समझ न पाया प्यार पिता का, बस माँ की ममता को जाना
पुत्र से जब पिता बना मैं, तब महत्ता इसकी पहचाना
लम्हा-लम्हा यादें सारी, पल भर में मैं जी गया
तुम्हे रुलाये सारे आंसू घूँट-घूँट मैं पी गया
जब भी मुख से मेरे कड़वे शब्द कोई फूटे होंगे
जाने उस नाज़ुक मन के कितने कौने टूटे होंगे
अनुशासन को सज़ा मान कर तुमको कोसा था पल-पल
इसी आवरण के भीतर था मेरा एक सुनहरा “कल”
लोरी नहीं सुनाई तो क्या, रातों को तो जागे थे
मेरे सपने सच करने, दिन-रात तुम्हीं तो भागे थे
ममता के आंचल में मैंने, संस्कारों का पाठ पढ़ा
हालातों से हार न माने, तुमने वो व्यक्तित्व गढ़ा
जमा-पूँजी जीवन भर की मुझ पर सहज लुटा डाली
फूल बनता देख कली को, खाली हाथ खिला माली
आज नहीं तुम साथ मेरे तब दर्द तुम्हारा जीता हूँ
Very Nice.