मेरा तो मानना है
कि हर विवाह ही बेमेल विवाह होता है,क्योंकि कोई भी दो व्यक्ति एक सी सोच, एक सी विचारधारा, एक सी धार्मिक
आस्था, एक से रहन सहन, एक से मिज़ाज, रूपरंग मे समकक्ष, आर्थिक स्थिति मे
भी समान, शिक्षा मे भी
समान हों, मिल पाना लगभग असंभव ही है।जीवन साथी मिलना कपड़े सिलवाने जैसा तो
नहीं होता कि अपना नाप दिया, अपना डिज़़ाइन चुना, पसन्द का कपड़ा ख़रीदा और किसी अच्छे दर्ज़ी से
सिलवा लिया।
दर्पण होता है, बेमेल विवाह किसी न किसी कारण से हमेशा होते
रहे हैं, इसीलियें देवदास की पारो का विवाह उसकी मां ने ज़िद और जल्दबाज़ी मे बूढे अमीर
आदमी से करवा दिया, क्योंकि देवदास के घर मे उनका अपमान हुआ था।
प्रेमचन्द की निर्मला दहेज के अभाव मे बूढ़े से ब्याह दी गई।दोनो नायिकाओं के जीवन
की त्रासदी का कारण बेमेल विवाह ही थे।मै इनकी कहानी मे उलझकर विषय से न भटक जाऊं इसलियें वापिस अपने मुद्दे पर
आती हूँ।
थोड़ी सी समझदारी से निभाएं जा सकते हैं रिश्ते
सामंजस्य बनाना ज़रूरी होता है,पहले इसकी उम्मीद केवल लड़कियों से की जाती थी कि वो ससुराल
के माहौल मे ख़ुद को ढ़ाल लेंगी। यह भी कहा जाता था
कि लड़कियों की परवरिश ऐसी होनी चाहिये कि वो पानी की तरह हों, जो रंग मिलादो
वैसी ही बन जायें, जिस बर्तन मे रख दो वही आकार ले लें।एक तरह से लड़की की
पहचान को ही नकार दिया जाता था, पर अब ऐसा
बिलकुल नहीं है , लड़कों को भी विवाह को सफल बनाने के लियें बहुत सामंजस्य बनाना पड़ता है। ये
सामंजस्य केवल पति पत्नि के बीच ही
नहीं दोनो परिवारों के बीच बनाना भी ज़रूरी
है।आदर्श स्थिति तो वह होगी जहाँ पति पत्नि एक दूसरे पर हावी हुए बिना, एक साथ सामंजस्य बनाकर रहें। ऐसा करने से उनका प्रेम समय और उम्र के साथ बढता
है, फिर चाहें वो कितने ही
बेमल क्यों न हों!
अर्थ है कि जहाँ पति पत्नि एक दूसरे से बहुत अलग हों। इन अंतरों का आधार लंबाई, मोटा या पतला
होना, रंगरूप,शिक्षा,आयु, धार्मिक आस्था,परिवारों की आर्थिक स्थिति, विचारधारा, शौक,मिज़ाज शहरी या ग्रामीण परवरिश अथवा कुछ और भी
हो सकता है। माता पिता अपने बच्चों का रिश्ता बच्चों के
अनुरूप पात्र से ही करना चाहते हैं।बेटी का रिश्ता जिस परिवार मे हो वो उनसे बहतर
आर्थिक स्थिति मे हो या कम से कम बराबरी का हो, लड़का लड़की से उम्र मे बड़ा हो, उससे अधिक शिक्षित हो और ज़्यादा कमाता हो। रूपरंग मे लड़का
लड़की उन्नीस हो सकता है, पर बहुत कम नहीं होना
चाहिये।लड़के के माता पिता को गोरी,सुन्दर सुशील कन्या
चाहिये जो आदर्श बहू और पत्नी तो हो ही पर नौकरी पेशा पढ़ी लिखी भी हो।दहेज़ भी
एक मुख्य मुद्दा हो सकता है।
जब हो आयु में अंतर
पाता, उम्र बढ़ती हुई देखते हैं, तो अक्सर बेमेल विवाह हो जाते हैं। कभी लड़का
लड़की से 10-15 वर्ष बड़ा मिल जाता है, कभी लड़की दो चार साल बड़ी हो सकती है, कभी लड़का लम्बा और लड़की छोटी, कभी लड़की बहुत गोरी और
लड़का बहुत काला, कभी लड़की बहुत कम पढ़ी, कभी पढ़ी लिखी लड़की और कम
पढ़ा व्यवसायी लड़का परिणय सूत्र मे बंध जाते हैं।प्रेम विवाह मे भी बहुत सारे
बेमेल लगने वाले जोड़े बंधते हुए देखे जा सकते हैं।ये
बेमेल से लगने वाले रिश्ते मे बंधे दम्पति बहुत सफल जीवन बिता सकते हैं, बहुत ख़ुश रह
सकते हैं, यदि दोनो तरफ़ से
रिश्ते को ईमानदारी से निभाने की इच्छा हो।यदि अहम् रिश्ते के बीच मे आजाये तो जो
रिश्ता बेजोड़ और श्रेष्ठ दिखता है, उसे भी निभाना कठिन हो सकता है।
आम आधार हैं,उनमे आयु मे अंतर बहुत महत्वपूर्ण है। वैवाहिक
बंधन मे बंधने के लियें लड़का लड़की से 2-5 साल बड़ा हो, सही माना जाता है, माता पिता ऐसा ही
रिश्ता खोजने की कोशिश करते हैं। यदि लड़का लड़की से बहुत साल बड़ा हो या
लड़की लड़के से कुछ साल से बड़ी हो
तो उसे बेमेल विवाह कह दिया जाता है।उम्र के अंतर की वजह से केवल विवाह असफल नहीं
हो सकता। यदि लड़की 20, 21 साल की हो और लड़का 35 के आस पास तो भी वे सफल वैवाहिक जीवन जी सकते
हैं।परिपक्व व्यक्ति के साथ पत्नी अधिक सुरक्षित महसूस कर सकती है। पति को भी कम
उम्र दिखाने के लियें अपनी वेशभूषा मे बदलाव करना, या हाव भाव मे बदलाव करना ज़रूरी नहीं है।पत्नी
को भी व्यवाहार मे अस्वाभाविकता लाने की ज़रूरत नहीं है।आजकल 30 ,32 साल की महिलायें
भी अपने सलीके से, अपनी आयु से कम
लगती हैं। वैसे भी बढ़ती आयु के साथ उम्र का अंतर कम महसूस होने लगता है।
यदि लड़की आयु मे
साल दो साल बड़ी हो तो कोई फ़र्क नहीं पड़ता, परन्तु अंतर यदि ज्यादा हो तो कुछ सावधानियां बरतनी चाहिये, पत्नी को अपने
शारीरिक सौंदर्य को बनाये रखने के लियें कुछ महनत करनी चाहिये।पति पर अधिकार जमाने
की कोशिश नहीं करनी चाहिये, उनकी उम्र कम है वो अपरिपक्व हैं, यह नहीं जताना चाहिये। पति को भी पत्नी की बड़ी उम्र का
अहसास नहीं करवाना चाहिये। जीवन सहजता के साथ जीना चाहिये। आम तौर पर आयु के बड़े
अंतर या तो प्रेम विवाह मे होते हैं या माता पिता किसी मजबूरी मे ऐसा रिश्ता करते
हैं।उम्र के बड़े अंतर के बावजूद पति पत्नी आपस मे ताल मेल बिठा कर सुखी जीवन जी
सकते हैं।
जब हो आर्थिक स्थिति में अंतर
आर्थिक स्थिति मे बहुत अंतर हो तब भी उसे बेमेल विवाह कहा जा सकता है।आम तौर पर
मातापिता आर्थिक रूप से समकक्ष परिवार मे ही रिश्ता ढूंढते है, मगर कभी किसी कारणवश असमान आर्थिक स्थिति के
परिवारो मे रिश्ता हो जाये, तो दोनो पक्षों
को बड़ी सावधानी बरतनी चाहिये। लड़की का मायका संपन्न हो और ससुराल उतनी संपन्न न
हो तो कभी कभी उनके आत्म सम्मान को चोट अंजाने मे पंहुच जाती है, जब मायके वाले बेटी की ज़रूरतों को ध्यान मे
रखकर ज़्यादा उपहार भेजने लगते हैं।
परिवार की आर्थिक स्थिति कमज़ोर हो तो उसे हर मौक़े पर अच्छे मंहगे उपहार न मिल
सकने के लियें ताने सुनने को मिल सकते हैं। थोड़ी परिपक्वता और समझदारी से इन
समस्याओं से निबटा जा सकता है।
परिवारों की आर्थिक स्थिति मे अंतर होता है, तब घरवाले आपत्ति उठा सकते हैं।दो वयस्क स्वावलम्बी
व्यक्ति यदि विवाह करना चाहते हैं, तो उसमे बाधा
डालने का हक़ किसी को नहीं होता, परन्तु आर्थिक
स्तर मे अंतर होने के कारण जीवन मे सामंजस्य स्थापित करने मे जो परेशानियां आने की
संभावना हो सकती है, उससे आगाह ज़रूर
कर देना चाहिये।
जब हो रूप आकार में अंतर
अंतर हो तब भी कहने वाले कह देते हैं
कि क्या बेमेल जोड़ी है! प्रेमविवाह हो
या माता पिता ने तय किया हो शारीरिक सौंदर्य शादी के आरंभिक दिनो मे महत्वपूर्ण हो
सकता है पर धीरे धीरे एक दूसरे गुण दोषों को अपनाकर दो लोग सुखी जीवन बिता सकते
हैं। दूसरों की कही सुनी बातों को नज़र अंदाज़ करना ही
अच्छा है। रूपरंग को लेकर पतिपत्नी मे से किसी मे भी कोई हीन भावना नहीं पनपने
देनी चाहिये।
जब हो शिक्षा में अंतर
एक अधिक शिक्षित हो दूसरा कम पढ़ालिखा तो भी कह दिया जाता है बड़ा बेमेल विवाह है।
कोई व्यावसायी व्यक्ति कितना भी कमा लेता हो पर विवाह के समय उसकी शिक्षा पूछी ही
जाती है। शिक्षा केवल विश्वविद्यालय की डिग्रियों से ही नहीं मिलती जीवन के अनुभव, व्यवसाय के अनुभव
भी बहुत महत्वपूर्ण होते है।शादी से पहले ये सारी बातें मालुम होती हैं कि कौन
कितना पढ़ालिखा है, कितना कमा रहा है इसलिये शिक्षा किसी मनमुटाव का कारण नहीं
होनी चाहिये। जीवनसाथी मे इसको लेकर कोई हीन भावना न पनपे इसका ध्यान रखना
ज़रूरी है।यदि दोनो मे से कोई कम पढ़ा लिखा हो तो उसे शिक्षित होने का अवसर दिया
जाना चाहिये।शिक्षा से केवल व्यवसाय या नौकरी ही नहीं मिलती, आत्मविश्वास बढ़ता है, जिससे व्यक्तित्व मे निखार भी आता है।
जब हो धर्म में अंतर
माननेवालों की आस्था, संस्कार, विचार, और रीति रिवाजों मे बहुत अन्तर हो सकता है। किसी परिवार मे
पूजापाठ हवन कीर्तन रोज की बात हो और
किसी परिवार मे ख़ास त्योहारों पर ही पूजा होती हो। कोई मूर्ति पूजक होता है तो किसी ने कोई
गुरु ढूंढ रखा होता है । कोई मंदिरों मे भ्रमण करते रहते हो, कोई शायद ही कभी मंदिर की सीढियाँ चढता हो।
ऐसे दो परिवारों के लोग भी जब वैवाहिक सूत्र मे बंध जाते हैं तो एक तरह का बेमेल
विवाह ही होता है। ऐसी स्थिति मे जीवनसाथी पर कोई दबाव नहीं बनाना चाहिये, धीरे धीरे दोनो मे बदलाव आजाता है, और जीवन मे सामंजस्य
स्थापित हो जाता है।हां एक बात महत्वपूर्ण यदि जीवन साथी की धार्मिक गतिविधियां
जुनून बनने लगें तो इसे भक्ति न समझे ये एक मनोरोग की शुरुआत हो सकती है।
जब हो स्वाभाव में अंतर
बंधे लोग बहुत अलग अलग स्वभाव के हो सकते हैं कोई अंतर्मुखी हो तो दूसरा बहिर्मुखी
हो, किसी की दिलचस्पी
संगीत मे हो तो किसी की खेल कूद मे पर ये विवाह इतने बेमेल नहीं होते ज़रा सा लचीलापन व्यक्तित्व मे डालिये एक दूसरे के शौक पनपने
दीजिये, उसमे ख़ुद रुचि
लेना शुरू करिये तो ये अंतर अंतर नहीं रह जायेंगे जीवन को पूर्ण होने का अहसास
दिलायेगे।
और अस्तित्व बनाये रखकर बहुत ज़रूरी होता है, यदि यह नहीं हो सका तो विवाह बेमेल ही
रहता है। compatibility एक दूसरे पर हावी होना नहीं होता। इस संदर्भ मे मै कुछ केस स्टडी दे रही हूँ।
घटनायें सच्ची हैं केवल नाम बदल दिये हैं।
आइये समझे समझदारी से रिश्ते निभाना
अविनाश की आयु उस समय 28 साल की थी। लड़की गोरी और सुन्दर थी और लड़का स्मार्ट! लड़की लड़का और परिवार एक बार मिले, सारी बातें पहले ही पता थी ,रिश्ता तय हो गया।माता पिता कुछ महीनो मे सगाई और फिर शादी
की सोच रहे थे।लड़के और लड़की की नौकरी अलग अलग शहरों मे थी , इसलियें मिलना जुलना तो एक ही बार हुआ पर फोन और मेल पर
संपर्क बना रहा। एक महीने बाद लड़के ने शादी करने से मना कर दिया। लड़के ने कहा कि
रेखा बहुत घरेलू किस्म की है,जबकि वह देर रात तक पार्टियों मे रहता है। पार्टी मे शराब
तो पी ही जाती है, रेखा के लियें उसके साथ
रहना मुश्किल होगा, फिर भी रिश्ता तोड़ते समय
दोनो को माता पिता को विश्वास मे लेकर फ़ैसला लेना चाहिये था।
अविनाश की जीवन शैली ढर्रे पर आ जाती, शादी को निभाने के लियें दोनो प्रयत्न करते। रेखा को भी
आधुनिक लिबास पहनना अच्छा लगने लगता।यह भी हो सकता है कि दोनो अपनी जीवन शैली न
बदलते और कुंठित रहते, ऐसे मे यह विवाह बेमेल
विवाह ही होता।
उनकी रज़ामन्दी से तय किया। दोनो इंजीनियर थे और एक बहुराष्टरीय कम्पनी मे काम कर
रहेथे। क़द काठी मे भी दोनो समकक्ष, परिवारों की आर्थिक स्थिति थी बराबर की थी। देखनेवालों ने
कहा क्या जोड़ी है। सगाई भी हो गई, दोनो मिलने जुलने लगे, पर नम्रता जितनी बार रितेश से मिली परेशान हुई, दुखी हुई। रितेश ने सगाई के बाद ही उसपर हुकुम चलाना शुरू
कर दिया, ये करना, ये नहीं करना, नम्रता को लगा ये ये बौस बननने की कोशिश कर रहा है और रिश्ता तोड़ दिया।
उसके दोस्तों ने उसे चढ़ा दिया हो कि शुरू से ही रौब रखना नहीं तो पत्नी सर पर
सवार हो जायेगी। जब शादी परिवारों ने तय की
हो तो उसके तोड़ने का फ़ैसला भी परिवार मिलकर तय करें तो बहतर होता है।
दोनो कम्प्यूटर इंजीनियर आयु क्रमशः 25 और 28 साल। दोनो के माता पिता ने रिश्ता तय करने से पहले सोचा कि
लडके लड़की की कुछ मुलाक़ाते करवा देनी चाहिये, तब निर्णय लेना चाहिये। परिवारों ने मन मे सोच रखा था कि
बच्चों के न कहने का कोई कारण हो नही सकता।दोनो ने चार पाँच मुलाक़ातों के बाद
घरवालों को बता दिया कि वो ये शादी नहीं कर सकते क्योंकि दोनो के बीच कोई compatibility है ही नहीं। व्यक्तिगत तौर पर उन्होने किसी मे
कोई कमी या बुराई नहीं देखी।
नहीं पैदा हुआ तो, शादी के लियें न कह कर दोनो ने ठीक ही किया।
लिये ये बहुत
महत्वपूर्ण है। compatibility कोई पैदाइशी गुण भी नहीं है, यदि दोनो लोग
कोशिश करें तो इसे विकसित किया जा सकता है। compatibility का मुद्दा प्रेम विवाह मे भी कम महत्वपूर्ण
नहीं होता क्योंकि कई वर्षो की जान पहचान के बाद भी व्यक्तित्व के कुछ गुण दोष
शादी के बाद, एक साथ रहने पर मालुम पड़ते हैं।
अंत मे
निष्कर्ष यही निकलता है कि बेमेल विवाह मे
यदि प्रेम और compatibility पनप जाती है तो वह विवाह
सफल होता है पर सभी बातों मे मेल मिलाने के बावजूद दोनो मे कोई
compatibility नही विकसित
होती उनका विवाहित जीवन सुखी नहीं होता और
सही अर्थ मे बेमेल विवाह ही रहता है।
एसे होते थे जहाँ पति पत्नी पूरी ज़िन्दगी साथ बिता देते थे पर उनमे कभी कोई प्रेम
या compatibility नहीं पैदा होती
थी। बच्चों और समाज की वजह से रिश्ते को बोझ की तरह निभाते थे।आज यदि सामंजस्य
पैदा करने की सभी कोशिशे बेकार हो जाये
तो रिश्ते से बाहर निकल जाना बहतर विकल्प माना जाता है।
रिश्तों का साथ निभाते हुए बनें अध्यात्मिक
कैसे रिश्तों में डालें नयी जान
आपको आपको लेख ” थोड़ी सी समझदारी से निभाएं जा सकते हैं रिश्ते“ कैसा लगा | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |