आधी आबादी कितनी कैद कितनी आज़ाद


जरूरी है सम्मान 

कैद उतनी ही जितना कि कोई एक पंछी खुले पिंजरे मे हो  मगर उसके पंख काट दिए गए हों | 
या एक विस्तृत विषय है जिसपर संक्षिप्त में कहना नाइंसाफी होगी | माँ की कोख में जब कोई बच्चा  होता है,  तो अमूमन उसे नहीं पता होता की उसके गर्भ में पलने वाला बच्चा बेटा है या बेटी | जन्म लेते ही आधार बन जाता है परिवार की खुशियों का एक बेटे का जन्म लेना | और मैं कहूँगी कि ब भी हम कहीं न कहीं पाते हैं कि बेटियों के जन्मते ही परिवार मायूस सा हो जाता है | 
बेटियां बड़ी होती हैं स्कुल जाती हैं तमाम सारे परिवार से मिले निर्देशों के साथ | मध्यम वर्गीय परिवारों में अक्सर जो बेटियों के साथ जुडी हर घटना को उंच नीच से तोलते हैं | किससे  बात करोगी,  किस से मिलोगी,  किसके साथ उठो बैठोगी,  के साथ उसकी दिशा और दशा शुरू से बाँध  दी जाती है |इसमें उनका भी दोष नहीं , ये समाज शुरू से पुरुष प्रधान समाज रहा है सो हर क्षेत्र में दबदबा  पुरुष ने ही रखा है | 
मुझे हैरानी होती है तब , जब अक्सर मेरे आसपास के पुरुष ये सवाल करते हैं कि हर बड़े काम को परुष ही निभा पाते हैं | जैसे बड़ी दावतें हों तो वहां खाना पुरुष ही पकाते हैं | टेलर्स अच्छे पुरुष ही होते हैं | स्पोर्ट्स में पुरुष , अंतरिक्ष में पुरुष , आसमान में पुरुष , …  बसों में ड्राईवर पुरुष  बगैरह बगैरह  आफिसों में भी …. | यहाँ तक कि मंदिरों में पुजारी भी पुरुष | 
 मैं उन्हें बताना चाहती हूँ कि इन सभी क्षेत्रों में जहाँ भी महिलाओं को मौके मिले हैं उन्होंने अपने अस्तित्व को जताया है | चाहे वह कोई भी क्षेत्र हो कॉरपोरेट्स ऑफिस  …. मेट्रो , स्पोर्ट्स ., अन्तरिक्ष ,…  कुकिंग . पहाड़ों पर चढ़ना ….. जहाँ भी अवसर मिले हैं स्त्री  ने अपने आपको साबित  किया है  | 
मुझे लगता है हमें सोच बदलने की जरूरत है बस | जहाँ बचपन से बेटियों को नसीहतें दी  जाती हैं संस्कार दिए जाते हैं उसी तरह बेटों को भी सिखाया जाए कम से कम स्त्री का सम्मान करना  तो अवश्य | जिस तरह बेटों को निडरता का पाठ पढाया जाता है उसी तरह बेटियों को भी निडर बनाया जाए | 
जिस तरह बेटियों का सम्मान उनकी अस्मिता शुचिता को उनकी देह से जोड़ कर देखा जाता है | उसी तरह बेटों को उनका मान रखना सिखाया जाना चाहिए | 
ये क्या कि प्रताड़ित पुरुष करे और मान सम्मान  एक स्त्री का चला जाए | बलात्कार किसी स्त्री का हो मुंह स्त्री ही छुपाये . क्यों नहीं सिखाया जाता किसी बेटी को सर उठा कर जीना ?? क्यों नहीं सिखाया जाता बेटों को आधी आबादी को सम्मान देना ?? 
निशा कुलश्रेष्ठ 

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