प्रेम मानव मन का सबसे खूबसूरत अहसास है प्रेम एक बहुत ही व्यापक शब्द है इसमें न जाने कितने भाव तिरोहित होते हैं ये शब्द जितना साधारण लगता है उतना है नहीं इसको समझ पाना और शब्दों में उतार पाना आसान नहीं है फिर भी यही वो मदुधुर अहसास है जो जीवन सही को अर्थ देता है, आज हम अटूट बंधन पर राधा क्षत्रिय जी प्रेम विषय पर लिखी हुई कवितायेँ पढ़ेंगे
फ़र्क
मोहब्बत ओर इबादत में,
फ़र्क बस इतना जाना है!
मोहब्बत में खुद को खोकर
चाहत को पाना है,
इबादत में खुद
को खोकर,
पार उतर जाना
है!
मोहब्बत ओर इबादत में,
फ़र्क बस इतना जाना है!
मोहब्बत में खुद को खोकर
चाहत को पाना है,
इबादत में खुद
को खोकर,
पार उतर जाना
है!
तन्हाईयाँ
तुमसे मिलने के बाद,
तन्हाईयों से,
प्यार हो गया हमें—-
जहाँ सिवा तुम्हारे,
और मेरे ,कोई नहीं आता——
तुमसे मिलने के बाद,
तन्हाईयों से,
प्यार हो गया हमें—-
जहाँ सिवा तुम्हारे,
और मेरे ,कोई नहीं आता——
बूँदों का संगीत
बारिश का तो, बहाना है,
तुम्हारे ओर करीब ,
आना है!
रिम-झिम गिरती,
बूंदों का,
संगीत बडा, सुहाना है!
तुम साथ, हो मेरे,
मुझे अंर्तमन तक,
भीग जाना है !
बारिश का तो, बहाना है,
तुम्हारे ओर करीब ,
आना है!
रिम-झिम गिरती,
बूंदों का,
संगीत बडा, सुहाना है!
तुम साथ, हो मेरे,
मुझे अंर्तमन तक,
भीग जाना है !
ख्वाब
सारी रात वो मुझको
ख्वावों में बुना
करता है
और हर सुबह एक
नयी ग़जल लिखा
करता है
ख्वावों में बुना
करता है
और हर सुबह एक
नयी ग़जल लिखा
करता है
“निगाहें”
जब पहली बार उनसे
निगाहें मिलीं पता
निगाहें मिलीं पता
नहीं क्या हुआ
हमने शरमा कर पलकें
झुका ली
जब हमने पलकें
उठाई
तो वो एकटक हमें
ही
देखे जा रहे थे
और जब निगाहें
निगाहों से मिली
हम अपना दिल
हार गये
पता नहीं क्या
जादू कर
दिया था उन्होने
हम पर
हमें तो पूरी दुनीयाँ
बदली-बदली नजर
आने लगी
फ़िर महसूस हुआ
बिना उनके प्यार
के जिदंगी कितनी
अधूरी थी…
झुका ली
जब हमने पलकें
उठाई
तो वो एकटक हमें
ही
देखे जा रहे थे
और जब निगाहें
निगाहों से मिली
हम अपना दिल
हार गये
पता नहीं क्या
जादू कर
दिया था उन्होने
हम पर
हमें तो पूरी दुनीयाँ
बदली-बदली नजर
आने लगी
फ़िर महसूस हुआ
बिना उनके प्यार
के जिदंगी कितनी
अधूरी थी…
” दिल”
जब तन्हाँ बैठे तो तुम्हारा
ख्याल आया और दिल आया
हमारी नजरों की ओस
से भीगी यादें
दर -परत-दर
खुलती
चली गई
और दिल भर आया
जो अफ़साने अंजाम
तक न पहूँचें और
दिल में
दफ़न हो गये
जेहन में दस्तक
दे उठे
वो एहसास फ़िर
मचल उठे
और दिल भर आया
बहुत कोशिश की
दिल के बंद
दरवाजे न खोलें
पर नाकाम रहे
जो वादा तुमसे
किया था
वो टूट गया
और दिल भर
आया—
जब तन्हाँ बैठे तो तुम्हारा
ख्याल आया और दिल आया
हमारी नजरों की ओस
से भीगी यादें
दर -परत-दर
खुलती
चली गई
और दिल भर आया
जो अफ़साने अंजाम
तक न पहूँचें और
दिल में
दफ़न हो गये
जेहन में दस्तक
दे उठे
वो एहसास फ़िर
मचल उठे
और दिल भर आया
बहुत कोशिश की
दिल के बंद
दरवाजे न खोलें
पर नाकाम रहे
जो वादा तुमसे
किया था
वो टूट गया
और दिल भर
आया—
हमसफ़र
तुम हमसफर क्या बने
जहाँ भर की खुशियाँ
हमार नसीब बन गयीं
जिदंगी फूलों की
खुशबू की तरह
हसीन ,साज पर छिड़े
संगीत की तरह
सुरीली
तितलीयों के
पंखों
जितनी रंगीन बन
गई
उस पर तुम्हारी
बेपनाह
मोहब्बत हमारा
नसीब
बन गई.
रात एक हसीन
ख्बाब
की तरह चाँद
तारों से
सज गई.
हवाओं में
तुम्हारे प्यार
की खुशबू बिखर
गई
हम पर तुम्हारी
मोहब्बत का नशा
इस कदर छा गया
हमने खुदा को भी
भुला दिया
और तुम्हें अपना
खुदा
बना लिया
तुम्हारी चाहत
ही
हमारी इबादत
बन गई—
जहाँ भर की खुशियाँ
हमार नसीब बन गयीं
जिदंगी फूलों की
खुशबू की तरह
हसीन ,साज पर छिड़े
संगीत की तरह
सुरीली
तितलीयों के
पंखों
जितनी रंगीन बन
गई
उस पर तुम्हारी
बेपनाह
मोहब्बत हमारा
नसीब
बन गई.
रात एक हसीन
ख्बाब
की तरह चाँद
तारों से
सज गई.
हवाओं में
तुम्हारे प्यार
की खुशबू बिखर
गई
हम पर तुम्हारी
मोहब्बत का नशा
इस कदर छा गया
हमने खुदा को भी
भुला दिया
और तुम्हें अपना
खुदा
बना लिया
तुम्हारी चाहत
ही
हमारी इबादत
बन गई—
रिश्ते
प्यार और रिश्तों का तो,
जन्म से ही साथ होता है !
वक्त की आँच पर तपकर,
ये सोने की तरह निखर उठता है!
पर कुछ रिश्ते ,
सब से जुदा होते हैं !
इन्हें किसी संबधों में,
परिभाषित नहीं किया जा सकता !
इनका संबध तो सीधा ,
अंर्तमन से होता है !
ये तो मन की डोर से ,
बँधे होते हैं !
अपनेपन का एहसास इनमें,
फूलों सी ताजगी भर देता है !
ऊपर वाले से माँगी हुई,
हर दुआ जैसे,
जो हौंसलों का दामन ,
हमेशा थामके रखते हैं !
और उनकी माँगी हुई दुआओं पर,
खुदा भी नज़रे -इनायत करता है !
और मांझी विपरीत बहाव में भी,
नाव चलाने का साहस कर लेता है !
जन्म से ही साथ होता है !
वक्त की आँच पर तपकर,
ये सोने की तरह निखर उठता है!
पर कुछ रिश्ते ,
सब से जुदा होते हैं !
इन्हें किसी संबधों में,
परिभाषित नहीं किया जा सकता !
इनका संबध तो सीधा ,
अंर्तमन से होता है !
ये तो मन की डोर से ,
बँधे होते हैं !
अपनेपन का एहसास इनमें,
फूलों सी ताजगी भर देता है !
ऊपर वाले से माँगी हुई,
हर दुआ जैसे,
जो हौंसलों का दामन ,
हमेशा थामके रखते हैं !
और उनकी माँगी हुई दुआओं पर,
खुदा भी नज़रे -इनायत करता है !
और मांझी विपरीत बहाव में भी,
नाव चलाने का साहस कर लेता है !
प्यार के पंख
मेरी ख्वाईशें क्यों ,
इस कदर
मचल रही हैं!
जैसे कोई
बरसाती नदिया!
जो तोड़
अपने तटों को,
तीव्र गति से,
बहना,
चाहती हो!
हृदय सरिता ,
प्यार की बर्षा
से
तट तक ,
भर गयी है!
सरिता का जल,
रोशनी से
झिलमिल
और हवा से
छ्प-छप
कर रहा है!
अरमानों को पंख,
लग गये हैं!
मन पूरा अंबर ,
बाँहों मैं,
लेने को आतुर
है!
दिल की धड़कनें,
बेकाबू हो,
मचल रही हैं!
लगता है मेरी,
ख्वाईशों मैं,
तुम्हारे प्यार
के
पंख लग गये हैं!
…
इस कदर
मचल रही हैं!
जैसे कोई
बरसाती नदिया!
जो तोड़
अपने तटों को,
तीव्र गति से,
बहना,
चाहती हो!
हृदय सरिता ,
प्यार की बर्षा
से
तट तक ,
भर गयी है!
सरिता का जल,
रोशनी से
झिलमिल
और हवा से
छ्प-छप
कर रहा है!
अरमानों को पंख,
लग गये हैं!
मन पूरा अंबर ,
बाँहों मैं,
लेने को आतुर
है!
दिल की धड़कनें,
बेकाबू हो,
मचल रही हैं!
लगता है मेरी,
ख्वाईशों मैं,
तुम्हारे प्यार
के
पंख लग गये हैं!
…
भूल
हमने उनको इस कदर
टूटकर चाहा कि खुद
को ही भूल गये
अगर हमें पता होता
किसी को चाहना
हमें हमसे जुदा
कर देगा
तो हम भूल से भी
ये
भूल न करते
पर जब भूल
से ये भूल हो
गयी तो
इस भूल की सजा
भी
हमको ही मिली
अब तो ये आलम हे
कि आईने में भी
अपनी पहचान
भूल गये
बस उनकी ही सूरत
हमारी आँखों में
है
और हम उनकी
आँखों में खो
गये
सर्वप्रथमप्रकाशित रचना..रिश्तों की डोर (चलते-चलते) ।
स्त्री, धूप का टुकडा , दैनिक जनपथ हरियाणा ।
..प्रेम -पत्र.-दैनिक अवध
लखनऊ । “माँ” – साहित्य समीर दस्तक वार्षिकांक।
जन संवेदना पत्रिका हैवानियत का खेल,आशियाना,
करुनावती साहित्य धारा ,में प्रकाशित कविता – नया सबेरा.
मेघ तुम कब आओगे,इंतजार. तीसरी जंग,साप्ताहिक ।
१५ जून से नवसंचार समाचार .कॉम. में नियमित ।
“आगमन साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समूह ” भोपाल के तत्वावधान में साहित्यिक चर्चा कार्यक्रम में कविता पाठ ” नज़रों की ओस,” “एक नारी की सीमा रेखा”
आगमन बार्षिकांक काव्य शाला में कविता प्रकाशित..
आपको “राधा क्षत्रिय की कवितायेँ “ कैसे लगी | अपनी राय अवश्य
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