अंतरराष्ट्रीय वृद्धजन दिवस परिचर्चा : लघु कथाओ की लघुपुस्तिका ” चौथा पड़ाव “



                                            

                                                                  अटूट बंधन ने अंतरराष्ट्रीय वृद्ध जन दिवस पर एक परिचर्चा का आयोजन किया था | इसमें सभी ने बढ़ चढ़ कर अपने विचार रखे | विचार रखने का माध्यम चाहे लेख हो , कविता हो ,कहानी हो ……… इन सभी विचारों के माध्यम से  बुजुर्गों की समस्याओ  को समझने का और समाधानों को तलाशने का सिलसिला प्रारंभ  हुआ | ये आगे भी  जारी रहेगा | इसी परिचर्चा के दौरान प्राप्त लघु कथाओ को हम एक लघु पुस्तिका ” चौथा पड़ाव ” के रूप में प्रकाशित कर रहे हैं | जिनको पढ़ कर आप भी कुछ देर ठहरकर सोचने को विवश होंगे | यही हमारा उदीश्य है कि बुजुर्गों की समस्याओ को समझा जाए व् समाधान तलाशे जाए | ” चौथा पड़ाव में आप पढेंगे ………..
डॉली अग्रवाल 
शशि बंसल 
एकता शारदा 
शैल अग्रवाल 
कुसुम पालीवाल 
डिम्पल गौड़ ‘अनन्या ‘
डी डी एम त्रिपाठी 
विभा रानी श्रीवास्तव 
सरिता जैन की लघु कथाएँ 







फेस बुक प्रोफाइल 

रोज की तरह आज फिर मोहन ने उन बुज़ुर्ग दंपति को कोने की सीट पर बैठा देखा | रोज वे लोग उसे टैब चलाते हुए देखते थे |
कल ही बाबा बोले थे — बेटा हमें लैपटॉप पर कुछ काम कराना है तुम कर दोगे ना |
मैंने हां कह दिया था |
में उनके पास पंहुचा तो दोनों खुश हो गए |
लैपटॉप हाथ में दे कर बोले — बेटा फेसबुक पर एक id बना दो हमारी |
सुन चकरा गया , मन ही मन गाली दे डाली – कब्र में पैर अटके है और चले है फेसबुक पर |
किस नाम से बनाऊ बाबा ?
किसी लड़की के नाम से — क्या ? हे भगवान
अच्छा बाबा फ़ोटो किसकी लगाऊ ?
किसी सुंदर सी मॉडल की — हद हो गयी |
मन में आया लैप टॉप पटक कर उठ जाऊ | पर ना जाने क्यों उनके चेहरे की मासूमियत रोक रही थी मुझे|
लेकिन अपने को रोक नहीं पा रहा था |
बेटा , मित्रता के लिए अजय मित्तल का नाम ढूढ़ दो ना | शक गहराता जा रहा था आखिर पूछ ही बैठा — बाबा अजय ही क्यों ?
बाबा ने जो कहाँ उसके बाद मेरी आँखों में आँशु थे | बेटा हमारा अजय बहुत बड़ी कंपनी में काम करता है हमे साथ नहीं रख सकता क्योकि हम गवाँर और अनपढ़ है | बड़े बड़े लोग उसके पास आते है | हमारे एक 5 साल की पोती और गोद में राजकुमार सा पोता है | बगल में किसी ने बताया की सब अपनी और अपनों की फ़ोटो वहा लगते है | किसी मॉडल की फ़ोटो इसलिए ही लगायी की अजय उसे मित्रता में रख लेगा | और हम उसकी बहु की और पोता पोती की फ़ोटो देख लेंगे | पिछले 2 साल से देखा नहीं है | नोकर के हाथ पैसे भेजता है | नहीं जानता वो की हमारी ख़ुशी उस पैसे में नहीं उसमे है |
खुद पर खुद की सोच पर शर्म आ गयी | आँखों से गिरते आँशु से मुझे भी अपनी करनी याद आ गयी | सुबह टूटे माँ के चश्मे पे लड़ाई याद आ गयी | अब कदम बढ़ चले थे एक नया चश्मा लेने की और ||
डॉली अग्रवाल 


2 …………..








वक्ती रिश्ते 
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“सुनिये, चार दिन से माँ के घर से न किसी का फोन आया और न किसी ने मेरा फोन उठाया। भैया और पापा के मोबाइल भी स्विच ऑफ हैं। किसी अनहोनी की आशंका से दिल बैठा जा रहा है,” मधु ने भीगे स्वर में पति से कहा तो वह स्नेहिल स्वर में बोले, ” तो हम चल कर देख आते हैं न ! घंटे भर में पहुँच जाएँगे , बल्कि तुम्हें तो अक्सर उनके साथ ही होना चाहिये। ” पति ने कहा।
रास्ते भर मधु सोच में गुम रही कि कैसे एकदम व्यवसाय में घाटा हुआ और सबका मनोबल टूट गया। सब तथाकथित अपनों के आगे उन्होंने मदद के लिये हाथ फैलाये पर वे छिटक कर दूर हो गये…और उनकी बेबसी के चर्चे नमक -मसाला लगा कर इधर-उधर करने लगे…..बस वह और उसके सहृदय पति ही उनके साथ खड़े थे , पर उनकी सहायता ऊँट के मुख में जीरे की तरह ही साबित हो रही थी।
माँ के घर पहुँच कर मधु ने दरवाजे पर दस्तक देनी चाही तो वह यूँ ही खुल गया…उढ़का हुआ जो था और..और भीतर पहुँच कर उसकी चीख निकल गई…माँ-बाऊजी भैया-भाभी और नन्हीं मुन्नी सब चित्त पड़े थे। पति ने उन सबकी नब्ज़ देखी और कहा,” मधु ! सब खत्म ! “
वह पथराई आँखों से देख रही थी कि अधमरी वो पाँच जानें आज मरण की रस्म भी अदा कर चुकी हैं।
” रिश्तेदारों को फोन तो कर दूँ ,” कहते हुए पति ने मोबाइल निकाला तो वह पागलों की तरह चिल्लाई, ” मैं किसी मतलबी और कमीने रिश्तेदार की छाया तक इन पर नहीं पड़ने दूँगी। पुलिस की कार्यवाही के बाद इनका दाह-संस्कार होगा और मुखाग्नि मैं दूँगी। कोई और कर्मकांड नहीं होगा….मातमपुर्सी भी नहीं और शोक सभा भी नहीं । नहीं चाहिये मुझे कातिल और वक्ती रिश्ते।”
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शशि बंसल 
भोपाल ।






3 ……….


लालची कौन 

अब जल्दी किजिये पिताजी बैंक जाने के लिये लेट हो जाओगे.. थोड़े ऊंचे स्वर में रमेश बोला।
बेटा, मैं सोच रहा हू इस बार पेंशन की रकम में से कुछ निकालकर ब्राह्मण को भोज करवा लू तुम्हारी मां की पुण्यतिथी आ रही है…
कोई जरुरत नही फालतू का खर्चा करने की ये ब्राह्मण व्राह्मण सब लालची होते है आप वो रकम मेरे एकाउंट मे जमा करवाकर मंदिर चले जाना और भगवान को थोड़ा प्रसाद चढाकर सीधे ही मां की आत्मा की शान्ती की प्रार्थना कर लेना कहते हुए रमेश ने एक बीस का नोट अपने पिता के हाथ मेँ थमा दिया।
अब अगर बात लालची इंसान की हो रही थी तो यहाँ लालची कौन था ब्राह्मण या उनका बेटा रमेश सोचते सोचते पिताजी बैंक को रवाना हो गये।
एकता सारदा

4 ………..

भयः 
पति की मृत्यु हो चुकी थी। बच्चे पहले मौके पर ही घोंसला छोड़कर उड़ चुके थे। मधुमेह की बीमारी से पीड़ित पिचहत्तर वर्षीय सामने वाली मिसेज सिंह नाम, पैसा, इज्जत, सबकुछ के बावजूद महल से घर में अकेली ही रहती थीं।
बातों-बातों में उन्होंने बताया कि – ‘ मेरा पैर ठीक से नहीं उठता और चलने में बेहद तकलीफ होती है। समझ में नहीं आता क्या करूँ?’
‘ऐसे में तो आपको अकेले नहीं रहना चाहिए। बेटा या बेटी जिसपर भी ज्यादा भरोसा हो उसके ही पास जाकर रहें।‘ उनके गिरते स्वास्थ को देखकर मैंने चिंता व्यक्त की।
‘पर, चारो ही तो काम पर जाते हैं। न संभाल पाए तो डरती हूँ कहीं ओल्ड पीपल होम या बुढ्ढों के अस्पताल में न भरती करा दें मुझे। यहाँ अपने घर में मन-माफिक तो रहती हूँ। आजाद तो हूँ, मैं। ‘
‘ऐसी बात है तो मदद के लिए चौबीसो घंटे की नौकरानी रख लें देखभाल के लिए। जाने कब क्या जरूरत पड़ जाए! आपके पास किस बात की कमी है!‘
‘क्या है ऐसी कोई तुम्हारी निगाह में, जो अपनों की तरह मेरी देखभाल कर पाए? जितना मांगेगी उतना दूंगी मैं।‘ एकाकी और असुरक्षित, रुँआसी थीं वह अब।
शैल अग्रवाल


5 ……………







बुढ़ापा 


अरे…दीदी…..तंग
करके रखा हुआ है न तो चैन से रहते हैं….. न तो चैन से रहने लायक छोडा है
…..सारे समय की चिकचिक ने नाक में दम कर रखा है. …..।

   
अरे ….किसने  की तेरी नाक में दम …..किसकी आफत आई …..मैने
हंस कर .. उत्सुकता पूर्वक पूछा…।

अरे …दीदी ..आप
भी…..वही…..ऐ-
204 वाले जैन साहब के घर …।
क्या हुआ ….जैन साहब के घर ?? मैने फिर पूछा. …..।
जैन भाभी हैं न…….उनकी सास
…बाप रे बाप…..और तो और …अभी तो बुढऊ…भी हैं दीदी
 , पूरे …नौ और चार के हो गये हैं , तब भी ……बै…..ठै……..
   
अरे रानी …तू कैसी बात कर रही है …..जिसका सम्मान करना चाहिए
इस उम्र में …तू उसी के लिए
  …अपशब्द बोल रही है ।अरे …ये तो बुढापा है ……. क्या तुझे नहीं
आयेगा
  …? तू क्या ऐसे ही जवान बनी रहेगी क्या. ……?? मैने गुस्से से ..रानी से कहा ।
     
रानी हमारे घर की नौकरानी थी , पुरानी थी इसलिए सिर पर चढी रहती थी काम अच्छा करती थी साथ में
ईमानदार भी थी मैं सर्विस पर जाती पीछे से सारा घर वो ही संभालती थी
 , कि तभी ……नही …दीदी , वो बात नहीं है , मैं. …..सोच रही थी बुड्ढे इतनी …..खिटखिट क्यों करतें हैं.
….अरे चैन से रहो…बेचारी जैन भाभी कितना करेंगी
  ।उनकी भी तो उम्र हो गई है बेचारी ….बीमार होने पर भी ध्यान
रखतीं हैं
  ..55 के करीब पहुँच चुकी हैं ……अभी भी चैन नहीं है उनके जी को , मालूम नही उनकी बहुएं इतना कर भी पायेंगी. ……?
रानी को मिसेज जैन से बडी सहानुभूति थी ।
रानी ….जीवन
मृत्यु अपने हाथों में नहीं होते
 , सब ईश्वर के हाथ में है लेकिन इतना जरूर समझ ले
……बुढापा एक बच्चे की तरह है …….वो…वो कैसे दीदी
 ?? तुरन्त बीच में ही रानी बोल उठी ।
       
सुन… तेरी बडी खराब आदत है…….ये..जो.. तेरी
बीच में बोलने की. ……।

  ……
जिस तरह बच्चों को
हम अंगुली पकड कर चलना सिखाते हैं और …वो गिरने के डर से
, कस कर अंगुली पकड …सहारे की उम्मीद कर, आगे पैर बढाता है ….उसी प्रकार …
“बुढापा ” भी एक तरह का ..बचपन का ही रूप है. ….।

       
जिस प्रकार ये शरीर मिट्टी से बना और मिट्टी में
मिल जाता है
 , उसी प्रकार जीवन का चक्र भी यही है ….बचपन और
बुढापा
  एक समान हो जाता है ……क्योंकि प्रकृति का ये
नियम है जहाँ से चलते हो वही वापस आना पडता है. …………। और तू बुढापे को
लेकर ऐसा कैसे सोच सकती है
  ……
       
रानी अब पहले से शांत थी और सोच रही थी , कि दीदी कितना अच्छा समझातीं हैं मुझे तो घर में
कोई भी व्यक्ति समझाने वाला नहीं है ।

  
दीदी , आज के बाद मैं बिल्कुल नहीं सोचुंगी
ऐसा ….आपने मेरी आँखे खोल दी , मै भी कहीं भटकी हुई थी शायद. …….मै भी अपने
सास-ससुर की देखभाल करूँगी ……..।
हाँ……यदि किसी इंसान को
अपना आगामी
  जीवन ( बुढापा ) संवारना है तो उसे,, पहले अपने बडों को सम्मान देने की जरूरत है
……..।

      
यही  वो संस्कार हैं रानी
…..जिनके तहत ही हम
  ….अपने बच्चों में ये बीज बो सकते हैं , जो उनको वापस अपने
संस्कारों की तरफ या उनकी जडों की ओर मोड सकते हैं
  ……….
  
मेरी तो… आज की पीढी से
सिर्फ एक ही कामना है———।
 ग़र दे न सको , कुछ खुशियाँ
और ले न
सको
 , कुछ गम
दुःख  दे कर , दुःख देने का
तुम
बनों
 , न भागीदार. ……..
तो
सम्मान
 , तुम्हारा है ।।
कुसुम पालीवाल 


६ …………… 



श्राद्ध
आज कामिनी सुबह से ही रसोईघर में व्यस्त थी | तभी सोनू आया और कचौड़ियाँ उठाने लगा | “अरे रख जल्दी ! अभी नहीं खानी है कुछ देर सब्र रख बेटा !! और हाँ आप मूलियाँ नहीं लाए | माँ को मूली का कचूमर बेहद पसंद था ! शीघ्र जाइए…पंडिताइन जी बस आती ही होंगी |”
“जा रहा हूँ बाबा !”पतिदेव ने धीमे से कहा |
तभी नन्हा सोनू बोल पड़ा “माँ आज कौनसा त्योंहार है ? हमारी शाला में तो आज अवकाश भी नहीं है !”
“आज तुम्हारी दादी का श्राद्ध है…अभी पंडिताइन जी आएँगी चरण स्पर्श कर ढेर सारा आशीर्वाद ले लेना बेटा उनके अन्दर आज तुम्हारी दादी ही होंगी..समझा !”
“अच्छा माँ….फिर तो आप उन्हें पीछे वाली कोठरी में ही खाना खिलाओगी और उनके अलग रखे बर्तनों में ही खाना परोसोगी न !! लेकिन माँ आज इतने सारे स्वादिष्ट पकवान क्यूँ बना रही हो ? दादी को तो आप रूखी रोटियाँ ही देती थी ..!!”
डिम्पल गौड़ ‘अनन्या’

७  ………….. 

दो वक्त की रोटी 

मैं पैदल एक दिन लखनऊ की मुंशी पुलिया से गुजर रहा था कि अचानक देखा एक शानदार मकान के गेट के अंदर एक 80 साल के बुजुर्ग कातर दृष्टि से मुझे पुकार रहे हैं “बेटा ये 100/ले लो जरा उस ढाबे से कुछ खाना ला दो”मैंने आश्चर्यचकित हो पूछा बाबाजी घर में बच्चे नहीं हैं क्या?नौकर चाकर?
कातर नेत्रों के साथ वह  बोले, ”  बेटा दो साल से एक बेटा परिवार के साथ विदेश में रहता है दूसरा अपने परिवार के साथ अब अलग रहने लगा।बस हम दोनों उनके माँ-बाप इतने बडे घर में रहते हैं ज़माना खराब है नौकर नहीं रख सकते हम,क्या  पता हमें मारकर बच्चों की सम्पत्ति लूट ले?मैं सडक पार नहीं कर सकता क्या करुँ तभी आपसे इससे उससे खाना मंगा लेता हूँ।”अमीर हो या  गरीब आखिर दो वक्त की रोटी तो चाहिए  ही । 

Ddm त्रिपाठी 

८ . . . .



प्यासी जल में सीपी

भूल जाओ पुरानी बातें ……. माफ़ कर दो सबको ….. माफ़ करने वाला महान होता है …… सबके झुके सर देखो ….. बार बार बड़े भैया बोले जा रहे थे …..
बड़े भैया की बातें जैसे पुष्पा के कान सुन ही नहीं थे …..
आयोजन था पुष्पा के 25 वें शादी की सालगिरह का …… ससुराल की तरफ से सभी जुटे थे …… सास ससुर देवर देवरानी ननद संग उनके बच्चे ….. मायके  से आने वाले केवल उसके बड़े भैया भाभी ही थे । बुलाना वो अपने पिता को भी चाहती थी लेकिन उसके पति ने बुलाने से इंकार कर दिया था क्यों कि …………..
नासूर बनी पुरानी बात , ख़ुशी के हर नई बात पर भारी पड़ जाती है न
सास को पुष्पा कभी पसंद नहीं आई ….. पसंद तो वो किसी को नहीं करती थी …. उन्हें केवल खुद से प्यार था और बेटों को अपने वश में रखने के लिए बहुओं के खिलाफ साजिश रचा करती थी …… बेटे भी कान के कच्चे , माँ पर आँख बन्द कर विश्वास करते थे ….. बिना सफाई का मौका दिए , बिना कोई जबाब मांगे अपनी पत्नियों की धुलाई करते
पुष्पा तब तक सब सहती रही जब तक उसका बेटा समझने लायक नहीं हुआ
फिर धीरे धीरे विरोध जताना शुरू किया  लेकिन शादी का सालगिरह क्यों मनाये खुद को समझा नहीं पा रही थी
घर छोड़ चली गई होती तब जब बार बार निकाली गई थी तो……….
बुजुर्ग से बदला कभी नहीं लिया ……लेकिन सोचती रही बुढ़ापा तब दिखलाई नहीं दिया था क्यों??

विभा रानी श्रीवास्तव 

९ ………..




चार बेटों की माँ                                                                

राधिका जी से सब पडोसने ईर्ष्या  करती थीं । उनके चार बेटे जो थे । और राधिका जी … उनके तो पांव जमीन पर नहीं पड़ते थे । हर बेटा माँ को खुश करने की कोशिश करता … ताकि माँ का ज्यादा से ज्यादा प्यार उसे मिल सके । जब राधिका जी सोने चलतीं …. हर लड़का उनसे कहता … माँ मेरी तरफ मुंह करो … मेरी तरफ ..।राधिका जी अक्सर पड़ोसन कांता पर दया करतीं, जिसके एक ही बेटा था । उन्हें लगता बेचारी बुढ़ापे में घर की रौनक को कितना  तरसेगी ।  कहीं और जाना चाहे तो कहाँ जाएगी, एक ही खूंटी में बंधी रहेगी ।और उनके चारों बेटे इसी तरह उन्हें सर -आँखों पर बिठा कर रखेंगे ।
देखते – देखते चारों बेटे बड़े हो गए । सब अपने परिवारो के साथ अलग रहने लगे । एक दिन कांता और राधिका जी मंदिर में मिल गयीं ।
राधिका जी का गला भर आया ‘ क्या बताऊँ … चार बेटे थे, बड़ा घमंड था, चारों के पास आया जाया  करुँगी बुढ़ापा आराम से कट जायेगा । पर बेटे तो मुझसे चतुर निकले । तीन – तीन महीने का समय बाँट दिया है सबके पास रहने के लिए । फुटबॉल की तरह यहाँ से वहां नाचती रहती हूँ ।
हर बेटे – बहू  का प्रयास रहता है की मुझे उनके घर में ज्यादा अच्छा ना लगे क्योंकि अगर अच्छा लग गया तो कहीं वहीँ  ना टिक जाऊं । ऊपर से जब बीमार पड़ती हूँ … तो दवाई के पैसों के लिए चारों झगड़ते हैं कि मैं अकेला क्यों भरूँ । बहुएँ तो सब जगह यही गाती रहती हैं हमारी अम्मा तो घुमंतू हैं , उन्हें एक जगह बंध कर रहना पसंद नहीं । अब किस किस को समझाती फिरूं  पुराने  लोग व्यर्थ में ही औरत की तुलना गाय से नहीं करते थे । उसे तो खूंटे में बंध कर रहना ही पसंद होता है ‘।
और तुम कैसी हो ? राधिका जी ने अपने पल्लू से अपने आंसू पोंछते हुए कांता जी से पूंछा ।
मेरा क्या है … एक ही बेटा है,उसी के पास रहना है । …जाना कहाँ है ? पर बेटा  बहू बहुत ध्यान रखते हैं । ईश्वर की कृपा है ।   सब ठीक चल रहा है  ।
राधिका जी सोंचने लगीं …. की वो कितना गलत सोचती थी की  वो कितनी भाग्यशाली हैं उनके चार बेटे हैं तो उनका बुढापा आराम से कटेगा।   काश ! उन्होंने घमंड करने से पहले समझा होता एक हो या चार इससे कोई फर्क नहीं पड़ता ,बेटा लायक होना चाहिए ।  
सरिता जैन 


संकलन : 
वंदना बाजपेयी 

3 thoughts on “अंतरराष्ट्रीय वृद्धजन दिवस परिचर्चा : लघु कथाओ की लघुपुस्तिका ” चौथा पड़ाव “”

  1. सारे के सारे एक से बढ़कर एक है. मानव की बुढ़ापा दयनीय स्तर को दर्शा कर आँखे नम कर दी| सच में गागर में सागर भर दी. सब कथाकारो को नमन एवं शुभ-कामनाएँ|

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  2. सराहनीय कार्य सिर्फ वृद्धावस्था पर आधारित लघुकथाओं का संकलन
    निकलना ।

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