ए,
बदली
तुम न बनो चिलमन
बदली
तुम न बनो चिलमन
हो जाने दो दीदार
दिख जाने दो एक झलक
उस स्वर्णिम सजीले चाँद की
दे दूं मैं अरग और
माँग लूँ संग
मेरे प्रिय का
साथ उनका जन्म-जन्मान्तर तक
किंतु आज की रात है अनूठी
की है मैं ने तपस्या
लगा मेहंदी ,पहन
चूड़ा ,
चूड़ा ,
कर सौलह सृंगार ,
हो जाने दो पूरी इसे
मत डालो तुम अड़चन
हो जाने दो मेरी शाम
सिंदूरी ,
महक जाने दो
मेरे मन की कस्तूरी
एसा नहीं कि तुम पसंद नहीं मुझे
तुम्हारा है अपना विशेष स्थान
तुम भी हो उतनी ही प्रिय
किंतु बस आज
मत लो इम्तहान मेरे धैर्य का
सुन लो मेरी अरज क्यूँ कि
बिन चंदा के दर्शन के
तपस्या है अधूरी
न लूँगी अन्न का दाना मुख में
जब तक न देखूं उसकी छवि
तुम छोड़ दो हठ और
ले लो इनाम
क्यूँ कि
किया है व्रत
मेरे सजना ने भी
करवा चौथ का…..
2 …………….
ए
चाँद
चाँद
ए
चाँद , तुम
कर लो अपनी गति कुछ मद्धम
चाँद , तुम
कर लो अपनी गति कुछ मद्धम
ठहरो क्षण भर को आसमान में
न छुप जाना बादलों की ओट में
क्यूँ कि ,
मेरा चाँद कर रहा है सौलह शृंगार
उसके छम-छम पायल का संगीत
देता है सुनाई मुझे उसके पद्चापो
संग
संग
और हाँ
तुम कर लो बंद द्वार अपने नयनों की खिड़की
के
के
क्यूँ कि उसके स्वर्णिम मुख की
आभा देख
आभा देख
कहीं तुम भर न जाओ ईर्ष्या से या
लग न जाए तुम्हारी नज़र उसे
ले लो राई-नून तुम अपने हाथों में
ताकि उँवार सको उसके उपर ,
बस चन्द लम्हों की प्रतीक्षा
उठ जाने दो घूँघट उसका
वह भी रखे है व्रत
देनी है उसे भी अरग
और करनी है तुम्हारी पूजा
एक तुम ही तो हो उसकी आस
जब मैं न हूँ आस-पास
लेती है तुम्हें निहार और
भर लेती है कुछ पल
अपनी अंजूरी में
आगमन के एहसास के
और तकने लगती है
राहें मेरी………
रोचिका
शर्मा,चेन्नई
शर्मा,चेन्नई