करवाचौथ के दिन पत्नी सज धज के पति का इंतजार कर रही शाम को घर आएंगे तो छत पर जाकर चलनी में चाँद /पति का चेहरा देखूँगी । पत्नी ने गेहूँ की कोठी मे से धीरे से चलनी निकाल कर छत पर रख दी थी । चूँकि गांव में पर्दा प्रथा एवं सास-ससुर से ज्यादातर काम सलाह लेकर ही करना होता है संयुक्त परिवार में सब का ध्यान भी होता है । और आँखों में शर्म का पर्दा भी होता है { पति को कोई कार्य के लिए बुलाना हो तो पायल ,चूड़ियों की खनक के इशारों ,या खांस कर ,या बच्चों के जरिये ही खबर देना होती । पति घर आये तो साहित्यकार के हिसाब से वो पत्नी से मिले तो कविता के रूप में करवा चौथ पे पत्नी को कविता की लाइन सुनाने लगे -“आकाश की आँखों में /रातों का सूरमा /सितारों की गलियों में /गुजरते रहे मेहमां/ मचलते हुए चाँद
को/कैसे दिखाए कोई शमा/छुप छुपकर जब/ चाँद हो रहा हो जवां “। माँ आवाज सुनकर बोली कही टीवी पर कवि सम्मेलन तो नहीं आरहा ,शायद मै टीवी बंद करना भूल गई होंगी । मगर लाइट तो है नहीं ।फिर अंदर से आवाज आई- आ गया बेटा । बेटे ने कहा -हाँ ,माँ मै आ गया हूँ । अचानक बिजली आगई , उधर सास अपने पति का चेहरा देखने के लिए चलनी ढूंढ रही थी किन्तु चलनी तो बहु छत पर ले गई थी और वो बात सास ससुर को मालूम न थी । जैसे ही पत्नी ने पति का चेहरा चलनी में देखने के लिए चलनी उठाई तभी नीचे से सास की आवाज आई -बहु चलनी देखी क्या? गेहूँ छानना है । बहू ने जल्दीबाजी कर पति का और चाँद का चेहरा देखा और कहा -लाई माँ ।पति ने फिर कविता की अधूरी लाइन बोली – “याद रखना बस /इतना न तरसाना /मेरे चाँद तुम खुद /मेरे पास चले आना “इतना कहकर पति भी पत्नी की पीछे -पीछे नीचे आगया । अब सास ससुर को ले कर छत पर चली गई बुजुर्ग होने पर रस्मो रिवाजो को मनाने में शर्म भी आती है कि लोग बाग क्या कहेंगे लेकिन प्रेम उम्र को नहीं देखता । जैसे ही ससुर का चेहरा चलनी में देखने के लिए सास ने चलनी उठाई नीचे से बहु ने आवाज लगाई-” माजी आपने चलनी देखी क्या ?” आप गेहूँ मत चलना में चाल दूंगी । और चलनी गेहू की कोठी में चुपके से आगई । मगर ऐसा लग रहा था की चाँद ऊपर से सास बहु के पकड़म पाटी के खेल देख कर हँस रहा था और मानो जैसे कह रहा था कि मेरी भी पत्नी होती तो में भी चलनी में अपनी चांदनी का चेहरा देखता ।
को/कैसे दिखाए कोई शमा/छुप छुपकर जब/ चाँद हो रहा हो जवां “। माँ आवाज सुनकर बोली कही टीवी पर कवि सम्मेलन तो नहीं आरहा ,शायद मै टीवी बंद करना भूल गई होंगी । मगर लाइट तो है नहीं ।फिर अंदर से आवाज आई- आ गया बेटा । बेटे ने कहा -हाँ ,माँ मै आ गया हूँ । अचानक बिजली आगई , उधर सास अपने पति का चेहरा देखने के लिए चलनी ढूंढ रही थी किन्तु चलनी तो बहु छत पर ले गई थी और वो बात सास ससुर को मालूम न थी । जैसे ही पत्नी ने पति का चेहरा चलनी में देखने के लिए चलनी उठाई तभी नीचे से सास की आवाज आई -बहु चलनी देखी क्या? गेहूँ छानना है । बहू ने जल्दीबाजी कर पति का और चाँद का चेहरा देखा और कहा -लाई माँ ।पति ने फिर कविता की अधूरी लाइन बोली – “याद रखना बस /इतना न तरसाना /मेरे चाँद तुम खुद /मेरे पास चले आना “इतना कहकर पति भी पत्नी की पीछे -पीछे नीचे आगया । अब सास ससुर को ले कर छत पर चली गई बुजुर्ग होने पर रस्मो रिवाजो को मनाने में शर्म भी आती है कि लोग बाग क्या कहेंगे लेकिन प्रेम उम्र को नहीं देखता । जैसे ही ससुर का चेहरा चलनी में देखने के लिए सास ने चलनी उठाई नीचे से बहु ने आवाज लगाई-” माजी आपने चलनी देखी क्या ?” आप गेहूँ मत चलना में चाल दूंगी । और चलनी गेहू की कोठी में चुपके से आगई । मगर ऐसा लग रहा था की चाँद ऊपर से सास बहु के पकड़म पाटी के खेल देख कर हँस रहा था और मानो जैसे कह रहा था कि मेरी भी पत्नी होती तो में भी चलनी में अपनी चांदनी का चेहरा देखता ।
संजय वर्मा “दृष्टि “
रोचक कथा !