लघु कथा— ” बुढापा “-कुसुम पालीवाल


     

           

अरे…दीदी…..तंग
करके रखा हुआ है न तो चैन से रहते हैं….. न तो चैन से रहने लायक छोडा है
…..सारे समय की चिकचिक ने नाक में दम कर रखा है. …..।

  
अरे
….किसने
  की तेरी नाक में दम …..किसकी आफत आई …..मैने हंस कर ..
उत्सुकता पूर्वक पूछा…।

अरे
…दीदी ..आप भी…..वही…..ऐ-
204 वाले जैन साहब के घर …।
क्या हुआ
….जैन साहब के घर
?? मैने फिर
पूछा. …..।


जैन भाभी
हैं न…….उनकी सास …बाप रे बाप…..और तो और …अभी तो बुढऊ…भी हैं दीदी
, पूरे …नौ और चार के हो गये
हैं
, तब भी
……बै…..ठै……..

  
अरे रानी
…तू कैसी बात कर रही है …..जिसका सम्मान करना चाहिए इस उम्र में …तू उसी के
लिए
  …अपशब्द बोल रही है ।अरे …ये तो बुढापा है ……. क्या
तुझे नहीं आयेगा
  …? तू क्या ऐसे ही जवान बनी रहेगी क्या. ……?? मैने गुस्से से ..रानी से कहा ।
    
रानी हमारे घर की नौकरानी थी , पुरानी थी इसलिए सिर पर चढी रहती थी
काम अच्छा करती थी साथ में ईमानदार भी थी मैं सर्विस पर जाती पीछे से सारा घर वो
ही संभालती थी
, कि तभी
……नही …दीदी
, वो बात
नहीं है
, मैं.
…..सोच रही थी बुड्ढे इतनी …..खिटखिट क्यों करतें हैं. ….अरे चैन से
रहो…बेचारी जैन भाभी कितना करेंगी
  ।उनकी भी तो उम्र हो गई है बेचारी
….बीमार होने पर भी ध्यान रखतीं हैं
  ..55 के करीब पहुँच चुकी हैं
……अभी भी चैन नहीं है उनके जी को
, मालूम नही उनकी बहुएं इतना कर भी
पायेंगी. ……
?
रानी को
मिसेज जैन से बडी सहानुभूति थी ।



          
रानी ….जीवन मृत्यु अपने
हाथों में नहीं होते
, सब ईश्वर
के हाथ में है लेकिन इतना जरूर समझ ले ……बुढापा एक बच्चे की तरह है
…….वो…वो कैसे दीदी
?? तुरन्त
बीच में ही रानी बोल उठी ।

      
सुन… तेरी बडी खराब आदत है…….ये..जो.. तेरी बीच में
बोलने की. ……।

  ……
जिस तरह
बच्चों को हम अंगुली पकड कर चलना सिखाते हैं और …वो गिरने के डर से
, कस कर अंगुली पकड …सहारे की
उम्मीद कर
, आगे पैर
बढाता है ….उसी प्रकार … “बुढापा ” भी एक तरह का ..बचपन का ही रूप
है. ….।

      
जिस प्रकार ये शरीर मिट्टी से बना और मिट्टी में मिल जाता है
, उसी
प्रकार जीवन का चक्र भी यही है ….बचपन और बुढापा
  एक समान हो जाता है
……क्योंकि प्रकृति का ये नियम है जहाँ से चलते हो वही वापस आना पडता है.
…………। और तू बुढापे को लेकर ऐसा कैसे सोच सकती है
 
……

      
रानी अब पहले से शांत थी और सोच रही थी , कि दीदी कितना अच्छा समझातीं
हैं मुझे तो घर में कोई भी व्यक्ति समझाने वाला नहीं है ।

 
दीदी , आज के बाद मैं बिल्कुल नहीं सोचुंगी
ऐसा
….आपने मेरी आँखे खोल दी
, मै भी
कहीं भटकी हुई थी शायद. …….मै भी अपने सास-ससुर की देखभाल करूँगी ……..।



         
हाँ……यदि किसी इंसान को अपना
आगामी
  जीवन ( बुढापा ) संवारना है तो उसे,, पहले अपने बडों को सम्मान देने की
जरूरत है ……..।

     
यही वो संस्कार हैं रानी …..जिनके तहत ही हम 
….
अपने
बच्चों में ये बीज बो सकते हैं
, जो उनको वापस अपने संस्कारों की तरफ या उनकी जडों की ओर मोड
सकते हैं
  ………. 
 
मेरी
तो… आज की पीढी से सिर्फ एक ही कामना है———।
ग़र दे न सको , कुछ खुशियाँ
और ले न
सको
, कुछ गम
दुःख  दे कर , दुःख देने का
तुम बनों
,
भागीदार. ……..

तो
सम्मान
, तुम्हारा
है ।।

कुसुम पालीवाल 

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