फ्रेंडशिप डे पर विशेष :कि जहाँ भी रहे तू मेरी निगाह में हैं






कि जहाँ भी रहे तू मेरी निगाह में हैं 


दोस्त एक छोटा सा शब्द पर अपने अन्दर बहुत सारे अहसास समेटे हुए |दो लोग
जिनमें कोई खून का रिश्ता नहीं होता पर तब भी 
भावनात्मक रूप से एक –दूसरे से गहरे से जुड़ जाते हैं
| एक दूसरे के साथ समय बिताना आनंददायक लगने 
लगता है  | एक दूसरे के  बिना जीना असंभव लगने लगता है एक दूसरे के सुख –दुःख
में पूरी शिद्दत से  भागीदार बनना जैसे
सांसों का हिस्सा बन जाता है | दोस्त के पास या दूर रहने पर दोस्ती में कोई फर्क
नहीं पड़ता वो यथावत रहती है |एक सच यह भी है कि
 हमारे वही रिश्ते चलते हैं
जिनमें सखा भाव हो | चाहे वो भाई –बहन का रिश्ता हो , भाई –भाई का पति –पत्नी का |
कहने वाले तो यहाँ तक कहते हैं कि जब पिता का जूता बेटे के पैर में आने लगे तो उसे
अपना दोस्त समझना चाहिए |
        रिश्तों में कितनी भी दोस्ती
हो पर  दोस्ती शब्द कहते ही सबसे पहले
कृष्ण सुदामा का ख़याल आता है | एक राजा एक भिखारी पर उनकी मित्रता का क्या कहना “
जहाँ दिल एक हों वहां ऊँच  –नीच अमीरी
गरीबी कहाँ दीवार बन पाती है | सूरदास ने अपने लाचार गरीब मित्र से मिलने पर श्री
कृष्ण की मनोदशा का कितना सुन्दर वर्णन किया है ……….

ऐसे
बेहाल बेमायन सो
  पग कंटक जाल लगे पुनि जोए ।
हाय महादुख पायो सखा तुम आये
इते न किते दिन खोये ॥

देख सुदामा की दिन दशा करुणा
करके करूणानिधि रोये ।

पानी परात को हाथ छुयो नहीं
नैनं के जल सों पग धोये ॥
            तुलसी दास जी
ने तो  सुग्रीव और प्रभु राम की मित्रता के
पावन अवसर पर अच्छे और बुरे मित्र के सारे लक्षण ही बता दिए ………
जे न मित्र दुख होहिं दुखारी। तिन्हहि बिलोकत पातक
भारी।।

निज दुख गिरि सम रज करि जाना। मित्रक दुख रज मेरु समना
देत लेत मन संक न धरई। बल अनुमान सदा
हित करई॥

बिपति काल
कर सतगुन नेहा। श्रुति कह संत मित्र गुन एहा॥
उन्होंने बुरे
मित्र के भी लक्षण बताये हैं ……….
आगें कह मृदु बचन बनाई। पाछें अनहित मन
कुटिलाई॥

जाकर ‍िचत
अहि गति सम भाई। अस कुमित्र परिहरेहिं भलाई॥
सेवक सठ नृप कृपन कुनारी। कपटी मित्र
सूल सम चारी॥

सखा सोच
त्यागहु बल मोरें। सब बिधि घटब काज मैं तोरें
               मित्र वो भी बुरा …….. कहने
सुनने में अजीब लगता है पर ऐसे मित्रों से हम सब को जिंदगी में कभी न कभी दो चार
होना ही पड़ता है | तभी तो शायद दादी माँ के ज़माने से चली आ रही  कहावत आज भी सच है “ पानी पीजे छान के और दोस्ती
कीजे जान के “ मुंह में राम बगल में छुरी वाले ऐसे दोस्त अवसर देखते ही अपना



 असली
रंग दिखा देते हैं | और भोले भाले लोग दिल पकडे आह भरते रह जाते हैं | कोई ऐसा ही
दोस्त मिला होगा तभी तो अब्दुल हमीद आदम कह उठते हैं …….
“दिल अभी पूरी
तरह टूटा नहीं
दोस्तों की
मेहरबानी चाहिए “
जनाब हरी चन्द्र
अख्तर तो साफ़ –साफ़ ताकीद करते हैं ………
हमें भी आ पड़ा है
दोस्तों से काम कुछ यानी
हमारे दोस्तों के
बेवफा होने का वक्त आया
             पर मुझे लगता है कहीं न कहीं इसमें दोस्त की गलती
नहीं हैं | उस शब्द की गलती हैं जिसे हम हर किसी को बाँटते फिरते हैं | आम चलन की भाषा
ने दोस्ती शब्द को बहुत छोटा कर दिया है | यहाँ हर जान –पहचान दुआ सलाम करने वाले
के लिए परिचय में दोस्त शब्द जोड़ दिया जाता है |
शायद अहमद फ़राज़ के शेर में मेरी ही इस बात का समर्थन है ………
तुम तकल्लुफ को इख्लास समझते हो फ़राज़
दोस्त होता नहीं हर हाथ मिलाने वाला
                  मैं सोचती हूँ आज के
ऍफ़ .बी युग में मेरे ५००० फ्रेंड पर इतराने वालों को के बारे में फ़राज़ साहब क्या
लिखते ? पर लोगों की भी गलती नहीं दोस्ती ,और दोस्तों की संख्या हमें सामाजिक
स्वीकार्यता का अहसास कराती है | जब  रिश्ते –नाते मशीनी हो गए हैं तो अकेलापन घेरता
है | ऐसे में भावनात्मक सुरक्षा का ये सहारा बहुत जरूरी हो जाता है | हम आज के युग
में ऍफ़ .बी फ्रेंड्स की अनिवार्यता को नकार नहीं सकते ……………
झूठा ही सही कम से कम यह अहसास तो है
वक्क्त ,बेवक्त कोई अपना मेरे पास तो है
            वैसे दोस्ती तो कभी भी
कहीं भी किसी से भी हो सकती है | पर बचपन की दोस्ती की बात ही अलग है | साथ साथ खेलना कूदना पढना ,लड़ना झगड़ना | बिलकुल पारदर्शी रिश्ता होता है | जहाँ हम एक दूसरे
को उम्र के साथ बढ़ते हुए पढ़ते हैं | इसमें थोड़ी मीठी सी प्रतिस्पर्धा भी होती है |
भला उसकी गुड़ियाँ मेरी गुड़ियां से महंगी कैसे , मेरे नंबर कम कैसे ? पर उसका भी
मजा है |…….
सवालों के दिन वो जवाबों की राते ……….. याद करते हुए कॉलेज ,हॉस्टल छोड़ते हुए भला
किसकी आँख नम नहीं होती |
                 सच्चे दोस्त किस्मत वालों को
मिलते हैं | इनकी संख्या एक या दो से ज्यादा नहीं हो  सकती | अगर आप को कोइ ऐसा दोस्त मिला है जो आपका
सच्चा हितैषी हैं तो उसे संभाल कर रखे | क्योंकि दोस्ती एक खूबसूरत अहसास के साथ –साथ
एक जिम्मेदारी भरा फर्ज भी है | हमारे खून के रिश्तों में जहाँ मन –मुटाव होने पर
पूरा परिवार संभाल लेता है ,उस दूरी को कम करने का प्रयास करता है | वहीं दोस्ती
का रिश्ता केवल दो व्यक्तियों के अहसासों से जुडा  होता हैं | जिसे खुद ही संभालना होता है |
सहेजना होता है | एक बार रिश्ता कच्चे कांच की तरह  टूटने पर जुड़ना मुश्किल होता है| कई बार अहंकार
भी आड़े आ जाता है | बुलाना ,मानना चाहते हैं पर हम पहल क्युओं करे पर गाडी अटक
जाती हैं | ऐसे ही किसी दर्द से गुज़र के जिगर मुरादाबादी कह उठते हैं ………..
आ की तुझ बिन इस कदर ऐ दोस्त घबराता हूँ मैं
जैसे हर शय में किसी शय की कमी पाता  हूँ मैं
                मित्रता दिवस पर खाली बधाई देने   ,कार्ड
देने से काम नहीं चलेगा अगर आप का कोई सच्चा दोस्त  है तो आप को उसकी जिंदगी में रौशनी
करने का संकल्प लेना पड़ेगा | उसके सुख दुःख में इतना भागी दार बनना पड़ेगा की मन गा
उठे ………

कोई जब राह ना पाए ,मेरे संग आये 
के पग -पग दीप जलाए ,मेरी दोस्ती मेरा प्यार 

वंदना बाजपेयी 




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