सच की राहों में देखे हैं कांटे बहुत,












सच की राहों में देखे हैं कांटे बहुत,
पर,कदम अपने कभी डगमगाए नहीं।
बदचलन है जमाने की चलती हवा,
इसलिए दीप हमने जलाए नहीं

खुद को खुदा मानते जो रहे,
उनके आदाब हमने बजाए नहीं।
धधकते रहे,दंश सब सह गये,
किंतु,पलकों पे आंसू सजाए नहीं।



ओमकार मणि त्रिपाठी 


प्रधान संपादक – अटूट बंधन एवं सच का हौसला 







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