चार बेटों की माँ
राधिका जी से सब पडोसने ईर्ष्या करती थीं । उनके चार बेटे जो थे । और राधिका जी … उनके तो पांव जमीन पर नहीं पड़ते थे । हर बेटा माँ को खुश करने की कोशिश करता … ताकि माँ का ज्यादा से ज्यादा प्यार उसे मिल सके । जब राधिका जी सोने चलतीं …. हर लड़का उनसे कहता … माँ मेरी तरफ मुंह करो … मेरी तरफ ..।
राधिका जी अक्सर पड़ोसन कांता पर दया करतीं, जिसके एक ही बेटा था । उन्हें लगता बेचारी बुढ़ापे में घर की रौनक को कितना तरसेगी । कहीं और जाना चाहे तो कहाँ जाएगी, एक ही खूंटी में बंधी रहेगी ।और उनके चारों बेटे इसी तरह उन्हें सर -आँखों पर बिठा कर रखेंगे ।
देखते – देखते चारों बेटे बड़े हो गए । सब अपने परिवारो के साथ अलग रहने लगे । एक दिन कांता और राधिका जी मंदिर में मिल गयीं ।
राधिका जी का गला भर आया ‘ क्या बताऊँ … चार बेटे थे, बड़ा घमंड था, चारों के पास आया जाया करुँगी बुढ़ापा आराम से कट जायेगा । पर बेटे तो मुझसे चतुर निकले । तीन – तीन महीने का समय बाँट दिया है सबके पास रहने के लिए । फुटबॉल की तरह यहाँ से वहां नाचती रहती हूँ ।
हर बेटे – बहू का प्रयास रहता है की मुझे उनके घर में ज्यादा अच्छा ना लगे क्योंकि अगर अच्छा लग गया तो कहीं वहीँ ना टिक जाऊं । ऊपर से जब बीमार पड़ती हूँ … तो दवाई के पैसों के लिए चारों झगड़ते हैं कि मैं अकेला क्यों भरूँ । बहुएँ तो सब जगह यही गाती रहती हैं हमारी अम्मा तो घुमंतू हैं , उन्हें एक जगह बंध कर रहना पसंद नहीं । अब किस किस को समझाती फिरूं पुराने लोग व्यर्थ में ही औरत की तुलना गाय से नहीं करते थे । उसे तो खूंटे में बंध कर रहना ही पसंद होता है ‘।
और तुम कैसी हो ? राधिका जी ने अपने पल्लू से अपने आंसू पोंछते हुए कांता जी से पूंछा ।
मेरा क्या है … एक ही बेटा है,उसी के पास रहना है । …जाना कहाँ है ? पर बेटा बहू बहुत ध्यान रखते हैं । ईश्वर की कृपा है । सब ठीक चल रहा है ।
राधिका जी सोंचने लगीं …. की वो कितना गलत सोचती थी की वो कितनी भाग्यशाली हैं उनके चार बेटे हैं तो उनका बुढापा आराम से कटेगा। काश ! उन्होंने घमंड करने से पहले समझा होता एक हो या चार इससे कोई फर्क नहीं पड़ता ,बेटा लायक होना चाहिए ।
बात एक / दो / चार की नहीं लायक होने की है ! बेटा हो या बेटी!
परिवार बढाते रहने वालों के लिये अच्छा संदेश है कहानी में!
bahut sundar aur marmik bhi ….