लघु कथाएँ लेखन की वह विधा है जिसमें कम शब्दों के माध्यम से पूरी बात कह दी जाए | इसमें जहाँ एक ओर कसाव जरूरी है वहीं उसका अंत चौकाने वाला होता है | मीना पाण्डेय जी इस कला में सिद्धहस्त हैं | आज हम अटूट बंधन ब्लॉग पर मीना पाण्डेय जी की तीन लघु कथाएँ … बेटी का फर्ज ,भुल्लकड़पन व् बुनियाद पढेंगे ……..
एक अंश ….
” हाँ तो क्या हुआ ? लड़का है वो ,उसकी बराबरी करने चली है ? तेरे साथ कुछ उंच -नीच न हो जाए ,इसलिए ध्यान रखना पड़ता है ,तू नहीं समझेगी ! ” माँ बोली I
माँ की लाड़ प्यार की छत्रछाया में भैया खूब ‘ फलीभूत ‘ हुए ,और एक दिन सबको भौंचक छोड़ ,लव मैरिज कर दूसरे शहर में शिफ्ट हो गए ,अपनी कमतर बहन के कंधों पर सारी जिम्मेदारी डाल कर
बेटी का फर्ज
” तू कहाँ चली बन ठन के ?” माँ ने रोज की तरह सवाल दागा I
तभी भैया दनदनाता हुआ आया – ” माँ , मैं देर से घर आऊंगा ,चलता हूँ, बहुत काम है I “
” मेरा बेटा ! कितना काम करता है ?”
चलते -चलते उसने एक गर्वोक्त मुस्कान डाली मेघा के ऊपर ,मानो उसे उसकी कमतरी का अहसास कराना चाहता हो I
मेघा कुढ़ कर रह गयी I
” माँ , भैया को तो कुछ बोलती नहीं , मुझे ही बार -बार टोकती हो ,कुछ नया सीखने भी नहीं देती I ” उसने मुंह फुलाते हुए कहा I
” हाँ तो क्या हुआ ? लड़का है वो ,उसकी बराबरी करने चली है ? तेरे साथ कुछ उंच -नीच न हो जाए ,इसलिए ध्यान रखना पड़ता है ,तू नहीं समझेगी ! ” माँ बोली I
माँ की लाड़ प्यार की छत्रछाया में भैया खूब ‘ फलीभूत ‘ हुए ,और एक दिन सबको भौंचक छोड़ ,लव मैरिज कर दूसरे शहर में शिफ्ट हो गए ,अपनी कमतर बहन के कंधों पर सारी जिम्मेदारी डाल कर I
माँ की कमतर बेटी अब अचानक श्रेष्ठ हो गई थी I
अब वह कहते नहीं अघाती थीं -” ऐसी बेटी ईश्वर सबको दे I “
शायद यह माँ नहीं बेटी का निभाया फर्ज बोल रहा था I
मीना पाण्डेय
बिहार
” सामान ……… ? ” कुछ और कहती इससे पहले उसे अनदेखा करते हुए उसने इधर -उधर नजर दौड़ाई I
देखा मुन्ना चटाई पर ही सो गया था ,सामने उसका बदरंग और खस्ताहाल बस्ता और उसमे से झांकती बिना जिल्द की किताबे और कापियां !! ” ये यही सो गया ? भीतर आराम से सुला देती I “
” मेरी बात सुने तब न ! कह रहा था ,पापा नया बस्ता लेकर आएंगे तो रात में ही किताबें उसमे जमा लेगा ,तब ही सोयेगा ,बहुत खुश था कि कल से उसके दोस्त बस्ते को ले नहीं चिढ़ाएंगे ,तो इन्तजार करते करते यही ………I ” कहते कहते पल भर को रुकी वह I
उसने देखा मुन्ना नींद में भी मुस्कुरा रहा था , शायद ख़्वाब में नया बस्ता …..
” आज भी नही लाये ….? “
” वो …एक पुराना मित्र मिल गया था I घर लेकर चला गया ! वहाँ देर हो गयी I बातचीत में भूल गया कि …….I ” बोलते समय हलक में जैसे कुछ अटक सा रहा था I
” कुछ दिनों से तुम्हे रोज कोई न कोई मिल जा रहा है !! ” वह भुनभुनाती हुई रसोई घर की ओर बढ़ गयी ,शायद खाना परोसने I
वह बूत सा सर नीचे किये बैठा रहा I क्या बताता ! गया तो था बाजार , पर मुन्ने की फरमाइश का बस्ता …..!! आजकल बस्तों का दाम भी न …!! दुकानदार ने ज्यों ही दाम बताया ,उसका हाथ अपने जेब में पड़े इकलौते सौ के नोट पर जाकर जम सा गया था I उसने हिसाब लगाया और बुदबुदाया था …
” अभी तो इस महीने में सात दिन बाकी हैं I “
बिहार
दोपहर का सारा काम निपटा ,थोड़ा आराम करने वह कमरे में आ गयी I जाने क्यों कुछ दिनों से उसे इस पुश्तैनी घर की दीवारें अधिक पुरानी व् ढहती सी प्रतीत होने लगी थीं I
बच्चे स्कुल से आ कमरे में ही खेल रहे थे ,बिस्तर पर लेट वह अपनी आँखे मूँद सोने का उपक्रम करने लगी किन्तु मन में कुछ कुछ चलना बंद नही हुआ I
कुछ सालों में कितना बोझ आ गया था उस पर ,सास पूर्णरूपेण बिस्तर की ही होकर रह गयी थीं उनके साथ साथ सामाजिक आर्थिक जिम्मेदारियाँ भी ,तिस पर इस महंगाई में बच्चों की बेहतर शिक्षा ,परवरिश !! बैल की तरह खटते हैं दोनों पति -पत्नी ,फिर भी अपनी कमाई से एक खुद का घर भी नही ….लगता हैपूरा जीवन यूँ ही निकल जाएगा ,सोचा उसने I घुटन सी होने लगी उसे I तभी उसके कानो में आवाज़ आई –
” भैया, चलो बिजनेस -बिजनेस खेलते है I “
” ठीक है छोटू ,मैं बिजनेस मीटिंग में जा रहा हूँ ,तुम माँ- पापा का ख्याल रखना I “
” ठीक है भैया ,वैसे ही न ,जैसे माँ पापा दादी का रखते है I “
” हां ,वैसे ही !”
” भैया ,फिर मैं मीटिंग में जाऊँगा ,और आप ख़याल रखना I “
यह सुनकर उसकी आँखे खुल गयी ,मन का सारा गुबार धुंआ हो उड़ने सा लगा I अचानक ही पुरानी दीवारोँ में संस्कारो की चमक के पार ,उसे अपने भविष्य की मजबूत नींव नजर आने लगी थी