दर्द भरी “आह” के बाद
वापस अपने अपने काम में लग जाते है
आम आदमी का खेल देखते है
और हर हार पर
हर परिणाम पर
एक दर्द भरी “आह” के बाद
वापस अपने अपने काम में लग जाते है
और—-
आम आदमी जान जाता है
खेल के नियमो से भी निर्मम बड़े आदमी की “आह” होती है…………………………
आम आदमी जान जाता है
खेल के नियमो से भी निर्मम बड़े आदमी की “आह” होती है…………………………
६। …………।
डरी हुई लड़की
.
डरी हुई लड़की
अपनी हर बात पर
सहम सहम कर
धीमी आवाज़ में बोल कर
मुझे अपना मुरीद बना लेती हैं
शायद
अगर वो निकलती बेहद तेज़ तर्रार
और मुझसे भी चालाक
तो मैं उससे दुरी बना लेता
क्युकी
तेज़ लड़की
मेरे मर्द होने
मेरे चतुर होने की
मुझमे व्याप्त अनादी काल की भावना का
कतई पोषण नहीं करती,
अपनी हर बात पर
सहम सहम कर
धीमी आवाज़ में बोल कर
मुझे अपना मुरीद बना लेती हैं
शायद
अगर वो निकलती बेहद तेज़ तर्रार
और मुझसे भी चालाक
तो मैं उससे दुरी बना लेता
क्युकी
तेज़ लड़की
मेरे मर्द होने
मेरे चतुर होने की
मुझमे व्याप्त अनादी काल की भावना का
कतई पोषण नहीं करती,
इस लिए तेज़ लड़की
मेरी पसंद नहीं
मेरी पसंद हैं डरी हुई लड़की…….
मेरी पसंद नहीं
मेरी पसंद हैं डरी हुई लड़की…….
संछिप्त परिचय—–
नाम– वीरू सोनकर
पिता– स्वर्गीय श्री किशन सोनकर,
माता– मुकन्दर देवी,
पिता– स्वर्गीय श्री किशन सोनकर,
माता– मुकन्दर देवी,
जन्म– 9 जून 1977,
शिक्षा– क्राइस्ट चर्च कॉलेज कानपूर से स्नातक, डी ए वी कॉलेज से बीएड,
संपर्क सूत्र—veeru_sonker@yahoo.com,
78/296, क्वार्टर नॉ 2/17, लाटूश रोड , अनवर गंज कालोनी , कानपूर नगर, उत्तर प्रदेश,
आपको ” वीरू सोनकर की कवितायें “