वृद्ध अवस्था अपने आप में दुखदायक है|इस स्तर में आजादी, सम्मान, क्षमता, मानसिक, शारीरिक शक्ति का हनन होने लगता है|,जिन वृद्धों का लक्ष केवल परिवार रहा हो जब कटु सत्य सामने आता है, पैर तले जमीन खिसक –जाती है उन्हें कई कुंठाओं, व्यथाओं का सामना करना पड़ता है। क्योकि बच्चों के समस्याएं, समय की कमी,उनकी आर्थिक परिस्थितियां, समाज की मांग, स्पर्धा आदि उन्हें रिस्ते को संभालने में असफल बना देते हैं| इनके आलावा व्यक्तियों के संस्कार, ममता आदि का भी असर पड़ता है। लेकिन सर्वविदित है कि आधुनिक समय में संयुक्त परिवार की बात दूर, मूल परिवार भी मिट रहा है, पति, पत्नी,बच्चे तीनो को अलग अलग रहना पड़ता है. समय कहाँ कहाँ ले जाता है इंसान को| यह समाज का प्रारूप है. यह सच्चाई है इसे हम नकारा नहीं सकते| इस यथार्थ को लेकर ही वृद्धो के हलातो के सुधारने का प्रयास करना ही है।
यह सच है हर दूसरे दिन खबर पढ़ते है कि महत्वाकांक्षी बच्चें (४०%) एवं उनके अभिभावकों द्वारा संपत्ति को जबरदस्ती हड़पने के लिए माता पिता को पीटा जा रहा है. उन्हें छोटे तहखाने जैसे कमरे में रखा जा रहा है, अस्वस्थ एवं कमजोर माता-पिता से जबरदस्ती काम ले रहे है|
भारत सरकार ने अपने वरिष्ठ नागरिकों के लिए विभिन्न रियायतें और सुविधाएं प्रदान करता है| बुजुर्ग माता पिता के कल्याण,रखरखाव, आत्म-सम्मान, शांति और रक्षा के लिए केंद्रीय मंत्रिमंडल के नवीनतम निर्णय के अंतर्गत वरिष्ठ नागरिक अधिनियम, 2007 पारित किया है.साथ ही वरिष्ठ नागरिक या माता-पिता को सामान्य जीवन बिताने के लिए बच्चों और रिश्तेदारों पर एक कानूनी जिम्मेदारी सौंपा है। जो, विदेशों में रहने वाले भारतीय नागरिकों सहित सभी पर लिए लागू होता है। राज्य सरकार हर जिले में वृद्धाश्रम का निर्माण करेगा, पर वरिष्ठ नागरिकों के संतान, रिश्तेदारों,को पर्याप्त समर्थन प्रदान करने की आवश्यकता है।
अंतत: हम कहना चाहते है कि बच्चे, अपने पालन पोषण करने की कृतज्ञता स्वरूप और अपनी कल की चिंता कर, माता पिता की सेवा और सम्मान करे| बुजुर्ग भी अपने सरकार द्वारा प्राप्तः सुविधाओ तथा सुरक्षा के प्रति सजग रहे। जिन बच्चो के पास धन की नही, समय का आभाव है वे अपने माता पिता के लिए बुजुर्ग के आवश्यकताओं को ध्यान में रख कर बनाये गए अपार्टमेंट और आधुनिक साधनो का उपलब्ध कराये और मानव होने का एहसास करे| समाज–सेवक भी इस ओर प्रयासरत रहने की कृपा करें|
नागेश्वरी राव
sateek lekh
आपने सही कहा की सरकार ने कानून बनाये हैं भावनात्मक कारणों से व् उन कानून के अनुसार बच्चों व् रिश्तेदारों का कर्तव्य है की वो अपने अपने माता -=पिता का धयान रखे | समय के परिवर्तन को बुजुर्गों को समझ कर उसके अनुसार ढालना होगा ……….. रीता गुप्ता ,कानपुर
आदरणीय नागेश्वरी राव जी सबसे पहले तोमैं आपका विशेष रूप से धन्यवाद देना चाहूंगी कि आपने परिचर्चा में शामिल हर रचना कोनकेवल ध्यानपूर्वक पढ़ा अपितु अपने विशेष कमेंट से इस परिचर्चा को सही दिशा देने में हमारी सहायता की
आपके इस लेखसे बहुत सारे बुजुर्गों कोपता चलेगा की बड़ोंकी देखभाल करना बेटों व्परिवार केसदस्योंका केवल फर्ज ही नहीं है अपितु कानूनन कर्तव्य भीहै | वहीँ बच्चों केपास समयाभाव होनेपर भी वह कैसे माता-पिता की देखभाल करसकते हैं इस परभी प्रकाश डालाहै इस गहनविश्लेष्णात्मक दिशा दिखाते लेख के लिए आपको बधाई व् नमन
वंदना जी आप जैसे हर साहित्यक विधा में लिखने में माहिर, सामाजिक चेंतना से ओतप्रोत, ज्ञान और अवलोकन की प्रतिभा से परिपूर्ण व्यक्तित्व के सम्पादिका को मेरा लेख पसंद आया जानकर अपने ऊपर गरूर आ रहा है।
आप समाज और महिला की समसमाहिक प्रश्नो को लेकर मुद्दा उठाई उस पर हमे नाज है.
कई स्त्रियों की बुद्धि,मन और आत्मा पूर्वाग्रह,सामाजिक प्रथाओ और धार्मिक अस्थावो के ग्रहण से ग्रसित है. जिससे न केवल वह खुद दुखो के दलदल में फाँसी है बल्कि कभी सास, कभी बहू, कभी जेठानी, कभी ननद की विकृतियों को धारण कर अन्य स्त्रियों का हक,धन,सुख तथा शांति हर लेती है. पारिवारिक जीवन, सदस्यों के आपस में मान,ममता,देख-रेख, कर्तव्यो का आदान प्रदान से ही परिपक्क्व और परिपुष्ट होता है । जहाँ संतुलन बिगड़ा वहॉ अशांति फैली. एक तरफा से कोई रिस्ता बन नही पाता| दहशत, अहंकार, आशंका का महोल फैलता रहता है. हम पिछड़े है क्योकि हमने धर्म का सही अर्थ नही पकड़े। करने योग्य काम करने और न करने योग्य काम न करनेवाले को ही धार्मिक कह जाता है. न की अनुष्ठान से. जब हम सृष्टिकर्ता के अनंत एवं व्याप्तः शक्ति,सक्रियता को देखते है आश्चर्य से बाहर निकल नही पायेगे फिर कैसे सोच सकते है कि ऐसे शक्ति को अपने कर्म से नही अपने फूलो-फलों,भूख, पैसे से आकर्षित कर सकते है. मैं जानती हूँ की आप जैसे लोगो को यह सब बताना अपने अल्प बुद्धि का परिचय देना है. पर मन का दर्द आपसे बाँटने तथा इस पर आपको प्रकाश डालने की प्रार्थना करने को जी चाहा, यदि आपको इसमें कोई अनुचित लगा तो क्षमार्थी हूँ|