“एक दिन पिता के नाम “……… लेख -सुमित्रा गुप्ता

लेखिका




।।ॐ।। 

 एक दिन पिता के नाम  

         नारीपुरूष का अटूट बन्धन बँधा और मर्यादित बंधन में,अजस्र प्रेम धारा से वीर्यरज कण से,जो नये सृजन के रूप में अपने ही रूप का विस्तार हुआ,वह रूप सन्तान कहलायी।अपने प्रेम के प्राकट्य रूप पर दोनों ही हर्षित हो गये और माता पिता का एक नया नाम पाया। माँ यदि संतानको संवारती है तो पिता दुलारता है।माँ यदि धरती सी सहनशील,क्षमाशील और ममता भरी  है,तो पिता आकाश जैसा विस्तारितविशाल ह्रदय और पालक है।दोंनों ही जरूरी हैं,पर आज  हमें पिता की अहमियत दर्शानी है।तो सुनिये—-
         घर की नींव,घर का मूल पिता रूप ही हैजिस तरह एक इमारत की मजबूती,  नींव पर दृढ़ता से टिकी रहती है,उसी तरह घरपरिवार कर्मठ पिता के कंधों पर टिका होता है।परिवार का मुखिया पिता ही होता है।
हरेक की जरूरतें पूरी करतेकरते उसका सारा जीवन यूँ ही बीत जाता है।कमानेवाला एक और खाने वाले अनेक।हांलाकि बाहर की भागमभाग यदि पिता कर रहे होतें हैं,तो घर की व्यवस्था की  जद्दोजहद में माँ लगी रहती है।दोनों की ही भूमिका अत्यन्त महत्वपूर्ण है।आपको बहुत सुन्दर प्रभु के फरिश्तों की कहानी सुनाती हूँ
         प्रभु ने जब अपने ‘अंश रूप जीव‘ को अपने से अलग करके पृथ्वी पर भेजना चाहा तो वह ‘जीव‘ बहुत दुखी हुआ और कहने लगा कि पृथ्वी पर मेरी रक्षा,भरणपोषण,मेरे कार्यों में सहयोग,मेरी देखभाल कौन करेगा।मैं जब बहुत छोटा होऊँगा,तब कौन मेरे कार्य करेगा,तब भगवान बोले तेरीसहायता के लिये पृथ्वी पर मैं फरिश्ते भेज दूँगा। ‘अंश रूप जीवबोला, कार्य तो बहुत सारे होंगें,तो क्या इतने सारे कार्यों के सहयोग के लिये  इतने सारे फरिश्ते भेजेंगें एक जीव के लिये,तो बहुत सारे फरिश्ते हो जायेंगे दुनियाँ में।भगवान बोले नहीं,इतने कार्यों के सहयोग के लिये सिर्फ दो फरिश्ते हीकाफी हैं,  जो तेरे मातापिता के रूप में हर तरह से तेरा सहयोग करेंगें।सो बच्चे के जनमते ही मातापिता उसकी साफसफाई,भरणपोषण और हर जरूरत को समझते हुये पूरे तन मन धन के साथ सहयोगी होते हैं।अंश रूप जीवबोला मैं उन फरिश्ते रूपी माँबाप का कर्ज कैसे चुकाऊँगा?तब प्रभुबोले तू उनकी आज्ञा मानना,कभी ऐसा कोई कार्य ना करना कि उनको दुःख पहुँचे,जब वे बूढ़े हो जायें,तब उनकी सेवा करना और जब तू भी बड़ा होकर मातापिता का रूप लेगा,तो पूरा कर्ज तो नहीं,थोड़ा बहुत उतर जायेगा।मातापिता का कर्ज तो संताने अपनी चमड़ी देकर भी नहीं उतार सकतीं।और विशेषकर माँ का।
आज के परिवेश में हम सभी कितना कर्जफर्ज अदा कर पा रहे हैं,ये हम सभी बखूबी जानते हैं।पिता खुद जो नहीं बन पाता,आर्थिक कमियों के कारणअपनी कठिन परिस्थियों के चलते,पर सन्तान के लिये जीवन की समस्त पूँजी दाँव पे लगाकर योग्य बनाने का  भरसक प्रयास करता रहताहै।एक पिता ही ऐसा होता है,जो अपनी संतान को अपने से भी ज्यादा श्रेष्ठ बनाकर हारना चाहता है।पिता अपने कन्धे पे बैठाकर पुत्र को कितना ऊँचा उठा देता है यानि पिता के कंधे पर बैठी संतान की ऊँचाई बढ़ जाती है। ऐसाकरके पिता अत्यन्त खुश होता है।ये मेरा भी अनुभव है।

कष्टपीड़ा होने पर हमारे मुख से अनायास उई माँ, माँ आदि शब्द निकल जाते हैं,लेकिन सड़क पर सामने से आते हुये ट्रक को देखकर कह उठते हैं बापरेबाप।आर्थिक रूप से पिता ही हर तरह से सहयोगी होता है।किसी ने पिता के विषय में क्या खूब कहा है——–

वो पिता होता है-,वो पिता ही होता है
जो अपने बच्चों को अच्छे
विद्यालय में पढ़ाने के लिए दौड भाग करता है
वो पिता ही होता हैं ।।
उधार लाकर Donation भरता है,
जरूरत पड़ी तो किसी के भी हाथ पैर भी पड़ता है।
वो पिता ही होता हैं ।।
हर कॅालेज में साथ साथ घूमता है,
बच्चे के रहने के लिए होस्टल ढूँढता है
वो पिता ही होता हैं ।।
स्वतः फटेपुराने कपड़े पहनता है
और बच्चे के लिए नयी जीन्स टीशर्ट लाता है
वो पिता ही होता है।।
बच्चे की एक आवाज सुनने के लिए
उसके फोन में पैसा भरता है
वो पिता ही होता है ।।
बच्चे के प्रेम विवाह के निर्णय पर
वो नाराज़ होता है और गुस्से में कहता है
सब ठीक से देख लिया है ना,
वो पिता ही होता है ।।
आपको कुछ समझता भी है?”
बेटे की ऐसी फटकार पर,
ह्रदय क्रंदन कर उठता है
वो पिता ही होता हैं ।।
बेटी की हर माँग को पूरी करता है
ऊँचनीच,अच्छाबुरा समझाता है
बुरी नज़रों से बचाता है
वो पिता ही होता हैं ।।
बेटी की विदाई पर,
आँसू ,तो पुरूष होने के कारण नहीं बहा पाता,
पर अंदर ही अंदर रोता बहुत है,
वो पिता होता है–वो पिता ही होता हैं ।।
  मेरी युवा पीढ़ी,पिता की अच्छाइयाँ अनन्त हैं।उनके प्रति अपने दायित्व को कभी ना भुलाना।वो हैं तो मजबूती है घरपरिवार में।किसी ने बहुत खूब कहा हैअभी तो जरूरतें पूरी होती हैं,ऐश तो बाप के राज में किया करते थे।ये लेख पिता के नाम समर्पित है।पिता मेरे प्यारे पिता।आपकी छत्र-छाया में, मैं महफूज रहूँ l आप हों तब भी और ना हों तब भी अप्रत्यक्ष रूप में।
ll पितृ देवो भवचरण वंदन ll

सुमित्रा गुप्ता 


अटूट बंधन ………हमारा पेज 


5 thoughts on ““एक दिन पिता के नाम “……… लेख -सुमित्रा गुप्ता”

  1. बहुत- खूब लिखा है सुमित्रा जी ने।वो पिता ही होते हैं ज़ो इतना बड़ा ज़िगर रखते हैं।
    यह एक पक्षीय पिता की महत्ता को दर्शाती रचना है।
    जबकि हम सब ऐसे पिता के उदाहरण भी देखते हैं जो अपनी ही संतानों चाहे वह बेटा हो या बेटी के लिये दुश्मन भी साबित होते हैं।
    ख़ैर, मेरा मक़सद किसी को बदनाम करना नहीं है।पर सच्चाई तो सच्चाई ही होती है!

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  2. बहुत- खूब लिखा है सुमित्रा जी ने।वो पिता ही होते हैं ज़ो इतना बड़ा ज़िगर रखते हैं।
    यह एक पक्षीय पिता की महत्ता को दर्शाती रचना है।
    जबकि हम सब ऐसे पिता के उदाहरण भी देखते हैं जो अपनी ही संतानों चाहे वह बेटा हो या बेटी के लिये दुश्मन भी साबित होते हैं।
    ख़ैर, मेरा मक़सद किसी को बदनाम करना नहीं है।पर सच्चाई तो सच्चाई ही होती है!

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  3. Pita ki sachchi tasvir to adhiktar yahi hoti hai aor to sab apvad hai.aaj ka parivesh to mansikta ke star se vikaron mein ghira huaa ha. Kay Kay who sakata hai kuchh kaha nah ja sakata

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