“एक दिन पिता के नाम “….कुछ भूली बिसरी यादें (संस्मरण -अशोक के.परुथी

लेखक



त्वदीयवस्तुयोगींद्रतुम्यमेवसम्पर्य

              धर्मप्रेमी, नियमनिष्ठ, साहित्यरसिक!”
पिता-दिवस सभी को मुबारक। वह
सभी लोग खुशनसीब हैं जिनके सिर पर उनके पिता का साया है और उन्हें उनका आशीर्वाद
प्राप्त है!
पिता का वर्ष में सिर्फ एक ही दिन क्यूँ
, बल्कि 
हर दिन आदर और सत्कार होना चाहिये।

        
व्याखान की सामग्री के रूप में श्लोकों, दोहों, टोटकों, व्यंग्य, कथाकहानियोंआदिको संग्रह करने की रूचि मुझे प्रारम्भ से ही रही है।  इसका सारे का सारा श्रेय मेरे पूज्य पिताजी को जाता है, उन्होने जो ज्ञानदान मुझे दियावह जीवन में मेरे लिए अविस्मरणीयऔरअमूल्यहै।



कुछ भूली बिसरी यादें 



     
मुझे ही नही बल्कि परिवार के न्य सदस्यों के कणकण में भी उन का यह उपकार छिपा हैपिताजी के स्नेह तथा वात्सल्य से लाभान्वित होकर ही मैं लेखन की दिशा मेंअग्रसर हो सका हूँ!
पिताजी असूलोंकेबड़ेपाबंदथे, एक ईमानदारऔरमेहनतीइंसानथे।उन्होने  हमारी माताजी, जो पेशे से एक अध्यापिका थी, के सहयोग से हम पाँचभाई बहिनो का अपनी हैसियत से बढ़कर लालनपालनकिया

। उन्होने हमें एक सफल जीवन जीने के लिये जो मूलमंत्र दिये उनको अपना कर ही हम इस मुकाम तक पहुंचे हैं जहांआज हम सब हैं
          पिताजी कुटुम्भप्रेमी, सत्यप्रिय, और बड़े उदार प्रतिभा वाले व्यक्ति थे।  एक बात तो मैं आज भी बड़े गर्व के साथ जो उनके बारे में कह सकता हूँ वह यह है कि वे रिश्वत लेनेऔर देने वाले दोनों के ही दुश्मन थेघर में सिर्फ उनका मासिक वेतन हीआता थाऔर वह अपनी चादर देख कर ही पाँव फैलाते थे।  पिताजी जबसरकारी नौकरी से निवृत हुये तो उन्होनेअपनाअधिकांश समय जरूरतमंदों की मदद करने में लगायामुझेआजभीबहुतअच्छी तरह याद हैकि पिताजी पेट की गैस से छुटकारा पाने के लिये चूर्ण की गोलियां बनाकर हर जरूरतमंद को मुफ्त वितरित किया करते थेलोगों को उनसे कितना स्नेहथा यह उनके दाहसंस्कार के लिए उमड़आये लोगो की भीड़ को देखकर ही बनता है!

      मेरे संस्कारों एवं शिक्षा निर्माण में उन्होने जो अपना समय मेरे लिए बिताया उनकायहउपहारअमूल्यहैऔरउसकेलिए मैंउनकाऋणीहूँ!

 
पिता जी केबहुआयामी अध्ययनअनुभव से ही मेरा ज्ञान एवं अध्ययन भी व्यापक हो सका है।
    
पिता जी किसी भी बात कोकहावतों, चुट्क्लोंटोटकोंऔरशायरीदोहों के माध्यम से बड़ी सरलता से कह देते थे।वेअपने तीखे व्यंग्यात्मक और अप्रत्याशित ढंग से किसी भी बात को कहने के लिए बड़े निपुणऔरकुशलथे।  एकबार जो भी व्यक्ति उनके कटाक्ष का शिकार हो जाता वह फिर न तो हंस ही पाताऔर नही रो पाता था।  पिताजी के यह गुण कुछ मुझे भी धरोहर में मिले हैं, ऐसा मेरा मानना है!
घिनौनी बात अथवा कार्य करने वाला कोई भी व्यक्ति उनके सम्मुख टिकन ही पाता था, चाहे वहअपने परिवार का कोई सदस्य था या बाहर का।  ऐसे व्यक्तियों को वे निजीतौरपर बारबार लज्जित करने में विश्वास रखते थे।  इसके विपरीत, अच्छे कार्य करने वालों कीसराहना और बढ़ाई करने में भी वे कभी पीछे नही रहते थे।
       पिताजी का मिजाज बहुरंगा था और वे बहुरसभोजीथे।  वे एकही बैठक में एक साथअनेक रसों तथा उनके उपरसों का मान करना पसंद करते थे।  वे जब रँगीले मूड में होते थे तो उनकी मजलि सेघंटों ठहाकों सेगूँजती रहती थीं।इस बीच उन्हें समय का तनिक भ आभास न रहताथा और इसी बात को लेकर माँ उनसे अक्सरअपनी नाराजगी दर्शाती थीं 

                  
      पिताजी का जन्म खाकीलखी, जिलाझंग, पाकिस्तान, मेंहुआ।भारत विभाजन के बाद उनका पहला गृहस्थान कुरुक्षेत्र में रिफ़ूजियों के लिए लगायेग एटेंटों में से एक था।  माँबापकीसबसेबड़ीसंतानहोनेकेनाते, यही से उन्होनेअपने सभी परिवार जनोंभाईबहिन, मातापिता, पत्नीऔरअपनी संतान का दायित्व संभाला।

इसी दौरान नौकरी के ईलावा पिता जीनेअपनी पढ़ाई भी जारी रखी औ रपंजाब युनिवर्सिटीसे स्नातक की डिग्री प्राप्त की जो कि उन दिनो एक बहुत बड़ी बात हुआ करती थी देश बंटवारे से पहले पिता जी एफ..(ग्यारवीं के समकक्ष
) थे।  पिताजी ने दसवीं क्लास प्रथम श्रेणी में पास कीऔर उनके प्रमाणपत्र पर गवर्नमेंट हाईस्कूल, शोरकोट, पंजाबयुनिवर्सिटीलाहौर – सत्र 1936- अंकित है।  पिताजी नेअपने 28-30 वर्ष का सेवा काल, नाभा, पटियाला, लुधियाना, जालंधर, चंडीगढ़ आदि शहरों में पूरा किया औरअंत का समय उन्होने हरियाणा केशहर रोहतक में बिताया।  

   
इन विभिन्न प्रदेशों के प्रवासऔर हिन्दी, पंजाबी, अ्ग्रेज़ी तथा उर्दूफारसी के विभिन्न साहित्यों काअनुशीलन करने के अतिरिक्त, समाज के विभिन्न दौर से गुजरने केअपने अनुभवोंका एक विशाल संग्रह पिताजी के पासथा जिसकी एक छाप कुछ हद तक मुझमें भी झलकती है जो शायद पाठकों को मेरी कुछ रचनाओ में भी देखने को मिले।अंत में बस मैं इतना ही कहूँगा कि पूज्यपिताजी की बदौलत जो संस्कार, संयम, ईमानदारी तथा व्यंगात्मक स्वभाव मुझे विरासत में मिला है उसके लिए मैं सदैव उनका ऋणी हूँ/रहूँगा। सबसे बड़ा उपहार जो ईश्वर ने हम सब
को दिया है वह है पिता!
अशोक परुथीमतवाला  




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1 thought on ““एक दिन पिता के नाम “….कुछ भूली बिसरी यादें (संस्मरण -अशोक के.परुथी”

  1. I read Mr. Pruthi's writeup with great interest on the pages of Atoot Bandhan. KUDOS! to the editorial staff for printing timely articles honoring dads in the world. Dads are special and we should respect them and give them due respect.
    Blessed are those who have their parents blessings, especially, dads. On this occasion, I would also like to wish my dad – a happy father's day. Thank you dad, I love you for everything you did for all of us in the family. I am thankful and indebted to you!
    Shibu Nair
    Missouri city, USA

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