पढ़ो,
बढ़ो,
जीवन के
दुर्गम पर्वत चढ़ो।
मिलें
बाधाएँ
रौंद उन्हें
नव पथ गढ़ो।
दिखे
कहीं
अन्याय, सहो न
आगे बढ़ लड़ो।
पथ
अपना
चुन, उस पर
अकेले ही बढ़ो।
अँधियारा,
डरना कैसा?
अपना
दीपक आप बनो।
रंग
भले ही
हों कितने भी
बस भोलापन चुनो।
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कॉपीराइट@डॉ.भारती वर्मा बौड़ाई।
outstanding and remarkable feelings and expression style .