# समीक्षा आलेख : ” गहरी रात के एकांत की कविताएँ “
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कोई छायाकार रात की नींद में जाकर जिन दृश्यों के बारे में सोचता है , उन दृश्यों को दिन में कैमरे में क़ैद करते हुए वह अपनी नींद को सार्थक करता है । ठीक उसी तरह एक कवि दिन में देखे , भोगे हुए यथार्थ को गहरी रात के एकांत में काग़ज़-क़लम लिए अपना कवि-धर्म समझकर प्रकट करता है । सुपरिचित कवि सुशांत सुप्रिय ऐसे ही कवियों में हैं जो पूरी ईमानदारी व मासूमियत से अपने देखे , भोगे हुए यथार्थ को अपनी कविताओं में दर्ज़ करते चले जाते हैं :
मैंने अपनी बाल्कनी के गमले में
वयस्क हाथ बो दिए
वहाँ कोई फूल नहीं निकला
किंतु मेरे घर का सारा सामान
चोरी होने लगा ( मासूमियत / पृ. 9 ) ।
सुशांत सुप्रिय की कविताओं में जो भी दर्ज है , सब उल्लेखनीय है । उल्लेखनीय इसलिए भी है क्योंकि इनके यहाँ मनुष्य अपने कठिन-जटिल समय से पराजित नहीं होता , न किसी को पराजित होने देता है । यहाँ पूरी मनुष्यता जीतती दिखाई देती है :
हारकर मैंने अपनी बाल्कनी के गमले में
एक शिशु मन बो दिया
अब वहाँ एक सलोना सूरजमुखी
खिला हुआ है ( वही ) ।
सुशांत के संग्रह की लगभग सारी कविताएँ एक अच्छे आदमी , एक अच्छे नागरिक की कविताएँ हैं जो अच्छाई के पक्ष में लड़ाई के मूलार्थ सही तरीके से ज़ाहिर कर पाने में सक्षम दिखाई देती हैं । इन कविताओं की भाषा हमें गहराई तक प्रभावित करती है :
हर हत्या के बाद
वहीं से जी उठता हूँ
जहाँ से मारा गया था
जहाँ से तोड़ा गया था
वहीं से घास की नई पत्ती-सा
फिर से उग आता हूँ ( हर बार / पृ. 61 ) ।
दुनिया भर में आदमी के विरुद्ध षड्यंत्र बढ़ते चले जा रहे हैं । सुशांत सुप्रिय भी अपनी कविताओं के माध्यम से इनका मुक़ाबला करते हैं । उनकी कविताएँ हमें अपने समय के दुखों से निजात दिलाने के लिए सदैव तत्पर रहती हैं :
तुम आई
और मैं तुम्हारे लिए
सर्दियों की
गुनगुनी धूप हो गया ( विडम्बना / पृ. 84 ) ।
मेरे विचार से सुशांत सुप्रिय की कविताएँ समकालीन हिंदी कविता में किसी सुखद अनुभूति की तरह हैं — ‘ आकाश को नीलाभ कर रहे पक्षी ‘ और ‘ पानी को नम बना रही मछलियों ‘ की तरह । या फिर ‘ आत्मा में धार ‘ की तरह ।
कवि : सुशांत सुप्रिय / प्रकाशक : अंतिका प्रकाशन , C-56 , यूजीएफ़ – 4 ,
शालीमार गार्डन एक्सटेंशन- 2 , ग़ाज़ियाबाद – 201005 ( उ. प्र. ) / वर्ष:2015 /
मूल्य : ₹335/- ; मो: ( कवि ) : 8512070086
Very Impressive review!