अहम् : कहानी -सपना मांगलिक




अहम्

आज फिर वही मियां बीवी की
तू तडाक और तेरी मेरी से घर गूँज उठा था .विनय बाबू बैचैनी से लॉन में टहल रहे थे
,उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि इस समस्या का क्या हल निकालें .आस पडो स के घरों की
खिड़कियाँ भी खुली हुईं थीं शायद पडोसी भी विनय बाबू की तरह ही या तो वाकई मामले की
तह में जाना चाहते थे या फिर यूँ ही फ्री  की फिल्म देखकर वाद विवाद और हास परिहास की
सामग्री जुटाना चाहते थे .खैर जो भी हो मगर जबसे यह नए किरायेदार आये हैं इन्होने
जीना हरम करके रक्खा हुआ है कभी पति गुस्से में पत्नी को लताडता तो कभी पत्नी अपनी
कर्कशता दिखाती .मानो आंधी और सुनामी एक साथ इस घर पर कहर बरसाने के लिए उपरवाले
ने भेज दीये  हों .कल ही की बात है पत्नी
चाय मेज पर पटकते हुए चिल्लाई –“लो सुडको चाय आते ही आदेश देने शुरू कर दिए ,मैं
तो दिन भर पलंग तोडती हूँ मेरा काम किसी को नहीं दीखता सुबह पांच बजे से बच्चे को
स्कूल के लिए तैयार करो ,खाना बनाओ सफाई करो यह करो वो करो (अपने दिन भर के कामों
को गिनाते हुए)“ पति –“(झुंझलाकर )बकर बकर बंद करो ,दिनभर की कें कें कें ,आने की
देर नहीं हुई और दिमाग ख़राब करना शुरू “पत्नी –“मुझे तुम्हारी यह पसीने में नहाई
हुई काली शक्ल देखने का शौक नहीं तुम्हे चाय देने आई थी “पति-“रखो चाय और दफा हो
यहाँ से “पत्नी पैर पटकते हुए –“क्यूँ दफा हो जाऊं याद रखो जिस दिन इस घर से गयी
सब कुछ आधा आधा लेकर जाउंगी समझे ?”इतने में बच्चा खेलते खेलते आया और उसकी बौल  से चाय का कप हिल गया .पहले पति और फिर पत्नी ने
उसकी कसकर धुनाई कर डाली ,अरे जनाब बच्चे की धुनाई क्या अपनी भड़ास दोनों मिलकर उस
मासूम पर उतार रहे थे .और फिर उसके बाद पति पत्नी का शोर बच्चे के ब्रह्माण्ड हिला
देने वाले रुदन में कहीं गुम हो गया. इन सभी झगड़ों का मूल इन पति पत्नी का अहम् था
इनके अन्दर इतना अहम् भरा हुआ था कि कोई भी झुकने को तैयार नहीं कोई भी चुप होने
को तैयार नहीं ,ऐसा नहीं है कि किसी ने भी इन्हें समझाया ना हो .खुद विनय बाबू की
पत्नी मालती को और विनय बाबू मुकेश को आदर्श विवाह की अवधारणा ,पति पत्नी का
समर्पण और प्रेम इत्यादि नैतिक मूल्यों से भरे कई उपदेश दे चुके थे .मगर यह कर्कश
पति पत्नी का जोड़ा तो उन्हें “पर उपदेश कुशल बहुतेरे”समझ मानने को तैयार ही नहीं
.जब भी इन्हें समझाने जाओ यह अपने ही जीवन साथी के जीवन की ऐसी बखिया उघाड़ते कि
शर्म भी इनसे शरमा के भाग जाए .इनदोनो से ही इनकी पिछली जिन्दगी का सच विनय बाबू
को ज्ञात हुआ .दरअसल मुकेश और मालती की यह दूसरी दूसरी शादी थी ,मुकेश की पहली
पत्नी उसके गाली गलौंच और हाथापाई की आदत से तंग आकर घर छोड़कर चली गयी थी और मालती
को उसके कर्कश स्वाभाव की वजह से उसके पूर्व पति ने तलाक दे दिया था ,यह दोनों की
दूसरी शादी थी .अपनी पहली शादी की असफलता के कारणों को ना इन दोनों ने जानने का
प्रयास किया ना ही अपनी पिछली गलतियों से सबक लेकर अपने वर्तमान को सुधारने की
कोशिश की .यह दोनों धोबी घाट  पर कपडे फटकते धोबी की तरह अपने विवाह को फटक रहे हैं
,बिना इस डर के की ज्यादा फटकने से कपडा फट जाएगा ,तार तार हो जाएगा .हर समय यही
होता है की एक ने अगर कुछ तुर्रा छेड़ दिया तो दूसरा उसका दुगना कडवा नहीं बोल देगा
जब तक चैन से नहीं बैठेगा .कभी कभी तो विनय बाबू उस वैज्ञानिक को कोसते जिसने यह
सिद्धांत बनाया कि –“हर क्रिया की कोई ना कोई प्रतिक्रिया होती है “ यह मूर्ख
शादीशुदा जोड़ा कैसे इस सिद्धांत की धज्जियाँ उड़ा रहा है कोई विनय बाबू के घर जाकर
देखे . कहते हैं कि विवाह में पति पत्नी के गुण आपस में मिलने चाहियें मगर देखो
गुण मिलने का दुष्परिणाम .अब इस मोहल्ले का तो कोई व्यक्ति विवाह के समय गुण नहीं
मिलवायेगा 

.यह सोचते ही तनाव में भी विनय बाबू के चेहरे पर हँसी की रेखा खिल उठी .पति
पत्नी अगर एक दूसरे के साथ एकत्व बनाकर रहे तो यह जोडी अर्धनारीश्वर की जोड़ी
कहलाती है और यदि मुकेश और मालती की तरह अपने अहम् और अकड में लड़ाई भिड़ाई
,काट्मकाट करें तो शनी और राहू बन जाते हैं जो कि जिस स्थान पर बस जाएँ उसका तो
बेडा गरक ही समझो .सबसे ज्यादा नुक्सान इनके बच्चे का है जिससे अगर यह पूछा जाए कि
बेटा विश्व युद्ध किसके मध्य हुआ ? तो उसका जवाब हमेशा उसके माता पिता ही होंगे
.अपने माँ बाप के झगडे से बचने के लिए नन्हा बालक अक्सर पडौसियों के घर चक्कर
लगाता है और पडौसी भी इस नन्हे नारद का फायदा उठाने से नहीं चूकते .आखिर हम
इंसानों में इतना अहम् होता ही क्यूँ है ?क्यूँ हम इसे अपनी खुशियों ,सुख और शांति
से ज्यादा तबज्जो देते हैं ,हमारा अहम् वो हिटलर है जो हमारी जिन्दगी पर एक बार
हावी हो जाए फिर तब तक शासन करता है जबतक कि वह हमारी जिन्दगी को क्रूरता पूर्वक
तहस नहस ना कर दे .विवाह दिल का रिश्ता है तो इस पर पर जहन के जाये अहम को शासन
क्यों करने देता है मनुष्य .मुकेश को गुमसुम देखकर लगता है कि वह अपनी पूर्व पत्नी
और वर्तमान पत्नी में तुलना करके अपने आपको मन ही मन कोसता है कि क्यूँ उस बेचारी
गाय जैसी महिला को इतना तंग किया कि वो घर छोड़कर विवश हो गयी .और मालती जो कि
देखने में गौर वर्ण और बढ़िया नाक नक्श वाली है अपने अहम् के चलते किसी पुरुष की
प्रिया ना बन सकी और इस अहम् ने भी उसके चहरे पर हमेशा खूंखार भाव लाकर उसकी
सारी  सुन्दरता को लील लिया है .कैसा
जिद्दी है इंसान अपना सब कुछ  खोकर,अपनों
को खोकर  भी अपने दुश्मन अपने अहम् को पाल
रहा है .और बेवक़ूफ़ इतना कि इसे  छोड़ने को
तैयार नहीं .ठीक उस कंजूस महाजन की तरह जिसके जीवन का फलसफा “चमड़ी जाए मगर दमड़ी ना
जाए “है
.ऐसे पति पत्नी प्रेम भी बड़े ही अहंकार के साथ करते हैं
,मानो प्रेम ना करके अपने साथी पर कोई अहसान कर रहे हों या फिर प्रेम को भी एक दूसरे
 को प्रभुत्व और अपनी सत्ता का प्रदर्शन
करने का जरिया मानते हैं .तभी तो वर्तमान में बच्चे संस्कारी ना होकर
बलात्कारी,प्रदर्शनकारी,और आतंकवादी बन रहे हैं आखिर माली जैसा बीज बोया है फसल भी
तो वैसी ही काटेगा .  विनय बाबू यही सब
बडबडाते बुदबुदाते हुए यहाँ से वहां चक्कर काटते और उनकी पत्नी उन्हें दूसरों के
मामले में ना पड़ने की सलाह देते देते खुद परेशान हो जाती .खैर मुकेश और मालती के
झगडे जंगल की आग की तरह बढ़ते ही जा रहे थे .और समस्या का कोई हल उन्हें सूझता नजर
नहीं आ रहा था .विनय बाबू की पत्नी ने उन्हें तनाव से राहत दिलाने के लिए हरिद्वार
का प्रोग्राम  बना लिया ,यह सोचते हुए कि
कुछ दिन तो विनय बाबू प्रकृति और गंगा मैया के सानिध्य में इन किरायेदारों के झगडे
भूलेंगे .उनका फैसला सही सावित हुआ विनय बाबू हरिद्वार में खुद को तरोताज़ा महसूस
कर रहे थे .कुछ दिन बाद दोनों वृद्ध पति पत्नी घर वापस लौट आये .सफ़र की थकन में भी
दोनों का चेहरा एक दूसरे  के साथ बिताये
अनमोल आध्यात्मिक क्षणों की वजह से चमक रहा था .विनय बाबू के कान आदतानुसार मुकेश
एवं मालती के कमरे की तरफ लगे थे .मगर घर में आज बहुत शांति थी किसी की आवाज भी
सुनाई नहीं दे रही थी .विनय बाबू ने दिल की बात पत्नी से साझा की जिसे सुनकर पत्नी
झुंझला गयी “लो कर लो बात ,कल तक आप घर में शांति के लिए परेशान होते थे और आज
शांति है तो आपको उसमे भी परेशानी है “ विनय बाबू-“ यही तो सोच रहा हूँ आज सुबह से
शाम होने को आई कोई आवाज ही नहीं आ रही और मुकेश का लड़का भी दिखाई नहीं दिया ?रोज
तो यहाँ वहां भटकता फिरे था .ऐसी क्या बात हो गयी ” ?मुकेश के दफ्तर से लौटने का
वक्त हो रहा था .विनय बाबू उसके इंतज़ार में बाहर टहलने लगे आखिर वह इस शान्ति का
राज जो जानना चाहते थे .मुकेश रोज के मुकाबले आज देर से लौटा ,उसका चेहरा उतरा हुआ
था जैसे की बहुत परेशान हो .विनय बाबू को देख फीकी मुस्कराहट के साथ पुछा “अरे
अंकल कब लौटे आप हरिद्वार से?सफ़र कैसा रहा ?विनय बाबू ने चहकते हुए उसे हरिद्वार
की यात्रा के विषय में बताया .फिर उससे पूछा –“मालती और मुन्ना दिखाई नहीं दे रहे
,कहीं गए हैं क्या ?मुकेश ने नजरें झुका लीं .बहुत कुरेदने पर उसने बताया कि मालती
और उसके बीच में वाद विवाद इतना बढ़ गया था कि उसने तलाक लेने का मन बना लिया है और
मुन्ने को साथ  लेकर अपनी मित्र के घर चली
गयी है .विनय बाबू –“फिर तुमने क्या सोचा है मुकेश ?मुकेश –मैं भी तंग आ गया हूँ
अंकल और एक पुरुष होकर मैं भी कब तक झुकूं .मालती ने घर का माहोल खराब कर रखा था
यहाँ तक कि दफ्तर से घर वापस लौटने का मन भी नहीं करता था .विनय बाबू –“और अब जब
मालती और मुन्ना नहीं हैं ,तो तुम्हारा घर लौटने का मन होता है मुकेश ?मुकेश इस
प्रश्न पर सकपका गया और बिना जवाब दिए तेजी से सीढियां चढकर अपने कमरे में पहुँच
गया 


.विनय बाबू को मुन्ने के भविष्य की 
चिंता सताने लगी क्योंकि वह अच्छी तरह से जानते थे कि इस वक्त मालती के
गुस्से और उत्तेजना का शिकार वही मासूम बन रहा होगा.दूसरे  दिन भी उन्होंने मुन्ने के भविष्य और बचपन की
दुहाई देकर मुकेश को मालती को वापस लाने के लिए समझाना चाहा .मुन्ने के जिक्र से
मुकेश पिघला मगर इस शर्त पर कि विनय बाबू उसके साथ चलकर मालती को समझायेंगे
.मुन्ने की खातिर विनय बाबू उसके साथ मालती की मित्र के घर जाने को राजी हो गए
.उम्मीद के मुताबिक़ घर के बाहर से ही मालती के मुन्ने पर चीखने पुकारने की आवाजें
सुनाई दे रही थीं .दरवाजा उसकी मित्र ने खोला और आदर के साथ दोनों को अन्दर ले गयी
.मुकेश को देखते ही मालती ने अप्रत्यक्ष रूप से कटाक्ष करने शुरू कर दिए .कुछ देर
मुकेश चुप रहा फिर वह भी उनका प्रत्युतर देने को उतारू हो गया मगर विनय बाबू ने
उसे चुप रहने का इशारा किया और मालती को समझाने बुझाने लगे .मुन्ने की पढ़ाई लिखाई
और उसके भविष्य का वास्ता देकर  और उनके
पूर्व विवाह में हुई गलतियों से सबक लेकर उन्हें ना दोहराने की सलाह दी .मगर मालती
अपनी अपनी ही कहे जा रही थी उसे लग रहा था कि केवल वही सही है और दूसरे गलत ,विनय
बाबू ने बड़ी मुश्किल से उसे घर लौटने को मनाया . दोनों ने अंत में अपनी गलती मान
ली और कुछ शिकवे शिकायतो  के साथ वापस साथ रहने को तैयार हो गए .विनय बाबू
प्रफ्फुलित थे कि उन्होंने अहम् जैसे तेज़ाब से एक रिश्ते को विकृत होने से बचा
लिया . उस रात उन्हें सुकून की नींद आई . मगर सुबह उनकी सुकून भरी नींद एक शोर
शराबे के साथ टूटी .मालती और मुकेश आपस में वही छोटी छोटी बातों पर नोंक झोंक कर
रहे थे .और मुन्ना जिसको अभी अभी शायद माँ बाप के अहम् का शिकार होना पड़ा था,  अपने रोबोट का हाथ अलग कर ,हाथी की सूंड तोड़ने
में व्यस्त था .

सपना मांगलिक 

2 thoughts on “अहम् : कहानी -सपना मांगलिक”

  1. आपने अहं किस तरह से घर और मोहल्ले की शांति,बच्चे की जिंदगी तबाह कर देती है इसका उत्कृष्ट प्रस्तुतिकरण की है। शादी के लिए कुंडली नही गुणों को को देखना आवशयक है. समस्याओ की चुनौैती अहं से नहीं समझ से लेनी चाहिए |

    Reply
  2. आपने अहं किस तरह से घर और मोहल्ले की शांति,बच्चे की जिंदगी तबाह कर देती है इसका उत्कृष्ट प्रस्तुतिकरण की है। शादी के लिए कुंडली नही गुणों को को देखना आवशयक है. समस्याओ की चुनौैती अहं से नहीं समझ से लेनी चाहिए |

    Reply

Leave a Comment