जब कभी हमारे पूर्वजों ने यह खोजा होगा की स्थूल व् सूक्ष्म दो रूपों से मिलकर एक जीवित शरीर बनता है | तभी से उन्होंने जान लिया था की तन का संसार चलाने के लिए जिस तरह भोजन व् अन्य भौतिक वस्तुओं की आवश्यकता होती हैं , उसी तरह मन का संसार चलाने भावनाओं की आवश्यकता होती हैं | और भावनाएं प्रवाहित होती हैं शुद्ध प्रेम से | वो प्रेम चाहे ईश्वर के लिए हो ,प्रकृति के लिए हो पशु पक्षी के लिए या तमाम मानवीय रिश्तों के लिए , उसे ताज़ा रखने के लिए सबसे ज्यादा जरूरी होती हैं अभिव्यक्ति | शायद इसी लिए इतने सारे त्योहार बनाए गए जो प्रेम की भावना को खुल कर अभिव्यक्त करने का अवसर दें और रिश्तों को सींच कर तारो ताज़ा कर दें | चाहे वो भाई –बहन के प्रेम का प्रतीक रक्षा –बंधन, भाई दूज हो , माँ संतान के प्रेम का प्रतीक अहोई अष्टमी , जीवित पुत्रिका या सकट चौथ हो , पति –पत्नी के प्रेम का प्रतीक तीज या करवा चौथ हो |
स्त्री हो या पुरुष दोनों अपने –अपने तरीके से रिश्तों के पौधे को हरा करने का प्रयास करते हैं | पर धयान से देखा जाए तो इन सब व्रतों के केंद्र में स्त्री ही हैं | स्त्री अपने प्रेम को कभी भोजन के माध्यम से ,कभी सेवा के माध्यम से व् कभी व्रत उपवास के माध्यम से व्यक्त करती हैं | तभी स्त्री घर की धुरी हैं | वह त्याग और प्रेम के धागे में हर रिश्ते को पिरो कर भावनाओ की खूबसूरत माला बनाती है | अब पति –पत्नी के प्रेम के प्रतीक पर्व करवाचौथ को ही लीजिये |कितना अनमोल रिश्ता है पति -पत्नी का | विवाह चाहे प्रेम विवाह हो , या परिवार द्वारा अरेंज , दोनों ही परिस्तिथियों में ह्रदय यह स्वीकार तो करता ही हैं कि ” कल तक जो अनजाने थे , जन्मों के मीत हैं | गठबंधन की गाँठ लगते ही मन कभी न मिटने वाली पवित्र गाँठ से बंध जाता है | करवा चौथ में स्त्री अपने पति की लम्बी आयु के लिए निर्जल व्रत रखती है , करवे के जल में चीनी की मिठास घोल कर अपने दाम्पत्य जीवन में मिठास की मंगल कामना करती हुई जब प्रेम के प्रतीक चंद्रमा को अर्घ देकर चलनी से पति का चेहरा देखकर यह प्रार्थना करती है कि इस चलनी से चलकर सारे सुख उसके पति को मिले व् सारे दुःख उसके हिस्से में आ जाये , तो इस निर्मल मनोभावों से परस्पर प्रेम की गाँठ कैसे न मजबूत हो | जब पत्नी दुल्हन की तरह अपने सजना के लिए सजती हैं तो प्रेम के , तकरार की , मनुहार की न जाने कितनी स्मृतियाँ ताज़ा हो उठती हैं | यही तो है इस त्यौहार का महत्व ” उपजी प्रीत पुनीत ” का सबल ले कर नयी उर्जा के साथ उनका दाम्पत्य फिर से मुखर हो उठता है | हालाँकि आज के ज़माने में कुछ पति भी अपनी पत्नियों की लम्बी उम्र की प्रार्थना करते हुए व्रत रखते हैं | एक साथ अर्घ देकर जल ग्रहण करते हैं | जो शायद स्त्री –पुरुष समानता के साथ प्रेम के बंधन को एक पायदान और ऊपर कर देता है |
वहीँ दूसरी ओर यह भी सत्य है की और त्यौहारों की तरह इस पर्व को भी बाजारवाद ने अपनी गिरफ्त में ले लिया है | प्राचीन काल से श्रृंगार भले ही स्त्री की प्रिय वस्तु रही हो | पर इसका पर्व की मूल भावना से ऊपर उठ जाना कहीं न कहीं रिश्तों की मिठास पर प्रश्न चिन्ह अवश्य लगाता है | पर जिस श्रद्धा से आज की नव् विवाहिताएं भी इस पर्व को मनाती हैं उससे यह कहा जा सकता है कि इस तडक –भड़क के आवरण के नीचे प्रेम अभी भी अपने शाश्वत रूप में विधमान है |
वंदना बाजपेयी
नोट ; ‘अटूट बंधन ‘ब्लॉग पर हम पति –पत्नी के प्रेम के प्रतीक करवाचौथ पर एक विशेष उत्सव का आयोजन कर कर रहे हैं ……….” अटल रहे सुहाग “
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