अपना -अपना स्वार्थ

 
एक  बार एक
आदमी अपने छोटे से बालक के साथ एक घने जंगल से जा रहा था!   तभी रास्ते मे
उस बालक को प्यास लगी ,  और उसे पानी पिलाने उसका पिता उसे एक  नदी पर ले
गया , नदी पर पानी पीते पीते अचानक वो बालक पानी मे गिर गया ,  और डूबने से
उसके प्राण निकल गए!   वो आदमी बड़ा दुखी हुआ,  और उसने सोचा की इस घने
जंगल मे इस बालक की अंतिम क्रिया किस प्रकार करूँ !   तभी उसका रोना सुनकर
एक गिद्ध ,  सियार और नदी से एक कछुआ वहा आ गए ,  और उस आदमी से सहानुभूति
व्यक्त करने लगे ,  आदमी की परेशानी जान कर सब अपनी अपनी सलाह  देने लगे!

सियार ने
लार टपकाते हुए कहा ,  ऐसा करो   इस बालक के शरीर को इस जंगल मे ही किसी
चट्टान के ऊपर छोड़ जाओ, धरती  माता इसका उद्धार कर देगी!   तभी गिद्ध अपनी
ख़ुशी छुपाते हुए बोला,    नहीं धरती पर तो इसको जानवर खा जाएँगे,     ऐसा
करो इसे किसी वृक्ष के ऊपर डाल दो ,ताकि सूरज की गर्मी से इसकी अंतिम गति
अच्छी होजाएगी!    उन दोनों की बाते सुनकर कछुआ भी अपनी भूख को छुपाते हुआ
बोला ,नहीं आप इन दोनों की बातो मे मत आओ, इस  बालक की जान पानी मे गई है, 
इसलिए आप इसे नदी मे ही बहा दो !
और इसके
बाद तीनो अपने अपने कहे अनुसार उस आदमी पर जोर डालने लगे !   तब उस आदमी ने
अपने विवेक का सहारा लिया और उन तीनो से कहा ,  तुम तीनो की सहानुभूति भरी
सलाह मे   मुझे तुम्हारे स्वार्थ की गंध आ रही है,  सियार चाहता  है  की
मैं इस बालक  के शरीर को ऐसे ही जमीन पर छोड़ दूँ  ताकि ये उसे आराम से खा
सके,  और गिद्ध   तुम  किसी पेड़ पर इस बालक के शरीर  को इसलिए रखने की
सलाह दे रहे हो ताकि इस सियार और कछुआ से बच कर आराम से तुम दावत उड़ा सको
,  और कछुआ   तुम नदी के अन्दर रहते हो   इसलिए नदी मे अपनी दावत का इंतजाम
कर रहे हो  !  तुम्हे सलाह देने के लिए  धन्यवाद , लेकिन मै इस बालक के
शरीर  को अग्नि को समर्पित करूँगा ,  ना की तुम्हारा भोजन बनने दूंगा!   
यह सुन कर वो तीनो  अपना सा मुह लेकर वहा से चले गए!

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