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मेरी बचपन की प्यारी सखी गौरैया! तुम्हें पता है आज विश्व गोरैया दिवस है। इसे एक तरह से इसे मैं तुम्हारा जन्मदिवस ही मानती हूँ। सो मेरी प्यारी सखी!जन्मदिवस की बहुत बहुत शुभकामनाएँ। तुम्हें याद होगा, बचपन में माँ से आलू-प्याज रखने वाली टोकरी माँग कर ,पापा से उसमें सुतली बंधवाती थी । एक लकड़ी की सहायता से उसे खड़ा करते, उसके नीचे चावल के दाने बिखेर कर, मैं पापा के साथ सुतली पकड़ कर तुम्हारे इंतज़ार में छिप कर बैठ जाती थी। तुम आती और चावल खा कर फुर्र से उड़ जाती, और मैं देखने के चक्कर में सुतली खींचना ही भूल जाती थी। माँ अलग डाँटती कि खाना छोड़ कर चिड़िया के चक्कर में लगे हो।
पर कभी कभी तुम मेरे झाँसे में आकर टोकरी में बंद हो जाती थी और मैं अपनी विजय पर फूली नहीं समाती थी। थोड़ी देर तुम्हें देखती, चावल के और दाने डालती, एक कटोरी में पानी रखती थी। फिर थोड़ी देर बाद टोकरी उठा कर तुम्हें उड़ा देती थी। न जाने कितनी बार हम-तुम इसी तरह बचपन में मिलते रहे।
अब तुम्हारा आना कम हो गया। हम मनुष्य अपने लिए ही सोचने वाले बन गए। कभी सोचा ही नहीं कि अपने लिए सुविधाएँ जुटाने के चक्कर में हम तुम्हारे लिए कितनी कठिनाइयाँ उत्पन्न कर रहे हैं।
पर मेरी सखी! अब तुम बिलकुल चिंता मत करो। अब सभी तुम्हारी चिंता करने लगे हैं। कई एन. जी.ओ. तुम्हारे संरक्षण के लिए कार्य कर रहे हैं। कई घरों में लोगों ने तुम्हारे लिए घोंसले लगवाए है। अब गर्मियाँ आ रही हैं, तो लोगों ने अभी से मिट्टी के बर्तन में तुम्हारे लिए पानी रखना आरंभ कर दिया है, चावल के दाने, रोटी रखने लग गए हैं। आज तुम्हारा जन्मदिवस मान कर मेरे दोनों बच्चे भी मिट्टी का बर्तन लाने गए हैं,ताकि नए बर्तन में वे तुम्हारे लिए पानी भर कर रख सकें। इसी तरह सभी लोग अब तुम्हारी चिंता करके तुम्हारे संरक्षण के लिए सोचने और कार्य करने में लग गए हैं।
जैसे तुम मेरे बचपन की सखी हो हो, उसी तरह न जाने कितनों की तुम सखी होंगी। वे सब भी मेरी ही तरह बचपन की पुरानी स्मृतियों में तुम्हें देख रही होंगी। तुम हमारे आँगन आनाओ मत भूलना। आज की नई पीढ़ी ने अपने ढंग से तुम्हारे लिए सपने देखे हैं। उन्हें निराश न करना। तुम बिन आँगन सूना है, घर में लगे वृक्ष तुम्हारी राह देख रहे हैं। बताओ मेरी सखी गोरैया! कब आ रही हो हमारे घर। पानी का नया बर्तन तुम्हें बुला रहा है।
……….आज विश्व गोरैया दिवस पर उसके संरक्षण के लिए हम सब कुछ न कुछ सार्थक सोचें और करें।
डॉ भारती वर्मा बौड़ाई
मेरी बचपन की प्यारी सखी गौरैया! तुम्हें पता है आज विश्व गोरैया दिवस है। इसे एक तरह से इसे मैं तुम्हारा जन्मदिवस ही मानती हूँ। सो मेरी प्यारी सखी!जन्मदिवस की बहुत बहुत शुभकामनाएँ। तुम्हें याद होगा, बचपन में माँ से आलू-प्याज रखने वाली टोकरी माँग कर ,पापा से उसमें सुतली बंधवाती थी । एक लकड़ी की सहायता से उसे खड़ा करते, उसके नीचे चावल के दाने बिखेर कर, मैं पापा के साथ सुतली पकड़ कर तुम्हारे इंतज़ार में छिप कर बैठ जाती थी। तुम आती और चावल खा कर फुर्र से उड़ जाती, और मैं देखने के चक्कर में सुतली खींचना ही भूल जाती थी। माँ अलग डाँटती कि खाना छोड़ कर चिड़िया के चक्कर में लगे हो।
पर कभी कभी तुम मेरे झाँसे में आकर टोकरी में बंद हो जाती थी और मैं अपनी विजय पर फूली नहीं समाती थी। थोड़ी देर तुम्हें देखती, चावल के और दाने डालती, एक कटोरी में पानी रखती थी। फिर थोड़ी देर बाद टोकरी उठा कर तुम्हें उड़ा देती थी। न जाने कितनी बार हम-तुम इसी तरह बचपन में मिलते रहे।
अब तुम्हारा आना कम हो गया। हम मनुष्य अपने लिए ही सोचने वाले बन गए। कभी सोचा ही नहीं कि अपने लिए सुविधाएँ जुटाने के चक्कर में हम तुम्हारे लिए कितनी कठिनाइयाँ उत्पन्न कर रहे हैं।
पर मेरी सखी! अब तुम बिलकुल चिंता मत करो। अब सभी तुम्हारी चिंता करने लगे हैं। कई एन. जी.ओ. तुम्हारे संरक्षण के लिए कार्य कर रहे हैं। कई घरों में लोगों ने तुम्हारे लिए घोंसले लगवाए है। अब गर्मियाँ आ रही हैं, तो लोगों ने अभी से मिट्टी के बर्तन में तुम्हारे लिए पानी रखना आरंभ कर दिया है, चावल के दाने, रोटी रखने लग गए हैं। आज तुम्हारा जन्मदिवस मान कर मेरे दोनों बच्चे भी मिट्टी का बर्तन लाने गए हैं,ताकि नए बर्तन में वे तुम्हारे लिए पानी भर कर रख सकें। इसी तरह सभी लोग अब तुम्हारी चिंता करके तुम्हारे संरक्षण के लिए सोचने और कार्य करने में लग गए हैं।
जैसे तुम मेरे बचपन की सखी हो हो, उसी तरह न जाने कितनों की तुम सखी होंगी। वे सब भी मेरी ही तरह बचपन की पुरानी स्मृतियों में तुम्हें देख रही होंगी। तुम हमारे आँगन आनाओ मत भूलना। आज की नई पीढ़ी ने अपने ढंग से तुम्हारे लिए सपने देखे हैं। उन्हें निराश न करना। तुम बिन आँगन सूना है, घर में लगे वृक्ष तुम्हारी राह देख रहे हैं। बताओ मेरी सखी गोरैया! कब आ रही हो हमारे घर। पानी का नया बर्तन तुम्हें बुला रहा है।
……….आज विश्व गोरैया दिवस पर उसके संरक्षण के लिए हम सब कुछ न कुछ सार्थक सोचें और करें।
डॉ भारती वर्मा बौड़ाई